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     मुंबई के बीचो बीच एक 50 मंजिला बिल्डिंग....सामने बड़ी सी बोर्ड में लिखा आर एस इंडस्ट्रीज बिल्डिंग के 20 वे. फ्लोर प...
06/10/2024


मुंबई के बीचो बीच एक 50 मंजिला बिल्डिंग....
सामने बड़ी सी बोर्ड में लिखा
आर

एस

इंडस्ट्रीज

बिल्डिंग के 20 वे. फ्लोर पर खड़ा एक लड़का अपने केबिन के विंडो से बाहर देखता हुआ कॉफी की सिप ले रहा था ।
तभी गेट नॉक हुआ
कमिंग ........
गेट से अंदर आता हुआ लड़का - सर 20 मिनट बाद आपकी मीटिंग है।
विंडो के पास खड़ा हुआ लड़का बिना उसकी ओर देखें पूछा - सारी तैयारियां हो गई??
यस सर
हम्मममम...
तभी वह लड़का बोला - सर यह फाइल इस पर आपके साइन ....
विंडो के पास वाला लड़का पलटता हुआ सामने एक 25-26 साल का लड़का जिसकी हाइट 6 फुट साफ गोरा रंग भूरी काले घने सिल्की बाल हल्की दाढ़ी मूछें ब्लू कलर का शर्ट ब्राउन कलर का थ्री पीस सूट पहने पैरों में ब्रांडेड चमचमाती जूते पहने हुए खड़ा था।

यह है रजत सिंघानिया , सिंघानिया इंडस्ट्रीज का मालिक इसका बिजनेस सिर्फ मुंबई में ही नहीं पूरी दुनिया में फैला हुआ है जाने-माने अरबपतियों में से एक रजत सिंघानिया बहुत ही कम उम्र में अपने बिजनेस को बहुत ही अच्छे तरीके से हैंडल किया। रजत जिसके पीछे सारी लड़कियां पागल है पर इसे किसी से कोई मतलब नहीं।

उस लड़के से फाइल लेकर उस पर साइन करने लग जाता है ।
सामने जो लड़का है आदित्य सिंह रजत का मैनेजर सेक्रेटरी दोस्त भाई सब है। यह अकेले रजत का गुस्सा सह सकता है। रजत की फैमिली में कोई नहीं है सिवाय एक दादी की और उसके बेटे समर्पण (सैम) के।

रजत - आदि आज का शेड्यूल क्या है?
आदि -आज मीटिंग के बाद हमें दादी के पास माथेरान (मुंबई से यह से 80- 90 किलोमीटर दूर एक बहुत खूबसूरत जगह है) जाना है।
दादी का कॉल आया था उन्होंने हमें बुलाया है।

रजत ने गहरी आंखों से आदि को देखा और बिना एक्सप्रेशन के कहा- तो तुम चले जाओ हमेशा तो तुम ही जाते हो ।
आदि - नहीं सर इस बार आपको भी जाना है दादी का आर्डर है।

और कुछ कहा है दादी ने?

नहीं सर।

ओके तो जाने की तैयारी करो हम मीटिंग के बाद निकलेंगे और पेपर रेडी कर लेना। तुम्हें पता है ना किस चीज का?

ओके सर..

डन.. लेट्स गो टू मीटिंग।

आखिर 2 घंटे बाद मीटिंग रूम में ......
कांग्रेचुलेशन मिस्टर सिंघानिया तो यह डील फाइनल रहा आप जल्द से जल्द काम शुरू कीजिए ।
रजत - ओके मिस्टर मल्होत्रा हम फाइनल स्ट्रक्चर के साथ साइट पर मिलते हैं। बाय सी यू सून ..

रजत के केबिन मे......
आदि -सर पेपर रेडी है ।
रजत- ओके चलो निकलते हैं ।

2 घंटों के सफर के बाद उनकी कार एक बंगले में रुकी। बांग्ला बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था पर बहुत ही खूबसूरत था। आसपास का वातावरण बहुत शांति और सुकून भरा था। एक अलग ही शांति थी । सामने गार्डन के चारों तरफ की दीवारों से लगे फूलों के पौधों से फूलों की महक आ रही थी । पर इन सब को देखते हुए भी रजत का दिल शांत नहीं था वह अंदर जाने के लिए जैसे खुद से लड़ रहा था आंखों की कोरों पर हल्की नमी आ गई पर उसे अपनी भावनाओं को छुपाना आता था । फिर से वही बिना एक्सप्रेशन वाले अपने सख्त चेहरे के साथ वह अंदर बढ़ रहा था।। तभी ...
सामने से किसी मधुर हंसी की खनक उसके कानों से टकराई सामने से आती लड़की बिना सामने देखे दौड़ते हुए आ रही थी उसके पैरों में पड़े पायल की छन छन पूरे हवा में गूंज रही थी वह बार-बार पीछे मुड़ कर देख रही थी तभी उसका पैर मुड़ा और वह गिरने लगी उसने कस कर सपने अपनी आंखें मीच ली। पर गिरने से पहले ही दो मजबूत हाथों ने उसे पकड़ लिया । अब रजत का हाथ उस लड़की के कमर पर था दोनों की आंखें टकराई .... गहरी काली आंखें उसमें गहरा घना काजल लगा तीखी नाक पतली होंठ जिसमें हल्के गुलाबी लिपस्टिक की पतली परत माथे पर छोटी सी बिंदी और माथे पर निकले बाल जो हवा में उसके चेहरे पर आ रहे थे ।

दोनों एक दूसरे में ही खोए रहते तभी एक बच्चे के हंसने की आवाज आई दोनों झेंपते हुए एक दूसरे से अलग हुए।
वह बच्चा - मम्मा हाल गई ..... मम्मा हाल गई....

वह बच्चा अपनी तोतली और लड़खड़ाती जुबान से बोल रहा था तभी पीछे से आते हुए आदि ने कहा हे चैम्प कैसे हो ?
मैं अच्छा हूं मामू वह बच्चा अटक अटक कर बोला आदि ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उस लड़की की तरफ देखते हुए कहा- सुधा जी आप कैसी हैं?
सुधा - हम अच्छे हैं। आप कैसे हैं आदि भैया ?
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कागज पर शुरू हुआ सफर कब लड़ते झगड़ते प्यार में बदल जाए देखना होगा.......

     13 अगस्त-1947 स्थान-जयगढ़ फोर्ट सिटी(यूनाइटेड प्रॉविंस ऑफ आगरा एंड अवध)श्रावण मास का अंतिम चरण अपनी चरम सीमा पर था। ...
06/10/2024


13

अगस्त-1947



स्थान-जयगढ़

फोर्ट

सिटी(यूनाइटेड

प्रॉविंस

ऑफ

आगरा

एंड

अवध)

श्रावण मास का अंतिम चरण अपनी चरम सीमा पर था। दिन-रात हो रही वर्षा के कारण पूरा नगर जलमग्न सा दिखता था।

उस काली अंधेरी रात में बारिश का कहर बदस्तूर जारी था। पूरे आसमान पर काली घटाएं तांडव करती हुई अपना जल रूपी कहर धरती पर बरपा रही थीं। पानी की घनी और तेज बौछार के साथ साथ तीव्र गति से हवा भी सब कुछ तहस-नहस करने पर आमादा थी।

तेज गर्जना के साथ साथ रह रहकर चमक रही बिजली की तेज रोशनी में साफ दिखाई देता था कि एक घोड़ागाड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ती जा रही थी। उस घोड़ागाड़ी पर भारी भरकम डील-डौल वाला एक शख्स घोड़ों पर दनादन चाबुक बरसा रहा था। ऐसा प्रतीत होता था कि उसे कहीं पहुंचने की बहुत जल्दी थी।

उस भयावह और सुनसान रास्ते पर दौड़ रहे घोड़ों के टापों की आवाज दूर दूर तक गूंज रही थी।

वो रात मानो प्रलय की रात थी।

आसमान से वर्षा के रूप में मानो प्रकृति का क्रोध बरस रहा था। बादलों की गड़गड़ाहट से घरों में दुबके लोगों के सीने पर वज्रपात सा हो रहा था और जब बिजली पूरे वेग से चमकती तो अंधेरा एक पल के लिए पलायन कर जाता।

ईस्ट इंडिया कंपनी का

विलियम्स

फोर्ट

जो कभी महाराज जय सिंह की हवेली हुआ करती थी।

आज उस हवेली में अंधेरे और सन्नाटे के साथ साथ घना मातम भी पसरा हुआ था।

उसी हवेली के एक आलीशान कमरे में एक बड़ी सी मेज पर एक मध्यम रोशनी करता हुआ एक पेट्रोमैक्स जल रहा था और उस विशालकाय मेज के पीछे पड़ी एक लकड़ी की कुर्सी पर पचास की उम्र का एक गोरा चिट्टा अंग्रेज बैठा हुआ था। उसकी वर्दी और उस पर लगे मैडल्स से ही अंदाजा हो रहा था कि वो ब्रिटिश शासन का एक उच्च अधिकारी है। पेट्रोमैक्स की धीमी रोशनी में भी उसके गोरे चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं।

वो जनरल स्मिथ था।

वो बार बार पहलू बदलते हुए घड़ी पर निगाह मार रहा था।

रात के सवा ग्यारह बजे चुके थे।

वो उठा और सिगार के अग्रिम हिस्से को दांतों से कुतरकर उसे लाइटर से सुलगा लिया और गहरे गहरे कश मारता हुआ कमरे में टहलने लगा।

तभी उस कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई और स्मिथ की गहन तन्द्रा भंग होती चली गयी।

दरवाजे पर एक लंबा चौड़ा व्यक्ति नमूदार हुआ जिसका चेहरा अंधेरे की वजह से नजर नही आ रहा था।

"आओ बलवंत सिंह। हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे।"जनरल स्मिथ ने कहा और सिगार में आखिरी कश लगा कर उसे जूते तले ऐसे कुचलने लगा कि मानो किसी सांप का फन कुचल रहा हो।

बलवंत नामक वो व्यक्ति अंदर प्रविष्ट हुआ जिसके चेहरे पर लम्बी और घनी दाढ़ी मूछों के साथ साथ कमीनापन और मक्कारी विराजमान थी।

अंदर आकर उसने जनरल स्मिथ से हाथ मिलाया और अदब से कहा"खाकसार को इतनी रात में बुलाने का कारण हुजूर??"

जनरल ने उसे गहन नजरो से देखा और फिर अपनी चेयर पर बैठने के बाद सामने पड़ी लकड़ी की कुर्सी पर उसे बैठने का इशारा किया।

भारी-भरकम जिस्म वाला बलवंत जब उस कुर्सी पर बैठा तो लकड़ी कराह उठी।

"तुम तो जानते ही हो कि अब हम लोगों का यहां से जाने का वक्त आ चुका है।"स्मिथ बड़े ही गमगीन स्वर में बोला।

"जी सरकार! बड़े ही अफसोस की बात है।"बलवंत ने सिर हिलाते हुए कहा।

"हमारे ब्रिटिश शासन का शासन खत्म होने में मात्र 24 घण्टे ही बाकी है। हमे 14 अगस्त की रात में इस देश को इंडिपेंट घोषित कर देना होगा। इसलिए ब्रिटिश हुकूमत के खास हुक्मरानों का हुक्म हुआ है कि इन चंद घण्टों में और जितना लूट सकते हैं वो भी लूट कर जहाजों में लाद लें....लेकिन ये बरसात हमारे मंसूबों पर पानी फेर रही है।"जनरल स्मिथ ने अंग्रेजी शराब की महंगी बोतल मेज पर रखते हुए कहा। उस शराब की बोतल देख बलवंत की आंखों में एक चमक उत्पन्न हो चुकी थी।

उसकी आँखों ने उत्पन्न हुई चमक जनरल से छुपी नही थी। जनरल ने कुटिल मुस्कुराहट के साथ कांच के दो ग्लासों में शराब को उड़ेला।

"आप हुकुम कीजिये जनाब, हम इस आसमान में अपने जुनून की छतरी लगाकर इस बरसात को रोक देंगे।"बलवंत चापलूसी भरे लहजे में बोला।

"तुम कर पाओगे ऐसा??" जनरल स्मिथ उसके चेहरे के भावों का अपनी धारदार नजरों से एक्सरे सा करता हुआ बोला।

बलवंत ने मुस्कुराते हुए शराब से भरा हुआ जाम उठाया और ग्लास में भरी पारदर्शी शराब को देखता हुआ बोला"आपके लिए और अपने फायदे के लिए बलवंत किसी भी हद तक जा सकता है।"

"अगर ऐसा हुआ तो हम तुमसे वादा करते हैं कि तुम्हे एक ऐसा तोहफा देंगे, जो तुम जिंदगी भर नही भूलोगे।"जनरल ने भी अपना ग्लास उठाते हुए कहा।

दोनों के जाम आपस मे टकराये और दोनों शराब की घूंट भरते हुए अपने षड्यंत्रों का खाखा बुनने लगे।

यहां जनरल स्मिथ और बलवंत के बीच साजिशें रचते हुए जाम पर जाम टकराने लगे थे तो वहीं दूसरी तरफ.......

स्वर्ण

भवन



"बधाई हो महाराज। महारानी जी ने पुत्री को जन्म दिया है। "दासी खुश होते हुए बोली।

एक पल के लिए महाराज स्वर्ण सिंह को झटका सा लगा लेकिन दूसरे ही पल उन्होंने गले मे पड़ी कीमती रत्नों की माला उतार कर दासी के हाथों में रख दी।

बहुमूल्य उपहार पाकर दासी खुश हो उठी और अभिवादन करती हुई वहां से चली गयी।

महाराज सधे कदमो से उस कक्ष की ओर बढ़ चले जहां महारानी दमयंती का प्रसव हुआ था।

महाराज को आता देख वहां खड़ी दाई और दासी उन्हें प्रणाम करके बाहर निकल गईं।

महाराज और महारानी एक दूसरे को देख मुस्कुरा उठे।

महाराज ने महारानी के पास लेटी उस नवजात बालिका को प्यार से देखा और बोले"जल्द ही इस गुलाम देश को उन अंग्रेजों से निजात मिल जाएगी और हमे आजादी की खुली हवा में सांस लेने का नया अनुभव प्राप्त होगा। महादेव की कृपा से ये कन्या हमारे जीवन मे स्वतंत्रता का पैगाम लेकर आई है.....इसलिए हमने इसका नाम भी सोच लिया है।

"इसका नाम

होगा........

स्वाधीनता

!

"

▪️▪️▪️▪️▪️

"तू इतना बड़ा गद्दार और धोखेबाज निकलेगा, इसका हमे सपने में भी अंदेशा नही था! "महाराज स्वर्ण सिंह अपने घायल हाथ को संभालते हुए बड़ी हैरानी से बोले।

बलवंत ने एक जोर का अट्टहास किया और बोला"तूने क्या सोचा था कि हम जिंदगी भर तेरी गुलामी ही करेंगे? तेरे आदेशों का एक वफादार कुत्ते की तरह पालन करते रहेंगे? अगर तू ऐसा सोच रहा था तो तू बहुत बड़ा मूर्ख था! "

"कुत्ता भी अपने स्वामी के प्रति बहुत स्वामिभक्त होता है कमीने। तू तो कुत्ता कहलाने के भी लायक नही है। तू सांप है सांप,जो दूध पिलाने वाले को ही डस लेता है।"
▪️▪️▪️▪️▪️

"नही मेरी बच्ची को मत मारो! उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? वो तो अभी अबोध है।"दमयंती अपने सीने में घुसी हुई कटार निकालने की कोशिश करती हुई बोली।

"आई थिंक, ये ठीक बोल रही है बलवंत सिंह। इसकी इस बच्ची को हमारे हवाले कर दो। हम इसे अपने मुल्क ले जाएंगे और इसको बड़ा करेंगे और जब ये जवान हो जाएगी तो इसके साथ हम शादी करेंगे क्योंकि इंडिया की गर्ल्स बड़ी ही सेक्सी और खूबसूरत होती हैं और फिर तो ये राजघराने की है,ये तो बला की खूबसूरत होगी।"कमांडर विल्सन बोला।

उसकी बात सुन दमयंती तड़प उठी और बलवंत और उसके साथी ठहाका मार कर हंस पड़े।

"ले जाएं जनाब। हम तो आपकी खिदमत करने के लिए ही पैदा हुए हैं। हमारी तरफ से ये तोहफा कबूल करें।"उसने उस नवजात बच्ची को विल्सन के हाथों में देते हुए कहा।

"अरे नीच पापी! कुछ तो शर्म कर। ये बच्ची तेरी भी कुछ लगती है,उस रिश्ते का ही लिहाज कर लेता। तेरे जैसे चंद गद्दारों के कारण ही ये देश गुलाम हुआ था और आगे भी होगा।"दमयंती ने पीड़ा और क्रोध से बलवंत को गुस्से से घूरते हुए कहा।
***************

साल

2005

(

सम्पूर्ण

नगर -

उत्तर



प्रदेश

)



बदहवास सा भागता हुआ गोपाल यहां वहां पागलों की तरह भाग रहा था! लेकिन उन दोनों का कहीं कोई पता ही नही चल रहा था।

"पल्लवीssssssssss

"

"हार्दिकssssssssss

"

वो और मुग्धा बराबर आवाज लगाते हुए दोनों को ढूंढ रहे थे।

लेकिन उनकी सारी कोशिश व्यर्थ साबित हो रही थी।

"अगर दोनों को कुछ हो गया तो मैं अपने आपको कभी माफ नही कर पाऊंगा! क्या मुंह दिखाऊंगा मौसा-मौसी को??"गोपाल की आंखों में आंसू आ गए।

मुग्धा ने गोपाल का कंधे पर हाथ रखते हुए हौले से उसे दबाते हुए गोपाल को हौसला दिया"चिंता मत करो गोपाल,कुछ नही होगा उन दोनों को।"
▪️▪️▪️▪️▪️

"ये...ये हम कहाँ आ गए हार्दिक??"पल्लवी डर से कांपते हुए बोली।

हार्दिक क्या बोलता? वो तो खुद डर से कांप रहा था।

तभी सामने से कोई आता दिखाई दिया और जब उन्होंने उसका व्यक्तित्व देखा तो दोनों की चीखें एक साथ निकलीं।
▪️▪️▪️▪️▪️

"तू इतना बड़ा कमीना और धोखेबाज आदमी होगा, इसका अंदाजा मैंने तो क्या किसी ने नही लगाया होगा!" जॉन सामने खड़े उस शख्स को गुस्से से देखता हुआ बोला।
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ट्रेलर 13 अगस्त-1947 स्थान-जयगढ़ फोर्ट सिटी(यूनाइटेड प्रॉविंस ऑफ आगरा एंड अवध) श्रावण मास का अंतिम चरण अपनी चरम सीमा पर थ...

     ठाकुर सत्यव्रत सिंह की विशाल एवं भव्य हवेली,जो कि पुश्तैनी है,उसका नाम मोतीमहल है,ये उस समय से मौजूद है जब राजे- रज...
06/10/2024


ठाकुर सत्यव्रत सिंह की विशाल एवं भव्य हवेली,जो कि पुश्तैनी है,उसका नाम मोतीमहल है,ये उस समय से मौजूद है जब राजे- रजवाड़ों का जमाना था और उनके दादा-परदादा जमींदार कहलाते थे,उनके यहाँ उस समय अँग्रेज अफ्सरों का भी आना जाना रहता था,लेकिन ये जमींदारी ,शान और शौकत सत्यव्रत सिंह को रास ना आती थी,उन्हें अपने दादा और चाचा द्वारा गरीबो और मज़लूमों का शोषण फूटी आँख ना भाता था,वें जब भी इन सब चींजों का विरोध करते तो हमेशा अपने चाचा से मार खाते थे क्योंकि उनके पिताजी जी जीवित नहीं थे....
और आज वहीं सत्यव्रत सिंह जी अपने जीवन के नब्बे साल पूरे कर चुके हैं,हवेली में अफरातफरी मची है क्योंकि वें बहुत बीमार हैं,उन्होंने अस्पताल जाने से भी इनकार कर दिया है क्योंकि वें अपनी जिन्दगी के आखिरी पल अपने परिवार के साथ बिताना चाहते हैं अस्पताल में नहीं, तब मजबूर होकर डाक्टर साहब को बुलाया गया तो उन्होंने उनकी जाँच करने के बाद कहा....
" ठाकुर साहब के पास ज्यादा समय नहीं है,आप अपने सभी करीबियों और रिश्तेदारों को यहाँ बुला लीजिए",
और ऐसा कहकर डाक्टर साहब चले गए और घर में सब अपने अपने मोबाइल से लोगों को ये अशुभ सूचना दे रहे हैं,तभी ठाकुर सत्यव्रत जी ने मद्धम स्वर में अपने पोते सुस्वागतम से पूछा....
"मृणालिनी आई क्या"?
"नहीं आई दादाजी!"सुस्वागतम बोला...
"कब आऐगी वो,मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है",ठाकुर सत्यव्रत धीमे स्वर में बोलें...
"आ जाएगी दादाजी! दीदी आ ही रही होगी,बस पहुँचने वाली होगी",सुस्वागतम बोला....
मृणालिनी ठाकुर सत्यव्रत जी की पोती है,जो कि पेशे से लेखक है और स्त्रीविमर्श के बारें में ही लिखती हैं,उसके लिखे नाँवेल्स का आधार नारियाँ ही होतीं हैं,उसे इन नाँवेल्स के लिए कई पुरुस्कार भी मिल चुके हैं,वो ठाकुर सत्यव्रत जी की चहेती है,क्योंकि दोनों के विचार हूबहू मिलते हैं और तभी मोतीमहल के सामने एक कार आकर रूकी और उसमें से खादी की धोती पहने हुए मृणालिनी उतरी और हड़बड़ी में ठाकुर सत्यव्रत जी के कमरें की ओर चली गई और ठाकुर साहब के सिराहने पहुँचकर बोली....
"दादाजी!अब कैसी तबियत है आपकी "?
"ठीक नहीं हूँ मृणाल ! तभी तो तुझे बुलवाया है",ठाकुर सत्यव्रत लरझती आवाज़ में बोलें...
"आप ठीक हो जाऐगें दादाजी!",मृणालिनी बोली...
"अब मुझे ठीक होने की आशा दिखाई नहीं देती मृणाल! और वैसे भी बुढ़ापे का एक ही इलाज होता है और वो है मौत",ठाकुर साहब लरझती आवाज़ में बोले...
"ऐसा ना कहें दादाजी! अभी तो आपको मेरे बच्चों को भी खिलाना है",पास खड़ा मृणाल का बेटा सौहार्द बोला....
तब ठाकुर साहब थोड़ा मुस्कुराए और मृणाल से बोले....
"मृणाल! मेरा एक काम करेगी",
"हाँ! कहिए! दादाजी!",मृणाल बोली...
तब ठाकुर साहब बोलें....
"मेरी लिखी कुछ कृतियाँ मेरे कमरे की दूसरी अलमारी में रखीं हैं,उन पर मेरा नाम लिखा होगा,तुझे वो आसानी से मिल जाऐगीं",
"तो मैं आपकी लिखी उन कृतियों का क्या करूँ"?,मृणालिनी ने पूछा....
"तू उन्हें अपने नाम से छपवा दें",ठाकुर साहब बोले...
"नहीं! दादाजी! वें तो मेरे लिए आपकी अनमोल धरोहर हैं,मैं उन्हें अपने नाम से कैसें छपवा सकती हूँ", मृणालिनी बोली...
"तो तू उन्हें नहीं छपवाएगी",ठाकुर साहब बोलें...
"नहीं! मैं उन्हें आपके नाम से ही छपवाऊँगीं, और सब भी तो पढ़े कि आपने क्या लिखा है",मृणालिनी बोली....
"अच्छा! जैसी तेरी मर्जी",ठाकुर साहब बोलें...
और फिर मृणाल और उसके परिवार के आ जाने से ठाकुर साहब खुश थे और उस दिन उन्होंने सभी रिश्तेदारों से थोड़ी थोड़ी बात की और रात के तीसरे पहर वें सबको अलविदा कह गए,मोतीमहल के आखिरी बुजुर्ग अब जा चुके थे,सबने उन्हें बोझिल मन से अन्तिम विदाई दी और जब उनकी मृत्यु के बाद के सभी संस्कार पूर्ण हो गए तो फिर मृणालिनी ने उनके कमरें से उनकी लिखी रचनाओं को निकाला और उनकी अन्तिम निशानी अपने साथ ले गईं.....
और एक रात वों उन्हें पढ़ने बैठी,पहले उसे ठाकुर साहब की चिट्ठी मिली ,जो कुछ इस तरह थी....
मृणाल! मैं भी तेरी तरह लेखक बनना चाहता था,लेकिन ठाकुर खानदान के लिए ये इज्ज़त का मामला था, मेरे लेखक बनने से समाज में उनका नाम बदनाम हो जाता उनकी इज्जत को बट्टा लग जाता,इसलिए मैंने लिखा तो बहुत कुछ लेकिन वो सब कभी लोगों तक नहीं पहुँच पाया,मैंने समाज की गंदगी को अपने लेखों में दर्शाने कोशिश की थी,लेकिन मैं वो सब कभी समाज तक पहुँचा नहीं पाया,इस बात का अफ़सोस मुझे हमेशा रहा है,मेरी लिखी सारी रचनाएं नारियों पर थीं,उस अन्धेयुग में नारियों की क्या दशा थी,ये मैनें समझाने की कोशिश की थी,लेकिन मुझे कभी किसी ने समझने की कोशिश नहीं की और मेरे दादाजी जी इन सब चीजों के सख्त खिलाफ़ थे ,मैं वो सब दुनिया के सामने लाता तो उनकी नाक कट जाती, उनके घर में क्या क्या होता था ,ये उन्होंने कभी भी अपनी हवेली की दहलीज़ के बाहर नहीं आने दिया, मैं अनाथ था,मैंने लोगों को ये कहते हुए सुना था कि मैं किसी तवायफ़ का बेटा था,मेरे पिता जो कि ठाकुर खानदान से थे वें किसी तवायफ़ के इश्क़ में पड़ गए,वो तवायफ़ हिन्दू होती तब भी ठीक था,वो एक मुसलमान थी,माँ का नाम तो मैं नहीं जानता,क्योंकि ना तो वो मुझे किसी ने बताया और ना ही मुझे जानने की कोई उत्सुकता थी...
सभी कहते थे कि मेरे पिता बहुत ही उदार प्रवृत्ति के इन्सान थे उनका नाम ठाकुर रघुनाथ सिंह था,शायद उन्हीं का चाल चलन मेरे रगों में खून बनके दौड़ रहा था इसलिए मैं भी बिल्कुल उनके जैसा ही था,सभी कहते थे कि मेरे पिता विलायत से अपनी पढ़ाई पूरी करके आए थे,वें गाँव के बच्चों को पढ़ाया करते थे जो कि मेरे दादाजी को पसंद नहीं था,इसलिए मेरे पिता जी ने उनका घर छोड़ दिया और उन्होंने एक मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया,वहाँ उन्हें जो भी प्रसाद के रूप में दे जाता तो खा लेते,फिर उन्हें एक दिन उनके कोई दोस्त मिले,जो काफी रईस थे,उन्होंने पिता जी को अपने यहाँ मुंशी रख लिया,पिता जी के दोस्त काफी अय्याश किस्म थे और उनका तवायफों के कोठों पर आना जाना था,वें मेरे पिता जी को भी वें वहाँ ले गए और वहीं उनकी मुलाकात मेरी माँ से हो गई ,जो कि एक मुसलमान औरत थीं और फिर माँ ने कोठा छोड़कर पिता जी के साथ घर बसा लिया,फिर मुझे जन्म देते वक्त वो चल बसीं और पिता जी मेरी परवरिश अकेले करने लगे और उन्हें भी कुछ समय बाद तपैदिक हो गया और फिर मजबूर होकर पिताजी ने दादाजी को ख़त लिखा,तब हम दोनों को दादाजी हवेली ले आएं लेकिन पिताजी ज्यादा दिनों तक जिन्दा नहीं रहे और मेरे जीवन की बागडोर मेरे चाचा सुजान सिंह और दादा शिवबदन सिंह के हाथों में आ गई.....
अभी के लिए मेरा इतना परिचय काफी है,अब तुम मेरी रचनाएँ पढ़ो वहांँ तुम्हें मेरे बारें में सब पता चल जाएगा....
और फिर मृणालिनी ने उनकी रचनाओं खोलीं तो पहले ही पन्ने पर ऊपर की ओर लिखा था
"

देवदासी

"
, ठाकुर सत्यव्रत जी की पहली रचना का नाम था देवदासी था और फिर मृणालिनी ने उसे पढ़ना शुरु किया....
देवदासी एक ऐसी महिला होती थी जिसका विवाह भगवान से हो जाता था और वो अपना समस्त जीवन ईश्वर के नाम कर देती थी,ये बात मुझे हमेशा परेशान करती थी कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मानवाधिकारों की दुनिया में कई चीजें हैं, विशेष रूप से धार्मिक परंपराएं जो मानवाधिकारों, संवैधानिक सिद्धांतों, नैतिक सिद्धांतों और उन लक्ष्यों का पूरी तरह से उल्लंघन करती हैं और ऐसी ही एक प्रथा है देवदासी...
इसके निशान अभी भी कहीं कहीं पाए जाते हैं, देवदासी का शाब्दिक अर्थ है "भगवान का सेवक",
इस प्रथा में किसी भी उम्र की लड़कियों की शादी किसी मूर्ति, देवता या मंदिर से कर दी जाती थी,मैं उस काल में जी रहा था जब हमारे देशपर ब्रिटिश शासन था,जहाँ ये सब चींजे गैरकानूनी थी,लेकिन जमींदार लोग इस अमानवीय परम्परा को बढ़ावा देने के लिए ब्रिटिश शासन का मुँह बंद करने के लिए मनमानी रकम देते थे या जमीन एक टुकड़ा उनके सामने हड्डी की भाँति डाल दिया जाता था,
क्योंकि पहले तो उन लड़कियों का उनके अभिभावक या माता पिता देवताओं को प्रसन्न करने के लिए उनका विवाह देवताओं से करवा देते थे,लेकिन जब वें व्यस्क हो जातीं थीं तो फिर वें पूरे गाँव की ब्याहता बन जाती थी,जैसे पुराने जमाने में नगरवधु होती थी,लेकिन उस समय नगरवधुओं को विशेष सम्मान मिलता था,उन्हें कोई भी अपनी वासना की पूर्ति के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता था,लेकिन देवदासियों के साथ ऐसा नहीं था,उनके साथ कोई भी जबर्दस्ती कर सकता था,उनके साथ कभी भी कोई भी शोषण कर सकता था...
नारियों का ऐसा अपमान मुझसे असहनीय था,क्योंकि हमेशा से मैनें अपने समाज
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प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है ,हमारे पौराणिक ग्रन्थों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीत.....

     एक नया सफर जो प्यार की परिभाषा को बखूबी बया करेगा। ये कहानी " हमदर्द.. एक प्रेम कहानी " आपको प्यार के अहसासों से रू...
06/10/2024


एक नया सफर जो प्यार की परिभाषा को बखूबी बया करेगा। ये कहानी "

हमदर्द.. एक प्रेम कहानी

" आपको प्यार के अहसासों से रूबरू करायेगी।

नफरत और संघर्ष के बीच पली अहाना जो कि सीरत और सूरत दोनों से लाजवाब है। जिसके दिल में सभी के लिए सिर्फ प्यार है... पर उसकी किस्मत में प्यार की परिभाषा कुछ अलग ही लिख दी भगवान ने... आपने माता पिता को खोने के बाद इस दुनिया में सिर्फ उसके चाचा और चाची ही अपने थे पर सिर्फ कहने के अपने।
मजबूरी बहुत बुरी होती है जिसकी वजह से अहाना को नफरत और तानों से भरे घर में रहना पड़ा। सिर्फ उसकी चचेरी बहन पूजा ही थी जो कि उसकी साथी... सहेली और दुख का सहारा थी। विराज जो पूजा का छोटा भाई था वो बारहवीं क्लास में पढ़ता है.. वो अपने माँ बाप से चार गुना अधिक बुरा है।
देखते हैं अहाना की जिंदगी में प्यार कब आता है...?

दूसरी ओर हमारे कहानी का एक अहम हिस्सा - अनिरुद्ध बंसल.... मिजाज का थोड़ा गुस्सैल है पर अपने परिवार पर जान देता है। उसकी बहन सिया उसकी लाडली है। जयपुर शहर के सबसे नामी खानदान का नवाब है.... अनिरुद्ध के बचपन का प्यार नेहा जो कि हर कदम पर उसके साथ होती है। अनिरुद्ध पर फिदा होने वालीं लाखो लड़किया है पर नेहा के आगे उसने कभी किसी को देखा नहीं...... ।

क्या एसे दो लोग जो एक दूसरे से बिल्कुल अलग है वो एक दूसरे के हमदर्द बन पाएंगे....?

जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी - "
हमदर्द... एक प्रेम कहानी "

मुझे विश्वास है आपको ये कहानी पसन्द आएगी और आप सभी इसको अपना प्यार देंगे।
चलिए एक अद्भुत और रोमांच से भरे प्यार के सफर पर -

*****************

*बंसल हॉउस *

सुबह का सूरज सिर पर था और घर में नौकरों की भागमभाग हो रहीं थीं। मीरा जी और उनके पति दीपक बंसल दोनों लाॅन में बैठे थे।

मीरा जी - " अनि के उठ कर आने से पहले ही इन लोगों की परेड शुरू हो जाती है..।"

दीपक जी हँसते हुए कहते हैं - " मीरा ये सब आपके बेटे के गुस्से से डरते हैं... वो नवाब सहाब थोड़ी सी भी गलती बर्दास्त नहीं करते हैं...। अब इन्हें अपनी नौकरी से फायर थोड़े होना है।"

मीरा जी -" सही कहा आपने। "
दोनों ही एक साथ हसने लगे।

नौकरों की भागमभाग एकदम से थम गई। सन्नाटा सा छा गया।

उपर सीढियों से एक लड़का उतर रहा था जिसने ब्लू कलर का सूट पहना था। फॉर्मल ब्रांडेड सूज... रिस्ट वाच.... उस पर खूब फ़ब रहीं थीं। छः फिट की हाइट... रंग गौरा... सेट की हुई शेविंग... कुल मिलाकर एसी पर्सनैलिटी थी कि एक बार के लिए कोई भी लड़की अपनी पलके झपकाना तक भूल जाए।
वो लड़का नीचे आया और आते ही अपने माँ पापा के पास चला गया।

" गुड मॉर्निंग मोम... गुड मॉर्निंग डेड़...।"
मीरा जी और दीपक जी एक साथ उसे गुड मॉर्निंग विश करते हैं।

अनिरुद्ध - " मोम डेड ब्रेकफास्ट कर लेते हैं.. मैं वेसे भी लेट हो गया हू... अवॉर्ड फंक्शन शुरू होने वाला है...।"

मीरा जी - " हम तो रेडी है ब्रेकफास्ट के लिए पर तुम और तुम्हारी वो लाडली बहन दोनों कभी टाइम से आए हों रेड्डी होकर..... ।"

अनिरुद्ध - " मोम प्रिंसेस के लिए कुछ मत कहो... एक काम करिए आप लोग उसके साथ ब्रेकफास्ट कर लेना मुझे निकलना होगा तो मैं ब्रेकफास्ट कर लेता हूँ...। "

मीरा जी और दीपक जी को अनि की कहीं बात सही लगी और दोनों ने सहमती मे सिर हिलाया।

अनिरुद्ध डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। सर्वेंट ने पूरा ध्यान रखते हुए ब्रेकफास्ट सर्व किया...।

अनिरुद्ध ने जेसे ही खाने के लिए मुह खोला तभी किसी की जोरदार अवाज आई और अनिरुद्ध के हाथ वहीं रुक गए..... ।

" ..... स्टेचू भाई....." उपर से ही बोल कर नीचे दौड़ती हुई सिया आयी और सीधा अनिरुद्ध के सामने हाथ बांधे मुह फूला कर खड़ी हो गई।

(
सिया अनिरुद्ध की बहन है जो बहुत ही खूबसूरत हैं.. सिया देखने में बिल्कुल एक डॉल की तरह है... जितनी वो खूबसूरत हैं उतनी ही नेचर की कड़क है... सिया अपनी ग्रेजुएशन के लास्ट ईयर मे है। पैसो का घमंड और रुतबा दोनों उसके चहरे पर दिखता है. अपनी भाई की लाडली है और खुद भी भाई से बहुत प्यार करती है। )

सिया - " दिस इस नोट फेयर भाई..... आपने मेरा इंतजार भी नहीं किया...."

अनिरुद्ध अब भी स्टेचू ही था। सिया ने जब अनिरुद्ध का कोई जवाब नहीं सुना तो उसे ध्यान आया और फिर वो बोली - " ओवर भाई...।"

अनिरुद्ध ने अपने हाथ का निवाला सिया के मुह मे दिया और बोला - " सॉरी प्रिंसेस... वो अवॉर्ड फंक्शन........ "

सिया तभी बोली -" ओके ओके... आई नाउ... बट इस गलती का फाइन तो भरना होगा...।"

अनिरुद्ध - " ओके बाबा जो तुम कहो पर अभी मुझे लेट हो रहा है तो आ जाओ जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लेते हैं।"

सिया मुस्कुराती हुई अनिरुद्ध के पास वालीं चेयर पर बैठ जाती है।

*******
गुप्ता निवास -

" अरे ओ महारानी जल्दी हाथ चला। नास्ता आज ही बनाई है..... । माँ बाप तो चले गए और इस मुसीबत को हमारे सिर मढ़ गए।"
बाहर हाल में बैठी हुई सीमा जी( अहाना की चाची) ने चिल्लाते हुए कहा।

अहाना दौडते हुए बाहर आयी और हाथ में लायी नाश्ते की बाउल टेबल पर रखते हुए बोली -" वो... वो चाची बस बन गया... मैं नाश्ता लगा ही रहीं हू बस। "

सीमा जी -" अरे सुनते हो... आ जाओ नाश्ता बन गया है फिर आपको दुकान भी तो जाना हैं...।"

मोहन जी ( अहाना के चाचा जी) - " आ गया भाग्यवान... आज तो इस लड़की ने बहुत लेट कर दिया है।"

सीमा जी - " मनहूस जो ठहरी.... । कामचोर कहीं की...। "

अहाना बिना कुछ बोले उनके लिए नाश्ता लगाने लगी।

" माँ आप लोगों का रोज का ही है ये... जब देखो तब दी को सुनाते रहते हो... ।" पूजा नाश्ते के लिए आ रहीं थीं पर अपनी माँ की बाते सुन रुक गयी।

मोहन जी - " पूजा ये क्या तरीका है अपनी माँ से बात करने का... चुप चाप से नाश्ता करो और कॉलेज जाओ।"

पूजा फिर से कुछ बोलने को हुई तो अहाना ने इशारे से उसे चुप करा दिया।
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सुबह का सूरज सिर पर था और घर में नौकरों की भागमभाग हो रहीं थीं। मीरा जी और उनके पति दीपक बंसल दोनों लाॅन में बैठे थे। ...

     यह एक मैसेज टोन था"प्लीज हॉस्पिटल जाओ और जल्द से जल्द खून दो"जब निकिता ने मैसेज देखा तो वह एक पल को हैरान हो गई और ...
06/10/2024


यह एक मैसेज टोन था
"प्लीज हॉस्पिटल जाओ और जल्द से जल्द खून दो"
जब
निकिता
ने मैसेज देखा तो वह एक पल को हैरान हो गई और उसे सीने में एक भारीपन महसूस हुआ ।
भेजने वाले का show हो रहा था
"hubby
"

डिंग

एक और मैसेज आया,ये बैंक से था 25,000 के फंड का जमा होने का।
निकिता ने अपने मैसेज की history चेक की जो उसके पति ने उसे भेजा था।

"याद

से

हॉस्पिटल

आके

खून



दे

देना"

फंड



जमा

:

25,000

याद



रखना

हॉस्पिटल



जाना

है

फंड

जमा

: 25,000

प्लीज

हॉस्पिटल



आओ



अभी

फंड



जमा

:

25,000
............

शादी के तीन सालों में उसके पति


ईशान



सिंह



राठौर
ने सिर्फ खून देने हॉस्पिटल जाने के लिए ही मैसेज किया।
नहीं दरअसल खून बेचने के लिए। निकिता का खून बेचा...


वनिता



शर्मा
को।

ईशान ने निकिता को हमेशा से एक अंजान की तरह ही ट्रीट किया।
सिर्फ इसी महीने उसने तीन बार खून दिया, जो उसके शरीर के बर्दास्त से बाहर हो गया।

निकिता सोफे पर बेसुध बैठी थी,उसकी आंखे गीली और नज़र धुंधली थी। कल जब वह ईशान के साथ काम से लौटने के लिए बारिश में एक घण्टे तक खड़ी रही, इसलिए आज वो थोड़ा ठीक महसूस नही कर रही थी और उसे चक्कर भी आ रहे थे। वह ऑफिस भी नहीं गई थी, शायद ईशान को खबर ही नहीं की वह बीमार है।

वह खांसी और एक बार झिझक के साथ अपने हाथ में रखे फोन को देखा कि रिप्लाई करे या नहीं। तभी एक अनजान नम्बर से एक मैसेज आया जो उसके बचे हुए आत्म सम्मान और दृढ़ता को पूरी तरह से कुचल दे।

"
क्या

हुआ जो

तुम

मिसेज

राठौर

हो,

तुम

बस

नाम



की

पत्नी हो और बेशर्मी से उस पोजिशन पर

तीन



सालों

से हो।

क्या



ईशान

ने

तुम्हे

एक

नज़र

कभी देखा

भी

है?

वह

कल रात

मेरे

घर पर सोया था। अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो कब का रस्सी लेके छत से लटक गई होती।

तुम

बस बीच में

आई

घर तोड़ने वाली हो"

घर



तोड़नेवाली

?

निकिता को अचानक सांस आना बंद हो गया, वह घबराहट और परेशानी से कांप गई। निकिता, ईशान सिंह राठौर की धर्मपत्नी थी, जिसने अपने परिवार और दोस्तों को छोड़ तीन साल उस आदमी के साथ शादी कर रही।उसे क्या मिला एक घर तोड़नेवाली का थप्पा?

एकबार फिर उसके सीने में दर्द हुआ।जितने भी भावनाएं उसके सीने में थी ईशान के लिए और उसके साथ बीते हुए पल सभी एक पल में बिखर गए।

उस मैसेज के बाद एक फोटो उसके फोन पर आया।ये ईशान का शांत सोता हुआ चेहरा था।उसका वो खूबसूरत चेहरा यूनानी देवता सा जटिल कारीगरी से पूर्ण शरीर जो उसे उसकी तरफ आकर्षित करता है ,जैसे कोई पतंगा आग को देखकर। वह फोटो एक साक्ष्य था जो पहले वाले मैसेज को सही करार दे रहा था।

जो औरत ईशान के कंधे पर सिर रखकर सो रही थी वह और कोई नहीं वनिता शर्मा थी। हालाकि दोनो की आंखे बंद थी पर वनिता की मुस्कुराहट उसके उस पल जागे होने का साक्षी थे।

वे बहुत ही प्यार में डूबे जोड़े की तरह लग रहे थे।

उसका फोन अचानक बजा , ये कॉल राठौर विला से था।
जब निकिता ने आदतन फोन उठाया तो महिला जो ईशान की मां है ने आदेश देते हुए कहा
"

निकिता



क्या



तुम



भूल

गई हो

आज



कौन

सा दिन है? सारी नौकरानी छुट्टी पर है, जल्दी

आओ

और हमारे लिए खाना

बनाओ

।"

निकिता ने उपहास किया और बिना कुछ बोले फोन काट दिया।
वह एक परछाई की तरह ईशान सिंह राठौर के आस पास होती थी,जो अपने नाजुक शादी को बचाने की पूरी कोशिश करती थी।

ऑफिस
के अंदर सभी उसे कमतर समझते ,पर फिर भी वह अपना बेस्ट देती ईशान की सेक्रेटरी के रूप मे।

घर
पर ईशान की मां और बहन उसे नीचा दिखाना नही छोड़ती थी क्योंकि उसने अपनी पहचान जाहिर नही की थी।वे बिलकुल भी दयालु नही थे और उसे परेशान किया करते थे।वो उसे आदेश देते, खाना बनवाते, कपड़े धुलवाते और घर की सफाई करवाते।निकिता जोकि राठौर परिवार की बहु थी ,उसे गरीब नौकरों जैसा ट्रीट किया जाता था।वह एक दब्बू और आज्ञाकारी बनकर रहती थी।उसने कभी भी इन सबकी शिकायत ईशान से नही की क्योंकि वह डरती थी उसे परेशानी में डालने और कठिन स्तिथि में नही लाना चाहती थी।

उसने ये सब सहा और सोचा ये उसकी किस्मत हैं।

उसने कभी ध्यान नहीं दिया की लोग उसे कितना भी तुच्छ समझते ,निकिता ने बस दृढ़ता से वो सब सहा सिर्फ ईशान के लिए।
भले भी पिछले तीन सालों में ऐसा कभी नहीं लगा की ईशान को याद भी है कि वह उसकी पत्नी है।उनके बातचीत का टॉपिक सिर्फ ऑफिस के काम से,या खून देने से और पैसे (फंड) ट्रांसफर से ही होता।

इस पल निकिता थकी हुई फील कर रही थी।अब वह और बर्दास्त नही कर सकती थी।
ये पहली बार नही था जो वनिता शर्मा ने उसे भड़काने की कोशिश की।पहले जब निकिता को ऐसे मैसेज आते तो वह उन भद्दे और घृणित शब्दो पर हस देती,पर आज उस एक फोटो ने उसके आत्मसम्मान को पूरी तरह से कुचल कर रख दिया।
वो निरादर,अकेलापन और ठंडा रूखा व्यवहार उसे निगल रहा था।

"

क्या



मेरी



तीन



साल



की



ये



शादी

एक मज़ाक है।"

इस पल उसका चेहरा उदासी से भर गया,उसने अब फैसला ले लिया।

"

ठीक

है;

इस



मजाक

को

खत्म



करने

का

वक्त

आ गया"

निकिता ने अपना फोन लिया और बिना झिझक ईशान को मैसेज किया

"

चलो



डायवोर्स



ले



लेते

हैं

"

हालाकि उसे अब भी चक्कर आ रहे थे ,फिर भी वह जानती थी उसने सही फैसला लिया है।
ईशान ने उसे तुरंत कॉल किया।निकिता पहले ही समझ चुकी थी उसके इस वक्त के गुस्से को।आदमी की आवाज़ रूखी और ठंडी थी उसने कहा
"

निकिता



अब



तुम्हे



क्या

हो गया?

तुम्हे



कितने



पैसे



चाहिए

?

अपनी



कीमत



बोलो

। डॉक्टर ने कहा है
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

भाग 1 डायवोर्स डिंग यह एक मैसेज टोन था "प्लीज हॉस्पिटल जाओ और जल्द से जल्द खून दो" जब निकिता ने मैसेज देखा तो वह एक पल क...

     एक आलीशान कमरा जो आज  पूरा गुलाबो की पंखुड़ियों से महका हुआ है । अंदर बेड पर बैठी हुई लड़की को कमरे में अचानक किसी के...
06/10/2024


एक आलीशान कमरा जो आज पूरा गुलाबो की पंखुड़ियों से महका हुआ है । अंदर बेड पर बैठी हुई लड़की को कमरे में अचानक किसी के आने की आहट सुनाई देती हैं ।जिसे सुनकर वो एक बार फिर संभलती है ।

तभी उस कमरे का दरवाजा खुलता है और किसी के पैरो की अंदर आने की आवाज तेज हो जाती है । जिसे सुनकर वो लड़की अपने हाथो मे बेड की चादर को कस कर पकड़ लेती है ।

अंदर आकर वो शख्स bed पर बैठकर उस लड़की का घुघट उठाता है .....

लड़की की नजरे नीचे झुकी हुई होती है शायद उसके दिमाग़ मे उस समय कुछ चल रहा होता है । वो डरी सहमी सी अपनी नजरो को ऊपर उठा कर देखती है तो
सामने उसे एक चेहरा नजर आता है उस चेहरे को देख कर वो और ज्यादा डर जाती है ।

और उससे बोलती है तुम....तुमने शराब पी रखी है ।

अब मेरे पास इस शराब के अलावा बचा ही क्या है ?अब तो तुम खुश होंगी ना, तसल्ली मिल रही होंगी मुझे ऐसे देख कर ....

मुझे ख़ुशी क्यों मिलेगी ??

क्यों ख़ुशी क्यों नहीं मिलेगी आखिर आज तुम्हारा सपना पूरा जो हो गया ...तुम्हें इतने पैसे वाला पति जो मिल गया है अभय सिंह the ग्रेट business tycoon से तुम्हारी शादी जो हुई है । तुम्हें मेरे पैसे से ही तो प्यार है तभी तो तुमने मुझसे शादी की ।क्यों.... है न ।

मुझे तुम्हारे पैसे से कोई मतलब नहीं है और रही बात शादी की तो तुम मेरी शादी करने की वजह अच्छे से जानते हो

चलो ये सब छोड़ो आज तो हमारी सुहागरात है । आखिर तुम्हें इसी दिन का ही तो इंतज़ार था ना... क्यों रूही ?

रूही ये बात सुन कर घबरा जाती है ...दिल की धड़कनें बुलेट ट्रेन से भी तेज दौड़ने लग जाती है हाथ पैर ठंडे पड़ जाते है ।

अभय उसकी तरफ बढ़ता है..

रूही अभय को अपने पास आता देख कर डर से अपनी आँखे बंद कर लेती है । अभय उसके इतने पास होता है की रूही उसकी सासो की गर्माहट साफ महसूस कर सकती थी ।

तभी अचानक अभय उसके पास बढ़ने की वजाय रूही को जोर से धक्का देकर गुस्से से बोलता है तुम्हे क्या लगा कि तुमने मुझसे शादी कर ली तो तुम मेरी wife बन जाओगी ।
तुम मेरी wife इस रूम के बाहर हो ....यहां तुम सिर्फ एक घटिया लड़की हो जिससे सिर्फ मै नफरत करता हु ....सिर्फ नफरत । तुम्हें मैंने तुम्हारी असली जगह दिखा दी है ...इसी लायक हो तुम समझी ।

इधर रूही को जोर से धक्का लगने के कारण जोर से चोट लगती है जिसके कारण उसे काफ़ी दर्द हो रहा होता है । दर्द के कारण अब उसकी आँखो से आशु निकल रहे होते है पर अभय को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो ।

रूही सुबकते हुए अभय से बोलती है तुम्हें ये क्यों लगता है कि मैं तुम्हारे पैसे के ही पीछे हु । तुमसे शादी करना मेरी मजबूरी है बस

मजबूरी नही तुम्हारी यही इच्छा थी तभी तो तुम्हारे चकर में सब ने मेरे ऊपर तुमसे शादी करने पर जोर दिया ..उस समय तो मैं मज़बूर था लेकिन अब देखना तुम्हारे लिए ये शादी फांसी का फंदा बनेगी ! और तुम उस पर लटकोगी । तुम्हरी लाइफ इस कमरे के अंदर अब किसी नरक से कम नहीं होंगी ...this इस my प्रॉमिस to यू ..my dear wife ।

मुझे पता है तुम्हें लगता है इन सब के पीछे मैं हु लेकिन कहीं न कहीं इन हालातो का कारण तुम खुद ही हो । तुम
ना उस दिन वो हरकत करते ना वो होता
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एक आलीशान कमरा जो आज पूरा गुलाबो की पंखुड़ियों से महका हुआ है । अंदर बेड पर बैठी हुई लड़की को कमरे में अचानक किसी के आन....

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Sona Towers, 4th Floor, No. 2, 26, 27 And 3, Krishna Nagar Industrial Area, Hosur Main Road
Bangalore
560034

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