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Rajasthan
(1)

वायरल सुशीला मीणा का घरसुशीला मीणा का घर..... माता पिता के साथ बालिका....... झोपड़ी को देख लीजिए लेकिन इस झोपड़ी में रहन...
22/12/2024

वायरल सुशीला मीणा का घर
सुशीला मीणा का घर..... माता पिता के साथ बालिका....... झोपड़ी को देख लीजिए लेकिन इस झोपड़ी में रहने वाली बेटी ने सपना देखा है क्रिकेटर बनने का..... देश -दुनिया में वायरल इस बिटिया को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद मिल रहा है... ये झोपड़ी कहानी लिखेंगी एक दिन कि मैने झोपड़ी से तराश कर हीरा बनाया है.... अंधेरे, अभाव कब किसका रास्ता रोक पायें है मेहनत करने वालों के हिस्से हर मुकाम आए हैं।❤️

एक रिएक्शन इस बेटी के लिए..... ❤️


कच्ची हल्दी की सब्जी एक पारंपरिक और स्वास्थ्यवर्धक रेसिपी है, खासकर सर्दियों में। यह राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों मे...
21/12/2024

कच्ची हल्दी की सब्जी एक पारंपरिक और स्वास्थ्यवर्धक रेसिपी है, खासकर सर्दियों में। यह राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में काफी लोकप्रिय है। इसे घर पर आसानी से बनाया जा सकता है।
सामग्री:💠
👉कच्ची हल्दी (पीली हल्दी): 250 ग्राम (कद्दूकस की हुई)
👉घी: 4-5 बड़े चम्मच
👉हरी मटर: 1 कप (वैकल्पिक)
👉दही: 1 कप
👉बेसन: 2 बड़े चम्मच
👉अदरक: 1 चम्मच (कद्दूकस की हुई)
👉हरी मिर्च: 2-3 (बारीक कटी हुई)
👉हींग: 1 चुटकी
👉जीरा: 1 चम्मच
👉धनिया पाउडर: 1 चम्मच
👉लाल मिर्च पाउडर: 1/2 चम्मच
👉गरम मसाला: 1/2 चम्मच
👉नमक: स्वादानुसार
👉कटा हुआ हरा धनिया: सजाने के लिए
विधि:💠
👉हल्दी की तैयारी: कच्ची हल्दी को धोकर छील लें और उसे कद्दूकस कर लें। (अगर हल्दी ज्यादा कड़वी हो तो इसे 5-10 मिनट हल्के गर्म पानी में उबाल सकते हैं, लेकिन यह वैकल्पिक है।)
👉 घी में मसाले भूनें: कढ़ाई में घी गर्म करें। इसमें हींग और जीरा डालें। जीरा चटकने के बाद हरी मिर्च और अदरक डालें।
👉 हल्दी पकाएं: अब कद्दूकस की हुई हल्दी डालें और मध्यम आंच पर 7-10 मिनट तक भूनें जब तक इसका कच्चापन दूर न हो जाए। हल्दी का रंग बदलने लगेगा और इसकी खुशबू आने लगेगी।
👉 मटर और बेसन डालें: अगर मटर डालनी हो तो इस चरण में डालें और हल्का सा भून लें।बेसन डालें और इसे हल्दी के साथ 2-3 मिनट तक भूनें।
👉दही और मसाले डालें: फेंटा हुआ दही डालें और लगातार चलाते रहें ताकि दही फटे नहीं।इसमें धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला और नमक डालें। इसे धीमी आंच पर 5-7 मिनट तक पकने दें।
👉 सब्जी तैयार करें: जब हल्दी, मटर, और मसाले अच्छे से पक जाएं और सब्जी में हल्का तेल ऊपर दिखाई देने लगे, तो गैस बंद कर दें।
👉 सजावट: इसे कटे हुए हरे धनिये से सजाएं।
👉परोसें: कच्ची हल्दी की यह सब्जी गर्मागर्म रोटी, बाजरे की रोटी, या चावल के साथ परोसें।
👉टिप्स: कच्ची हल्दी का स्वाद थोड़ा तीखा होता है, इसलिए इसे मध्यम मात्रा में खाएं। अगर हल्दी हाथों पर लगे तो नींबू या बेसन से धोकर साफ कर सकते हैं।

भारत का सबसे आखिरी रियासतकालीन किला, इसके बाद रियासतकाल में कोई और किला नहीं बना  मोहनगढ़ दुर्ग (जैसलमेर)
21/12/2024

भारत का सबसे आखिरी रियासतकालीन किला, इसके बाद रियासतकाल में कोई और किला नहीं बना
मोहनगढ़ दुर्ग (जैसलमेर)

 #अद्भुत_सनातन_वास्तुकला.....हजारों वर्ष प्राचीन मंदिर को गौर से देखें, महाबलीपुरम में है जो कि एक बड़े पत्थर को ही काटक...
20/12/2024

#अद्भुत_सनातन_वास्तुकला.....हजारों वर्ष प्राचीन मंदिर को गौर से देखें, महाबलीपुरम में है जो कि एक बड़े पत्थर को ही काटकर मंदिर की तरह तैयार किया गया था।
सिर्फ़ एक पत्थर से बनाया गया अद्भुत रथ सहित महाबलीपुरम में ऐसे कई मंदिर है कुछ समुद्र के नीचे, कुछ समुद्र के ऊपर...।

सनातन धर्म सर्वेश्रेष्ठ है,लेकिन इस अद्भुत वास्तु कला को इतिहास में कोई स्थान नहीं मिला हमसे हमेशा छिपाने की साजिश रची गई अब वक्त है इसे हर सनातनी तक पहुचाने का।

यह तस्वीर किस्मत की एक कहानी है...2013 वाली वसुंधरा राजे सरकार के दौरान रतनगढ़ वाले राजकुमार रिणवा जी खान एवं पर्यावरण म...
18/12/2024

यह तस्वीर किस्मत की एक कहानी है...
2013 वाली वसुंधरा राजे सरकार के दौरान रतनगढ़ वाले राजकुमार रिणवा जी खान एवं पर्यावरण मंत्री हुआ करते थे। एक कार्यक्रम में शामिल होने वे तब भरतपुर गए थे। बड़ा स्वागत सत्कार हुआ और स्वागत करने वालों में भजनलाल शर्मा भी थे जिनका शायद रिणवा जी को ध्यान भी नहीं होगा। तस्वीर में बिल्कुल दाएं एक चेहरा उम्मीद भरी आंखें उठाकर राजकुमार जी की तरफ देख रहा है कि उनकी एक नजर उस पर भी पड़ जाए। ये ही भजन लाल शर्मा हैं जो अभी राजस्थान मुख्यमंत्री हैं। ज्यादा बदलाव भी नहीं आया है। इस बीच राजकुमार रिणवा 2018 में रतनगढ़ से निर्दलीय और 2023 में सरदारशहर से भाजपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव हारने के बाद फिर से अपनी जमीन तलाश रहे हैं। यह तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि राजनीति में भाग्य की भूमिका आपके अनुभव और वरिष्ठता से ज्यादा बड़ी होती है।

जैसलमेर का एक शानदार झरोखा, पत्थरों की इतनी बारीक नक्काशी वो भी सदियों पहले
17/12/2024

जैसलमेर का एक शानदार झरोखा, पत्थरों की इतनी बारीक नक्काशी वो भी सदियों पहले

थार के धोरो मे चलती "थार एक्सप्रेस" ..!!🥳💔
17/12/2024

थार के धोरो मे चलती "थार एक्सप्रेस" ..!!🥳💔

पीले पत्थरों का शहर, जिसे गोल्डन सिटी के नाम से भी जाना जाता है, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा जिला है - जैसलमेर
17/12/2024

पीले पत्थरों का शहर, जिसे गोल्डन सिटी के नाम से भी जाना जाता है, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा जिला है - जैसलमेर

।।बिजल खान मेहर।। एक प्रतिभाशाली गायक और संगीतकार हैं जिन्होंने राजस्थानी संगीत उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उन...
17/12/2024

।।बिजल खान मेहर।। एक प्रतिभाशाली गायक और संगीतकार हैं जिन्होंने राजस्थानी संगीत उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उनके संगीत कैरियर के बारे में कुछ रोचक बातें यह हैं:

बिजल खान मेहर का जन्म 1963 को हुआ राजस्थान बाड़मेर जिले शिव तहसील गूंगा गांव से 10 किमी अपना गांव है चका गूंगा (अटलानीयो ढाणी है) । बिजल खान मेहर एक सिन्धी मुस्लिम है जो मेहर बिरादरी से आता ना उसके कोई परिवार में कलाकार थे नहीं आज तक है उसके परिवार को संगीत से कोई लेन देन नहीं है लेकिन बिजल खान मेहर को बचपन से संगीत का शोक था हो अपनी मां के पास सिन्धी मालूत सीखता था और धीरे धीरे हो संगीत की दुनिया में आ गया और आज तक लोग उसकी आवाज के दीवाने है ।।

उनकी संगीत यात्रा की शुरुआत राजस्थानी लोक गीतों ओर सिन्धी कलाम से से हुई थी। फिर उसके आज तक पीछे मुड़ के नहीं देखा उन्होंने अपने गाँव और आसपास के क्षेत्रों में कई विदेश की यात्रा की है सारे संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया है।

बिजल खान मेहर को उनके संगीत की शैली और अपनी आवाज़ की अनोखी पहचान के लिए जाना जाता है। उनके गीतों में राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं की झलक दिखाई देती है। आज कल बहुत से कलाकार बिजल खान मेहर सॉन्ग की कॉपी करते है

उन्होंने कई सारे हिट गीत गाए हैं, जिनमें "बादलिया" धोरे माथे झोपडी ।।उड़े बाई मंखी।। अंगूठी पूनमल लिखिए बाई रो लेख मोरुडो और बाना बनी कहीं सारे जैसे गीत शामिल हैं। उनके गीतों को राजस्थानी संगीत प्रेमियों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है।

बिजल खान मेहर को उनके संगीत के लिए आज तक कोई पुरस्कार नहीं मिला नहीं कोई सरकार से फायदा मिला है बिजल खान मेहर ऑडियो कैसेट बहुत निकले जैसे शाहजहा म्यूजिक श्री कष्णा कैसेट युकी कैसेट जय अम्बे पावर म्यूजिक बहुत सारे ऑडियो दिए है अभी तक हो लोग उस गीतों यूट्यूब चैनलों से पैसे कमा रहे लेकिन बिजल खान मेहर को कोई यूट्यूब से हो लोग पर्सेट तक नहीं देते है उसके सॉन्ग कही चैनल पर आज भी ट्रेडिंग चल रहे है

आजकल, बिजल खान मेहर राजस्थानी संगीत उद्योग में एक प्रमुख नाम हैं। हिन्द ओर सिंध उसका नाम मारवाड़ी और सिन्धी कलाकारों सबसे ऊपर आता है वह अपने गीतों और संगीत कार्यक्रमों के माध्यम से राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं को पूरे देश में प्रसारित कर रहे हैं। लेकिन बिजल खान मेहर आज तक अपनी सादगी और किसान जिंदगी जी रहे है ये बिल्कुल सही बात है।। बिजल खान मेहर की जुबानी से लिखी लेकिन बिजल खान मेहर आज भी सोशल मीडिया बहुत प्यार मिल रहा है ।

कौन-कौन पहचाने इसको । हल के बंधा बांसिया जिससे किसान खेत बोता है। थोड़े दिनों में यह म्युजियम की चीज हो जाएगा। इसको घर स...
17/12/2024

कौन-कौन पहचाने इसको । हल के बंधा बांसिया जिससे किसान खेत बोता है। थोड़े दिनों में यह म्युजियम की चीज हो जाएगा। इसको घर से खेत लेकर गया था मैं बहुत साल पहले । बाबा ने कुछ बीजने के लिए मंगाया या शायद भूल गए थे घर इसे । रस्ते में मैं इसे फिल्मों में बड़ी गन की तरह गोली चलाता चला था । (पता नहीं दुश्मन कौन था क्यों था ) लाउडस्पीकर की तरह चेतावनी का संदेश प्रसारित किया था । ( अपने आप को पुलिस के हवाले कर दो) बैंड की तरह बजाने की कोशिश की दुरबीन की तरह दूर देखने को आंख टिकाई थी इस पर। खेत के रस्ते में बांसिये की लाठी बनाकर आवारा कुत्तों को पीटने भागा था । कुछ पहले से ही डर गए । मैंने खेत के पास जाकर इसे राष्ट्रिय ध्वज की तरह हवा में लहराया था गर्व से। कोरी रेत के टिब्बे पर भाले की तरह फेंककर शिकार किया राजाओं की कहानियों की तरह। कोई भाला फैंक प्रतियोगिता जीती इसको फैंक कर मगर अपनी काया से बीज डालता बांसियां एक मधुर धुन में सम्मोहित करता रहा मुझे । अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था । एक कहानी बहुत प्रचलित है कि बांसिये में सांप था दो किसान भाई खेत आए । सांप डस गया वहीं जमीन पर मेंढक दिखा । दूसरे भाई ने मेंढक दिखा दिया उसे कुछ न हुआ । कई दिनों बाद उसने सच्चाई बताते बांसिये के छेद में दाबा कपड़े का डाटा हटाया तो भाई सांप देखकर मर गया । बांसिया चुप था उस दिन भी । आज भी खामोश है। तपस्वी-सा । बांसिये में हाथ देने वाले श्रमशील प्राणी किसान को प्रणाम जो दुनियां का पेट भरकर खुद भूखा सो जाता है। आइए खेती किसानी बचाएं । जय किसान ।

आज के दिन ही,17  दिसंबर 1645 ई. को, मुगलिया सल्तनत की एक बड़ी ताकत और चौथे मुग़ल बादशाह नूरुद्दीन मुहम्मद सलीम जहांगीर की ...
17/12/2024

आज के दिन ही,17 दिसंबर 1645 ई. को, मुगलिया सल्तनत की एक बड़ी ताकत और चौथे मुग़ल बादशाह नूरुद्दीन मुहम्मद सलीम जहांगीर की बेगम मलिका नूरजहां का लाहौर में 68 साल की उम्र में निधन हुआ था। उनकी मौत के बाद उन्हें लाहौर में ही शाहदरा बाग़ स्थित उनके मकबरे में दफ़न किया गया था। शाहदरा बाग़ में ही जहांगीर और नूरजहां के भाई आसफ खान का भी मकबरा मौजूद है। शाहजहां के सत्ता संभालते ही नूरजहां को लाहौर की एक आरामदायक हवेली में नजरबंद कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने अपनी बाकि ज़िन्दगी अपनी बेटी लाडली के साथ वहीं गुज़ारी थी। वहां उन्हें शाहजहां द्वारा 2 लाख रुपये सालाना पेंशन अदा की जाती थी।

नूरजहां जिनका असली नाम मेहरुन्निसा था उनका ताअल्लुक़ कभी किसी शाही घराने से नहीं था, जिसकी पैदाईश भी उसकी माँ-बाप की जिलावतनी के दौरान हुयी थी, आगे चल कर उसके बाप को अकबर के दरबार में पनाह मिली और अकबर के ही हुक्म पर उसकी शादी उसके एक दरबारी अली-कुली से कर दी गयी।

बाद में नूरजहां के शौहर पर जहांगीर के खिलाफ साजिश करने के आरोप लगे। तब जहांगीर ने बंगाल के गवर्नर को हुक्म दिया की वो नूरजहां के शौहर को आगरा के शाही दरबार में पेश करें। लेकिन नूरजहां के शौहर गवर्नर के आदमियों के साथ जंग में मारे गए।

शौहर की मौत के बाद विधवा नूरजहां को जहांगीर के हरम में पनाह दी गई। वहां की बाक़ी महिलाएं नूरजहां की मुरीद हो गईं। साल 1611 में नूरजहां और जहांगीर की शादी हो गई। इस तरह नूरजहां जहांगीर की बीसवीं और आख़िरी बीवी बनीं।

कई इतिहासकारों का मानना है कि जहांगीर नशे के आदी थे और बाद में उनके लिए राजकाज पर ध्यान देना मुश्किल हो गया था। इसलिए उन्होंने अपनी सल्तनत की कमान नूरजहां के हाथों में सौंप दी थी।

हालांकि ये पूरी तरह सच नहीं है। हां, जहांगीर नशे के आदी थे और वो अफीम भी लेते थे। वो नूरजहां से बहुत प्यार भी करते थे। लेकिन नूरजहां के सत्ता संभालने की वजह ये नहीं थी।

नूरजहां और जहांगीर एक दूसरे के पूरक थे। जहांगीर अपनी मलिका की तरक्की और बढ़ते असरो-रुसूख़ से कभी असहज नहीं हुए।

जहांगीर से शादी के कुछ ही वक़्त बाद नूरजहां ने अपना पहला शाही फ़रमान जारी किया था जिसमें कर्मचारियों के जमीन की सुरक्षा की बात कही गई थी। इस फरमान पर उनके दस्तखत थे - नूरजहां बादशाह बेगम! इतना ही नहीं नूरजहां ने अपने नाम के सिक्के भी जारी करवाए थे। इससे पता चलता है कि नूरजहां की ताकत कैसे बढ़ रही थी।

 #फ़ोटोग्राफ़ी का इतिहासदो महत्वपूर्ण सिद्धांतों की खोज के साथ शुरू हुआ: पहला कैमरा ऑब्स्कुरा इमेज प्रोजेक्शन है, दूसरा ...
17/12/2024

#फ़ोटोग्राफ़ी का इतिहास

दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों की खोज के साथ शुरू हुआ: पहला कैमरा ऑब्स्कुरा इमेज प्रोजेक्शन है, दूसरा यह खोज है कि कुछ पदार्थ प्रकाश के संपर्क में आने से स्पष्ट रूप से बदल जाते हैं। ऐसी कोई कलाकृतियाँ या विवरण नहीं हैं जो 18वीं शताब्दी से पहले प्रकाश संवेदनशील सामग्रियों से छवियों को कैप्चर करने के किसी भी प्रयास का संकेत देते हों।

ले ग्रास 1826 या 1827 में खिड़की से दृश्य, माना जाता है कि यह सबसे पुराना जीवित कैमरा फ़ोटोग्राफ़ है।मूल (बाएं) और रंगीन पुनर्निर्देशित वृद्धि (दाएं)।

लगभग 1717 में, जोहान हेनरिक शुल्ज़ ने एक बोतल पर कटे हुए अक्षरों की छवियों को कैप्चर करने के लिए एक प्रकाश-संवेदनशील घोल का उपयोग किया। हालाँकि, उन्होंने इन परिणामों को स्थायी बनाने का प्रयास नहीं किया। लगभग 1800 में, थॉमस वेजवुड ने कैमरे की छवियों को स्थायी रूप में कैप्चर करने का पहला विश्वसनीय रूप से प्रलेखित, हालाँकि असफल प्रयास किया। उनके प्रयोगों ने विस्तृत फ़ोटोग्राम बनाए, लेकिन वेजवुड और उनके सहयोगी हम्फ्री डेवी को इन छवियों को ठीक करने का कोई तरीका नहीं मिला।

1826 में, निसेफोर नीप्स ने पहली बार कैमरे से खींची गई छवि को ठीक करने में कामयाबी हासिल की, लेकिन कैमरे में कम से कम आठ घंटे या कई दिनों तक एक्सपोज़र की आवश्यकता थी और शुरुआती परिणाम बहुत कच्चे थे। नीप्स के सहयोगी लुइस डागुएरे ने डागुएरियोटाइप प्रक्रिया विकसित की, जो पहली सार्वजनिक रूप से घोषित और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य फोटोग्राफिक प्रक्रिया थी। डागुएरियोटाइप को कैमरे में केवल कुछ मिनटों के एक्सपोज़र की आवश्यकता थी, और स्पष्ट, बारीक विवरण वाले परिणाम प्राप्त हुए। 2 अगस्त, 1839 को डागुएरे ने पेरिस में चैंबर ऑफ़ पीयर्स के सामने प्रक्रिया का विवरण प्रदर्शित किया। 19 अगस्त को इंस्टीट्यूट के पैलेस में एकेडमी ऑफ साइंसेज और एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स की बैठक में तकनीकी विवरण सार्वजनिक किए गए। (आविष्कारों के अधिकारों को जनता को प्रदान करने के लिए, डागुएरे और नीप्स को जीवन भर के लिए उदार वार्षिकियां प्रदान की गईं।)जब धातु आधारित डागुएरियोटाइप प्रक्रिया को औपचारिक रूप से जनता के सामने प्रदर्शित किया गया, तो विलियम हेनरी फॉक्स टैलबोट द्वारा आविष्कृत पेपर-आधारित कैलोटाइप निगेटिव और साल्ट प्रिंट प्रक्रियाओं के प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण को पहले ही लंदन में प्रदर्शित किया जा चुका था (लेकिन कम प्रचार के साथ)। बाद के नवाचारों ने फोटोग्राफी को आसान और अधिक बहुमुखी बना दिया। नई सामग्रियों ने आवश्यक कैमरा एक्सपोज़र समय को मिनटों से सेकंड में और अंततः एक सेकंड के एक छोटे से हिस्से में घटा दिया; नए फ़ोटोग्राफ़िक मीडिया अधिक किफायती, संवेदनशील या सुविधाजनक थे। 1850 के दशक से, कोलोडियन प्रक्रिया ने अपने ग्लास-आधारित फ़ोटोग्राफ़िक प्लेटों के साथ डागुएरियोटाइप से ज्ञात उच्च गुणवत्ता को कैलोटाइप से ज्ञात कई प्रिंट विकल्पों के साथ जोड़ा और दशकों तक इसका आमतौर पर उपयोग किया गया। रोल फिल्मों ने शौकीनों द्वारा आकस्मिक उपयोग को लोकप्रिय बनाया। 20वीं सदी के मध्य में, विकास ने शौकीनों के लिए प्राकृतिक रंग के साथ-साथ काले और सफेद रंग में भी तस्वीरें लेना संभव बना दिया। 1990 के दशक में कंप्यूटर-आधारित इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कैमरों के व्यावसायिक परिचय ने जल्द ही फोटोग्राफी में क्रांति ला दी। 21वीं सदी के पहले दशक के दौरान, पारंपरिक फिल्म-आधारित फोटोकैमिकल विधियाँ तेजी से हाशिए पर चली गईं क्योंकि नई तकनीक के व्यावहारिक लाभों की व्यापक रूप से सराहना की जाने लगी और मध्यम कीमत वाले डिजिटल कैमरों की छवि गुणवत्ता में लगातार सुधार हुआ। खासकर जब से कैमरे स्मार्टफोन पर एक मानक सुविधा बन गए हैं, तस्वीरें लेना (और उन्हें तुरंत ऑनलाइन प्रकाशित करना) दुनिया भर में एक सर्वव्यापी रोज़मर्रा की प्रथा बन गई है।

भारत की महिला जूनियर हॉकी टीम ने चीन को हराकर जूनियर हॉकी एशिया कप खिताब अपने नाम करके पूरे देश को गौरवान्वित किया है।आप...
17/12/2024

भारत की महिला जूनियर हॉकी टीम ने चीन को हराकर जूनियर हॉकी एशिया कप खिताब अपने नाम करके पूरे देश को गौरवान्वित किया है।

आपकी यह जीत आपके संघर्ष और प्रतिभा का अद्भुत सम्मिश्रण है। इस यादगार विजय पर आप सभी बेटियों को हार्दिक बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ।

, हल्की सी आंखें बंद करके देखो किसके दर्शन हो रहे हैं
17/12/2024

, हल्की सी आंखें बंद करके देखो किसके दर्शन हो रहे हैं

भारत के युवा ग्रैंड मास्टर डी. गुकेश को विश्व चेस चैंपियनशिप 2024 का खिताब अपने नाम करने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।...
17/12/2024

भारत के युवा ग्रैंड मास्टर डी. गुकेश को विश्व चेस चैंपियनशिप 2024 का खिताब अपने नाम करने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। रोमांचक मुकाबले के 14वें और अंतिम दौर में चीन के डिंग लिरेन को हराकर गुकेश सबसे कम उम्र के विश्व चेस चैंपियन बन गए हैं।

आपके शानदार कौशल और मेहनत ने समस्त देशवासियों को गौरवांवित किया है।

कोई गांव में रहने वाले ही बता सकते हैं कि ये क्या चीज़ है?  इस तरह क्यों बनाई जाती है क्या नाम है? शहर में रहने वाले तो ...
17/12/2024

कोई गांव में रहने वाले ही बता सकते हैं कि ये क्या चीज़ है? इस तरह क्यों बनाई जाती है क्या नाम है?
शहर में रहने वाले तो सोच रहे हैं झोपड़ी है रहने के लिए।

ये  #जैसलमेर के पास कुलधरा गांव में एक नया राजस्थानी परिवेश का रिसॉर्ट बनाया गया है, जो कि अभी सिर्फ 2 महीने पहले ही चाल...
17/12/2024

ये #जैसलमेर के पास कुलधरा गांव में एक नया राजस्थानी परिवेश का रिसॉर्ट बनाया गया है, जो कि अभी सिर्फ 2 महीने पहले ही चालू किया गया है यहां लोग अपना पैकेज भी बुक करा सकते हैं और उनके पैकेज में लंच,ब्रेकफास्ट,डिनर के साथ राजस्थानी folk dance का भी आनंद ले सकते हैं , और जिन मित्रों को यहां सिर्फ खाना खाने जाना है वो भी यहां कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम देखते हुए राजस्थानी भोजन का आनंद ले सकते है और कुछ घंटे बिता कर के अपने गंतव्य को जा सकते हैं, मुझे अचानक ये जगह fb में दिखी तो मुझे बहुत ही खूबसूरत गांव जैसा माहौल लगा तो आपसे साझा कर रहा हूं, यहां की जानकारी के लिए सबसे आखिरी फोटो में फोन नंबर है जिनको पूछना हो पूछ सकता है मैने सिर्फ एक नई जानकारी साझा की है ,आप पोस्ट को शेयर भी कर सकते है और मुझे इस तरह की नई नई जानकारी के लिए फॉलो भी कर सकते हैं, धन्यवाद ✍️✍️

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किलोमीटर दूर मंदसौर के ज़्यादातर गाँव में अफीम की खेती होती है जो मध्य प्रदेश मै...
16/12/2024

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किलोमीटर दूर मंदसौर के ज़्यादातर गाँव में अफीम की खेती होती है जो मध्य प्रदेश मैं एकमात्र मंदसौर और नीमच जिले में की जाती है अथवा भारत में कुछ ही जगह होती है जिसे काला सोना अफीम की खेती कहा जाता है जो बहुत मंहगा होता हैं।
भारत का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक राजस्थान है,,, चित्तौड़गढ़,प्रतापगढ़, बारा, उदयपुर,भीलवाड़ा आदि जिलों में अफीम की खेती होती हैं ।
और चित्तौड़गढ़ राजस्थान का ही नहीं भारत का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक जिला हैं !

अफीम के पत्तों की भाजी बनाई जाती है, इसके बाद भी उस भाजी में हल्का सा नशा रहता है !!

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