Ak Kushwaha

Ak Kushwaha Vedio Creator , Vlogs , Travelling

02/12/2023

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08/10/2023

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28/07/2023

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बोल बंम
25/07/2023

बोल बंम

  Mandir  : भगवान शिव का वो मंदिर जहां आरती की लोह जलाने के लिए चिता की अग्नी का सहारा लिया जाता है। ये मंदिर (Bhootnath...
02/07/2023

Mandir : भगवान शिव का वो मंदिर जहां आरती की लोह जलाने के लिए चिता की अग्नी का सहारा लिया जाता है। ये मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल नहीं है लेकिन फिर भी यहां आरती की ज्योत चिता की लकड़ी से जलाई जाती है।

ये रहस्यमयी मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) कोलकाता के नीमतल्ला घाट के पास स्थित है जिसे बाबा भूतनाथ मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना करीबन 300 साल पहले नीमतल्ला श्मशान घाट में रहने वाले एक अघोरी बाबा द्वारा की गई थी।

जिस वक्त इस मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) की स्थापना की गई थी उस समय यहां केवल एक शिवलिंग हुआ करता था जिस पर कई अघोरी बाबा जल चढ़ाया करते व पूजा अर्चना करने आया करते और कभी कबार आस पास के लोग भी शिवलिंग पर जल चढ़ाने आया करते थे।अब आते हैं इस पर कि आखिर क्यों इस मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) में पूजा करते समय चिता की आग से ज्योत जलाई जाती है। दरअसल अघोरी बाबा द्वारा श्मशान घाट के बीचों बीच शिवलिंग को स्थापित किया गया था जहां बाद में मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) बना दिया गया। अब जब आरती के समय में पुजारी को ज्योत जलानी होती थी तो वह किसी भी जलती हुई चिता से एक लकड़ी उठाता और ज्योत जला दिया करता था, बस तभी से ये प्रथा वैसी की वैसी ही चली आ रही है।

इस मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) को लेकर लोगों के बीच इतनी आस्था है कि कई बार तो मंदिर में भक्तों के प्रवेश पर बैन तक लगा दिया जाता है लेकिन फिर भी भक्त इस मंदिर के द्वार में माथा टेकने पहुंते हैं।

इस मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) के बारे में सबसे अनोखी बात ये है कि मंगला आरती (सुबह 4 बजे) और संध्या आरती (शाम साढ़े 6 बजे) के समय में यहां करीबन पिछले 300 सालों से चिता की अग्नी से ही ज्योत जलाई जा रही है और हैरानी की बात तो ये है कि दोनों ही समय पर पुजारी को कोई न कोई जलती हुई चिता तो मिल ही जाती है।इसके साथ ही आपको बता दें कि ये मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) हफ्ते के सातों दिन, चौबीसों घंटे खुला रहता है जहां भक्तों की भीड़ जुटी रहती है। भूतनाथ मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में आकर रोज कपूर जलाता है और उसकी कालिख का टीका लगाता है उस पर हमेशा भोले बाबा की कृपा बनी रहती है।

इस मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) का संचालन हिंदू सत्कार समिति द्वारा 1932 में अपने हाथों में लिया गया था और फिर धीरे धीरे मंदिर का विस्तार व प्रचार होता चला गया। इसके बाद 1940 में कोलकता निगम द्वारा मंदिर और श्मशान घाट के बीच एक दीवार खड़ी कर दी गई।

इसके बाद भक्तों की इस मंदिर के प्रति बढ़ती आस्ता से इस मंदिर की पूरी दीवार को चांदी से बनवाया गया। यहां तक की मंदिर (Bhootnath Mandir Kolkata) में मौजूद शिव जी, नंदी, त्रिशूल व डमरू आदी तक चांदी के बने हुए हैं। महाशिवरात्रि और सावन के पावन पर्व पर तो इस मंदिर में एक भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

  मुजफ्फरपुर। कच्ची सराय रोड स्थित प्रसिद्ध मां पीतांबरी बगलामुखी सिद्धपीठ मुजफ्फरपुर ही नहीं, सुदूर क्षेत्रों के लोगों ...
25/06/2023

मुजफ्फरपुर। कच्ची सराय रोड स्थित प्रसिद्ध मां पीतांबरी बगलामुखी सिद्धपीठ मुजफ्फरपुर ही नहीं, सुदूर क्षेत्रों के लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित माता की अष्टधातु की प्रतिमा के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। माता को हल्दी व दूब से पूजा करने पर वे खुश होती हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है।

स्थापित है 'सहस्त्र दल महायंत्र'

ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के ठीक नीचे सर्व मनोकामना सिद्ध 'सहस्त्र दल महायंत्र' स्थापित है जो हर व्यक्ति की मुरादें पूरी करती हैं। नवरात्र में यहां देशभर से दर्जनों अघोर तांत्रिक साधना के लिए जुटते हैं। यहां दश महाविद्या में मां का आठवां स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि यहां 21 दिन नियमित दर्शन करने आने पर मां भगवती भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

ऐसे आएं मंदिर

स्टेशन पहुंचने के बाद वहां से सीधे पूरब की ओर पुरानी धर्मशाला चौक, मोतीझील, कल्याणी चौक, छोटी कल्याणी व अमर सिनेमा रोड होते हुए हाथी चौक आना है। वहां से बाएं मुड़कर चंद कदम आगे बढ़ना है। चौक से करीब सौ मीटर की दूरी पर दाहिने तरफ माता का मंदिर है।

विशेषता

कहते हैं कि वर्तमान महंत अजीत कुमार के पूर्वज वैशाली के महुआ आदलपुर से आकर यहां बसे थे। मां बगलामुखी इनके परिवार की कुलदेवी थी। माता की इस परिवार पर असीम कृपा थी। श्री कुमार के परदादा रुपल प्रसाद ने मंदिर की स्थापना के पूर्व कोलकाता के तांत्रिक भवानी मिश्रा से गुरु मंत्र लिया। उन्हीं की प्रेरणा से मंदिर की स्थापना हुई। कालांतर में अजीत कुमार ने अपनी माता कमला देवी से तंत्र साधना सीखी। वाम व दक्षिण मार्ग से मंदिर में तांत्रिक चेतना जागृत की। धीरे-धीरे तांत्रिक शक्तियों के कारण लोगों की आस्था इस मंदिर में बढ़ी और भीड़ बढ़ने लगी। बाद में यहां मां त्रिपुर सुंदरी, मां तारा, बाबा भैरवनाथ व हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित हुई।

इतिहास

बताते हैं कि मंदिर की स्थापना करीब 285 वर्ष पूर्व महंत अजीत कुमार के परदादा रुपल प्रसाद ने मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर के वर्तमान स्वरूप की नींव श्री कुमार ने 1993-94 के बीच रखी। ये इंजीनिय¨रग की पढ़ाई करते थे। बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वे लौट आए। मां से तंत्र साधना सीखने के बाद वाम मार्ग व दक्षिण मार्ग से मंदिर में तांत्रिक चेतना जागृत की। कालांतर में वर्ष 2004 में मां त्रिपुर सुंदरी व मां तारा की मूर्ति और वर्ष 2006 में भैरव बाबा की मूर्ति स्थापित की गई।

वास्तु कला

बताया जाता है कि वास्तु कला व तांत्रिक विधि से मंदिर की स्थापना की गई है। पं.भवानी मिश्र ने तांत्रिक प्रक्रिया द्वारा मूर्ति की स्थापना की थी।

बयान

नवरात्र हो या आम दिन, यहां सालों भर तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। वैसे आमजन भी नित्य दिन पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। प्रत्येक गुरुवार व शारदीय व वासंतिक नवरात्र के अवसर पर यहां काफी भीड़ उमड़ती है। सुबह-शाम दोनों समय माता की भव्य आरती होती है जिसमें काफी लोग भाग लेते हैं।

- पं.देवनारायण मिश्र, प्रधान पुजारी

मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक सालों भर भक्तों का तांता लग रहा है। मां के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने नित्य मां के दर्शन का नियम बना रखा है। चाहे कैसा भी मौसम क्यों न हो, वे मां के दरबार में आते ही हैं।

 #गरीबनाथ    एक मजदूर था उसी की कुल्हाड़ी के प्रहार से शिवलिंग का प्राकट्य हुआ है ।वह क्षेत्र उस समय जंगल था और मजदूर कु...
16/06/2023

#गरीबनाथ
एक मजदूर था उसी की कुल्हाड़ी के प्रहार से शिवलिंग का प्राकट्य हुआ है ।वह क्षेत्र उस समय जंगल था और मजदूर कुल्हाड़ी से वृक्ष की कटाई कर रहा था। लिंग पर अभी भी कटे हुए का निशान हैं। गरीबनाथ जन के नाम पर ही गरीबनाथ के नाम से बाबा प्रचलित हो गए। यह भी कहा जाता है की शिवलिंग पर कुल्हाड़ी का वार पड़ते ही लिंग से रक्त की धरा निकली थी।
मुजफ्फरपुर शहर में एक साहूकार था जिसके फैले हुए व्यवसाय की देख-रेख एक मुंशी जी किया करते थे। मुंशी जी बाबा गरीबनाथ के परम भक्त थे। एकाएक साहूकार को व्यवसाय में घटा लगा और मुंशी जी की नौकरी चली गयी।

मुंशी जी अपनी पत्नी और विवाहित पुत्री के साथ जीवन जी रहे थे। मुंशी जी की पुत्री की शादी एक संपन्न घराने में हुई थी,समय के साथ पुत्री के गौना का दिन निकट आ रहा था लेकिन इस कार्य के लिए धन की वयवस्था नहीं हो पा रही थी। परन्तु मुंशी जी नियमपूर्वक मंदिर आया करते थे और बाबा की विधिपूर्वक पूजा किया करते थे। पुत्री के गौना हेतु मुंशी जी ने अपनी जमीन बेचने का निश्चय किया लेकिन इस दिन निबंधक के न आने से मकान की रजिस्ट्री नहीं हो सकी। मुंशी जी बड़े दुखी मन से घर लौटे और पत्नी को सारी कथा सुनाई। पत्नी ने आश्चर्य से मुंशी जी की ओर देखा और कहा की कुछ देर पहले ही तो आप पकवान बनाने का सारा सामान ,गहना ,कपड़ा रखकर मंदिर गए थे ।

ये सभी गौना का सामान स्वं बाबा गरीबनाथ ने ही मुंशी भक्त के यहाँ पहुचाएँ थे और मुंशी जी ने धूमधाम से पुत्री का गौना किया। चुकि मुंशी जी गरीब थे और बाबा ने गरीब का कल्याण किया इसलिए बाबा का नाम गरीबनाथ पड़ गया ।
तीसरी कथा के अंतर्गत बाबा के गर्भगृह में राजमिस्त्री द्वारा शिवलिंग के चारो तरफ थोड़ी खुदाई की जा रही थी जिसमे शिवलिंग के चारो ओर कवर लगाया जा सके। राजमिस्त्री ने शिवलिंग के नीचे हाथ डाला तो उसे बाबा का पूरा जटा हाथ में स्पर्श करता हुआ मालूम हुआ और वह डर से मूर्छित हो गया ।मंदिर के लोगों ने उसे संभाला और होश आने पर उसने सारी बात बताई । साथ ही साथ उसने यह भी कहा की वह बिना स्नान किये यह कार्य कर रहा था । दूसरे दिन स्नान-ध्यान कर बाबा से माफ़ी मांग कर कार्य प्रारंभ किया उसे कार्य करने पर कोई कठिनाई नहीं आई ।
चौथी कथा यह है की एक दिन सुबह बाबा की आरती हो रही थी और आरती के समय ही वट-वृक्ष के तने से लटककर एक सर्प तबतक झूलता रहा जबतक की आरती ख़त्म नहीं हो गई , आरती ख़त्म होने के बाद सर्प अदृश्य हो गया। इस स्थिति का फोटोग्राफ मंदिर के रिकॉर्ड में उपलब्ध है ।

अगली कथा है की एक ट्रेन ड्राईवर था जो बाबा का अनन्य भक्त था। शिवरात्रि के दिन ड्राईवर मंदिर आया । बाबा की पूजा कर उसकी आँखें लग गई और वह सो गया । उसी दिन उसे ट्रेन लेकर मुजफ्फरपुर से बाहर जाना था ।जब उसकी नींद खुली तो वह काफी घबरा गया और उसने स्टेशन फ़ोन किया फ़ोन पर स्टेशन से जानकारी मिली की वह ड्राईवर जो सो गया था ट्रेन लेकर मुजफ्फरपुर से बाहर जा चुका है । यह कुछ नहीं बल्कि बाबा स्वयं ट्रेन ड्राईवर के रूप में गए थे। इस अद्भुत चमत्कार से ड्राईवर इतना प्रभावित हुआ की वह रेलवे सेवा से त्यागपत्र देकर बाबा की सेवा में दिन-रात लग गया ।

ऐसी एक नहीं अनेक कथाएँ हैं ।भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और फिर बाबा की भक्ति में अपने को समर्पित कर देते हैं ।

    संथाल परगना प्रमंडल में दो ऐसे शिव मंदिर है जो विश्व प्रसिद्ध है। देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर ...
21/05/2023

संथाल परगना प्रमंडल में दो ऐसे शिव मंदिर है जो विश्व प्रसिद्ध है। देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर हो या दुमका का बासुकीनाथ धाम शिव मंदिर. दोनों की महत्ता सभी वाकिफ हैं. लेकिन आज हम ऐसे शिवलिंग की बात कर रहे है जिसका दर्शन वर्षों बाद होता है. दुमका के बासुकीनाथ मंदिर से सटा है शिव गंगा. यहां आने वाले श्रद्धालु पहले शिव गंगा में आस्था की डुबकी लगाते है उसके बाद फौजदारी बाबा बासुकीनाथ पर जलार्पण करते है. बहुत कम लोगों को पता है कि शिव गंगा में भी एक शिवलिंग है जिसे पातालेश्वर नाथ महादेव कहा जाता है. लोग इसे पाताल शिवलिंग भी कहते हैं.शिव गंगा के मध्य सतह से लगभग 15 फ़ीट नीचे एक कुंड में पाताल बाबा शिव लिंग स्थापित है. इसका पूजन एवं दर्शन वर्षों बाद होता है. प्रशासनिक स्तर से जब शिव गंगा की सफाई होती है तो पाताल बाबा का दर्शन होता है. जानकर बताते है कि यह अत्यंत प्राचीन है. बासुकीनाथ मंदिर का शिवलिंग हो या पाताल बाबा शिव लिंग, दोनों एक ही शीला का है. पाताल बाबा शिवलिंग के कुंड पर एक शिलालेख भी है. पाताल बाबा की महिमा सोचने पर विवश कर देता है कि सचमुच कोई अदृश्य शक्ति है. हम ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि जब शिव गंगा की सफाई होती है तो पहले पूरे पानी को मोटर लगाकर बाहर निकाला जाता है. उसके बाद शिव गंगा में जमे कीचड़ और गाद को निकाल जाता है। पाताल बाबा शिवलिंग शिव गंगा की सतह से लगभग 15 फ़ीट गहरे कुंड में है. कुंड में भी पानी, कीचड़ और गाद भरा रहता है। जब उसकी सफाई होती है तो बाबा की महिमा देख कर लोग दंग रह जाते हैं.

दरअसल शिव गंगा की सफाई करने के बाद उसमें पानी भरा जाता है. सफाई के क्रम में जब पाताल बाबा का दर्शन होता है तो दूर दराज से लोग यहां आते हैं और पाताल बाबा पर जल अर्पण करते हैं. पूरे विधि विधान के साथ श्रृंगारी पूजा भी होता है. शिव गंगा में पानी भरने के पूर्व जो पूजा होती है उसमें बेलपत्र, पुष्प, अबीर गुलाल बाबा पर अर्पित किया जाता है. उसके बाद शिव गंगा को पानी से भर दिया जाता है. आश्चर्य की बात तो यह है कि जब वर्षों बाद शिव गंगा की सफाई होती है. पानी निकाल कर कीचड़ को जब हटाया जाता है तो वर्षो बाद भी पूजन सामग्री यथावत रहता है. ना तो वह सड़ता गलता है और ना ही नष्ट होता. एक नजर में ऐसा लगता है मानो आज ही बाबा का श्रृंगारी हुआ हो. आश्चर्य यहीं समाप्त नहीं होता. शिवलिंग के पास बाबा का एक जोड़ी चरण पादुका अर्थात खडाँव रखा रहता है चरण पादुका लकड़ी का बना होता है। विज्ञान की माने तो चरण पादुका लकड़ी का होने के कारण पानी के साथ उपला कर ऊपर आ जानी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है. वह वर्षों तक अपने स्थान पर यथावत रहता है.

छठ महापर्व का बिहार में विशेष महत्‍व है। कुछ लोककथाओं की मानें तो इसकी शुरुआत माता सीता ने  #बिहार के ही मुंगेर स्थित मु...
30/04/2023

छठ महापर्व का बिहार में विशेष महत्‍व है। कुछ लोककथाओं की मानें तो इसकी शुरुआत माता सीता ने #बिहार के ही मुंगेर स्थित मुद्गल के आश्रम में की थी। वाल्‍मीकि रामायण व आनंद रामायण में इसका वर्णन आता है। माता सीता ने जहां पहला छठ किया था, वह स्‍थान वर्तमान में 'सीता चरण मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे छठ बिहार सहित पूरे देश मे मनाया जाने लगा। मान्‍यता है कि वहां शिला पर माता सीता के चरण निशान मौजूद हैं।

मान्‍यता है कि बिहार के मुंगेर स्थित गंगा नदी के बबुआ घाट से दो किलोमीटर अंदर गंगा के बीच एक पर्वत पर ऋषि मुद्गल का आश्रम था। माता सीता ने वहीं छठ व्रत किया था। तब मुंगेर का नाम मुद्गल था।

मुद्गल ऋषि की सलाह पर माता सीता ने किया छठ

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान राम वनवास के लिए निकले थे, तब वे माता सीता और लक्ष्मण के साथ ऋषि मुद्गल के आश्रम गए थे। वहां माता सीता ने मां गंगा से वनवास सकुशल बीत जाने की प्रार्थना की थी। वनवास व लंका विजय के बाद भगवान राम व माता सीता मुद्गल ऋषि के आश्रम गए। वहां ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद माता सीता ने वहीं गंगा नदी में एक टीले पर छठ व्रत किया था।

ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए किया व्रत

गंगा नदी के बीच स्थित 'सीता चरण' पर शोध करने वाले मुंगेर के प्रो. सुनील कुमार सिन्हा के अनुसार भगवान राम ने जब ब्राह्मण रावण का वध किया, तब उन्‍हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति के लिए अयोध्या के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम व सीता माता को मुद्गल ऋषि के पास मुंगेर भेजा था। वे बताते हैं कि आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर का उल्लेख है।

ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर कीं सूर्योपासना

कहते हैं कि माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहीं। चूंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं, इसलिए उन्‍होंने आश्रम में रहकर ऋषि मुद्गल के निर्देश के अनुसार सूर्योपासना का छठ व्रत किया था। व्रत के दौरान माता सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा में और उगते सूर्य को पूरब दिशा में अर्घ्‍य दिया था।

शिला पर मौजूद माता सीता के चरणों के निशान

माता सीता ने जहां छठ व्रत किया था, वहां मंदिर बना है। मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान मौजूद हैं। वहां शिला पर सूप, डाला तथा लोटा के निशान भी हैं।

सन् 1974 में बनाया गया सीताचरण मंदिर

सन् 1974 में मंदिर निर्माण के पहले श्रद्धालु शिला पर बने चरण निशान की पूजा करते थे। 1972 में सीताचरण में हुए संत सम्मेलन के फैसले के अनुसार वहां दो साल में मंदिर का निर्माण किया गया।

अन्‍य जगह मिले चरण निशानों में है समानता

खास बात सह है कि सीताचरण मंदिर के सीता के चरण निशान देश के अन्य मंदिरों में मौजूद ऐसे निशानों से मिलते हैं। प्रसिद्ध ब्रिटिश शोधकर्ता गियर्सन ने इस मंदिर के पदचिह्न तथा माता सीता के जनकपुर मंदिर, चित्रकूट मंदिर, मिथिला मंदिर आदि में मौजूद चरण निशानों के बीच समानता पाई।

29/04/2023

Charan

 #तारापीठ के साथ ही आप यहाँ मुंडमालनीतला भी ज़रूर देखें। कहा जाता है कि तारा माँ अपने गले की मुंडमाला यहीं रखकर द्वारका ...
15/03/2023

#तारापीठ के साथ ही आप यहाँ मुंडमालनीतला भी ज़रूर देखें। कहा जाता है कि तारा माँ अपने गले की मुंडमाला यहीं रखकर द्वारका नदी में स्नान करने जाती हैं। यह भी एक शमशान स्थल ही है।।

    जागृत देवी गुह्यकाली की पूजा करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं इस मंदिर के निर्माण के दौरान दीवार फट गई थी।  भक्तों ...
15/03/2023

जागृत देवी गुह्यकाली की पूजा करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं

इस मंदिर के निर्माण के दौरान दीवार फट गई थी। भक्तों का दावा है कि उसके बाद रात में देवी ने सपने में दर्शन दिए। उन्होंने कहा, चूंकि श्मशान है तो मंदिर की जरूरत ही नहीं है।
बीरभूम के अकालीपुर में गुह्यकालिका मंदिर। अकालीपुर नलहाटी क्षेत्र का एक गांव है। भाद्रपुर के पास अकालीपुर गांव महाराजा नंदकुमार के जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है। ट्रेन में जाने पर अजीमगंज-नलहाटी शाखा के लोहापुर स्टेशन पर उतरना पड़ता है. वहां से आप आसानी से अकालीपुर गांव जा सकते हैं। कहा जाता है कि इस गुह्यकाली मंदिर की स्थापना स्वयं महाराजा नंदकुमार ने की थी। सर्प पर आसीन, भूषिता सर्प के आवरण में, बरभदायिनी, दो भुजाओं वाली जगन्माता गुह्यकाली।
उनका मंदिर एक ऊंची वेदी, ईंटों के कोने पर बना है, जिसका मुख दक्षिण की ओर है। मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए रास्ते हैं। इसके तीन प्रवेश द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर है। इस मंदिर में दो अन्य प्रवेश द्वार भी हैं। एक पूर्व की ओर, दूसरा पश्चिम की ओर। जो पत्थर से बना है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के दौरान दीवार फट गई थी। भक्तों का दावा है कि उसके बाद रात में देवी ने सपने में दर्शन दिए। उन्होंने कहा, चूंकि श्मशान है तो मंदिर की जरूरत ही नहीं है। अभी भी देवी के उस निर्देश के प्रमाण के रूप में मंदिर के उत्तर-पूर्व की ओर दो दरारें हैं।सर्पवरनभुष्ट' (सर्प लेपित) 'सर्पासिनी' 'दिभुजा' (दो हाथ वाली), नारा-मुंडा-मल्लिनी (खोपड़ी-हार-मूर्ति), 'मगधराज जरासंध' द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति है। कालांतर में यह काशी के राजा चेठ सिंह के महल में स्थापित होकर पूज्य हो गया। ब्रिटिश गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने राजा चेथ सिंह के महल को लूटते हुए मूर्ति को कई संपत्तियों के साथ लूट लिया। गंगा के माध्यम से यात्रा करते हुए, कोलकाता के रास्ते में, दीवान महाराजा नंदकुमार ने मूर्ति को बचाया। फिर ब्राह्मण नदी के तट पर, उन्होंने अखिलीपुर में एक बरगद के पेड़ (जो अब भी मौजूद है) के बगल में इस देवी की पूजा करने का फैसला किया।
किंवदंतियों के अनुसार, नंदकुमार के 'कुलपुरोहित' ने इस मंदिर की स्थापना पर आपत्ति जताई और कहा कि इस मूर्ति की पूजा किसी गृहस्थ के लिए संभव नहीं है। यह अधिकार केवल एक 'कपाललिक' या 'तांत्रिक' ही प्राप्त कर सकता है। महाराजा ने आपत्ति को दूर करके मंदिर का निर्माण शुरू किया, लेकिन दुर्भाग्य के कारण ऐसा नहीं हो सका। आंधी से मंदिर के कोने क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और शिखर अधूरा रह जाता है। तब महाराजा ने '11वें माघ 1178' शाकभदा में अधूरे मंदिर को बड़ी ही धूमधाम से पूरा किया और वहां देवी की स्थापना की।

 #दुमकाः #झारखंड की उप राजधानी दुमका जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मंदिरों का गांव मलूटी (Temples Village of   i...
14/03/2023

#दुमकाः #झारखंड की उप राजधानी दुमका जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मंदिरों का गांव मलूटी (Temples Village of in Dumka) है, जहां 400 वर्ष पुराने 72 मंदिर हैं. इसमें अधिकतर मंदिर भगवान शिव के हैं. इसके अलावे अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर हैं. मलूटी गांव में मां मौलिक्षा मंदिर भी है, जो काफी प्रसिद्ध हैं. इस मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ साथ मन्नात मांगने हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मां तारा की बड़ी बहन कही जाती हैं मां मौलिक्षाः शिकारीपाड़ा प्रखंड स्थित मलूटी गांव, जहां मां मौलिक्षा विराजमान हैं. इस गांव से 10 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम बंगाल में स्थित मां तारापीठ मंदिर है. बताया जाता है कि मां मौलिक्षा मां तारा की बड़ी बहन है. मंदिर के पुजारी बामन चौधरी कहते हैं कि मां तारा के अनन्य भक्त माने जाने वाले बामदेव उर्फ बामाखेपा पहले यहीं आराधना करते थे. इसके बाद वे तारापीठ चले गए. उन्होंने कहा कि मां मौलिक्षा, मां दुर्गा का सिंह वाहिनी स्वरूप हैं. इसकी महिमा अपरंपार है. यही वजह है कि दूरदराज से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है. दुर्गा पूजा के साथ-साथ मलूटी गांव में काली पूजा भी होती है. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.मलूटी की खासियतः शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी गांव. यह गांव मंदिरों के गांव के रूप में जाना जाता है. गांव में चार से पांच सौ साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. गांव में पहले मंदिरों की संख्या 108 थी. लेकिन धीरे धीरे इसका क्षय होता गया. लेकिन अब भी 72 मंदिर हैं, जिसका केंद्र और राज्य सरकारें सौंदर्यीकरण करवा रही है. संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति दूर दूर तक फैली है.जाने मंदिरों का इतिहासः इन मंदिरों के निर्माण का बहुत ज्यादा लिखित इतिहास नहीं है. लेकिन जानकारों के मुताबिक बीरभूम से सटे इलाकों के शासक राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने इन मंदिरों के निर्माण 1690 ईस्वी से 1840 ईस्वी के बीच यानी 150 वर्षों में करवाया था. बताया जाता है कि बंगाल के मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करती थी. यह इलाका मल्लुहाटी के नाम से प्रसिद्ध था, जो आगे चल कर मलूटी बन गया. इन्ही लोगों ने इन मंदिरों का निर्माण 17वीं सदी में कराया था. टेराकोटा पद्धति से 108 मंदिरों को बनाया गया. लेकिन वक्त के साथ मंदिरों का क्षरण हुआ और अभी 72 मंदिर शेष हैं. इनमें से 60 मंदिर भगवान शिव के हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. शेष मंदिर अन्य देवी देवताओं के हैं.
मंदिरों के धार्मिक महत्वः आप कभी मंदिरों के गांव मलूटी आएं तो जहां सिर्फ मंदिर ही मंदिर दिखेगा. वर्तमान के 72 मंदिर में 60 मंदिर भगवान शिव के हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. साथ ही कई देवी देवताओं के मंदिर भी हैं. मलूटी के मुख्य मंदिर मां मौलिक्षा के हैं.

Happy holi ❤️🧡💛💚💙💜
08/03/2023

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हजारों भेड़ियों की भीड़ पर,एक अकेला भारी था। नाम उसका पंडित चंद्रशेखर आजाद तिवारी था।महान क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर...
27/02/2023

हजारों भेड़ियों की भीड़ पर,एक अकेला भारी था।
नाम उसका पंडित चंद्रशेखर आजाद तिवारी था।

महान क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी के बलिदान दिवस पर उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि।🙏🏻
#जियो_तिवारी_जनेऊधारी

My new loook
08/02/2023

My new loook


शनिवार को  #खिचड़ी खाना है जरूरी
28/01/2023

शनिवार को
#खिचड़ी खाना है जरूरी

16/01/2023
15/01/2023

जन्म sthan लछुआड़

दही छुड़ा तिलकुट के ( मकर संक्रांति ) बधाई हको सबके
14/01/2023

दही छुड़ा तिलकुट के ( मकर संक्रांति ) बधाई हको
सबके

दही छुड़ा तिलकुट के ( मकर संक्रांति ) बधाई हको सबके
14/01/2023

दही छुड़ा तिलकुट के ( मकर संक्रांति ) बधाई हको
सबके

कुछ नयका
10/01/2023

कुछ नयका

My little soon
11/11/2022

My little soon

24/10/2022

आपको और आपके पुरे परिवार को दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं HAPPY DIWALI

21/10/2022

07/10/2022

#मिलन मंझली , संझली दुर्गा माँ फैज़ाबाद

#बरबीघा

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