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CP Sadra Holistic Studies of History

शिक्षक भर्ती परीक्षाओ के लिए उपयोगी वन लाइनर पुस्तकें।वर्तमान NCERT BOOKS का संपूर्ण मैटर शामिल करने वाली पुस्तके..
29/11/2024

शिक्षक भर्ती परीक्षाओ के लिए उपयोगी वन लाइनर पुस्तकें।
वर्तमान NCERT BOOKS का संपूर्ण मैटर शामिल करने वाली पुस्तके..

13/09/2024

फिनलैंड के एक छोटे शहर के जानेमाने स्कूल ने अपने यहां स्क्रीन का इस्तेमाल बंद कर दिया है. जब बाकी दुनिया के स्कूल तकनीकी रूप से आधुनिक होने की होड़ में लगे हैं, इस स्कूल का कदम लोगों को हैरान कर रहा है. http://dw.com/p/4kWoI

 #भारतीय इतिहास ☘️♥️*संभावित प्रश्नों का विशाल संग्रह *पूर्णतः ncert बेस प्रश्न *रिपीटेड प्रश्न से बिल्कुल छुटकारा *अध्य...
13/09/2024

#भारतीय इतिहास ☘️♥️

*संभावित प्रश्नों का विशाल संग्रह
*पूर्णतः ncert बेस प्रश्न
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Sahaj India Publication
Akhilesh Pandey
CP Sadra

11/09/2024

यह बात 294 पहले, 11 सितम्बर 1730 की है... जब जोधपुर के पास खेजड़ली गाँव में बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने, पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी थी।

नया महल बनाने के लिए मारवाड़ साम्राज्य के महाराजा अभय सिंह ने खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया। लेकिन प्रकृति को पूजने और हर हाल में इसकी रक्षा करने वाला बिश्नोई समाज इस आदेश के सख़्त खिलाफ था।

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में उनकी 3 बेटियों समेत 363 ग्रामीणों ने पेड़ों को गले लगाया और शांतिपूर्ण विरोध का ऐलान कर दिया।

उनके विरोध के बावजूद पेड़ काटने आए लोग नहीं रुके और पेड़ों के साथ-साथ अमृता देवी अपना सिर कटवाकर शहीद हो गईं।

उस दिन शहीद होने से पहले अमृता देवी ने कहा था-
"सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण।"
यानी 'अगर किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जाता है, तो यह सही है।'

तभी उनकी तीन बेटियों ने भी पेड़ को बचाते-बचाते अपनी जान दे दी। एक के बाद एक, उस दिन बिश्नोई समाज के 49 गाँवों के 363 लोग पेड़ों की रक्षा करते हुए शहीद हुए।

इस नरसंहार ने देश भर में कई पर्यावरण प्रेमियों और आंदोलनों को बढ़ावा दिया, जिसमें से एक चिपको आंदोलन भी था।

साहसी भारतियों के इस बलिदान को याद रखने और उन्हें सम्मान देने के लिए 11 सितम्बर के दिन को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।



[Khejrali Massacre, Bishnoi Tribe, Amrita Devi, National Forest Martyrs Day, Khejri trees]

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11/09/2024

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11/09/2024

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07/09/2024
07/09/2024

ब्रिटिश शासन के जिस दौर में, बहुत ही कम भारतीयों को अंग्रेजी अफ़सर इज्ज़त देते थे, उस दौर में दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश पार्लियामेंट के ‘हाउस ऑफ़ कॉमन्स’ में एक अंग्रेज़ के खिलाफ़ चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया। गुजरात में एक पारसी परिवार से संबंध रखने वाले एक शिक्षक, एक व्यवसायी, और फिर एक राजनेता, जिन्होंने जहाँ भी काम किया, हमेशा सफलता ही पाई। 4 नवंबर 1825 को ब्रिटिश भारत में बॉम्बे प्रान्त के नवसारी (अब गुजरात में) में जन्मे दादाभाई नौरोजी साल 1855 में बॉम्बे से लंदन गये। यहाँ पर उन्होंने कामा एंड कंपनी की लंदन शाखा में मैनेजर के तौर पर नौकरी शुरू की। इससे पहले वे बॉम्बे में एलफिन्स्टन संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत थे और यहाँ पढ़ाने के लिए अपॉइंट होने वाले पहले भारतीय थे।

साल 1967 में उनकी ‘इकॉनोमिक ड्रेन थ्योरी‘ प्रकाशित हुई, जिसके अनुसार भारत के आर्थिक रेवेन्यु का एक चौथाई ब्रिटिश सरकार के पास जाता है और इसलिए हर साल भारत का आर्थिक स्तर नीचे गिर जाता है। बेशक इस तरह के मुद्दे आम लोगों की नज़रों में नहीं आते थे। पर दादाभाई नौरोजी न सिर्फ़ इस विषय में जानना चाहते थे, बल्कि ब्रिटिश पार्लियामेंट से सवाल करते हुए, उनकी आलोचना भी करना चाहते थे और इसका एक ही तरीका था- ब्रिटिश संसद में एक भारतीय प्रतिनिधि का होना। और इसलिए उन्होंने साल 1885 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन (जो 1867 में बनी थी) और इंडियन नेशनल एसोसिएशन को मिलाकर, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना की।

1885 में उन्होंने लिखा था, “हमारी मुख्य लड़ाई हमें संसद (लंदन) में लड़नी होगी।” और 1892 में उन्होंने ब्रिटिश संसद का चुनाव लड़कर 5 वोट से जीत हासिल की। इसी के साथ वह पहले एशियाई और पहले भारतीय बने, जिसे ब्रिटिश संसद में सदस्य के तौर पर जगह मिली थी। इस “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडियन नेशनलिज्म” ने हमेशा ही ज़रूरी मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद की। अपने कार्यों के लिए उन्हें ब्रिटेन और भारत, दोनों जगह सम्मान मिला।

उनके लिए बाल गंगाधर तिलक ने लिखा, “अगर हम 28 करोड़ भारतीयों को ब्रिटिश संसद में सिर्फ एक व्यक्ति को भेजने का मौका मिलता, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हम सभी सर्वसम्मति से दादाभाई नौरोजी को उस पद के लिए चुनते।” 93 साल की उम्र में 30 जून 1917 को दादाभाई नौरोजी ने बॉम्बे में आखिरी साँस ली। उनके जाने के इतने साल बाद भी, हम भारतीय कभी उन्हें और उनके योगदान को नहीं भूल सकते हैं। द बेटर इंडिया, भारत के इस अनमोल रत्न को सलाम करता है!

🇳 🇪 🇼  🇧 🇴 🇴 🇰 🅲︎🅾︎🅼︎🅸︎🅽︎🅶︎ 🆂︎🅾︎🅾︎🅽︎ 𝐀𝐤𝐡𝐢𝐥𝐞𝐬𝐡 𝐏𝐚𝐧𝐝𝐞𝐲𝐂𝐡𝐚𝐧𝐝𝐫𝐚 𝐒𝐡𝐞𝐤𝐡𝐚𝐫 𝐏𝐚𝐫𝐠𝐢 𝐑𝐚𝐤𝐞𝐬𝐡 𝐁𝐞𝐥𝐥
05/09/2024

🇳 🇪 🇼 🇧 🇴 🇴 🇰
🅲︎🅾︎🅼︎🅸︎🅽︎🅶︎ 🆂︎🅾︎🅾︎🅽︎

𝐀𝐤𝐡𝐢𝐥𝐞𝐬𝐡 𝐏𝐚𝐧𝐝𝐞𝐲
𝐂𝐡𝐚𝐧𝐝𝐫𝐚 𝐒𝐡𝐞𝐤𝐡𝐚𝐫 𝐏𝐚𝐫𝐠𝐢
𝐑𝐚𝐤𝐞𝐬𝐡 𝐁𝐞𝐥𝐥

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03/09/2024

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A Holistic Studies Of History (Net-Jrf, PGt , PhDExam Prepration Platform )

02/09/2024

I gained 37 followers, created 52 posts and received 2,879 reactions in the past 90 days! Thank you all for your continued support. I could not have done it without you. 🙏🤗🎉

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15/08/2024

#आज़ादी के पर्व का उल्लास

**फतह सागर उदयपुर

78वें स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को अनन्त बधाई ..शुभकामनाएं..जय हिंद 🔥🇮🇳🇮🇳🇮🇳 fans
15/08/2024

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fans

13/08/2024

ज़्यादातर भारतीय महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस से तो परिचित हैं लेकिन बहुत कम लोग हैं जो रानी नायकी देवी को जानते हैं! जिन्होंने ढाल बनकर भारत भूमी की रक्षा की थी।

अस्त्र-शस्त्र चलाने में, घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, युद्ध कौशल जैसे कई गुणों में निपुण वीरांगना रानी नायकी देवी कदम्ब शासक महामंडलेश्वर परमादी की बेटी थीं। वह रहने वाली गोवा की थीं और उनका विवाह गुजरात के चालुक्य राजा अजय पाल से हुआ था। लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही अजय पाल का देहांत हो गया।

नायकी देवी और राजा अजय पाल के पुत्र, मुलराज द्वितीय गद्दी पर बैठाए गए, लेकिन उस वक़्त उनकी उम्र कम थी इसलिए रानी नायकी देवी, राज माता के रूप में राज्य का काम-काज देखती रहीं।

यही वो समय था जब मोहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज चौहान जैसे बड़े-बड़े योद्धाओं को हराकर भारत के अंदर पैर जमाना शुरू कर दिया था। मुल्तान जीतने के बाद उसकी नज़र राजपुताना और गुजरात पर पड़ी। मोहम्मद ग़ोरी के निशाने पर था गुजरात का अन्हिलवाड़ पाटन, जो चालुक्य वंश की राजधानी थी।

ग़ोरी ने अन्हिलवाड़ पाटन पर यह सोचकर आक्रमण कर दिया कि एक औरत और एक बच्चा उसका क्या बिगाड़ लेंगे! लेकिन जल्द ही उसकी यह ग़लतफ़हमी दूर होने वाली थी....

मोहम्मद ग़ोरी के आक्रमण करने की तैयारियों के बारे में सुनकर रानी नायकी देवी ने भी युद्ध की तैयारियां शुरू कीं। नायकी देवी ने युद्ध की ऐसी रणनीति बनाई जिससे उनकी सेना को फ़ायदा हो। उन्होंने आज के माउंट आबू की तलहटी पर स्थित गदरघट्टा के उबड़-खाबड़ इलाके को युद्ध क्षेत्र के रूप में चुना और अपने बेटे को साथ लेकर लेकर रणभूमि में उतरीं।

रानी नायकी देवी और मोहम्मद ग़ोरी के बीच कसाहरादा का भीषण युद्ध हुआ। चालुक्य की सेना ने विदेशी आक्रमणकारियों को रौंद दिया और मोहम्मद ग़ोरी को कुछ अंगरक्षकों के साथ युद्ध छोड़ कर भागना पड़ा। उसका घमंड चूर-चूर हो गया और उसने फिर कभी गुजरात की ओर देखने तक की हिम्मत नहीं की।

ज़रूरी है कि इस वीरांगना की कहानी देश का बच्चा-बच्चा जाने और समझे कि आज की तरह उस ज़माने में भी किसी से पीछे नहीं थीं भारतीय स्त्रियां!

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