13/06/2023
आज से 40-50 साल पहले सब कुछ ऑर्गेनिक ही था ... हर किसान के पास गोबर की ख़ाद थी.. यूरिया के लिये शहर जाकर लाईन में नहीं लगणा पड़ता था ... खुद के खेत का बीज था... अगली फसल के लिये अपणे खेत का अच्छी क्वालिटी का बीज बचाकर रखता था ... खेती बाड़ी पूरी तरह आत्मनिर्भर थी l
बाजार में बैठा दुकानदार बोला : आपके पास उन्नत किस्म के बीज नही है... यह बेकार है .. आपको अच्छी पैदावार नही देते.. ये बीज की थैली ले जाओ एक बार ।
किसान भोला था .. महंगी बीज की थैली ले गया... खेत में बुवाई करदी... उन बीजो के साथ किसान के खेत में जहरीली विदेशी खतपतवार उग गयी ।
खेत में अजनबी घास खेत मे देखकर किसान फिर दुकानदार के पास गया ... दुकानदार बोला : ये दवाई ले जाओ खेत में छिड़काव करो... मजबूरी में किसान को उस खतपतवार को खत्म करने की जहरीली दवाई चुपचाप खरीदणी पड़ी l
कमजोर बीज से कमजोर पौधे खड़े हुऐ.. तो कीट उनसे चिपक गये .. तो बनियाँ बोला : ये कीटनाशक छिड़को तथा रासायनिक खाद डालो... तभी अच्छी पैदावार मिलेगी ।
मरता क्या न करता.. किसान को रसायनिक खाद और कीटनाशक खरीदणा पड़ा ... अच्छी पैदावार के चक्कर में हर बार दोगुना रसायनिक खाद और कीटनाशक छिड़कने लगा ... क्योकि वह बीज ही इस तरह के थे बिना रसायनिक खाद और कीटनाशक के पैदावार दे ही नही सकते थे l हर बार पहले से ज्यादा जहर चाहिये जैसे नशेड़ी को हर आने वाले दिन हाई-डोज़ चाहिये ।
अब किसान दुकानदार यानि कॉरपोरेट के चंगुल में पूरी तरह फँस चूका था.. जीनोम सीड खरीद कर l
... गुलामी हमेशा बीज से शुरू होती है l
धीरे धीरे किसान की जमीन एक शराबी की तरह हो गयी... आदी बन गयी जहर की .. किसान भी कर्ज के बोझ तले दबता चला गया l किसान को कुछ समझ नहीं आ रहा था .. उसने भी दारू में अपणा एस्केप रूट तलाशा.. अब धरती को भी नशा चाहिये और किसान को भी ... दोनों आदी हो चूके नशे के और बणिये की पौ बारह पच्चीस l
किसान के खुड बिकणे लगे.. तो किसान स्प्रे /पेस्टिसाइड खुद पीणे लगा l
अब धरती बंजर हो गयी... मिट्टी दूषित/जहरीली हो गयी ... पेस्टीसाइड से हवा पानी सब कुछ जहरीला हो गया.. पशुओं के भी टीके लगणे शुरू हो गये l
कॉरपोरेट ने बीज /खाद और कीटनाशक का बड़ा बाजार खड़ा कर लिया... केंसर जैसी भयानक बीमारियों का जन्म हुआ... ड्रग इंडस्ट्री ने मानव औषद्यी का भी बड़ा बाजार खड़ा कर लिया क्योंकि रसायनिक खाद से पैदा हुऐ अन्न ने मानव शरीर को बीमार बना दिया ... रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो गयी ... आज हर मानव शरीर अन्न कम खाता है दवाई ज्यादा... सच कहें तो सिर्फ दवाईयो पर जिंदा है ।
आज किसान की खेती पूरी तरह से दुकानदार के कब्जे में है ... वह जब चाहे देश मे अन्न संकट पैदा कर सकता है ... किसान पूरी तरह से कॉरपोरेट/कंपनियों का गुलाम है उसके पास न देसी खाद है न देसी बीज l
अब दुकानदार वह कह रहा है .. आपने अपनी जमीन को बंजर कर दिया है.. जहरीला कर दिया है... आप जैविक खाद खरीदो .. वो जैविक खाद जो पहले सिर्फ किसान के पास थी ।
उधर दुकानदारों के घर में भी केंसर होने लगा .. सुगर पर तो उनका आनुवंशिक अधिकार था ही ... औरतें बाँझ होणे लगी और मर्द नपूँसक l
अब बाजार को हर चीज ऑर्गेनिक चाहिये ... बिना रासायनिक खाद और पेस्टीसाइड का गेहूँ ... बिना इंजेक्शन की सब्जी ... देशी गाय का दूध .. दूध ना मिले तो देशी गाय का मूत ही ला दो ..सेठ/सेठाणी को दिल का दौरा पड़ा है.. बाजार के 15-16 साल के बच्चे एक एक क्विंटल के हो रहे हैं .. मात्र अपणा शरीर ढो सकें वह भी एक अचीवमेंट है ll
अब सरकार/ एग्री साइंटिस्ट कह रहे हैं .. पारम्परिक खेती मत करो..बागवानी करो/ हर्बल खेती करो/औषधिय पौधे ऊगाओ/ कमर्शियल खेती करो .. ऊगा तो लेगा किसान पर यहाँ भी वही दुकानदार का रोल.. किसान को मार्केटिंग नहीं आती.. अपणा प्रोडक्ट सीधे इंडस्ट्री को बेचना नहीं आता .. मतलब मुनाफा वसूली कोई और करेगा .. कटणा हर हाल में खरबुजे को ही है ll
सरकार को कृषि के लिए एक लौंग टर्म प्लानिंग की ज़रूरत है । ज़रूरत है विशेषज्ञों कि जो खेत में जाकर शोध कर सकें और देश की मिट्टी को पहचाने और उनकी उपरक क्षमता को बढ़ाने को काम करें
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