Ghanshyam singh

Ghanshyam singh हम वही बनते हैं जो हम सोचते है...... जैसे लोगों के साथ अपना समय बिताते हैं. जिनके साथ उठते बैठते हैं

13/05/2024

सारा दिन गुजर जाता है खुद को समेटने मे,
फिर रात को उसकी याद की हवा चलती है और हम फिर बिखर जाते है...💔🥀

मेरे शहर से वो होकर कर क्या गए मेरी तबीयत खुद ब खुद संभलने लगी ❤️❤️❤️
13/05/2024

मेरे शहर से वो होकर कर क्या गए
मेरी तबीयत खुद ब खुद संभलने लगी
❤️❤️❤️

जाने कितने रिश्ते  इस वहम में खत्म हो गए की मैं ही सही हूँ.... मुझसे गलती हो ही नहीं सकता ..' मैं '.... मैं से हम बना जा...
06/05/2024

जाने कितने रिश्ते इस वहम में खत्म हो गए की मैं ही सही हूँ.... मुझसे गलती हो ही नहीं सकता ..' मैं '.... मैं से हम बना जाए.. "हम " WE❤️चाह❣️

06/05/2024

मैं हर उस व्यक्ति का सम्मान करता हूं जो कठिन परिस्थिति में भी हास्य ढूंढ लेता है🫡🫡🫡🫡❤️

मिलो कभी चाय पर हम फिर किस्से बुनेगें |तुम चुपके से कहना हम ख़ामोशी से सुनेंगे ||❤️❤️❤️चाह..
04/05/2024

मिलो कभी चाय पर हम फिर किस्से बुनेगें |
तुम चुपके से कहना हम ख़ामोशी से सुनेंगे ||❤️❤️❤️चाह..

❤️HAPPY MORNING 🌞समर्थन और विरोध हमेशा...विचारों का होना चाहिए व्यक्ति का नही।झगड़े भी पौधों की तरह होते हैं,इन्हें पालत...
03/05/2024

❤️HAPPY MORNING 🌞
समर्थन और विरोध हमेशा...
विचारों का होना चाहिए व्यक्ति का नही।

झगड़े भी पौधों की तरह होते हैं,
इन्हें पालते रहो तो ये बड़े होते जाते हैं I|
🌅 असीम सुप्रभात ❤️🙏चाह❣️

03/05/2024

।।मेरी माँ मुझे अब पहचानती नहीं।।

भाव भी है और चिंता भी ।
हठयोग भी और निंदा भी ।।
भोजन भजन तो जानती है ।
मेहमानों का मान भी है ।।
पर घर कमरे अब जानती नहीं।
मेरी माँ मुझे अब पहचानती नहीं।।

कुछ माह पहले जब फ़ोन आता था ।
कभी कभी थोड़ा चिढ़ सा जाता था ।।
वो पूछती कब तक आओगे।
कुछ खाना है तो क्या खाओगे।।
बस हाल पूछ फ़ोन कट जाता था।
कुछ ध्यान मेरा भी बट जाता था ।।
अब फ़ोन मिलाना जानती नहीं ।
मेरी माँ मुझे अब पहचानती नहीं ।।

हर पल हमारी चिंता थी ।
हर बुरे काम की निंदा थी ।।
मेरी चिंता वो खूब पहचानती थी ।
कैसे मनाना है ये जानती थी ।।
कभी ग़ुस्से कभी रूलायी से, कभी भोजन पे रुसवाई से ।
हम बेटों की लड़ाई पे, वो हर पल एक विराम सी थी ।।
मेरी माँ मुझे अब पहचानती नहीं।

है घर वही , कमरे वही और परिवार वही।
बस कुछ जाना व्यवहार नहीं।।
जब कमरे में जाकर मिलता हूँ तो मुस्कुराती है ।
चाय पानी पूछती है, कुशल क्षेम भी ।।
हाल अपना भी बताती है ।
अब ख़ुद को भी ख़ुद जानती नहीं ।।

मेरी माँ मुझे अब पहचानती नहीं ।।।....Copy

03/05/2024

उसकी बदल का और कोई फिर कहाँ मिला।
जो भा गया हो दिल को कहाँ दूसरा मिला।

ख़ुशबू की तरह छा गया होश-ओ-हवास पर
फिर रोशनी का दूर तक इक क़ाफ़िला मिला।

आँखों में बसी रह गई वो साँवली सी छवि
इस इश्क़ का हमें तो बस इतना सिला मिला।

जैसे कोई जला गया हो दिल में एक दिया
जीवन का हरेक पल ही चमकता हुआ मिला।

क्या था पता के इतना बदल देगी मुहब्बत
हर एक में मुझे तो बस वो ही छिपा मिला।

03/05/2024

ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में,
टूटा-फूटा नाच रहा है अच्छा-ख़ासा टूट गया!!

03/05/2024

घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ,
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया!!❤️

03/05/2024

बात पुरानी है
बीएचयू गेट से वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन जाना था।

कोई डायरेक्ट जाने को राज़ी नहीं होता। पहले कैंट, तब सिटी स्टेशन....
एक ऑटोवाले से पूछा:- भईया कैंट❓

ऑटो में अकेले एक सज्जन बैठे थे। चालक ने कहा:- अकेले हैं तो आगे आ जाइए....

मतलब साफ़ था कि ऑटो रिज़र्व था। मगर सज्जन ने सज्जनता दिखाते हुए कहा:-
कोई बात नहीं,आप मेरे साथ पीछे ही बैठ जाइए....

मेरे हाथों में उन्होंने हिंदी साहित्य की कोई किताब देखी तो बातचीत शुरू हुई,पता चला वह भूगोल के प्रोफेसर हैं....
बात अब साहित्य की तरफ़ घूम गई......
मूलतः उत्तराखंड से थे। फिर अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि यूपी बोर्ड की अंग्रेज़ी की किताब में एक कहानी है,

कौन सी कहानी.... ❓

वाशिंगटन की “My Struggle for Education”

फिर उन्होंने इसी किताब की एक और अपनी पसंदीदा कहानी का उल्लेख किया - “A Girl With A Basket.”

उन्होंने कहा:- बहुत अच्छी कहानी है, इसे आप जरूर पढ़िएगा....
फिर उसका कथ्य संक्षेप में बताने लगे....

शीर्षक से मुझे Ruskin Bond की एक कहानी- “A Night Train to Deoli” याद आ गई🤔

मैंने पूछा:- इसे Bond ने लिखा है ❓
उन्होंने इनकार करते हुए सोचने की मुद्रा में कहा:- क्या तो नाम था उनका....🤔

तभी ऑटोवाला पान थूक कर बोला:- डगलसवा लिखले रहल....
मैंने गूगल सर्च किया तो सचमुच लिखा मिला―William C. Douglas

फिर शेष रास्ते किसी ने किसी से कोई बातचीत नहीं की

😎😎😎

03/05/2024

ईरान के मज़दूर कवि साबिर हाका की एक कविता :

*** शहतूत ***
क्‍या आपने कभी शहतूत देखा है,

जहाँ गिरता है,
उतनी ज़मीन पर
उसके लाल रस का धब्‍बा पड़ जाता है.

गिरने से ज़्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं.

मैंने कितने मज़दूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,

गिरकर शहतूत बन जाते हुए.
- सबीर हका
(अनुवाद - गीत चतुर्वेदी)

03/05/2024

*ना जाने किसकी रचना है* ?
*बहुत ही उम्दा लिखा है, झिंझोड कर रख दिया* 😥
︵︷︵︷︵︷︵︷︵​︷︵
❓​ *कुछ रह तो नहीं गया* ❓
︶︸︶︸︶︸︶︸︶︸︶
*तीन महीने के बच्चे को*
*दाई के पास रखकर*
*जॉब पर जाने वाली माँ को*
*दाई ने पूछा ~*
*कुछ रह तो नहीं गया ?*
*पर्स, चाबी सब ले लिया ना ?*
*अब वो कैसे हाँ कहे ?*
*पैसे के पीछे भागते-भागते* *सब कुछ पाने की ख्वाहिश में*
*वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है,*
*वही रह गया है !*
😑
*शादी में दुल्हन को बिदा करते ही*
*शादी का हॉल खाली करते हुए*
*दुल्हन की बुआ ने पूछा ~*
*भैया, कुछ रह तो नहीं गया ना ?*
*चेक करो ठीक से..!*
*बाप चेक करने गया, तो*
*दुल्हन के रूम में*
*कुछ फूल सूखे पड़े थे.*
*सब कुछ तो पीछे रह गया.*
*21 साल जो नाम लेकर*
*जिसको आवाज देता था, लाड़ से,*
*वो नाम पीछे रह गया, और*
*उस नाम के आगे गर्व से*
*जो नाम लगाता था,*
*वो नाम भी पीछे रह गया अब.*

*भैया, देखा ?*
*कुछ पीछे रह तो नहीं गया ?*
*बुआ के इस सवाल पर*
*आँखों में आये आँसू छुपाता बाप*
*जुबाँ से तो नहीं बोला, पर दिल में*
*एक ही आवाज थी ~*
*सब कुछ तो यहीं रह गया .!*
😔
*बड़ी तमन्नाओं के साथ बेटे को*
*पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था,*
*और वह पढ़कर वहीं सैटल हो गया.*
*पौत्र जन्म पर बमुश्किल*
*3 माह का वीजा मिला था,*
*और चलते वक्त बेटे ने प्रश्न किया ~*
*सब कुछ चेक कर लिया ना ?*
*कुछ रह तो नहीं गया ?*
*क्या जबाब देते, कि अब*
*अब छूटने को बचा ही क्या है ..!*
😔
*सेवानिवृत्ति की शाम*
*पी.ए. ने याद दिलाया ~*
*चेक कर लें सर ..!*
*कुछ रह तो नहीं गया ?*
*थोड़ा रूका, और सोचा कि*
*पूरी जिन्दगी तो*
*यहीं आने-जाने में बीत गई.*
*अब और क्या रह गया होगा ?*
😔
*श्मशान से लौटते वक्त बेटे ने ...*
*फिर से गर्दन घुमाई,*
*एक बार पीछे देखने के लिए ...*
*पिता की चिता की*
*सुलगती आग देखकर*
*मन भर आया.*
*भागते हुए गया*
*पिता के चेहरे की*
*झलक तलाशने की*
*असफल कोशिश की ....*
*और वापिस लौट आया.*
*दोस्त ने पूछा ~*
*कुछ रह गया था क्या ?*

*भरी आँखों से बोला ~*
*नहीं , कुछ भी नहीं रहा अब.*
*और जो कुछ भी रह गया है,*
*वह सदा मेरे साथ रहेगा .!*
😌
*एक बार ... समय निकालकर सोचें,*
*शायद ... पुराना समय याद आ जाए,*
*आँखें भर आएं, और*
*आज को जी भर जीने का*
*!!.. मकसद मिल जाए ..!!*

*यारों ! क्या पता ?*
*कब इस जीवन की शाम हो जाये.*

*इससे पहले कि ऐसा हो*
*सब को गले लगा लो,*
*दो प्यार भरी बातें कर लो.*
*ताकि ... कुछ छूट न जाये ..!!!*

03/05/2024

इलाहाबाद विश्वविद्यालय एलुमिनी मीट दो दिवसीय कार्यक्रम कवि सम्मेलन के साथ समाप्त हुआ । वह सारे पेड़ दिखे जो धर्मवीर भारती , फ़िराक़ , बच्चन , गंगानाथ झा , अमरनाथ झा ऐसे लोगों को हमारे मस्तिष्क पटल में यह कहकर ताज़ा कर रहे थे — वह सब यहीं से गुजरे थे हमसे संवाद करते हुए ।सबसे ज़्यादा किसी के बारे में सबने कहा तो वह फ़िराक़ थे — सन 82 में महादेवी वर्मा , फ़ैज़ और फ़िराक़ को एक साथ लोगों ने सुना था । फ़ैज़ की यहूदी की लड़की पढ़ी गई कविता का ज़िक्र आया और कहा फ़िराक़ के सामने फ़ैज़ का काव्य - पाठ
कमज़ोर था । सन 1987 के शताब्दी समारोह पर हुए कवि सम्मेलन पर बहुत यादें साझा हुईं । एक पुरा छात्र ने उप कुलपतियों का बखान किया , उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीश विश्वविद्यालय के उप कुलपति थे ।कई पुराने छात्र आए पर लोग कम ही आए , फिर भी सीनेट हॉल पूरा भरा हुआ था । साइंस फ़ैकल्टी की सजावट अद्वितीय थी , मैंने इतनी सजी हुई साइंस फ़ैकल्टी पहले कभी नहीं देखी । मेरे लिए भी एक संतोष का विषय था — इलाहाबाद विश्वविद्यालय पर लिखा मेरा उपन्यास — दास्तान और भी है —सीनेट हाल में रिलीज़ हुआ । अगली एलुमिनी मीट फ़रवरी 2025 को होगी , इस उद्घोषणा के साथ समापन हुआ — फिर मिलेंगे इलाहाबाद विश्वविद्यालय—
अजनबी बन रहे लोग नज़दीक आ रहे —

जिससे खुःद के भीतर  के भी ऐब दिखाई  देते हो....मैने ऐसा भी चश्मा अपने लिए बनवा रखा  है... ❤️❤️राम राम जी ❤️🙏🏼चाह..
03/05/2024

जिससे खुःद के भीतर के भी ऐब दिखाई देते हो....मैने ऐसा भी चश्मा अपने लिए बनवा रखा है... ❤️❤️राम राम जी ❤️🙏🏼चाह..

उनका इस क़दर बेकदर होना कोई इतेफाक नही,  उन्हें पता चल गया हैं कि अब  हम उनके बिना जी नही पाएंगे.😊❤️❤️❤️
03/05/2024

उनका इस क़दर बेकदर होना कोई इतेफाक नही, उन्हें पता चल गया हैं कि अब हम उनके बिना जी नही पाएंगे.😊❤️❤️❤️

शोर सी जिन्दगी मे सकुन सा इश्क❤️ है चाय ❤️❤️ .. सुप्रभात ❤️🙏
03/05/2024

शोर सी जिन्दगी मे सकुन सा इश्क❤️ है चाय ❤️❤️ .. सुप्रभात ❤️🙏

जब उम्रढल जायेगी नतब समझ में आएगाजिंदगी... थी जीनी.... थीरह गई !!!!❤️❤️❤️ चाह
03/05/2024

जब उम्र
ढल जायेगी

तब समझ में आएगा
जिंदगी... थी
जीनी.... थी
रह गई !!!!❤️❤️❤️ चाह

कुछ रिश्तों में रूह की गाँठ बन्धी होती है..!!वही फेरे होते हैं दोस्त से दोस्ती के..!!❤️❤️..चाह
29/04/2024

कुछ रिश्तों में रूह की गाँठ बन्धी होती है..!!
वही फेरे होते हैं दोस्त से दोस्ती के..!!❤️❤️..चाह

मिलते रहना सबसे किसी न किसी बहाने से,रिश्ते मजबूत होते हैं चाय पीने और पिलाने से।सुप्रभात..!! ❤ राम राम जी ❤️
15/04/2024

मिलते रहना सबसे किसी न किसी बहाने से,
रिश्ते मजबूत होते हैं चाय पीने और पिलाने से।
सुप्रभात..!! ❤ राम राम जी ❤️

सुनो जहां हम चाय पीने जाते थे...❤️ क्या अब भी वहां आते हो.. चाह.. ❤️
02/04/2024

सुनो जहां हम चाय पीने जाते थे...❤️ क्या अब भी वहां आते हो.. चाह.. ❤️

18/03/2024

❤️ HAPPY MORNING 🌞
अपनापन भी किसी वैद्य से कम नहीं होता,
क्योंकि हर तकलीफ में उससे
ताक़त की दवा मिलती है...!!

परायों को अपना बनाना सबसे आसान काम है
अपनो को अपना बनाये रखना
सबसे मुश्किल काम है…!!!
🌅 असीम सुप्रभात ❤️ राम राम जी 🙏🏻

17/03/2024

सिगरेट की डब्बी के बजाये
लोगो के चेहरों पर यह लिखा जाये की...!!

"Human Attachments Are injurious To Health"

जज्बातों जरा सरक कर बैठो आज चाय पे इतवार को  बुलाया है ❤️❤️
17/03/2024

जज्बातों जरा सरक कर बैठो आज चाय पे इतवार को बुलाया है ❤️❤️

14/03/2024
14/03/2024

बहुत मन कर रहा है उसको छूने का, ए खुदा...!

कुछ पल के लिए मुझे हवा बना दो.....!!❤️☺️❤️

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