गायत्री महाविद्या के उद्धारक - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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गायत्री महाविद्या के उद्धारक - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य " गुरुदेव भगवान पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का एक तुच्छ सा शिष्य, गायत्री परिवार को समर्पित कार्यकर्ता। "
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" बेटा ! ना हम बुक सेलर हैं ना अखबार नवीस हम युगदृष्टा हैं। आप हमारे विचारों को फैलाइये। ये फैल गये तो अगले दिनों पूरे विश्व में धमाका करेंगे। " एक छोटा सा काम किजिऐ पेज के राइट साईड के तीन बिंदु को क्लिक करें और अपने मित्रों को इनवाइट भर कर दें।🙏❤️🙏❤️

■ ममता से भरी हमे॔ छाँव मिली ■जुग जुग जीऐंगे माँ के बाहुबली ( प्रज्ञापुत्र ) 🙏❤️🙏
15/12/2024

■ ममता से भरी हमे॔ छाँव मिली ■
जुग जुग जीऐंगे माँ के बाहुबली ( प्रज्ञापुत्र ) 🙏❤️🙏

14/12/2024
14/12/2024
■ भोजन संबंधी कुछ नियम यदि आपने भोजन पेटभर ( याने गले तक ठूँसकर ) कर लिया है तो 1) एक घंटा बाद में या चाहे दो घंटा हो जा...
14/12/2024

■ भोजन संबंधी कुछ नियम
यदि आपने भोजन पेटभर ( याने गले तक ठूँसकर ) कर लिया है तो
1) एक घंटा बाद में या चाहे दो घंटा हो जाये जब भी आप पानी पियेंगे तो आपको ऐसिडिटी के जैसी गले से जलन करने वाला पानी आऐगा। डकार के साथ।
आयुर्वेद के नियमो को मनमानी ढंग से मानकर नुकसान उठाने से अच्छा है कि जैसा कहा गया है वैसा करें।
क्या कहा गया है ?
कहा गया है कि आधा पेट भोजन (1/2) करें
और एक चौथाई (1/4) पानी के लिऐ खाली रखें
और एक चौथाई (1/4) हवा के लिऐ खाली रखें।
और जब उसके बाद दो घंटा हो जाऐ किसके बाद ? खाना खाने के बाद।
तब पानी पीना है कितना पीना है ? जितना भोजन खाया था उसका आधा पानी पीना है । याने 200 ग्राम कम से कम। उस पर भी ऐसा न करें कि यकायक तीन ग्लास ठूँस लिये पानी।
अति सर्वत्र वर्जयेत्।

10 दिनो से बीमार सियाराम बाबा सुबह 4 बजे ब्रह्मलीन हो गये हैं। ये सच्ची खबर है। विडियो वगैरह भास्कर समूह ने कवर किया है।...
13/12/2024

10 दिनो से बीमार सियाराम बाबा सुबह 4 बजे ब्रह्मलीन हो गये हैं। ये सच्ची खबर है। विडियो वगैरह भास्कर समूह ने कवर किया है।
सियाराम बाबा 110 वर्ष जीकर शरीर छोड़े हैं। बिना माचिस के दिया जलाने वाले विडियो से बुढापे में बाबाजी वायरल हुऐ मगर उनके आस पास के जिले वालो को उनके चमत्कारो के बारे में पहले से जानकारी थी।
ब्रह्मलीन होने पर ऐसे तो उत्सव हि मनाया जाता है सन्यास परंपरा में , ये कोई दुःख कि घड़ी नहीं होती। फिर भी मानवीय समुदाय के लिऐ मोह ममता कि कड़ी छूटी नहीं है इसलिऐ सभी धीरज धरें।
■ अंतिम श्रृद्धांजलि 🙏❤️🙏

12/12/2024

■ उल्टीयाँ और होमियोपैथी ■
उल्टियाँ यदि
1) पेट में अधिक भोजन ठूँसने कि वजह से हो तो पल्सेटिल्ला 200 दें।
2) अपच कि वजह से हो तो यदि मरीज चिडचिड़ा हो तब नक्स वोमिका 200 दें।
3) यदि मरीज शीतप्रधान हो, पेट खराब होने के कारण मिचली आती हो। या ऐसी खाँसी आऐ कि खाँसते खाँसते उल्टी होने कि हाजत हो जाऐ या उल्टी हि हो जाय । तब ऐसे कब्ज, दस्त, बुखार,खाँसी , सर्दी आदि किसी भी रोग में यदि मरीज कि जीभ एकदम साफ हो तो इफिकाक 30 अथवा 200 दें।
4) हट्टे कट्टे मरीज को शीतलहर खाकर उल्टीयाँ आऐ , अपच हो जाऐ तो ऐकोनाईट 200 और यदि इन सबके साथ सिरदर्द भी हो तो बेलाडोना 200। दोनो दवाऐ रिपीट कर सकते हैं।
उल्टी समय पर न रूके तो जानलेवा हो जाती है अतः ध्यान देवें।
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■ दुनिया का सबसे यंग वर्ल्ड चेस चैंपियन बन गये हैं भारत के गुकेश डामारेड्डू । वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप 2024 में डिंग लिरेन ...
12/12/2024

■ दुनिया का सबसे यंग वर्ल्ड चेस चैंपियन बन गये हैं भारत के गुकेश डामारेड्डू । वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप 2024 में डिंग लिरेन को हराया।
खूब खूब बधाई खूब खूब प्यार। ■

12/12/2024

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्

हमें कुछ प्रश्न अपने आपसे उसी प्रकार पूछने चाहिये, जिस प्रकार कोई सुयोग्य चिकित्सक अपने रोगी की स्थिति जानने के लिये उससे अनेकों प्रश्न करके बीमारी की निदान एवं वस्तुस्थिति को जानने के लिये करता है। हमें आपसे पूछना चाहिये कि -

(१) क्या हम लोग केवल तीव्र भूख लगने पर ही खाते हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं करते कि भूख न लगी हो और आदत से लाचार होकर खाने बैठ जाते हैं।
(२) पहला भोजन अच्छी तरह पचने की प्रतीक्षा किये बिना क्या बीच-बीच में कुछ वस्तुयें स्वाद के लिये तो नहीं खाते रहते हैं?
(३) पेट की गुञ्जायश का आधा भाग भोजन के लिये, चौथाई पानी के लिये और चौथाई हवा के लिये खाली छोड़ने का नियम क्या हम ठीक तरह पालन करते है? कहीं आधे पेट से अधिक तो भोजन नहीं कर लेते भोजन इतनी मात्रा में तो नहीं हो जाता जिससे आलस्य आने लगे?
(४) मुँह में गया हुआ प्रत्येक ग्रास क्या काफी चबाने के बाद ही उदरस्थ करते हैं? कहीं उसे पतली चीजों के सहारे जल्दी-जल्दी आधा कुचल करके ही तो नहीं निगल लेते?
(५) क्या आपके भोजन में अन्न की मात्रा आधे से कम और हरे शाक फलों की मात्रा आधे से अधिक रहती है?
(६) कहीं आप का भोजन मांस, मछली, पकवान, मिठाई, चटनी अचार मिर्च मसाले जैसे हानिकारक पदार्थों से भरा तो नहीं रहता?
(७) नशीली चीजों की आदत तो आपने नहीं डाल ली ? चाय, तमाखू, पान की भरमार से कहीं आप अपना पाचन संस्थान नष्ट तो नहीं करते रहते?
(८) रात को जल्दी सोने और सबेरे जल्दी उठने का स्वर्ण नियम आप पालन करते हैं या नहीं?
(६) कहीं आपकी रोटी बेईमानी से कमाई हुई तो नहीं होती? आपको पता है न कि बिना परिश्रम की कमाई बीमारी बनकर फूटती है।
(१०) शारीरिक परिश्रम की उपयोगिता आप भली प्रकार समझते हैं न ? दिन भर में शरीर से इतना परिश्रम आप करते रहते हैं न जिससे थककर रात को गहरी नींद आवे ?
(११) व्यायाम. आसन. सूर्य नमस्कार, व्यायाम, टहलना, मालिश आदि स्वास्थ्य सुधारने वाली क्रियाओं का आपके दैनिक जीवन में स्थान है न ?
(१२) गंदगी से आपको घृणा है न ? अपने शरीर, वस्त्र, बिस्तर घर बर्तन रसोई आदि की सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं न ? अन्न, जल और सांस को ग्रहण करते हुये उसकी स्वच्छता की उपेक्षा तो नहीं करते ? मुँह ढककर तो नहीं सोते ? एक ही थाली कटोरी में कई लोग मिलकर भोजन तो नहीं करते ?
(१३) ब्रह्मचर्य की मर्यादाओं का ध्यान रखते हैं न ? अश्लील बातों का चिन्तन तो नहीं करते रहते ? कामोत्तेजक, संगीत, सिनेमां, वार्तालाप चित्र एवं साहित्य से दूर रहते हैं न ?
(१४) चिन्ता, शोक, क्रोध, आवेश, ईर्ष्या, द्वेष. उत्तेजना, भय आशंका निराशा जैसे मनोविकारों ने आपको ग्रसित तो नहीं कर रखा है ? समस्याओं को शान्त चित्त और धैर्य के साथ सुलझाने की अपेक्षा आपने हड़बड़ाने क्षुब्ध एवं किंकर्तव्यविमूढ़ होने की आदत तो नहीं डाल रखी है।
(१५) आये दिन आप रूठे तो नहीं बैठे रहते। हँसने और मुस्कराने की आदत को कहीं आपने छोड़ तो नहीं दिया है।
(१६) सप्ताह में एक बार उपवास करके पेट को एक दिन की छुट्टी दिया करते हैं न ?
(१७) अपनी सामर्थ्य से अधिक शारीरिक या मानसिक काम तो नहीं करते ? आँखों को खराब करने और दिमाग को भन्ना देने जितनी मात्रा में आप पढ़ने-लिखने का काम तो नहीं करते ? शारीरिक श्रम की मात्रा शक्ति से बाहर तो नहीं है।
(१८) बात-बात में दवादारू की भरमार तो आप नहीं करते रहते ? तीव्र रहते ? तीव्र औषधियों के अधिक सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का आपको ज्ञान है न ?
(१९) ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करते हैं न ? उपासना के लिये अपने दैनिक कार्य-क्रम में कोई समय नियत रखा है न ?

यह उन्नीस प्रश्न अपने आपसे पूछने चाहिये और उनका उत्तर प्राप्त करके अपने रोग के मूल कारणों को स्वयं ही तलाश करना चाहिये। रोग का सही निदान आधा इलाज ही माना जाता है। अस्वास्थ्यकर कारणों को हटा देना चिकित्सा का प्रधान अंग है इस मानी से अपना अधिकांश इलाज हम स्वयं कर सकते हैं। शेष जो तात्कालिक उपचार बच रहा, उसे किसी भी विवेकशील चिकित्सक की थोड़ी-सी सहायता में दूर हटाया जा सकता है। वस्तुतः अपने सर्वोत्तम चिकित्सक हम स्वयं ही हो सकते हैं।

चिर यौवन एवं शाश्वत सौंदर्य - युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य

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