28/09/2023
( के आगे पढिए.....)
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (143-144)
सेऊ (शिव) तथा सम्मन की कथा
{अचला के अंग की वाणी नं 148-190 में है।}
◆ अचला के अंग से वाणी नं. 148-190 :-
गरीब, समन कै सतगुरु गये, संग फरीद कमाल।
सत टोहन कौं ऊतरे, हो सतगुरु अबदाल।।148।।
गरीब, समन नेकी पूछिया, अन्न का कहौ बिचार।
सतगुरु आये पाहुने, क्या दीजै जौंनार।।149।।
गरीब, नेकी समन सें कहै, अन्न नांहि घर मोरि।
सतगुरु के प्रसाद कूं, घर ल्यावौं कोई फोरि।।150।।
गरीब, मांग्या मिलै न करज दे, आंनि बनी बहु भीर।
कहि नेकी क्या कीजिये, ल्या धरैं तुम्हारा चीर।।151।।
गरीब, धरने लायक चीर कित, पाट्या पटल मोहि।
समन सें नेकी कहै, चोरी जावौ तोहि।।152।।
गरीब, सेऊ माता सें कहै, चोरि खाट्या खांहि।
माल बिराना मुसहरैं, जिन के सरबस जांहि।।153।।
गरीब, माता पुत्रा सें कहै, सुनि सेऊ सुर ज्ञान।
या में नहीं अकाज है, चोरि करि दे दान।।154।।
गरीब, सतगुरु दीन्हा बैठना, आसन दिये बिछाय।
शेख फरीद कमाल कूं, लिये सुतार चढाय।।155।।
गरीब, शब्द उचारैं धुंनि करैं, सतगुरु आये आज।
समन सें नेकी कहैं, घर में नाहीं नाज।।156।।
गरीब, सुनौं शब्द चित्त लाय करि, हौनी होय सो होय।
सब बिधि काज समारही, चरण कमल चित्त पोय।।157।।
गरीब, सतगुरु आये पाहुनें, मिहमानी करि स्यांह।
सेऊ माता सै कहै, शीश बेचि धरि स्यांह।।158।।
गरीब, सुनि रे पुत्र सरोमनी, नेकी कहै निराठि।
सतगुरु आये पाहुनें, करौ शीश की सांटि।।159।।
गरीब, शेख फरीद कमाल कूं, बोले बचन सुशील।
समन सें सतगुरु कहै, भोजन की क्या ढील।।160।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहै, करौ ध्यान असनान।
भोजन पाख षिलायस्यां, ऊगमतैंही भान।।161।।
गरीब, अर्ध रात चोरी चले, सेऊ समन साथ।
कुंभिल दीना जाय करि, नाज लग्या जहां हाथ।।162।।
गरीब, कुंभिल में सेऊ बड़े, लाई बड़ी जु बेर।
हम तौ फाकैही रहैं, तुम ल्याईयौ तीनै सेर।।163।।
गरीब, तीन सेर अन्न बांधि करि, पहली दिया चलाय।
पीछै बनियां, जागिया, सेऊ पकर्या आय।।164।।
गरीब, चोर चोर बनियां करै, सेऊ पकरी मौंन।
ठाड्यौ काहै बोलिये, तीन सेर लिया चौंन।।165।।
गरीब, बनिये रस्सा घालि करि, दिया खंभ सें बांधि।
समन डेरै ले गया, नेकी रोटी छांदि।।166।।
गरीब, करद लिया एक हाथ में, उलटे चले समन।
सेऊ टुक बतलाय ले, सूना पर्या भवन।।167।।
गरीब, बनियां सें सेऊ कहै, बाहर हमरा बाप।
झूंठी शाख न बोलि हूं, शीश चढत मोहि पाप।।168।।
गरीब, खंभा सें पग बांधि दे, बाहर काढौं शीश।
दोय बात बतलाय लौ, शाखी हैं जगदीश।।169।।
गरीब, पिता शीश शिर काटिले, सनमुख करद चलाय।
ताक बीच धरि दीजियौं, बनियें पकरे पाय।।170।।
गरीब, समन करद चलाइया, सनमुख काट्या शीश।
काटतही कसक्या नहीं, दढ है बिसवे बीसू ।। 171।।
गरीब, शीश काटि घर ले गया, ताक बीच धरि दीन।
नेकी करै रसोईयां, ज्ञान ध्यान प्रबीन।।172।।
गरीब, समन तैं नेकी करी, सेऊ का शिर काटि।
तन देही कित डारिया, फेरा करियो हाटि।।173।।
गरीब, छह दौने परोसिया, सतगुरु पुरुष कबीर।
सेऊ बोलै ताक में, में हूं दामनगीर।।174।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहै, सेऊ आया नांहिं।
देही तौ सूनि धरी, शीश ताक कै मांहि।।175।।
गरीब, आवो सेऊ जीमि ल्यौ, योह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों कै, साधौं कै नित क्षेम।।176।।
गरीब, सेऊ धड़ परि शिर चढ्या, बैठे पंगत मांहि।
नहीं घरहरा नाडि़ कै, वह सेऊ अक नांहि।।177।।
गरीब, समन सें सतगुरु कहैं, नेकी मन आनन्द।
शीश काटि घर में धर्या, मात पिता धन्य धन्य।।178।।
गरीब, सतगुरु सें समन कहैं, सुनौं फरीदा गल।
इब के सतगुरु आयसी, देसी शीश पहल।।179।।
गरी, सतगुरु सें नेकी कहै, सुनौं फरीदा बात।
आधी भक्ति कमाईया, रहे पिता पुत्रा नहीं साथ।।180।।
गरीब, भौंहौं करि हूं आरता, पलकौं चौंर ढुराय।
समन सें नेकी कहै, द्यौंह अपना शीश चढाय।।181।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा फेर।
समन कै घर साच है, इत मत लावो बेर।।182।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल स्यौं, सुनौं फरीदा यार।
समन कै घर साच है, ये धरि हैं शीश उतार।।183।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सै, सुनौं फरीदा बात।
समन कै घर साच है, शीश चढै स्यौं गात।।184।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा सैंन।
समन कै घर साच है, ये बोलै आदू बैंन।।185।।
गरीब, कहैं कबीर कमाल सैं, सुनौं फरीदा ख्याल।
समन कै घर साच है, ये कीजै नजर निहाल।।186।।
गरीब, जेते अंबर तारियां, ते ते अवगुण मोहि।
धड़ सूली शिर ताकमें, सतगुरु तौ नहीं बिसरौं तोहि।।187।।
गरीब, छप्पन भोग करे धनी, भये समन कै ठाठ।
कहै कबीर कमाल सैं, चलौ फरीदा बाट।।188।।
गरीब, अष्टसिद्धि नौनिद्धि आगनैं, अन्न धनदिये अनन्त।
सेऊ समन अमर कछ, नेकी पद बे अन्त।।189।।
गरीब, नेकी सेऊ पारिंग हुए, सतगुरु के प्रताप।
समन भए नौशेरखांन, जुग-जुग संगी साथ।।190।
क्रमशः___________________
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