दीपेंद्र आर्य

दीपेंद्र आर्य RTI &Social Activist
Member, Pen Paper Team, Alwar

12/05/2024


01/05/2024

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये।

अम्बर में जितने तारे, उतने वर्षों से मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा ।धरती को सुंदरतम करने की ममता में बिता चुका है कई पीढ़ियाँ, वंश हमारा। और आगे आने वाली सदियों में मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे।

इस प्यासी धरती के हित में ही लाया था, हिमगिरी चीर सुखद गंगा की निर्मल धारा । मैंने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर वन्ध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?​l

सभी को शुभ दीपावली...💐
12/11/2023

सभी को शुभ दीपावली...💐

Jaipur tour
08/10/2023

Jaipur tour

18/07/2023

यूँ ही चलते चलते ।...😊

05/07/2023
I have reached 600 followers! Thank you for your continued support. I could not have done it without each of you. 🙏🤗🎉
04/07/2023

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30/10/2020

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22/10/2020
12/08/2020
कोरोनो क्या है? अब आगे क्या होगा! आप भी पढ़ें।आदरणीय डॉ अशोक चौधरी (MBBS) Abhinav Ashok का लेख..
03/04/2020

कोरोनो क्या है? अब आगे क्या होगा!
आप भी पढ़ें।
आदरणीय डॉ अशोक चौधरी (MBBS) Abhinav Ashok का लेख..

01/04/2020

अभिनव मित बेअंत जी की वाल से ..

- आज एक सच्चाई टाइप की है, मतलब स्पीच। अपने देश के सभी पत्रकार साथियों के लिए। आप पूरा पढ़िए, और यदि बात में सच्चाई भाव हो, बात में दम हो तो धूम मचा देना। जमकर शेयर करना। वैसे यह स्पीच सोमवार को जयपुर में होने वाले एक कार्यक्रम के लिए है। सोचा यहीं फीडबैक ले लेता हूँ।

"पत्रकारिता की भाषा में से असली लोकतन्त्र गायब है।"

सुनने में बड़ा अजीब लगा होगा! आप सोच रहे होंगे, या फिर गुस्से में भी होंगे कि मैंने ऐसा कैसे बोल दिया कि पत्रकारिता की भाषा में से असली लोकतंत्र गायब है। जबकि पत्रकारिता तो चौथा स्तम्भ है इस लोकतंत्र का। आईना है समाज का, शहर का, देश का। रोशनी है, मदद है लाचारों के लिए, असहायों के लिए।
लेकिन यह सत्य है। जो मैंने कहा वो बिल्कुल सत्य है कि पत्रकारिता की भाषा में से असली लोकतंत्र गायब है। मैं उसे सिद्ध कर सकता हूँ।

संविधान में स्पष्ट लिखा है कि "शासन जनता का है।"
तो मुझे यह बताइये कि क्या वास्तव में जनता का शासन दिखाई दे रहा है? आपका उत्तर न में ही होगा। यह सब शब्दों के प्रचार का खेल है।
आप यह बताइये की असली लोकतंत्र किसे कहेंगे?
आप में से कौन बताएगा? असली लोकतंत्र किसे कहेंगे? बताइये ताकि मैं अपने कथन को स्पष्ट समझा सकूँ।

लोकतंत्र को आप कई तरह से परिभाषित कर रहे हो। आपका कहना है कि जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन ही लोकतंत्र है। या फिर जनता वोट देकर खुद अपना शासक चुन सकती है यह लोकतंत्र है। वह वोट दे सकती है यह लोकतंत्र है।
इन परिभाषाओं का अर्थ आप गलत निकालते हो।

मैं बताता हूँ कि असली लोकतंत्र किसे कहते हैं।
असली लोकतंत्र का मतलब है व्यवस्था अथवा तन्त्र का लोक यानि कि जनता की सेवा में खड़े रहना। यानि कि जब जनता फोन घुमाए तो सेवक अथवा व्यवस्था तुरंत पूछे कि बताइये हम आपके लिए क्या कर सकते है? यानि "How can I help you?" यह है असली लोकतंत्र। जब जनता अपने कार्यालयों में जाये तो वहां काम करने वाला कर्मचारी खड़ा हो, और नमस्ते करते हुए बोले कि बताइये क्या कर सकता हूँ। यह है असली लोकतंत्र।
पर यह केवल कुछ विकसित देशों में ही हो रहा है।

और हम क्या कर रहे हैं?

हम समाचार पत्रों में लिखते हैं
हाईकमान चुनेंगे CM पद का दावेदार,
कांग्रेस की सरकार
बीजेपी की सरकार
अब सरकार बनाएगी कानून
मोदी राज
वसुन्धरा राज
आदि, आदि।
यह भाषा पूरी तरह अलोकतांत्रिक है। पूरी तरह असंवैधानिक है।

जब संविधान में लिखा है कि शासन जनता का है तो फिर 'सरकार' कौन हुआ? बताओ...
जनता ही हुई न! तो फिर।

ये नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, पार्षद आदि, ये सभी तो सेवक हैं।
छोटे से लेकर बड़े पद तक का सरकारी कर्मचारी अथवा अधिकारी सभी सेवक हैं। जनता के सेवक। जनता की सेवा में हाजिर। इनकी तनख्वाह जनता के टैक्स दिए हुए पैसे से होती है। जनता इन्हें सैलरी देती है। यह सत्य है कि नहीं? है न।

तो फिर हमारी भाषा होनी चाहिए
जनता का शासन,
जनता सरकार,
जनता का राज,
जनता के सेवक,
जनता के कार्यालय,

और हमारी हैडिंग भी यही होनी चाहिए
जैसे
जनता चुनेगी अपना सेवक
या जनता चुनेगी प्रधानमंत्री
और जब कानून बनाने की बात हो तो जनता के बीच मे सेवकों के द्वारा रूप-रेखा रखी जाए, फिर जनता अपनी सहमती दे। तब बने कानून। यानी जनता का कानून।

पर हम ऐसा नहीं लिख पा रहे हैं।

अभी हम क्या कर रहे हैं?

हम अधिकारी को, MLA को, MP को, मंत्री को, बार-बार सरकार, राजा बोलकर प्रचारित कर रहे हैं। कुछ नहीं, बहुत कुछ गलत हो रहा है यदि मैंने कहा वैसा नहीं हो रहा है देश में तो।

वर्तमान भाषा में अभी भी गुलामी/दासता/निरंकुशता की बू आती है। यह वर्तमान भाषा सिद्ध करती है कि हम अभी भी राजा चुन रहे हैं, सेवक नहीं। हम अभी भी राजतिलक कर रहे हैं। हम राज की नीति प्रचारित कर रहे हैं, जबकि हमारी भाषा लोकनीति की होनी चाहिए। जो सेवक हैं हम उन्हें जबरदस्ती राजा बना रहे हैं, सेवक को जबरदस्ती सरकार बना रहे हैं।

मैं ये सब क्यों बोल रहा हूँ?
मैं ये सब इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि जनता पत्रकारों को बड़ी विश्वसनीयता के साथ देखती है। जैसे एक मरीज डॉक्टर को देखता है, शायद उस दृष्टिकोण से।

अब आप कहेंगे कि मेरी बातों में दम तो है, पूर्ण रूप से सत्य भी है, किन्तु ऐसा है ही नहीं हमारे देश में। हम कैसे लिख दें। जनता तो खुद मानने को तैयार नहीं है कि वो खुद राजा है, खुद सरकार है, खुद मालिक है। वो तो खुद इन अनपढ़, अपराधियों, लालचियों, निर्दयीओं को मालिक होने का अहसास करवाती है। जनता तो खुद ही इनके पीछे-पीछे साहब, मालिक, हुकुम कहकर डोलते फिरती है, गिड़गिडाती है। तो हम क्या करें।

तो मैं आपसे कहूँगा कि 'पत्रकारिता का काम ही है लोकजागरण। लोगों के बीच सत्य को रखकर जागरूकता फैलाना। तो, आप तो कम से कम जागरूकता की कमान संभाल सकते हैं। सेवक को सेवक ही तो लिखना है बस। जनप्रतिनिधि भी लिख सकते हैं। परन्तु सेवक शब्द सेवा का भाव जागृत करता है। इसलिए सेवक शब्द सही है। ऑफिसर (Officer) का मतलब कार्यालय कर्मी होता है, लेकिन हम जबरदस्ती उन्हें अधिकारी लिखते हैं। वो कर्मी हैं, सरकारी नौकर हैं। गवर्नमेंट सर्वेंट हैं। और आपको अच्छी तरह पता है कि गवर्नमेंट सर्वेंट का हिंदी अर्थ क्या होता है। आपको पता है कि इसका हिन्दी अर्थ होता है 'सरकारी नौकर'। तो सरकार कौन है? जनता। इसलिए ये सभी जनता के लिए काम करने वाले कर्मी हुए, उनके सेवक हुए। हम इन्हें जबरदस्ती राजा, अधिकारी क्यों बना रहे हैं। कानून में स्पष्ट लिखा है कि ये सभी "लोकसेवक" के नाम से बुलाये जाएंगे। फिर हमारी भाषा में ये शब्द क्यों नहीं हैं।
इस विषय पर मेरे पास बोलने के लिए बहुत कुछ है। बहुत ताजा उदाहरण हैं जो असली लोकतंत्र को जी रहे हैं। जागरूकता फैला रहे हैं। भाषा के साथ-साथ असली मालिक में भी सुधार ला रहे हैं। मैं बात कर रहा हूँ अभिनव राजस्थान अभियान की।
पर मैं अब ज्यादा नहीं कहूँगा।
आप पर छोड़ता हूँ। आप बुद्धिजीवी वर्ग से आते हैं। आप भी खोजबीन करें। लेकिन जो मैंने कहा है उसे व्यर्थ न जाने दे।
आपको पता होना चाहिए कि भाषा बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है। भाषा से भाव जागृत होते हैं। भाव से कर्म जागृत होता है। इसलिए हमें भाषा को बहुत समझदारी के साथ उपयोग में लेना है। जो सही है वही लिखना है। भाषा बहुत महत्व रखती है। आप सब जानते हो इस बात को । इस पर चिंतन करे, अमल करे, और व्यवहार में उतारे। बड़ा मजा आएगा। समय ले लीजिए। पर व्यवहार में लाने की कोशिश जरूर कीजियेगा। क्योंकि मैंने गलत कुछ नहीं कहा है।
आप सभी को धन्यवाद और शुभकामनाऐं भी।
- बेअन्त सिंह

01/04/2020

While some can practise social distancing, most Indians simply cannot as they have no social security

30/03/2020

ये राजस्थान में कोरोना सहायता के फ़ोन नम्बर हैं।कृपया share करें बहुत महत्वपूर्ण हैं इस समय।

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