Anmol vachan mm

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11/10/2024

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ॐ श्रीसद्गुरवे नमः
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आधुनिकतम कड़ी के रूप में परिगणित हैं । भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास पावन गंगा-तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज भी अध्यात्म-ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है ।
महर्षि का अवतरण विक्रमी संवत् 1942 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल, सन् 1885 ई0, मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले (अब मधेपुरा जिले) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम (मझुआ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था ।
महर्षि का जन सामान्य के लिए उपदेश था कि ईश्वर की खोज के लिए कहीं बाहर मत भटको; उसे मानस जप, मानस ध्यान, दृष्टियोग और नादानुसंधान (सुरत-शब्दयोग) के द्वारा अपने ही शरीर के अन्दर खोजो । ईश्वर की भक्ति करने के लिए कोई खास वेश-भूषा धारण करने की जरूरत नहीं है ।
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गुरुदेव का ये अनमोल वचन स्वामी आशुतोष बाबा के द्वारा संकलित एवं संपादित "महर्षि मेँहीँ की सूक्तियाँ" से लिया गए हैं।
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 #महर्षि_मेंही_के_अनमोल_वचन
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 #महापुरुषों_की_सूक्तियां
05/01/2024

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कृपया फोटो को टच करें
09/12/2023

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प्रभु प्रेमियों ! *मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के रास्ते पर चलने वाले सभी आध्यात्मिक पथिकों,* सत्संगियों, विद्वानों जो स...
27/10/2023

प्रभु प्रेमियों ! *मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के रास्ते पर चलने वाले सभी आध्यात्मिक पथिकों,* सत्संगियों, विद्वानों जो सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के ज्ञान-ध्यान का अनुसरण करते वाले और संतमत के ज्ञान को सर्वोपरि माननेवाले हैं उन सभी महानुभावों को "महर्षि मेँहीँ पदावली की प्रश्नोत्तरी" नामक पुस्तक का अध्ययन-मनन अवश्य करना चाहिए । क्योंकि इसमें *244 ऐसे प्रश्नों* के उत्तर दिए गए हैं जो प्रत्येक सत्संगियों एवं आध्यात्म पथिकों के मानस पटल पर प्रायः उभरा करते हैं और इसका समाधान वे विभिन्न तरह के महापुरुषों से चर्चा करके जानना चाहते हैं। उन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर इस पुस्तक में दिए गए हैं। *244* *प्रश्नों के उत्तर और समाधान किस तरह वेद-उपनिषद, संतवाणी और संतमत पदावली सम्मत उद्धरणों सहित बताया गया है* इसका एक नमूना आपको एक प्रश्न एवं उसके उत्तर में देखना चाहिये--

*प्रश्न--* यदि प्रतिदिन सत्संग न करके प्रतिदिन केवल ध्यानाभ्यास पर ही अधिक बल दिया जाए, तो क्या अच्छा नहीं होगा?

*उत्तर* -- प्रतिदिन सत्संग और ध्यानाभ्यास- दोनों करने चाहिए। जो प्रतिदिन सत्संग न करके प्रतिदिन ध्यानाभ्यास ही किया करेगा, उसको हानि ही होगी, लाभ नहीं। सत्संग करने से धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है तथा ध्यानाभ्यास करने की प्रेरणा भी मिलती है। ज्ञान-विवेक के अभाव में कोई भवसागर तर नहीं सकता। 'योगशिखोपनिषद्' में कहा गया है कि केवल योग से या केवल ज्ञान से किसी को परम मोक्ष नहीं मिल पाता । परम मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्ञान और योग- दोनों का अभ्यास करना चाहिए। 'मानस' की नवधा भक्ति में पहले संत-संग (सत्संग) करने के लिए कहा गया है, फिर ध्यान आदि। ऋषि-मुनि और संत ध्यान छोड़कर भी सत्संग के वचनों को सुना करते थे।

जीवनमुक्त ब्रह्मपर, चरित सुनहिं तजि ध्यान । जे हरिकथा न करहिं रति, तिन्हके हिय पाषान ॥ (मानस, उत्तरकांड )

तुलसिदास हरि गुरु करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई । बिनु बिबेक संसार घोर निधि, पार न पावइ कोई ॥ (विनय पत्रिका)

योगहीनं कथां ज्ञानं मोक्षदं भवतीह भोः । योगोऽपि ज्ञानहीनस्तु न क्षमो मोक्षकर्मणि ॥ तस्माज्ज्ञानं च योगं च मुमुक्षुर्दृढमभ्यसेत् । (योगशिखोपनिषद्)

सत्जन सेवन करत, नित्य सत्संगति करना । वचन अमिय दे ध्यान, श्रवण करि चित में धरना ॥ मनन करत नहिं बोध, होइ तो पनि समझीजै । अरे हाँ रे 'मेंहीँ', समझि बोध जो होइ रहनि ता सम करि लीजै ॥ (४४ वाँ पद्य)∆

*स्तुति प्रार्थना सहित इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी सहित इसे अभी ओनलाइन खरीदने के लिए लिंक--*
https://www.satsangdhyan.com/2023/10/maharshi-menheen-padaavalee-kee-prashnottaree.html

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