08/03/2024
यूँ ही हमेशा उलझती रही है
जुल्म से ख़ल्क
न उनकी रस्म नई हैं,
न अपनी रीत नई
यूँ ही हमेशा खिलाये हैं
हमने आग में फूल
न उनकी हार नई है
न अपनी जीत नई। ~ फ़ैज़
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलने वाले दिलों का
होना
नींद की नज़र
होनी लाज़मी है
सपने हर किसी को नहीं आते
- अवतार सिंह 'पाश'
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Allahabad
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