19/11/2024
साभार.....
हम सब जानते हैं कि #महादेव के जटा के पास एक चाँद बनाया जाता है मानो कि महादेव ने माँ गंगा की तरह चाँद को भी धारण कर रखा हो.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की हर मूर्ति/फोटो में उनकी जटा में चाँद को क्यों दिखाया जाता है ?
दरअसल, भगवान शिव के जटा पर चंद्रमा के होने की कथा आदि सतयुग काल से जुड़ती है जब धरती पर ब्रह्मा पुत्र #दक्ष_प्रजापति का शासन था.
ब्रह्मदेव का एक सर काट लेने एवं उनकी पूजा प्रतिबंधित कर देने के कारण प्रजापति दक्ष, महादेव को अपना शत्रु मानते थे.
इसीलिए, प्रजापति दक्ष ने एक महासभा बुलाकर महादेव को भी पूजा से वंचित कर दिया.
लेकिन, संयोग से उसी समय चंद्रमा जो कि दक्ष प्रजापति के दामाद थे.. भी वंसन्तोउत्सव में भाग लेने अपने ससुराल आए हुए थे.
असल में, चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों से हुआ था...
लेकिन, किसी कारणवश चंद्रमा रोहिणी से बहुत प्यार करते थे जबकि,अन्य को वे पत्नी तक नहीं मानते थे.
जिससे उनकी अन्य पत्नियाँ बेहद दुखी रहती थी.
जब ये बात दक्ष प्रजापति को ज्ञात हुई तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी पत्नियों से भेदभाव को बेहद गंभीर अपराध एवं समाज के लिए एक गलत उदाहरण मानते हुए चंद्रमा को "क्षय" होने का शाप दे दिया.
दक्ष प्रजापति का शाप मिलते ही चंद्रमा मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े.
जब ये बात चंद्रमा के माता-पिता अर्थात ऋषि अत्रि और सती अनुसुइया को मिली तो वे भागे भागे दक्ष प्रजापति के यहाँ आये और अपने पुत्र को इस तरह मूर्छित देखकर विलाप करने लगे.
उनका विलाप देखकर ऋषि कश्यप ने उन्हें उपाय बताया कि यदि महादेव के #महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाए तो चंद्रमा का क्षय रुक सकता है.
लेकिन, मुसीबत ये थी कि वो महामृत्यंजय मंत्र मार्कण्डेय ऋषि के पास थी जिसे उन्होंने सार्वजनिक नहीं किया था.
दूसरी मुसीबत ये थी कि चूंकि उस समय महादेव, प्रजापति दक्ष से शापित थे इसीलिए उनकी पूजा भी नहीं की जा सकती थी.
जबकि, चंद्रमा के इस तरह मूर्क्षित होने एवं उसके क्षय (मृत्यु) हो जाने के शाप के कारण सृष्टि का संतुलन गड़बड़ा जाने का भय उत्पन्न हो गया था.
ऐसी विकट स्थिति में, भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव ने मंत्रणा कर ये उपाय निकाला कि.... शाप तो महादेव को है अर्थात महादेव की पूजा नहीं हो सकती.
परंतु, महादेव तो अर्धनारीश्वर हैं... अर्थात, उनमें शिव और शक्ति का दो भाग है जो अभी अलग-अलग है.
क्योंकि, अभी महादेव का सती से विवाह नहीं हुआ है जो कि आदिशक्ति की रूप है.
इसीलिए, यदि महादेव के आधे अंश अर्थात सती की पूजा की जाए तो महादेव का ये शाप टूट जाएगा.
इस तरह... भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव ने सती की पूजा की तथा महादेव को शापमुक्त कर दिया.
उधर, ऋषि अत्रि और सती अनसुइया अपने पुत्र को लेकर मार्कण्डेय ऋषि के पास चले गए जहाँ से ऋषि मार्कण्डेय ने उन्हें प्रभास क्षेत्र में भेज दिया क्योंकि वहाँ क्षय की गति कम थी.
खैर, महादेव के शापमुक्त होते ही माता सती ने मार्कण्डेय ऋषि से महामृत्यंजय मंत्र लिया और अन्य ऋषियों के साथ उसका जाप करने लगी.
महामृत्यंजय मंत्र के जाप से महादेव प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को जीवित कर दिया.
लेकिन, महादेव ने भी अपनी दोनों पत्नियों में भेदभाव करने को अक्षम्य गलती मानते हुए प्रजापति दक्ष के शाप (सजा) को पूर्णतया खत्म करने में असमर्थता जताई.
लेकिन, महामृत्युजंय मंत्र के जाप के कारण उन्हें अभय दान भी दिया.
इस तरह, बीच का रास्ता निकालते हुए महादेव ने चन्द्रमा को अपने सर पर धारण कर लिया ताकि भविष्य में फिर कभी उसपर प्रजापति दक्ष का शाप पूर्णरूपेण फलीभूत न हो सके.
इसीलिए, प्रजापति दक्ष के शाप के कारण चंद्रमा का 15 दिन क्षय होना निश्चित हुआ और महादेव के अभय दान के कारण चंद्रमा का अगले 15 दिन तक बढ़ना निश्चित हुआ.
ये सारी घटना प्रभास क्षेत्र अर्थात आज के गुजरात प्रान्त सोमनाथ में घटित हुई थी.
इसीलिए, सोमनाथ को धरती का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है.
और, महादेव के चंद्रमा को अपने सर पर धारण करने की इसी घटना के कारण जब भी महादेव की प्रतिमा या चित्र बनाए जाते हैं तो उसमें चंद्रमा को हमेशा महादेव के सर पर (जटाओं में) दिखाया जाता है.
हर हर महादेव...!!
जय महाकाल...!!!