Saheb Kabir Ji

Saheb Kabir Ji Kabir Is God

25/11/2023
केशो आया है बनजारा, काशी ल्याया माल अपारा।। नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा। 510 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदी...
25/11/2023

केशो आया है बनजारा, काशी ल्याया माल अपारा।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
510 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी 18 लाख लोगों के लिए भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी। इसी को "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है।
ें_काशीभंडारा

#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
reels
#भंडारा

28/09/2023

( के आगे पढिए.....)
📖📖📖


हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (143-144)

सेऊ (शिव) तथा सम्मन की कथा
{अचला के अंग की वाणी नं 148-190 में है।}

◆ अचला के अंग से वाणी नं. 148-190 :-

गरीब, समन कै सतगुरु गये, संग फरीद कमाल।
सत टोहन कौं ऊतरे, हो सतगुरु अबदाल।।148।।
गरीब, समन नेकी पूछिया, अन्न का कहौ बिचार।
सतगुरु आये पाहुने, क्या दीजै जौंनार।।149।।
गरीब, नेकी समन सें कहै, अन्न नांहि घर मोरि।
सतगुरु के प्रसाद कूं, घर ल्यावौं कोई फोरि।।150।।
गरीब, मांग्या मिलै न करज दे, आंनि बनी बहु भीर।
कहि नेकी क्या कीजिये, ल्या धरैं तुम्हारा चीर।।151।।
गरीब, धरने लायक चीर कित, पाट्या पटल मोहि।
समन सें नेकी कहै, चोरी जावौ तोहि।।152।।
गरीब, सेऊ माता सें कहै, चोरि खाट्या खांहि।
माल बिराना मुसहरैं, जिन के सरबस जांहि।।153।।
गरीब, माता पुत्रा सें कहै, सुनि सेऊ सुर ज्ञान।
या में नहीं अकाज है, चोरि करि दे दान।।154।।
गरीब, सतगुरु दीन्हा बैठना, आसन दिये बिछाय।
शेख फरीद कमाल कूं, लिये सुतार चढाय।।155।।
गरीब, शब्द उचारैं धुंनि करैं, सतगुरु आये आज।
समन सें नेकी कहैं, घर में नाहीं नाज।।156।।
गरीब, सुनौं शब्द चित्त लाय करि, हौनी होय सो होय।
सब बिधि काज समारही, चरण कमल चित्त पोय।।157।।
गरीब, सतगुरु आये पाहुनें, मिहमानी करि स्यांह।
सेऊ माता सै कहै, शीश बेचि धरि स्यांह।।158।।
गरीब, सुनि रे पुत्र सरोमनी, नेकी कहै निराठि।
सतगुरु आये पाहुनें, करौ शीश की सांटि।।159।।
गरीब, शेख फरीद कमाल कूं, बोले बचन सुशील।
समन सें सतगुरु कहै, भोजन की क्या ढील।।160।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहै, करौ ध्यान असनान।
भोजन पाख षिलायस्यां, ऊगमतैंही भान।।161।।
गरीब, अर्ध रात चोरी चले, सेऊ समन साथ।
कुंभिल दीना जाय करि, नाज लग्या जहां हाथ।।162।।
गरीब, कुंभिल में सेऊ बड़े, लाई बड़ी जु बेर।
हम तौ फाकैही रहैं, तुम ल्याईयौ तीनै सेर।।163।।
गरीब, तीन सेर अन्न बांधि करि, पहली दिया चलाय।
पीछै बनियां, जागिया, सेऊ पकर्या आय।।164।।
गरीब, चोर चोर बनियां करै, सेऊ पकरी मौंन।
ठाड्यौ काहै बोलिये, तीन सेर लिया चौंन।।165।।
गरीब, बनिये रस्सा घालि करि, दिया खंभ सें बांधि।
समन डेरै ले गया, नेकी रोटी छांदि।।166।।
गरीब, करद लिया एक हाथ में, उलटे चले समन।
सेऊ टुक बतलाय ले, सूना पर्या भवन।।167।।
गरीब, बनियां सें सेऊ कहै, बाहर हमरा बाप।
झूंठी शाख न बोलि हूं, शीश चढत मोहि पाप।।168।।
गरीब, खंभा सें पग बांधि दे, बाहर काढौं शीश।
दोय बात बतलाय लौ, शाखी हैं जगदीश।।169।।
गरीब, पिता शीश शिर काटिले, सनमुख करद चलाय।
ताक बीच धरि दीजियौं, बनियें पकरे पाय।।170।।
गरीब, समन करद चलाइया, सनमुख काट्या शीश।
काटतही कसक्या नहीं, दढ है बिसवे बीसू ।। 171।।
गरीब, शीश काटि घर ले गया, ताक बीच धरि दीन।
नेकी करै रसोईयां, ज्ञान ध्यान प्रबीन।।172।।
गरीब, समन तैं नेकी करी, सेऊ का शिर काटि।
तन देही कित डारिया, फेरा करियो हाटि।।173।।
गरीब, छह दौने परोसिया, सतगुरु पुरुष कबीर।
सेऊ बोलै ताक में, में हूं दामनगीर।।174।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहै, सेऊ आया नांहिं।
देही तौ सूनि धरी, शीश ताक कै मांहि।।175।।
गरीब, आवो सेऊ जीमि ल्यौ, योह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों कै, साधौं कै नित क्षेम।।176।।
गरीब, सेऊ धड़ परि शिर चढ्या, बैठे पंगत मांहि।
नहीं घरहरा नाडि़ कै, वह सेऊ अक नांहि।।177।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहैं, नेकी मन आनन्द।
शीश काटि घर में धर्या, मात पिता धन्य धन्य।।178।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहैं, सुनौं फरीदा गल।
इब के सतगुरु आयसी, देसी शीश पहल।।179।।
गरी, सतगुरु सें नेकी कहै, सुनौं फरीदा बात।
आधी भक्ति कमाईया, रहे पिता पुत्रा नहीं साथ।।180।।
गरीब, भौंहौं करि हूं आरता, पलकौं चौंर ढुराय।
समन सें नेकी कहै, द्यौंह अपना शीश चढाय।।181।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा फेर।
समन कै घर साच है, इत मत लावो बेर।।182।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल स्यौं, सुनौं फरीदा यार।
समन कै घर साच है, ये धरि हैं शीश उतार।।183।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सै, सुनौं फरीदा बात।
समन कै घर साच है, शीश चढै स्यौं गात।।184।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा सैंन।
समन कै घर साच है, ये बोलै आदू बैंन।।185।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा ख्याल।
समन कै घर साच है, ये कीजै नजर निहाल।।186।।
गरीब, जेते अंबर तारियां, ते ते अवगुण मोहि।
धड़ सूली शिर ताकमें, सतगुरु तौ नहीं बिसरौं तोहि।।187।।
गरीब, छप्पन भोग करे धनी, भये समन कै ठाठ।
कहै कबीर कमाल सैं, चलौ फरीदा बाट।।188।।
गरीब, अष्टसिद्धि नौनिद्धि आगनैं, अन्न धनदिये अनन्त।
सेऊ समन अमर कछ, नेकी पद बे अन्त।।189।।
गरीब, नेकी सेऊ पारिंग हुए, सतगुरु के प्रताप।
समन भए नौशेरखांन, जुग-जुग संगी साथ।।190।

क्रमशः___________________

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26/09/2023

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17/09/2023

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शीर्षक:- "संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय और समाज सुधार में योगदान"प्रस्तावना:- जब-जब किसी महापुरुष का अवतर...
20/08/2023

शीर्षक:- "संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय और समाज सुधार में योगदान"

प्रस्तावना:- जब-जब किसी महापुरुष का अवतरण होता है तो वह समाज में फैली बुराइयों को समाप्त कर एक स्वच्छ समाज का निर्माण करने का प्रयत्न करता है। जिससे मानव को एक सही जीने की राह प्राप्त होती है। ऐसा ही शुभ कार्य वर्तमान समय में पूर्णब्रह्म के अवतार जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा किया जा रहा है। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) के अवतार संत रामपाल दास जी महाराज जी का जन्म भारत देश की पवित्र धरती पर जाट किसान श्री नंदराम जाटयाण के घर माता भक्तमति इंद्रो देवी जी की पवित्र कोख से गाँव धनाना धाम, तहसील गोहाना, जिला-सोनीपत (तत्कालीन - रोहतक) प्रांत-हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) में 8 सितंबर 1951 को हुआ था और उन्हें 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी 1988 फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि को स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त हुई थी। स्वामी रामदेवानंद जी ने संत रामपाल जी महाराज जी को सन् 1993 में सत्संग करने और सन् 1994 में नाम उपदेश देने का आदेश प्रदान किया। जिसके बाद संत रामपाल जी महाराज ने धर्मशास्त्रों का सत्यज्ञान प्रदान करके न केवल पाखण्ड, अंधविश्वास को समाप्त किया बल्कि समाज में फैली बुराइयों, कुपरम्पराओं को भी खत्म कर रहे हैं और मानवता में आ रही गिरावट को एक बार पुनः जीवित कर एक स्वच्छ और शांति पूर्ण समाज का निर्माण कर रहे हैं।

🍃 संत रामपाल जी द्वारा बाढ़ पीड़ितों की मदद:-

बीते जुलाई माह में हुई भारी बारिश से हरियाणा में आई बाढ़ ने लोगों की मुसीबत बढ़ा रखी थी। जिसके चलते राज्य सरकार ने 12 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित कर दिया था। वहीं लगातार हो रही बारिश व नदियों के जलस्तर बढ़ने से आई बाढ़ से लोगों को खाने-पीने की समस्या उत्पन्न हो गई थी तो वहीं जलभराव के कारण बीमारियों का भी खतरा बाढ़ ग्रस्त इलाकों में मंडरा रहा था। तब ऐसी विषम परिस्थिति में "परहित सरिस धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।" वाणी को सार्थक करते हुए बाढ़ पीड़ितों तक खाद्य व अन्य राहत सामग्री, पशुओं के लिए हरा चारा पहुंचाने के लिए संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपनी जान को जोखिम में डालकर अलग-अलग जिलों, ब्लॉक आदि में यह मानवीय सेवा का महा परोपकारी कार्य किया था। वहीं पंजाब के फाजिल्का जिले के लोगों पर आई बाढ़ रूपी मुसीबत से मानव व पशुओं की सहायता करने के लिए भी विश्व प्रसिद्ध मानव के परम हितैषी जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी सामने आए थे। वे फाजिल्का जिले के पाकिस्तान बॉर्डर से लगे बाढ़ ग्रस्त गांवों में बचे हुए पशुओं के लिए हरा चारा और लोगों के लिए खाद्य व अन्य राहत सामग्री उपलब्ध करवाई थी। जोकि संकट की इस परिस्थिति में मानवीय सहायता का एक बहुत बड़ा सराहनीय कार्य है।

🍂कोरोना काल में लोगों के लिए बने संकटमोचन :-

कोरोना की पहली व दूसरी लहर से जब पूरा देश जूझ रहा था और देश में लोगों के इलाज के लिए अस्पताल कम पड़ रहे थे और लॉकडाउन के कारण जब प्रवासी मजदूरों, गरीब परिवारों को ठहरने और खाद्य सामग्री की समस्या उत्पन्न हुई थी। उस दौरान संत रामपाल जी महाराज जी लोगों के लिए संकट मोचन बने थे और उनके सतलोक आश्रम बैतूल (मध्यप्रदेश) में कोविड मरीजों के इलाज के लिए 1000 बेड का अस्थायी कोविड सेंटर का प्रबंध किया गया था। वहीं प्रवासी मजदूरों के भोजन, ठहरने आदि की व्यवस्था संत रामपाल जी के आदेशानुसार उनके शिष्यों ने सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा) में की थी। साथ ही, संत रामपाल जी महाराज की प्रेरणा से ही उनके अनुयायियों ने राजधानी दिल्ली समेत अनेकों जगहों पर भोजन व राशन सामग्री वितरित की थी, जिससे कोरोना महामारी के दौरान भी गरीब तबके के लोगों को राहत प्राप्त हुई थी।

🚭नशा मुक्त समाज कर रहे तैयार :-

संत रामपाल जी महाराज परमेश्वर का विधान बताते हैं,

गरीब, मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म स्वान के जानी।
सुरापान मद्य मांसाहारी, गमन करै भोगे पर नारी।
सत्तर जन्म कटत हैं शिशम्, साक्षी साहिब है जगदीशम्।।
पर द्वारा स्त्री का खोलै, सत्तर जन्म अन्धा हो डोलै।
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरे, डूबै काली धार।।

अर्थात जो व्यक्ति शराब पीता है उसे 70 जन्म कुत्ते के भोगने पड़ते है। वह मल-मूत्र खाता-पीता फिरता है। उसे अन्य कष्ट भी बहुत सारे भोगने पड़ते हैं तथा शराब शरीर के चार महत्वपूर्ण अंगों फेफड़े, लीवर, गुर्दे तथा ह्रदय समेत पूरे शरीर को क्षति पहुँचाती है। शराब पीकर मानव, मानव न रह कर पशु तुल्य गतिविधि करने लगता है। वहीं परस्त्री गमन करने वाला सत्तर जन्म अन्धे के भोगता है। मांस खाने वाला भी महाकष्ट का भागी होता है। उपरोक्त सर्व पाप सौ-सौ बार करने वाले को जो पाप होता है। वह पाप एक बार हुक्का पीने वाले अर्थात् तम्बाखु सेवन करने वाले को सहयोग देने वाले को होता है। तो यहाँ सोचने वाली बात है कि हुक्का, सिगरेट, बीड़ी या अन्य विधि से तम्बाकू सेवन करने वालों को क्या पाप लगेगा? इसलिए हमें नशे समेत अन्य सभी बुराइयों से बचना चाहिए। इस तरह के ज्ञान से प्रभावित होकर आज लाखों करोड़ों लोग संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करके पूर्ण रूप से नशा मुक्त होकर अपना सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस तरह संत रामपाल जी महाराज जी के सत्यज्ञान से नशा मुक्त समाज तैयार हो रहा है।

💸 संत रामपाल जी के ज्ञान से बन रहा दहेज मुक्त समाज:-

दहेज प्रथा मानव समाज पर कलंक है, जिसे मिटाने का बीड़ा संत रामपाल जी महाराज ने उठा रखा है। श्री देवी पुराण के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4 से 5 में विवरण है कि श्री देवी दुर्गा जी ने अपनी वचन शक्ति से तीन लड़की उत्पन्न की, फिर माता दुर्गा ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी बुलाकर क्रमशः सावित्री, लक्ष्मी और गौरी (पार्वती) से उनका विवाह कर दिया। जिसमें न बाराती थे, न भाती थे, न कढ़ाई चढ़ाई, न मिठाई बनाई, न बाजे न डीजे बजा, न दहेज दिया, न लिया गया। उसी शास्त्रोक्त विधि से विवाह करने की शिक्षा संत रामपाल जी महाराज अपने शिष्यों को दे रहे हैं। जिससे प्रभावित होकर उनके शिष्य दहेज प्रथा को दरकिनार कर दहेज मुक्त विवाह कर रहे हैं, जिसमें न दहेज का लेनदेन होता, न ही फिजूलखर्ची होती और इस तरह संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में अमरग्रंथ की "असुर निकंदन रमैणी" जिसमें विश्व की सभी दैवीय शक्तियों की स्तुति की गई है, द्वारा उनके अनुयायियों का विवाह केवल 17 मिनट संपन्न हो जाता है। जिससे बेटी सुखी रहती है और माता पिता, भाई-भाभी पर भी बोझ नहीं बनती। वहीं अब तक संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में 40000 से भी अधिक जोड़ों के दहेज मुक्त विवाह हो चुके हैं। जिससे दहेज मुक्त समाज का सपना हो रहा है।

🩸रक्तदान व देहदान में अग्रणी भूमिका:-

सतगुरु संत रामपाल जी महाराज ने सतभक्ति के साथ परमार्थ करने को भी श्रेष्ठ बताया है। इसी कारण उनके अनुयाई आए दिन जरूरत मंदों की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं और अस्पतालों में जाकर जरूरत मंद लोगों को रक्तदान सेवा करते हैं। जिसको भी रक्त की आवश्यकता होती है, उनकी एक पुकार पर संत रामपाल जी महाराज के शिष्य तुरंत पहुँचकर उनके ब्लड ग्रुप के अनुसार रक्तदान करते हैं। वहीं बीते जून महीने में उड़ीसा में हुई भीषण रेल दुर्घटना में घायलों के लिए संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने सैकड़ों यूनिट रक्तदान कर मानवीय सहायता पहुंचाई थी। वहीं संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि मृत शरीर हमारे किसी काम का नहीं होता, जिस कारण से इसे जलाकर भस्म कर दिया जाता है और फिर उस आत्मा की शांति के लिए कर्म कांड किये जाते हैं जोकि धर्मशास्त्रों के विरुद्ध होने से व्यर्थ होता है। लेकिन यदि इस मृत शरीर को मानव हित में दान कर दिया जाए तो उससे मृत व्यक्ति की आत्मा को बहुत पुण्य होगा। उनकी इन्हीं शिक्षाओं से प्रेरणा पाकर उनके अनुयायियों द्वारा देहदान किया जाता है। जिससे मेडिकल के विद्यार्थियों को शोध के लिए डेड बॉडी उपलब्ध हो पाती है और जिससे वे एक अनुभवी चिकित्सक बनकर कई वर्षों तक देश की चिकित्सकीय सेवा कर सकते हैं।

💐मानवता का एक गुण है ईमानदारी:-

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की शिक्षा का परिणाम है कि आज उनके अनुयाई ईमानदारी से प्रत्येक कार्य कर रहे हैं। उन्हें यदि किसी की कोई वस्तु, पैसे, दस्तावेज पड़े मिलते हैं तो वे उनसे संपर्क करके उन्हें उनकी वस्तु ज्यों का त्यों वापिस लौटा देते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी ने जो शिक्षा दी है उसी का परिणाम है कि उनके अनुयायियों द्वारा ईमानदारी का परिचय दिया जा रहा है। इस तरह लोगों की मानसिकता में बदलाव हो रहा है। जिससे समाज से चोरी, ठगी, मिलावट, लूट खसोट, रिश्वत खोरी, भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ समाप्त होंगी और विकार मुक्त समाज तैयार हो सकेगा।

🥀संत रामपाल जी के ज्ञान से मृत्युभोज हो रहा बंद:-

हमारे समाज में आज भी मृत्यु भोज के लिए श्राद्ध, पिंड दान, तेरहवीं, छःमसी, बरसी जैसी कुपरम्परायें व्याप्त हैं जोकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 के विरुद्ध मनमाना आचरण हैं। जिसमें कहा गया है कि भूतों को पूजने वाले भूत और पितरों को पूजने वाले पितर बनते हैं। वहीं श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध मनमानी क्रियाओं से साधक को न कोई लाभ होता और न ही उसकी गति (मोक्ष) होती है। इस तरह के शास्त्रों के अनेकों प्रमाण देते हुए संत रामपाल जी महाराज समाज में व्याप्त इस कुपरम्परा को बंद कर रहे हैं। यहीं वजह है कि उनका कोई भी शिष्य मृत्यु उपरांत कोई भी शास्त्र विरुद्ध क्रिया नहीं करता और इस तरह समाज में मृत्युभोज पर संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान से रोक लग रही है।

उपसंहार:- इस तरह हमने पाया कि संत रामपाल जी महाराज व उनके अनुयायियों द्वारा अनेकों समाज सुधार के कार्य किये जा रहे हैं। जिससे एक स्वच्छ समाज का निर्माण हो रहा है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि संत रामपाल जी महाराज द्वारा किये जा रहे इन समाज सुधार के कार्यों में हम भी अपना सहयोग दें और स्वच्छ समाज निर्माण के सहभागी बने।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :- +91 8222880541
https://www.youtube.com/

18/08/2023

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📖📖📖


हम पढ़ रहे हैं मुक्तिबोध पेज नंबर (59-60)

वाणी नं. 59.60 :-
गरीब, पंडित कोटि अनंत है, ज्ञानी कोटि अनंत। श्रोता कोटि अनंत है, बिरले साधु संत।।59।।
गरीब, जिन मिलतें सुख ऊपजै, मेटें कोटि उपाध। भवन चतुर दस ढूंढिये, परम सनेही साध।।60।।

सरलार्थ :- संत गरीबदास जी ने बताया है कि करोड़ों तो पंडित यानि ब्राह्मण हैं जो
आध्यात्म ज्ञान के विद्वान होने का दावा करते हैं और करोड़ों ज्ञानी भी हैं जो परमात्मा पर
समर्पित हैं, परंतु यथार्थ भक्ति विधि का ज्ञान नहीं। उनके प्रचार के प्रवचन सुनने वाले
श्रद्धालु श्रोता भी करोड़ों हैं, परंतु तत्वदर्शी संत तो बिरला ही मिलेगा। जैसे आगे झूमकरा
के अंग में संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
तत्वभेद कोई ना कहे रै झूमकरा। पैसे ऊपर नाच सुनो रै झूमकरा।।
कोट्यों मध्य कोई नहीं रै झूमकरा। अरबों में कोई गरक सुनो रै झूमकरा।।
गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में भी यही विवरण है कि बहुत-बहुत जन्मों के अंत के जन्म
में कोई ज्ञानवान मेरी भक्ति करता है, अन्यथा अन्य देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव
आदि-आदि) की भक्ति करते रहते हैं, परंतु यह बताने वाला महात्मा तो सुदुर्लभ है यानि
बड़ी मुश्किल से मिलेगा कि वासुदेव यानि जिस परमेश्वर का सर्व लोकों में वास है, वह
वासुदेव कहलाता है। उसकी सत्ता सब पर है। उसी की भक्ति करो। वही पापनाशक है। वही पूर्ण मोक्षदायक है। वही वास्तव में अविनाशी है। इसी प्रकार सुमरन के अंग की वाणी नं. 59 में कहा है कि साधु-संत तो कोई बिरला ही मिलेगा। साधु-संत की एक यह पहचान भी है कि उसके सानिध्य में जाने से सुख महसूस होता है। विचार सुनकर मन की करोड़ों उपाध यानि बकवास विचार समाप्त हो जाते हैं। ऐसा संत चाहे चौदह लोकों में कहीं भी मिले, उसकी खोज करनी चाहिए और उसके सत्संग विचार सुनने चाहिए।

वाणी नं. 61 :-
गरीब, राम सरीखे साध है, साध सरीखे राम। सतगुरु कूं सिजदा करुं, जिन दीन्हा निजनाम।।61।।
सरलार्थ :- बहुत से साधु कुछ सिद्धि प्राप्त करके अपने आपको राम मान लेते हैं। जैसे
हिरण्यकशिपु तथा कुछ राम जो त्रिलोकी प्रभु श्री रामचन्द्र जैसे। परंतु इनका किसी का भी
जन्म-मरण समाप्त नहीं होता। संत गरीबदास जी ने कहा है कि उस सतगुरू को सिजदा
यानि विशेष नम्रता से झुककर प्रणाम करो जिसने निजनाम की दीक्षा दी। जिससे वह
परमपद तथा शाश्वत स्थान (अमर लोक) तथा परम शांति प्राप्त होगी जो गीता अध्याय 15
श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में बताई है और अविनाशी परमात्मा मिलेगा।

वाणी नं. 62 :
गरीब, भगति बंदगी जोग सब, ज्ञान ध्यान प्रतीत। सुंन शिखरगढ में रहें, सतगुरु सबद अतीत।।62।।

सरलार्थ :- जिस सतगुरू जी ने निज नाम देकर भक्ति की विधि बंदगी यानि प्रणाम
की विधि तथा योग यानि साधना करने का तरीका, तत्वज्ञान तथा किस तरह ध्यान (सहज
समाधि) प्रदान की और यह विश्वास कराया कि यही मोक्ष का साधन है। वह सतगुरू सुन्न
यानि ऊपर खाली स्थान आकाश खण्ड (गगन मण्डल) सत्यलोक में शब्द अतीत रूप में
रहता है यानि उस अविनाशी परमेश्वर का जो स्वयं सतगुरू भी है, किसी को ज्ञान नहीं
क्योंकि वह (सुन्न शिखर) आकाश की चोटी पर यानि सबसे ऊपर के लोक में रहता है।

वाणी नं. 63 :-
गरीब, ऐसा सतगुरु सेइये, पार ऊतारे हंस। भगति मुकति की दातिसै, मिलि है सोहं बंस।।63।।

सरलार्थ :- हे हंस यानि निर्मल भक्त! ऐसे सतगुरू से दीक्षा लेना जो भव सागर से
पार कर दे। परंतु पूर्व जन्म-जन्मांतर की भक्ति की (दाति से) कमाई से अर्थात् भक्ति
संस्कार के प्रतिफल में मुक्ति के लिए सोहं वंश यानि पूर्व जन्म में जिनको सत्यनाम में सोहं
मंत्रा मिला था, सारनाम नहीं मिला था, वह समूह पुनः मानव जन्म प्राप्त करता है। उनको
परमेश्वर अवश्य शरण में लेता है।

वाणी नं. 64 :-
गरीब, सोहं बंस बखानिये, बिन दम देही जाप। सुरति निरतिसें अगम है, ले समाधि गरगाप।।64।।

सरलार्थ :- सोहं वंश का वर्णन करता हूँ। जो सोहं शब्द सतनाम में प्राप्त कर लेता
है, सारनाम की प्राप्ति उसी को होती है जब साधक संसार छोड़कर जाता है तो अंत में सोहं की सीमा यानि अक्षर पुरूष के लोक में उसकी (सोहं की) साधना को उसे देने के पश्चात्आ त्मा सतलोक को चलती है, तब श्वांस नहीं रहता। परंतु आत्मा सुरति-निरति यानि ध्यान से सार शब्द का जाप करती हुई चलती है। भंवर गुफा में प्रवेश करने के पश्चात् सारनाम की कमाई वहाँ जमा हो जाती है। फिर जाप तथा अजपा दोनों मर जाते हैं।(समाप्त हो जाते हैं।) सतलोक यानि वांछित अमर स्थान प्राप्त हो जाता है। जैसे नौकरी मिलने के पश्चात्प ढ़ाई छूट जाती है। ले समाधि गरगाप का तात्पर्य यह है कि यह विचार कर कि सतपुरूष ऊपर के सतलोक में है जो काल के सर्व ब्रह्मण्डों के पार दूर है। अपने ध्यान को वहाँ पहुँचा। ले समाधि गरगाप का अर्थ है अधिक प्रेरणा से ध्यान कर। हरियाणा प्रान्त की भाषा में कहते हैं कि वह पहलवान शक्ति में गरगाप है यानि बहुत शक्तिमान है। यह भी कहते हैं कि वह व्यक्ति धन में गरगाप है यानि बहुत धनवान है। इसी प्रकार गरगाप ध्यान लगा।

वाणी नं. 65 :-
गरीब, सुरति निरति मन पवनपरि, सोहं सोहं होइ। शिबमंत्रा गौरिज कह्या, अमर भई है सोइ।।65।।

सरलार्थ :- साधक को चाहिए कि वह सुरति-निरति यानि ध्यानपूर्वक मन तथा पवन
(श्वांस) से सोहं मंत्र जाप करे। जिस प्रकार शिव जी से नाम प्राप्त करके पार्वती जी ने सच्ची
लगन से नाम जाप किया तो वह उससे होने वाला अमरत्व प्राप्त किया। ऐसे सच्चे नाम की
सच्ची लगन से रटना लगा।
वाणी नं. 66 :-
गरीब, रंरकार तो धुनि लगै, सोहं सुरति समाइ। हद बे हद परि वास होइ, बहुरि न आवै जाइ।।66।।

सरलार्थ :- जैसे हाथी ने मगरमच्छ के साथ युद्ध में मरते समय राम का आधा ही नाम
लिया था। वह पूरी कसक के साथ लिया था। उसे ररंकार धुन कहते हैं। ऐसे नाम का जाप
करें और नाम सोहं हो तो हद-बेहद यानि सोहं का मंत्र काल के संतों से लेता है तो हद में
रह जाऐंगे यानि काल जाल में ही रह जाएगा। यदि सतलोक के अधिकारी गुरू से लेकर
उसी लगन से साधना करेगा तो बेहद यानि काल की हद (सीमा) से पार सतलोक में निवास होगा। वहाँ जाने के पश्चात् पुनः जन्म-मरण में नहीं आता।

वाणी नं. 67 :-
गरीब, गुझ गायत्री नाम है, बिन रसना धुनि ध्यान। महिमा सनकादिक लही, सिव संकर बलिजान।।67।।
 सरलार्थ :- जो यथार्थ भक्ति का नाम सतगुरू देते हैं। वह गुझ (गुप्त) गायत्री (महिमा
का गुणगान करने का) है यानि जैसे यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 के आगे ओउम् (ॐ) नाम
जोड़कर गायत्री मंत्र बताते हैं जो केवल वेद का एक श्लोक है। वेद में 18 हजार श्लोक
हैं। सब में परमात्मा की महिमा का वर्णन है। इस एक यजुर्वेद के अध्याय 36 के श्लोक 3
को गायत्री मंत्र बनाकर पढ़ने से परमेश्वर की महिमा का अधूरा गुणगान है, अंश मात्र की
महिमा है जो पर्याप्त नहीं है। वेदों के श्लोकों से तो परमेश्वर का ज्ञान होता है कि परमात्मा
इतना सुखदाई है। उसकी भक्ति करने से यह लाभ होता है। भक्ति न करने से यह हानि
होती है। परंतु एक यजुर्वेद अध्याय 36 के श्लोक 3 में तो वह भी पूर्ण नहीं है। जैसे बिजली
की महिमा लिखी है। उसकी एक-दो पंक्ति से तो वह भी पूर्ण ज्ञान नहीं होता। उसमें बिजली के लाभ के ज्ञान के पश्चात् यह भी लिखा होता है कि बिजली का कनैक्शन लो, उसकी यह विधि है। बिजली की महिमा की केवल एक-दो पंक्ति पढ़ने से पूर्ण ज्ञान नहीं होता। जब तक कनैक्शन नहीं लिया जाए तो बिजली के लाभ नहीं मिलेंगे। कनैक्शन लेने के पश्चात् वह लाभ मिलेगा जो उसकी महिमा में बताया गया है। इसी प्रकार परमात्मा की महिमा को पढ़ने से ज्ञान तो हो जाता है, लेकिन लाभ तब मिलेगा जब पूर्ण गुरू से दीक्षा ले ली जाएगी। वह भक्ति का मंत्र गुझ गायत्री यानि गुप्त लाभ प्राप्त कराने वाला है। फिर सत्य भक्ति से प्रतिदिन परमात्मा लाभ देने लगेगा। फिर नाम स्मरण करते-करते परमात्मा की महिमा अपने आप हृदय से होती रहेगी। जैसे एक व्यक्ति का इकलौता पुत्र रोगी था। सब उपचार, जंत्र-मंत्र, नकली गुरूओं-संतों से नाम ले भजन कर लिया, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। जब भगवान कबीर जी की शरण में बच्चे को लाए, दीक्षा ली। वह बच्चा शीघ्र स्वस्थ हो गया। फिर वह परिवार उस गुप्त नाम का जाप भी करता था और हृदय से परमात्मा के गुण भी याद करता था। हे परमात्मा! आपने मेरे बच्चे को जीवन दान दिया। आप समर्थ हैं। जीवन दाता हैं। आपकी महिमा अपरमपार है। यह महिमा हृदय में चलती है। उसे बोलकर तो कभी-कभी करते हैं जब अन्य को समझाना होता है। कहा है कि गुझ गायत्री यथार्थ नाम है जिससे आध्यात्मिक लाभ मिलता है। तब बिन रसना (जीभ) के परमात्मा की महिमा धुनि (लगन) से ध्यान (विशेष विचार) से होती है। परमात्मा की महिमा जो नाम दीक्षा के पश्चात् होती है। उसको ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों सनकादिक (सनक, सनन्दन, सरत, संत कुमार) तथा शिव जी ने लहि यानि संकेत मात्र से समझ गए। ऐसे विवेकवानों पर मैं बलिहारी जाऊँ यानि ऐसे सब जीव हमारे तत्वज्ञान को शीघ्र समझ लें तो सर्व का काल के जाल से शीघ्र छुटकारा हो जाएगा।

क्रमशः..........
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कबीर-जोर कीयां जुलूम है, मांगै ज्वाब खुदाय। खालिक दर खूनी खड़ा, मार मुहीं मुँह खाय।।कबीर-गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल...
17/08/2023

कबीर-जोर कीयां जुलूम है, मांगै ज्वाब खुदाय। खालिक दर खूनी खड़ा, मार मुहीं मुँह खाय।।
कबीर-गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल। साहब लेखा माँगसी, तब होसी जबाब-सवाल।।
कबीर-गला गुसाकों काटिये, मियां कहरकौ मार। जो पाँचू बिस्मिल करै, तब पावै दीदार।।
कबीर-ये सब झूठी बंदगी, बेरिया पाँच निमाज। सांचहि मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज।।
कबीर-दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत है गाय। यह खून वह बंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।
पाँच समय नमाज भी पढ़ते हो व रोजों के समय रोजे (व्रत) भी रखते हो। शाम को गाय, बकरी, मुर्गी आदि को मार कर माँस खाते हो। एक तरफ तो परमात्मा की स्तुति करते हो, दूसरी ओर उसी के प्राणियों की हत्या करके पाप करते हो। ऐसे प्रभु कैसे खुश होगा ? अर्थात् आप स्वयं भी पाप के भागी हो रहे हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह करने के दोषी होकर नरक में गिरोगे।

16/08/2023

संत रामपाल जी महाराज के 73 वें अवतरण दिवस पर विशाल भंडारे का आयोजन | 8 सितम्बर 2023

कबीर-जोर करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल।साहब लेखा माँगसी, तब होसी कौन हवाल।।जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी क...
16/08/2023

कबीर-जोर करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल।
साहब लेखा माँगसी, तब होसी कौन हवाल।।
जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी को मारते हो, कहते हो हलाल कर रहे हैं। इस दोगली नीति का आपको महा कष्ट भोगना होगा। काजी तथा मुल्ला व कोई भी जीव हिंसा करने वाला पूर्ण प्रभु के कानून का उल्लंघन कर रहा है, जिस कारण वहाँ धर्मराज के दरबार में खड़ा-खड़ा पिटेगा। यदि हलाल ही करने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ आदि को करो।

16/08/2023

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14/08/2023

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सबसे बड़ी कमी है👉आध्यात्मिक ज्ञान की जो हमे सही नही मिली कि हमारे मनुष्य जन्म की खोज पूरी हो सके और हमारी आत्मा संतुष्ट हो सके।

13/08/2023

( के आगे पढिए.....)
📖📖📖


अब हम पढ़ेंगे मुक्तिबोध पेज नंबर (50-51)

‘‘अजामेल की शेष कथा’’
एक दिन नारद जी काशी में आए तथा किसी से पूछा कि मुझे अच्छे भक्त का घर
बताओ। मैंने रात्रि में रूकना है। मेरा भजन बने, उसको सेवा का लाभ मिले। उस व्यक्ति
ने मजाक सूझा और कहा कि आप सामने कच्चे रास्ते जंगल की ओर जाओ। वहाँ एक बहुत अच्छा भक्त रहता है। भक्त तो एकान्त में ही रहते हैं ना। आप कृपा जाओ। लगभग एक मील (आधा कोस) दूर उसकी कुटी है। गर्मी का मौसम था। सूर्य अस्त होने में 1) घंटा शेष था। नारद जी को द्वार पर देखकर मैनका अति प्रसन्न हुई क्योंकि प्रथम बार कोई मनुष्य उनके घर आया था, वह भी ऋषि। पूर्व जन्म के भक्ति-संस्कार अंदर जमा थे, उन पर जैसे बारिश का जल गिर गया हो, ऐसे एकदम अंकुरित हो गए। मैनका ने ऋषि जी का अत्यधिक सत्कार किया। कहा कि न जाने कौन-से जन्म के शुभ कर्म आगे आए हैं जो हम पापियों के घर भगवान स्वरूप ऋषि जी आए हैं। ऋषि जी के बैठने के लिए एक वृक्ष के नीचे चटाई बिछा दी। उसके ऊपर मृगछाला बिछाकर बैठने को कहा। नारद जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वास्तव में ये पक्के भक्त हैं। बहुत अच्छा समय बीतेगा। कुछ देर में अजामेल आया और जो तीतर-खरगोश मारकर लाया था, वह लाठी में टाँगकर आँगन में प्रवेश हुआ। अपनी पत्नी से कहा कि ले रसोई तैयार कर। सामने ऋषि जी को बैठे देखकर दण्डवत् प्रणाम किया और अपने भाग्य को सराहने लगा। कहा कि ऋषि जी! मैं स्नान करके आता हूँ, तब आपके चरण चम्पी करूँगा। यह कहकर अजामेल निकट के तालाब पर चला गया। नारद जी ने मैनका से पूछा कि देवी! यह कौन है? उत्तर मिला कि यह मेरा पति अजामेल है। नारद जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या चक्रव्यूह है? विचार तो भक्तों से भी ऊपर, परंतु कर्म कैसे? नारद जी ने कहा कि देवी! सच-सच बता, माजरा क्या है? शहर में मैंने पूछा था कि किसी अच्छे भक्त का घर बताओ तो आपका एकांत स्थान वाला घर बताया था। आपके व्यवहार से मुझे पूर्ण संतोष हुआ कि सच में भक्तों के घर आ गया हूँ। यह माँसाहारी आपका पति है तो आप भी माँसाहारी हैं। मेरे साथ मजाक हुआ है। ऋषि नारद उठकर चलने लगा। मैनका ने चरण पकड़ लिये। तब तक अजामेल भी आ गया। अजामेल भी समझ गया कि ऋषि जी गलती से आये हैं। अब जा रहे हैं। पूर्व के भक्ति संस्कार के कारण ऋषि जी के दोनों ने चरण पकड़ लिए और कहा कि हमारे घर से ऋषि भूखा जाएगा तो हमारा नरक में वास होगा। ऋषि जी! आपको हमें मारकर हमारे शव के ऊपर पैर रखकर जाना होगा। नारद जी ने कहा कि आप तो अपराधी हैं। तुम्हारा दर्शन भी अशुभ है। अजामेल ने कहा कि हे स्वामी जी! आप तो पतितों का उद्धार करने वाले हो। हम पतितों का उद्धार करें। हमें कुछ ज्ञान सुनाओ। हम आपको कुछ खाए बिना नहीं जाने देंगे। नारद जी ने सोचा कि कहीं ये मलेच्छ यहीं काम-तमाम न कर दें यानि मार न दें, ये तो बेरहम होते हैं, बड़ी संकट में जान आई। कुछ विचार करके नारद जी ने कहा कि यदि कुछ खिलाना चाहते हो तो प्रतिज्ञा लो कि कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे। माँस-शराब का सेवन नहीं करेंगे। दोनों ने एक सुर में हाँ कर दी। सौगंद है गुरूदेव! कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे, कभी शराब-माँस का सेवन नहीं करेंगे। नारद जी ने कहा कि पहले यह माँस दूर डालकर आओ और शाकाहारी भोजन पकाओ। तुरंत अजामेल ने वह माँस दूर जंगल में डाला। मैनका ने कुटी की सफाई की। फिर पानी छिड़का। चूल्हा लीपा। अजामेल बोला कि मैं शहर से आटा लाता हूँ। मैनका तुम सब्जी बनाओ। नारद जी की जान में जान आई। भोजन खाया। गर्मी का मौसम था। एक वृक्ष के नीचे नारद जी की चटाई बिछा दी। स्वयं दोनों बारी-बारी सारी रात पंखे से हवा चलाते रहे। नारद जी बैठकर भजन करने लगे। फिर कुछ देर निकली, तब देखा कि दोनों अडिग सेवा कर रहे हैं। नारद जी ने कहा कि आप दोनों भक्ति करो।
राम का नाम जाप करो। दोनों ने कहा कि ऋषि जी! भक्ति नहीं कर सकते। रूचि ही नहीं
बनती। और सेवा बताओ।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना सुहावै। कै ऊँघै कै उठ चलै, कै औरे बात चलावै।।
तुलसी, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना भावै। जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जावै।।
भावार्थ :- जैसे ज्वर यानि बुखार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों
के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रूचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उसको श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठकर चला जाएगा।
यही दशा अजामेल तथा मैनका की थी। नारद जी ने कहा कि हे अजामेल! एक आज्ञा का पालन अवश्य करना। आपकी पत्नी को लड़का उत्पन्न होगा। उसका नाम ‘नारायण’
रखना। ऋषि जी चले गए। अजामेल को पुत्र प्राप्त हुआ। उसका नाम नारायण रखा।
इकलौते पुत्र में अत्यधिक मोह हो गया। जरा भी इधर-उधर हो जाए तो अजामेल अरे
नारायण आजा बेटा करने लगा। ऋषि जी का उद्देश्य था कि यह कर्महीन दंपति इसी बहाने परमात्मा को याद कर लेगा तो कल्याण हो जाएगा। नारद जी ने कहा था कि अंत समय में यदि यम के दूत जीव को लेने आ जाऐं तो नारायण कहने से छोड़कर चले जाते हैं। भगवान के दूत आकर ले जाते हैं। एक दिन अचानक अजामेल की मृत्यु हो गई। यम के दूत आ गए। उनको देखकर कहा कि कहाँ गया नारायण बेटा, आजा।
{पौराणिक लोग कहते हैं कि ऐसा कहते ही भगवान विष्णु के दूत आए और यमदूतों
से कहा कि इसकी आत्मा को हम लेकर जाऐंगे। इसने नारायण को पुकारा है। यमदूतों ने
कहा कि धर्मराज का हमारे को आदेश है पेश करने का। इसी बात पर दोनों का युद्ध हुआ। भगवान के दूत अजामेल को ले गए।}
वास्तव में यमदूत धर्मराज के पास लेकर गए। धर्मराज ने अजामेल का खाता खोला
तो उसकी चार वर्ष की आयु शेष थी। फिर देखा कि इसी काशी शहर में दूसरा अजामेल
है। उसके पिता का अन्य नाम है। उसको लाना था। उसे लाओ। इसको तुरंत छोड़कर आओ। अजामेल की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी रो-रोकर विलाप कर रही थी। विचार कर
रही थी कि अब इस जंगल में कैसे रह पाऊँगी। बच्चे का पालन कैसे करूंगी? यह क्या बनी भगवान? वह रोती-रोती लकडि़याँ इकट्ठी कर रही थी। कुटी के पास में शव को खींचकर ले गई। इतने में अजामेल उठकर बैठ गया। कुछ देर तो शरीर ने कार्य ही नहीं किया। कुछ समय के बाद अपनी पत्नी से कहा कि यह क्या कर रही हो? पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। कहा कि आपकी मृत्यु हो गई थी। अजामेल ने बताया कि यम के दूत
मुझे धर्मराज के पास लेकर गए। मेरा खाता (Account) देखा तो मेरी चार वर्ष आयु शेष
थी। मुझे छोड़ दिया और काशी शहर से एक अन्य अजामेल को लेकर जाऐंगे, उसकी मृत्यु
होगी। अगले दिन अजामेल शहर गया तो अजामेल के शव को शमशान घाट ले जा रहे थे,
तुरंत वापिस आया। अपनी पत्नी से बताया कि वह अजामेल मर गया है, उसका अंतिम
संस्कार करने जा रहे हैं। अब अजामेल को भय हुआ कि भक्ति नहीं की तो ऊपर बुरी तरह पिटाई हो रही थी, नरक में हाहाकार मचा था। नारद जी आए तो अजामेल ने कहा कि गुरू जी! मेरे साथ ऐसा हुआ। मेरी आयु चार वर्ष की बताई थी। एक वर्ष कम हो चुका है। बच्चा छोटा है, मेरी आयु बढ़ा दो। नारद जी ने कहा कि नारायण-नारायण जपने से किसी की आयु नहीं बढ़ती। जो समय धर्मराज ने लिखा है, उससे एक श्वांस भी घट-बढ़ नहीं सकता।

क्रमशः..........
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