16/12/2023
सारी गलती मेरी ही थी...
किसी दूसरे के मुहँ से यह पांच शब्द सुनने के लिए हमारे कान कितना तरसते हैं?
हमें लगता हैं कि उसके मुहँ से निकले यह पांच शब्द हमारे जीवन की हर तकलीफ का अंत कर सकते हैं, हमारे जीवन की हर खुशी वापिस ला सकते हैं...
लेकिन क्या सच में ऐसा है?
एक पल को मान लेते हैं, कि सामने वाले ने हमसे यह पांच शब्द कह भी दिए, पर क्या अब वैसा होगा जैसा हमने सोचा था?
जवाब है नही...
तब हमारा एक ऐसा रूप, जिससे हम खुद भी अनजान हैं या शायद अनजान होने का नाटक करते हैं, हमारा वो दूसरा रूप उसके सामने आ जाता है...
अब आई न अक्ल ठिकाने, अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे...
उस मौके पर ऐसे ही कुछ विचार हमारे मन में आने लगते हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि हमारी हर तकलीफ, हमारे हर दर्द की जगह अब अहंकार ने ले ली है, या यूं कहें की हमारी तकलीफ कभी तकलीफ थी ही नही, बल्कि मजबूरी और दर्द के लिबाज़ में छुपा हमारा अहंकार था...
कभी सोचा हैं क्यूँ लोग हमारे सामने अपनी गलतियां खुले दिल से स्वीकार नही कर पाते?
क्यूंकि वो लोग हमारे इस दूसरे अहंकारी रूप से भली भांति परिचित होते हैं। हमें हमारा यह रूप बेशक याद न रहता हो, लेकिन वो लोग कई नाजुक मोको पर हमारा यह अहंकारी रूप देख चुके होते हैं। हमें हमारा यह रूप याद रहता भी तो कैसे, हम दूसरों के ऐब, उनकी गलतियां ढूंढने में व्यस्त जो रहते हैं...
इस पूरे लेख का सार यही है कि हमारी बहुत सी तकलीफों की वजह अक्सर हम खुद भी होते है, ये और बात है कि हमें कभी इसका आभास नही होता या शायद हम ऐसा मानना ही नही चाहते...
अहंकार इसी का नाम है...
समस्याओं का हल खोजना और अपने अहंकार को संतुष्ट करना दो अलग अलग बातें है। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम इन दोनों के बीच का अंतर अक्सर भूल जाते हैं, लेकिन हमारी अपनी बेहतरी के लिए और हमारे अपनों की खुशी के लिए इस अंतर को समझना और हर पल याद रखना बेहद जरूरी है...