dasramumaurya

dasramumaurya कबीर, रस्सी बंधी पांव में, तू क्यों सोए सुख चैन।
ये श्वास नगाड़े मौत के, बाज रहे दिन रैन॥
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🔹सूरत फुरकानि-25 (कुरआन शरीफ से हिंदी)आयत नं. 52अल्लजी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा...
24/10/2024

🔹सूरत फुरकानि-25 (कुरआन शरीफ से हिंदी)
आयत नं. 52
अल्लजी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अल्लअर्शि ज अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्।
विवेचन:- (आयत नं. 52) जो अल्लाह कुरआन (मजीद व शरीफ) का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को बता रहा है, वह कह रहा है कि हे पैगम्बर! तुम काफिरों की बात न मानना क्योंकि वे कबीर अल्लाह को नहीं मानते। उनका सामना (संघर्ष) मेरे द्वारा दी गई कुरआन की दलीलों के आधार से बहुत जोर से यानि दृढ़ता के साथ करना अर्थात् वे तुम्हारी न मानें कि कबीर अल्लाह ही समर्थ (कादर) है तो तुम उनकी बातों को न मानना
#खुदा_का_नाम_कबीर



🎈संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि पवित्र कुरान में आत्मा के जन्म-मृत्यु के चक्र का उल्लेख है, जबकि डॉ. जाकिर नाइक इसे न...
14/10/2024

🎈संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि पवित्र कुरान में आत्मा के जन्म-मृत्यु के चक्र का उल्लेख है, जबकि डॉ. जाकिर नाइक इसे नकारते हैं। पवित्र कुरान सूरह अर-रूम 30:11 और सूरत अंबिया 21:104 में लिखा है कि परमात्मा सृष्टि का निर्माण और विनाश करते हैं, जो पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता है। संत रामपाल जी प्रमाणित करते हैं कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस चक्र से बाहर निकलना जरूरी है, जबकि डॉ. नाइक इस सत्य को नहीं मानते।




07/09/2024

पूरे विश्व में मनाया जा रहा है जगत के तारणहार संत "संत रामपाल जी महाराज" का 74वां अवतरण दिवस

भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 7 और 8

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

अर्थ: जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का अभ्युत्थान होता है, तब-तब मैं (भगवान) अपनी सृष्टि के कल्याण के लिए अवतरित होता हूँ। साधुओं की रक्षा, दुष्टों के विनाश, और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।

संत रामपाल जी महाराज का अवतरण

सर्वशक्तिमान परमेश्वर, संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्माता, समय-समय पर इस मृत्युलोक में अवतरित होते हैं। वर्तमान समय में, संत रामपाल जी महाराज के रूप में भगवान की दिव्य लीला चल रही है। 8 सितंबर वह शुभ दिन है जब हर साल संत रामपाल जी महाराज का अवतार दिवस मनाया जाता है। तत्वदर्शी सन्त सन्त रामपाल जी का 8 सितंबर को 74वाँ अवतरण दिवस है। अवतरण दिवस की तैयारी जोरों पर शुरू हो चुकी है। इस अवसर पर विभिन्न सतलोक आश्रमों में अखंड पाठ एवं भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा। गौरतलब है कि सन्त जी के अनुयायी विभिन्न सामाजिक कार्यों में अपने गुरु के निर्देशन अनुसार तत्पर रहते हैं। कबीर प्रकट दिवस, बोध दिवस एवं जन्म दिवस जैसे अवसरों पर भंडारे एवं पाठ के साथ सामाजिक कार्य भी किये जाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि सन्त रामपाल जी कबीर पंथी सन्त हैं जिनका पंथ यथार्थ कबीर पंथ माना जाता है। संत रामपाल जी महाराज के विषय में पवित्र शास्त्रों में पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं, जिनमें भगवद गीता, वेद, कुरान शरीफ, बाइबल, और गुरु ग्रंथ साहिब शामिल हैं। ये सभी प्रमाण संत रामपाल जी को सत्य परमात्मा के रूप में प्रमाणित करते हैं।

तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के विषय में जानकारी

संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को हरियाणा के सोनीपत जिले के धनाना गाँव में हुआ था। आध्यात्मिक गुरु बनने से पहले वे सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। 1988 में उन्होंने गुरु स्वामी रामदेवानंद जी से दीक्षा ली और 1994 में अपने गुरु से नामदीक्षा देने का आदेश प्राप्त किया। संत रामपाल जी का एकमात्र उद्देश्य संसार के पीड़ित आत्माओं को काल जाल से मुक्त कर उन्हें मोक्ष की ओर ले जाना है। वे शास्त्रों के प्रमाण के आधार पर सत्य भक्ति की राह दिखाते हैं, जिससे मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य प्राप्त हो सकता है।

दुनिया के कई महान भविष्यवक्ताओं ने संत रामपाल जी महाराज के बारे में भविष्यवाणियां की हैं, जिनमें नास्त्रेदमस भी शामिल हैं। उन्होंने कहा था कि एक महान आध्यात्मिक नेता भारत में प्रकट होगा, जो सम्पूर्ण विश्व को सत्य भक्ति का मार्ग दिखाएगा और स्वर्ण युग का प्रारम्भ करेगा।

आश्रमों में गूंजेगा अखंड पाठ

सन्त रामपाल जी के जन्म दिवस के अवसर पर सभी सतलोक आश्रमों, सतलोक आश्रम किठौदा इंदौर (मध्यप्रदेश), सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा), सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली), सतलोक आश्रम रोहतक (हरियाणा), सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा), सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान), सतलोक आश्रम शामली (उत्तर प्रदेश), सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब), सतलोक आश्रम खामाणों (पंजाब) में सन्त गरीबदास जी द्वारा रचित सतग्रन्थ साहेब की अखंड पाठ की वाणी गूँजेगी। इस अवसर पर निशुल्क विशाल भंडारा भी आयोजित होगा। प्रसाद के रूप में लड्डू एवं जलेबी का वितरण भी किया जाएगा। इस अवसर पर प्रत्येक आश्रम प्रत्येक दिन लाखों लोगों के आवागमन की संभावना जताई जा रही है।

सामाजिक उत्थान में संत रामपाल जी का योगदान

संत रामपाल जी महाराज ने समाज में दहेज प्रथा, नशाखोरी, भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं को मिटाने में बड़ा योगदान दिया है। उनके शिष्यों ने सत्य भक्ति का अनुसरण करते हुए समाज में एक नई दिशा दी है। सन्त रामपाल जी वास्तव में समाज सुधारक हैं। समाज को सच्ची दिशा उन्होंने अपने सत्संगों के माध्यम से दी है। सन्त रामपाल जी के अनुयायी अपने गुरु आदेश पर चलकर दहेज एवं नशे जैसे कार्यों से दूर रहते हैं। आँकड़े गवाह हैं कि दहेज के नाम पर अनेकों बेटियां जलाई गई हैं एवं इस कारण से अनेकों भ्रूण हत्याएं हुई हैं। सन्त रामपाल जी महाराज के आदेश से उनका कोई भी अनुयायी विवाह के समय व्यर्थ का दिखावा एवं दहेज के लेन-देन नहीं करता है। हैरानी की बात तो ये है कि सन जी के अनुयायी नशा करना तो दूर उसे देना या क्रय-विक्रय भी नहीं करते। यह वास्तव में सभी के लिए अनुकरणीय है। सन्त रामपाल जी के अनुयायी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होते हैं। देश को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो भारत को नशामुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त एवं दहेजमुक्त बनाने में सहयोग दे सकें।

देहदान एवं रक्तदान शिविर का आयोजन

सन्त जी के अवतरण दिवस के आयोजन पर रक्तदान एवं देहदान शिविर का आयोजन करने की तैयारियाँ आरम्भ हो चुकी हैं। सन्त जी ने अपने प्रवचनों में दान तथा परोपकार के महत्व का वर्णन बताया है। परोपकार के किये हजारों यूनिट रक्तदान सतलोक आश्रमों, सतलोक आश्रम किठौन्दा इंदौर (मध्यप्रदेश), सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा), सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली), सतलोक आश्रम रोहतक (हरियाणा), सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा), सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान), सतलोक आश्रम शामली (उत्तर प्रदेश), सतलोक आश्रम धुरी (पंजाब), सतलोक आश्रम खामाणों (पंजाब) में रक्तदान शिविरों में होगा। इसके साथ ही देहदान शिविर का भी आयोजन किया जाएगा जिसमें भक्तजन स्वेच्छा से अपने शरीर को मृत्योपरांत दान करने के लिए रजिस्ट्रेशन करेंगे। निश्चित ही ये सभी कार्य सराहना का विषय हैं और अनुकरणीय भी हैं।

इस साल 6 सितंबर से 8 सितंबर 2024 तक, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 74वे अवतरण दिवस के अवसर पर एक विशेष समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस समागम पर आयोजित किए जाने वाले विशेष कार्यक्रम कुछ इस प्रकार है:

* निःशुल्क भंडारा: सभी आगंतुकों के लिए 6 से 8 सितंबर 2024 तक निःशुल्क भंडारे का आयोजन होगा।
* निःशुल्क नाम दीक्षा: इस अद्वितीय अवसर पर संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त की जा सकती हैं।
* 3 दिवसीय अखंड पाठ: 6 से 8 सितंबर 2024 तक, 3 दिनों तक अखंड पाठ का आयोजन होगा।
* रक्तदान शिविर, निशुल्क नेत्र व दांतो की जांच, दहेज मुक्त विवाह और आध्यात्मिक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है।
* विशेष सत्संग प्रसारण: 8 सितंबर 2024 को संत रामपाल जी महाराज के सत्संग का विशेष प्रसारण साधना टीवी चैनल पर सुबह 9:15 बजे (IST) से होगा।
* सोशल मीडिया प्रसारण: इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण निम्नलिखित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर भी उपलब्ध होगा:
page:- Spiritual Leader Saint Rampal Ji
YouTube:- Sant Rampal Ji Maharaj
Twitter:-

आप सभी इस महान अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें और इस आध्यात्मिक समागम के आयोजन का लाभ उठाएं। वहीं इस कार्यक्रम में आने के लिए आप निम्न स्थानों पर आ सकते हैं:

1. सतलोक आश्रम धनाना धाम, सोनीपत, हरियाणा
2. सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
3. सतलोक आश्रम धूरी, पंजाब
4. सतलोक आश्रम खमाणों, पंजाब
5. सतलोक आश्रम सोजत, राजस्थान
6. सतलोक आश्रम शामली, उत्तर प्रदेश
7. सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र, हरियाणा
8. सतलोक आश्रम भिवानी, हरियाणा
9. सतलोक आश्रम बैतूल, मध्य प्रदेश
10. सतलोक आश्रम इंदौर, मध्य प्रदेश

संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry

07/09/2024
07/09/2024
🧩राधास्वामी पंथ का प्रवर्तक बना प्रेतफाउंडर ऑफ राधास्वामी शिवदयाल जी हठयोग किया करते थे। 2-3 दिन तक खुद को एक कमरे में ब...
13/08/2024

🧩राधास्वामी पंथ का प्रवर्तक बना प्रेत

फाउंडर ऑफ राधास्वामी शिवदयाल जी हठयोग किया करते थे। 2-3 दिन तक खुद को एक कमरे में बन्द करके हठयोग करते थे जो लगभग 15 साल तक किया। जबकि गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में हठयोग करने वालों को राक्षस कहा गया है अर्थात शास्त्रों में हठयोग निषेध है।

यही कारण रहा कि हठयोग को करते-करते भी शिवदयाल जी प्रेत बने। आज ये ही क्रिया राधास्वामी पंथ में की जा रही है, तो आप ही विचार करो कि इससे आपको क्या लाभ प्राप्त होगा! #राधास्वामी_प्रवर्तकबना_प्रेत




13/08/2024

#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart66 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणpart67

"तीर्थ स्थापना के प्रमाण"

1. शुक्र तीर्थ कैसे बना? श्री ब्रह्मा पुराण लेखक कृष्णद्वेपायन अर्थात व्यास जी प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर पृष्ठ 167-168 पर भृगु ऋषि का पुत्र कवि अर्थात शुक्र ने गौतमी नदी के उत्तर तट पर जहाँ भगवान महेश्वर की आराधना करके विद्या पायी थी, वह स्थान शुक्र तीर्थ कहलाता है।

2. सरस्वती संगम तीर्थ तथा पुरूरव तीर्थ श्री ब्रह्मा पुराण पृष्ठ 172-173 पर :- एक दिन राजा पुरूरवा, ब्रह्मा जी की सभा में गये, वहाँ ब्रह्मा जी की पुत्री सरस्वती को देखकर उससे मिलने की इच्छा प्रकट की। सरस्वती ने हाँ कर दी। सरस्वती नदी के तट पर सरस्वती तथा पुरूरवा ने अनेक वर्षों तक संभोग (सैक्स) किया। एक दिन ब्रह्मा ने उनको विलास करते देख लिया। अपनी बेटी को शाप दे दिया। वह नदी रूप में समा गई। जहाँ पर पुरूरवा तथा सरस्वती ने संभोग किया था। वह पवित्र तीर्थ सरस्वती संगम नाम से विख्यात हुआ। जहाँ पर पुरूरवा ने महादेव की भक्ति की वह स्थान पुरूरवा तीर्थ नाम से विख्यात हुआ।

3. वृद्धा संगम तीर्थ श्री ब्रह्मा पुराण पृष्ठ 173 से 175: एक गौतम ऋषि थे। उनका एक हजार वर्ष की आयु तक विवाह नहीं हुआ। वह वेद ज्ञान भी नहीं पढ़ा था केवल गायत्री मंत्र याद था। उसी का जाप करता था। एक दिन वह एक पर्वत पर एक गुफा में गया। वहाँ पर नब्बे हजार वर्ष की आयु की एक वृद्धा स्त्री मिली। दोनों ने विवाह किया। एक दिन वशिष्ठ ऋषि तथा वाम देव ऋषि वहाँ गुफा में अन्य ऋषियों के साथ आए। उन्होंने गौतम ऋषि का उपहास किया कहा हे गौतम जी ! यह वृद्धा आप की माँ है या दादी माँ? उनके जाने के पश्चात् दोनों बहुत दुःखी हुए। अगस्त ऋषि की राय से गोदावरी नदी के गौतमी तट पर गये और कठोर तपस्या करने लगे। उन्होंने भगवान शंकर और विष्णु का स्तवन किया तथा पत्नी के लिए गंगा जी को भी खुश किया। गंगा ने उनके तप से प्रसन्न होकर कहा- ब्राह्मण आप मन्त्र पढ़ते हुए मेरे जल से अपनी पत्नी का अभिषेक करो। इससे वह रूपवती हो जाएगी। गंगा जी के आदेश से दोनों ने एक-दूसरे के लिए ऐसा ही किया। दोनों पति-पत्नी सुन्दर रूप वाले हो गये। वह जल जो मन्त्रों का था। उससे वृद्धा नाम नदी बह चली। उसी स्थान पर गौतम ऋषि ने उस वृद्धा के साथ जो युवती हो गई थी। मन भरकर संभोग किया। तब से उस स्थान का नाम "वृद्धा संगम" तीर्थ हो गया। वहीं पर गौतम ऋषि ने साधनार्थ एक शिवलिंग स्थापित किया था। वह भी वृद्धा के नाम पर वृद्धेश्वर कहलाया। इस वृद्धा संगम तीर्थ की कथा सब पापों का नाश करने वाली है। वहाँ किया हुआ स्नान-दान सब मनोरथों को सिद्ध करने वाला है।

4. अश्वतीर्थ अर्थात् भानु तीर्थ तथा पंचवटी आश्रम की स्थापना :- श्री ब्रह्मा पुराण पृष्ठ 162-163 तथा श्री मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 173 से 175 पर लिखा है :- "महर्षि कश्यप के ज्येष्ठ पुत्र आदित्य (सूर्य) है, उनकी पत्नी का नाम उषा है (मार्कण्डेय पुराण में सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा लिखा है जो महर्षि विश्वकर्मा की बेटी है) सूर्य की पत्नी अपने पति सूर्य के तेज को सहन न कर सकने के कारण दुःखी रहती थी। एक दिन अपनी सिद्धि शक्ति से अन्य स्त्री अपनी ही स्वरूप की उत्पन्न की उसे कहा आप मेरे पति की पत्नी बन कर रहो तेरी तथा मेरी शक्ल समान है। आप यह भेद मेरी सन्तान तथा पति को भी नहीं बताना यह कह कर संज्ञा (उषा) तप करने के उद्देश्य से उत्तर कुरूक्षेत्र में चली गई वहाँ घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या करने लगी। भेद खुलने पर सूर्य भी घोड़े का रूप धारण करके वहाँ गया जहाँ संज्ञा (उषा) घोड़ी रूप में तपस्या कर रही थी। घोड़े रूप में सूर्य ने घोड़ी रूप धारी संज्ञा से संभोग करना चाहा। उषा (संज्ञा) घोड़ी रूप में वहाँ से भाग कर गौतमी नदी के तट पर आई घोड़ा रूप धारी सूर्य ने भी पीछा किया। वहाँ आकर घोड़ी रूप में अपने पतिव्रत धर्म की रक्षा के लिए घोड़ा रूप धारी पति को न पहचान कर उस की ओर अपना पृष्ठ भाग न करके मुख की ओर से ही सामना किया। दोनों की नासिका मिली। सूर्य वासना के वेग को रोक नहीं सके तथा घोड़ी रूप धारी उषा (संज्ञा) के मुख ओर ही संभोग करने के उद्देश्य से प्रयत्न किया। नासिका द्वारा वीर्य प्रवेश से घोड़ी रूप धारी उषा के मुख से दो पुत्र अश्वनी कुमार (नासत्य तथा दस्र) उत्पन्न हुए तथा शेष वीर्य जमीन पर गिरने से रेवन्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह स्थान अश्व तीर्थ भानु तीर्थ तथा पंचवटी आश्रम नाम से विख्यात हुआ। उसी स्थान पर सूर्य की बेटियों का अरूणा तथा वरूणा नामक नदियों के रूप में समागम हुआ। उसमें भिन्न-2 देवताओं और तीर्थों का पृथक-पृथक समागम हुआ है। उक्त संगम में सताईस हजार तीर्थों का समुदाय है। वहाँ किया हुआ स्नान व दान अक्षय पुण्य देने वाला है। नारद ! उस तीर्थ के स्मरण से कीर्तन और श्रवण से भी मनुष्य सब पापों से मुक्त हो धर्मवान् और सुखी होता है।

5. जन स्थान तीर्थ की स्थापना: श्री ब्रह्म पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) पृष्ठ 161-162 पर :- ऋषि याज्ञवल्क्य से राजा जनक ने पूछा कि हे द्विजश्रेष्ठ ! बड़े-2 मुनियों ने निर्णय किया है कि भोग और मोक्ष दोनों श्रेष्ठ हैं। आप बताएँ! भोग से भी मुक्ति प्राप्त कैसे होती है? ऋषि याज्ञवल्क्य जी ने कहा इस प्रश्न का उत्तर आप श्वशुर वरूण जी ठीक 2 बता सकते हैं। चलो उनसे पूछते हैं। दोनों भगवान वरूण के पास गए तथा वरूण ने बताया कि "वेद में यह मार्ग निश्चित किया है कि कर्म न करने की उपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ कर्म से बंधे हुए हैं। नृप श्रेष्ठ ! कर्म द्वारा सब प्रकार से साध्यों की सिद्धी होती है, इसलिए मनुष्यों को सब तरह से वैदिक कर्म का अनुष्ठान करना चाहिए। इससे वे इस लोक में भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं। अकर्म से कर्म पवित्र है। इसके पश्चात् राजा जनक ने ऋषि याज्ञवल्क्य को पुरोहित बनाकर गंगा के तट पर अनेकों यज्ञ किए। इसलिए उस स्थान का नाम "जन स्थान" तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। उस तीर्थ का चिन्तन करने, वहाँ जाने और भक्ति पूर्वक उसका सेवन (पूजन) करने से मनुष्य सब अभिलाषित वस्तुओं को पाता है और मोक्ष का भोगी होता है।

उपरोक्त पुराणों के लेखों का निष्कर्ष :-

प्रमाण संख्या 1 में कहा है कि भृगु ऋषि के पुत्र शुक्र ने गौतमी नदी के उत्तर तट पर साधना की थी जिस कारण से वह स्थान शुक्र तीर्थ नाम से विख्यात हुआ।

यदि कोई उस शुक्र तीर्थ में केवल स्नान व वहाँ पर बैठे कामचोर व्यक्तियों को दान करने से ही मोक्ष मानता है वह ज्ञानहीन व्यक्ति है। परमात्मा की साधना जैसे शुक्राचार्य ने की थी। वैसी ही साधना किसी भी स्थान पर कोई साधक करेगा तो शुक्राचार्य को जो लाभ हुआ था वह प्राप्त होगा।

यही स्थिति प्रमाण संख्या 5 की समझें की गंगा के तट पर जिस स्थान पर राजा जनक ने अनेकों अश्वमेघ यज्ञ किए। एक अश्वमेघ यज्ञ में करोंड़ों रूपये (वर्तमान में अरबों रूपये) खर्च हुए थे।

तब राजा जनक को स्वर्ग प्राप्ति हुई थी। यदि कोई अज्ञानी कहे कि उस जन स्थान तीर्थ पर जाने व स्नान करने तथा वहाँ उपस्थित ऐबी (शराब, तम्बाकू व मांस सेवन करने वाले) व्यक्तियों कों दान करने से राजा जनक वाला लाभ मिलेगा। क्या यह बात न्याय संगत है? इतना कुछ करने के पश्चात् भी राजा जनक मुक्त नहीं हो सका। वही आत्मा कलयुग में सन्त नानक जी के रूप में श्री कालु राम महता के घर जन्मा। फिर पूर्ण परमात्मा की भक्ति पूर्ण गुरु कबीर परमेश्वर से नाम प्राप्त करके की तब मोक्ष प्राप्त हुआ।

प्रमाण संख्या 2 में ब्रह्मा की बेटी सरस्वती ने पूरूरवा नामक राजा के साथ अपने पिता से छुपकर सैक्स (संभोग) किया। जब पिता जी ने उन्हें ऐसा करते देखा तो श्राप दे दिया। वह स्थान जहाँ पर सरस्वती ने तथा राजा पुरूरवा ने दुराचार किया उस स्थान का नाम सरस्वती संगत तीर्थ विख्यात हुआ।

* विचार करें: क्या ऐसे स्थान पर जाने व स्नान करने से कोई लाभ हो सकता है?

प्रमाण संख्या 3 में कहा है कि एक गौतम नामक ऋषि ने एक हजार वर्ष की आयु में नब्बे हजार वर्ष की आयु की वृद्धा से विवाह किया।
अपने को युवा बनाने के उद्देश्य से दोनों ने गोदावरी नदी के गौतमी तट पर कठोर तप किया। पश्चात् मन्त्रों से जल मन्त्रित करके एक-दूसरे पर डाला। दोनों युवा हो गये। तत्पश्चात् उस स्थान पर दोनों ने मन भर कर संभोग अर्थात् विलास (सेक्स) किया। वह स्थान वृद्धा संगम तीर्थ कहलाया। विचार करने योग्य बात है कि ऐसे स्थानों पर जाने से आत्म कल्याण के स्थान पर पतन ही होगा। आत्म उद्वार नहीं।
अपने को युवा बनाने के उद्देश्य से दोनों ने गोदावरी नदी के गौतमी तट पर कठोर तप किया। पश्चात् मन्त्रों से जल मन्त्रित करके एक-दूसरे पर डाला। दोनों युवा हो गये। तत्पश्चात् उस स्थान पर दोनों ने मन भर कर संभोग अर्थात् विलास (सेक्स) किया। वह स्थान वृद्धा संगम तीर्थ कहलाया।

विचार करने योग्य बात है कि ऐसे स्थानों पर जाने से आत्म कल्याण के स्थान पर पतन ही होगा। आत्म उद्वार नहीं।

प्रमाण संख्या 4 में कहा है कि सूर्य की पत्नी घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या कर रही थी। सूर्य काम वासना (सेक्स प्रेसर) के वश होकर घोड़ा रूप धारण करके घोड़ी रूप धारी अपनी पत्नी के पास गया। घोड़ी ने उसे अपने पृष्ठ भाग (पीछे) की ओर नहीं जाने दिया। सूर्य इतना सैक्स प्रेसर (काम वासना के दबाव) में था कि उसने घोड़ी के मुख की ओर ही संभोग क्रिया प्रारम्भ की जिस कारण से उन्हें तीन पुत्र प्राप्त हुए। वह स्थान अश्व तीर्थ नाम से विख्यात हुआ।

वहीं पर सूर्य की दो बेटियाँ जाकर नदी बन कर बहने लगी। जिस कारण से वही स्थान पंचवटी आश्रम नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। उसी स्थान को भानू तीर्थ भी कहा जाता है। इस तीर्थ का लाभ लिखा है कि इसके स्मरण से तथा कीर्तन करने से तथा इसकी कथा श्रवण करने से सब पापों से मुक्त होकर धर्मवान और सुखी होता है।

विचार करो पुण्यात्माओं! क्या ऐसी कथाओं को सुनने तथा ऐसे स्थान पर जाने से आत्म कल्याण सम्भव है? इसलिए शास्त्रों (पाचों वेदों, गीता जी) के अनुसार भक्ति करने से सर्व पापों से मुक्त होकर पूर्ण मोक्ष सम्भव है।

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry

12/08/2024

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भारतीय संस्कृति और साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनका जन्म 11 अगस्त, 1511 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था। तुलसीदास जी को रामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसे उनके स्थायी कार्यों के लिए जाना जाता है, जिन्हें आज भी भारतीय समाज में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। उनके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों, भारतीय संस्कृति पर उनके लेखन के प्रभाव और रामचरितमानस के महत्व को जानने के लिए हमारे ब्लॉग पर जाएँ: https://bit.ly/4dhBDaE

12/08/2024

पंजाब भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक राज्य है, और इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ है, यह क्षेत्र अपनी समृद्ध संस्कृति, भोजन, संगीत और ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं पंजाब प्रांत के बारे में कुछ जानकारी: https://bit.ly/4dE7zps

 #सतलोक_जाने_के_बाद_पुनर्जन्म_नहीं_होता🎈पुनर्जन्म नहीं होतासंत गरीबदास जी ने कहा है कि ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार...
29/07/2024

#सतलोक_जाने_के_बाद_पुनर्जन्म_नहीं_होता
🎈पुनर्जन्म नहीं होता

संत गरीबदास जी ने कहा है कि

ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार।
ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।

अर्थात सतलोक में परम शांति, सुख व अमृत्व है। अर्थात सतलोक में जन्म-मृत्यु यानि पुनर्जन्म नहीं होता, वह अविनाशी लोक है।


29/07/2024
08/07/2024
08/07/2024

#भारतीय_मीडिया_की_गिरती_गरिमा
🚫फ़र्ज़ी ख़बरों का जाल, मीडिया का असली हाल

झूठ: ABP News, Hindustan Times ने संत रामपाल जी महाराज को दंगा कराने और अवैध हिरासत में रखने वाला कहकर आरोप लगाया।

सच: इन बिकाऊ न्यूज़ चैनलों को यह तक पता नहीं कि दंगा कराने और अवैध हिरासत में रखने वाला जो झूठा केस संत रामपाल जी पर लगाया गया था। उसमें कोर्ट संत रामपाल जी महाराज को 29 अगस्त 2017 को पहले ही बाइज़्ज़त बरी कर चुका है। तो झूठ की फैक्ट्री चलाने वाले इन न्यूज़ चैनलों और इनके हुड़क चुल्लू एंकरों को कुछ तो शर्म करनी चाहिए।

#झूठीमीडिया_शर्म_करो #मीडिया_का_काम_अफवायें_फैलानानहीं_सच्चाई_बताना_है

🚫द इंडियन एक्सप्रेस सत्य दिखाओद इंडियन एक्सप्रेस, आप लोग अधूरी खबर दिखाते हो, सत्य भी तो दिखाओ कि संत रामपाल जी पर जितने...
06/07/2024

🚫द इंडियन एक्सप्रेस सत्य दिखाओ

द इंडियन एक्सप्रेस, आप लोग अधूरी खबर दिखाते हो, सत्य भी तो दिखाओ कि संत रामपाल जी पर जितने आरोप लगे थे वे झूठे थे और 6 से अधिक केसों में संत रामपाल जी बाइज़्ज़त बरी हो चुके हैं।
#झूठीमीडिया_शर्म_करो #मीडिया_का_काम_अफवायें_फैलानानहीं_सच्चाई_बताना_है

02/07/2024

SA News | वायुमंडल में कौनसी गैस, पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर लेती है?

A. ओजोन
B. मीथेन
C. नाइट्रोजन
D. हीलियम

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स्वर्ग लोक, ब्रह्मलोक और सतलोक में अंतरश्रीमद्देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कन्ध के पृष्ठ 123 के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु औ...
02/07/2024

स्वर्ग लोक, ब्रह्मलोक और सतलोक में अंतर
श्रीमद्देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कन्ध के पृष्ठ 123 के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी नाशवान हैं यानी देवताओं का स्वर्गलोक भी नाशवान है।
ब्रह्म ने गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है ब्रह्मलोक तक सभी प्राणी पुनर्जन्म के चक्र में हैं। यानी स्वर्ग और ब्रह्मलोक तक गए प्राणियों को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
जबकि संत गरीबदास जी महाराज ने मोक्ष स्थान सतलोक के विषय में कहा है:
ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार।
ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।
#कौनसा_है_मोक्ष_स्थान

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