01/12/2023
कल परसो से एक न्यूज घूम रही है कि पाकिस्तान गयी अंजू जी वापस लौट आयी हैं, और उन्होंने मीडिया से कहा है कि उन्हें पाकिस्तान में बहुत प्यार मिला है। यह खबर सुन कर मुझे देहात का एक किस्सा बार बार याद आ रहा है।
किसी गाँव में तीन कुत्ते थे, आपस में परम मित्र। कहीं भोज में साथ ही खाने जाते थे। एक दिन गाँव में किसी के यहाँ विवाह था। भोजन बन रहा था, उसकी सुगंध चारों ओर पसर रही थी। गन्ध कुत्तों के नाक तक गयी तो उनकी जिह्वा से भी लार टपकने लगी।
तीनों में से जो सबसे जूनियर था, उसने कहा,"तुमलोग रुको! मैं देख कर आता हूँ कि क्या बन रहा है।"
कुत्ता दनदनाते हुए वहाँ पहुँचा जहाँ भोजन बन रहा था। भण्डारियों ने देखा, तो किसी ने मोटा डंडा उठाया और कुत्ते को तीन चार डंडा कस दिया। कांय कांय करता कुत्ता भगा, और साथियों के पास पहुँचा। साथियों ने उसकी ओर ललचाई दृष्टि से देखते हुए पूछा, "क्या हुआ? क्या क्या माल बन रहा है भाय?"
कुकुरा चाह कर भी सच न बोल सकता। उसने मीठे स्वर में कहा, "जानते हो, तेईस तरह की तो केवल मिठाईयां बन रही हैं। हमको तो केवल चार लड्डू मिले, पर उतने में ही मिजाज तर हो गया। इतनी मजेदार मिठाई तो कभी खाई ही नहीं थी यार। बस समझ जाओ, आज बड़ा आनन्द आने वाला है।"
सेकेंड नम्बर वाला कुकुरा आगे बढ़ा और बोला, "रुको! तनिक हम भी देखें।" वह दौड़ता हुआ पहुँचा, लोगों की नजर पड़ी तो हलवाई ने चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल कर आठ दस लकड़ी रसीद कर दी। कुत्ता भागता हुआ मित्रों के पास पहुँचा और बोला, "गरमा गरम! अरे बड़े व्यवहारिक लोग हैं रे... जाते ही रसगुल्ला परोस दिया। सीधे चूल्हे से निकाल कर... मजा आ गया भाई, मजा आ गया..."
अब सीनियर की बारी थी। अध्यक्ष महोदय मटक कर चले। मन ही मन सोच रहे थे, जब जूनियर्स की इतनी खातिर हुई है, फिर मेरे लिए तो राजगद्दी लग जायेगी रे भाई..."
बड़े साहब पहुँचे तो उनको देखते ही हलवाई खीज उठे। एक ने कहा, "यार ये कुत्ते परेशान कर दिए हैं, ये ऐसे नहीं मानेंगे! इन्हें कमरे के भीतर घुसने दो पहले..."
सर तो यूँ ही फुल कॉन्फिडेंस में थे, सीधे घुस गए कमरे में। फिर तीन मुस्टंडे घुसे और किंवाड़ बन्द कर दिया। फिर दे लट्ठ, दे लट्ठ... पाँच मिनट तक भरपूर सेवा हुई। जब लगा कि अब मर जायेगा, तब किसी ने किंवाड़ खोला और हुजूर बाहर निकल कर भागे।
कुंखते हुजूर जब साथियों के पास आये तो होठों पर मुस्कुराहट ला कर बोले- जान लो दोस्तों कि हमको तो आने ही नहीं दे रहे थे। घेर घेर के खिला रहे थे यार! कोई इधर से लड्डू खिला रहा था, तो कोई दूसरी ओर से गुलाबजामुन खिला रहा था। तबतक तीसरा रसमलाई लेकर रेडी... बड़े लिबरल लोग हैं यार! इंडिया की तरह नहीं है, वहाँ खिलाने-पिलाने के मामले में कोई भेदभाव नहीं मानते, बस जाते ही खिलाने लगते हैं। जो आ रहा था, वही खिला रहा था। इतना प्यार मिला है कि मरते दम तक नहीं भूलेंगे दोस्त..."
तीसरे कुत्ते की बात और अंजू जी की बात में बहुत समानता दिख रही है। जाने क्यों...🙂