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10/11/2024

केदारनाथ अग्रवाल और उनके उनकी कविता : विविध आयाम
शोध परक पुस्तक में शोध आलेख प्रकाशन हेतु-

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08/11/2024

(कवि केदारनाथ अग्रवाल)
केदार बाबा की कुछ ऐसी तस्वीरें जो के शायद उनके परिजनों के पास भी न होंगी। ज़रूरी नही के आपका किसी के प्रति स्नेह तभी हो, की जब आपका उस व्यक्ति के कोई विशेष लाभ या कोई रिश्ता हो, कुछ लोग ऐसे भी होतें है, जिनसे आत्मीय लगाव होता है, और वह आपके हृदय के करीब रहता है।
Shresth Bhargava Banti Verma Vivek Nirala Sudhir Singh Sevaram Tripathi Shiv Kumr Mehta Saket Pathak Susmita Yadav Mitali Kumaar Pramod Kumar Srivastava

 #शोधआलेखआमंत्रणकेदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयामकेदारनाथ अग्रवाल आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे विरले कवि हैं जिन...
08/11/2024

#शोधआलेखआमंत्रण
केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम
केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे विरले कवि हैं जिनका काव्य भारतीय जन जीवन के उन सभी पक्षों को स्पर्श करता है जो हम सभी के साथ अनुस्यूत हैं । उनकी कविता सच्चे अर्थों में जीवन की कविता है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित होते हुए भी उन्होंने विचारधारा के तर्क एवं भाषिक उतावलेपन से अपनी काव्य संवेदना को बचा कर रखा है। यथार्थवादी दृष्टिकोण से अनुप्राणित होते हुए भी उनकी काव्य संवेदना केवल 'सत्यम' की ही नहीं बल्कि 'शिवम' और 'सुंदरम' की भी संपोषिका है। उनकी कविता जहां एक ओर यथार्थवादी दृष्टि से ऊर्जा प्राप्त करती हुई शोषण के विरुद्ध आक्रोश को व्यक्त करती है, वहीं दूसरी ओर श्रमजीवी के प्रति गहरी सहानुभूति भी व्यक्त करती है। उनकी कविता न केवल राजनीति बल्कि प्रेम, प्रकृति, और लोक जीवन के अनेक रंगों से अनुप्राणित कविता है।
केदारनाथ अग्रवाल की वैचारिकता का प्रस्थान बिंदु निश्चित रूप से मार्क्सवादी विचारधारा को माना जा सकता है, किंतु उन्होंने कभी भी अपनी काव्य संवेदना को किसी विचारधारा का कैदी नहीं बनने दिया। उनकी काव्य संवेदना के संबंध में डॉ. अशोक त्रिपाठी का यह कथन उल्लेखनीय है कि केदार जी के पाठक कभी भी उन्हें एक सांचे में कैद नहीं कर सकते। कोई उन्हें ग्रामीण चेतना का कवि मानता है, तो कोई नगरीय का। कोई उन्हें सौंदर्य का कवि मानता है, तो कोई संघर्ष का। कोई उन्हें राजनीतिक चेतना का कवि मानता है, तो कोई प्रकृति चेतना का। कोई उनके काव्य में मनुष्यता की खोज को रेखांकित करता है, तो कोई उन्हें लोकजीवन का चितेरा मानता है। वस्तुतः केदार जी के काव्य की वैचारिकता किसी एक धरातल पर आधारित नहीं है। वे खंड- खंड जीवन के नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों से संपन्न जीवन की पूर्णता के कवि हैं। इसीलिए उनकी कविताओं में जहां जीवन संघर्ष एवं उसकी विसंगतियों का स्वर प्रमुख है तो वहीं श्रम सौंदर्य से लेकर मानव एवं प्रकृति सौंदर्य का राग भी है। उनकी प्रगतिशीलता अन्य प्रगतिशील कवियों से निराली है। वे प्रगतिवादी होते हुए भी कवि हृदय हैं।
अनुभूति की प्रामाणिकता केदारनाथ अग्रवाल की कविता का विशेष गुण है। उनकी कविता में अनुभूति की सच्चाई का यह गुण उनकी लोक सम्पृक्ति के कारण उत्पन्न हुआ है। उनकी कविता में विषय कुछ भी रहा हो किंतु सभी में उनकी मूल संवेदना मनुष्यता से कभी विलग नहीं हुयी। उनकी कविता में मानव प्रेम का वर्णन हो या प्रकृति प्रेम का वर्णन हो, वर्ग संघर्ष और सामाजिक वैषम्य की अभिव्यक्ति हो, श्रम सौन्दर्य या उसकी महिमा का चित्रण हो, उनकी दृष्टि हमेशा जीवन दर्शन से संपृक्त रही है। केदारनाथ अग्रवाल के समर्थ आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि 'केदार केवल आंदोलन के कवि नहीं है, वह उन सब के कवि हैं जिसे मनुष्य आंदोलन से प्राप्त करना चाहता है।'
केदारनाथ अग्रवाल की कविता का शिल्प पक्ष भी उनके संवेदना पक्ष की तरह विविधता पूर्ण है। भाव बोध और शिल्प विधान दोनों का औचित्यपूर्ण सामंजस्य ही उदात्त काव्य का प्राण है । महान रचनाकार इस परिप्रेक्ष्य में सजग रहता है कि उसके द्वारा अपनाया जा रहा शिल्प विधान, रचना को प्रभावी बना सकता है अथवा नहीं। केदार की कविता की दृष्टि इस विषय में बहुत स्पष्ट है। उनका मानना है कि आस्वाद की प्रक्रिया चाहे जैसी हो कृतिकार और पाठक दोनों सह आस्वादी होते हैं।
केदारनाथ अग्रवाल की दृष्टि यथास्थितिवादी कभी नहीं रही, बल्कि समतामूलक समाज की स्थापना के लिए वे परिस्थितियों में बदलाव के प्रबल समर्थक रहे हैं । परिवर्तनकामी व्यक्तित्व के बावजूद यह सुखद आश्चर्य है कि उनके जीवन काल में उनका सम्पूर्ण साहित्य परिमल प्रकाशन इलाहाबाद से ही प्रकाशित हुआ। लेखक और प्रकाशन संस्थान के बीच ऐसा अनन्य प्रेम वास्तविकता में दुर्लभ है। परिमल प्रकाशन के संस्थापक स्व० शिवकुमार सहाय एवं केदार जी का पारस्परिक अनन्य स्नेह आजीवन बना रहा। परिमल प्रकाशन के लोगो में केदार जी छवि आज भी उस पारस्परिक स्नेह की संवाहक बनी हुयी है। स्व० शिवकुमार सहाय के पौत्र श्री अंकुर शर्मा सहाय परिमल प्रकाशन के माध्यम से आज भी केदार जी के प्रति उस स्नेह परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। उनके सहयोग से "केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम" शीर्षक से एक शोध परक संपादित ISBN पुस्तक के प्रकाशन की योजना है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो आप सभी प्रबुद्ध प्राध्यापकों, अध्येताओं, शिक्षाविदों व शोधार्थियों के विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेखों की अमूल्य आहुति के बिना पूर्ण होना संभव नहीं है। विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेख आमंत्रित हैं।
संपादक:- डॉ. सुधीर कुमार अवस्थी

कुछ ख़ास...
04/10/2024

कुछ ख़ास...

पुस्तक समीक्षा:- केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक वैशिष्ट्यलेखक:- डॉo साकेत कुमार पाठक
04/10/2024

पुस्तक समीक्षा:- केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक वैशिष्ट्य
लेखक:- डॉo साकेत कुमार पाठक

किसी भी पुस्तक के प्रकाशन में एक प्रकाशक द्वारा उस छापी गई पुस्तक में कितनी मेहनत छुपी है, और प्रकाशक की क्या अहम भूमिका...
10/03/2024

किसी भी पुस्तक के प्रकाशन में एक प्रकाशक द्वारा उस छापी गई पुस्तक में कितनी मेहनत छुपी है, और प्रकाशक की क्या अहम भूमिका रही है, शायद इस बात को बहुत कम लेख़क ही समझ सकेंगे।
#नयीकवितादर्शनऔरमूल्य
𝕹𝖊𝖜 𝕻𝖚𝖇𝖑𝖎𝖘𝖍𝖊𝖉 𝕭𝖔𝖔𝖐 2024
𝓒𝓸𝓿𝓮𝓻 𝓟𝓱𝓸𝓽𝓸 𝓓𝓮𝓼𝓲𝓰𝓷𝓮𝓭 𝓑𝔂 𝓟𝓱𝓸𝓽𝓸 𝓘𝓷𝓭𝓲𝓪 𝓟𝓻𝓪𝔂𝓪𝓰𝓻𝓪𝓳- 𝓐𝓿𝓪𝓲𝓵𝓪𝓫𝓵𝓮 𝓞𝓷:- 𝔸𝕞𝕒𝕫𝕠𝕟,𝔽𝕝𝕚𝕡𝕜𝕒𝕣𝕥,𝕂𝕠𝕓𝕠 & 𝔾𝕠𝕠𝕘𝕝𝕖 𝔼𝕓𝕠𝕠𝕜...
लेखिका ने नयी कविता के प्रमुख कवियों की रचनाओं के माध्यम से दर्शन एवं मानवीय मूल्यों के विविध पक्षों का बोध कराया है| इन्होने समाज में बदलते जीवन मूल्यों को प्रस्तुत किया है| जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, पारिवारिक, शैक्षिक तथा सांस्कृतिक, जीवन मूल्यों के गिरते स्तर और उसमे परिवर्तन को उजागर किया है तथा मानव जीवन के कर्म सिद्धांत की महत्ता पर भी बल दिया है, ताकि मानव जीवन उन्नति के चरम शिखरों को प्राप्त कर सके| मानव दुःख को नये कविता के कवियों ने अनुभूति का विषय बनाया है और दुःख को ही दुःख निवारण का साधन भी स्वीकार किया है| अज्ञेय जी ने बड़ी आस्था से इस पीड़ा को अपनाया हैं—
“दुःख सबको मजता है
चाहे स्वयं को मुक्ति देना वह न जाने किंतु जिनको मजता है
उन्हें यह सीख है कि सबको मुक्त रखें|”
लघु मानव की कल्पना ने नयी कविता को एक दार्शनिक आयाम दिया हैं| लघु मानव को उसकी समस्त हीनता और महत्ता के सन्दर्भ में प्रस्तुत करके कवियों ने उसके प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टी से सोचने के लिए एक नया रास्ता खोला हैं|
वे कहते हैं -----
“समस्या एक मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में| सभी मानव सुखी सुन्दर और शोषणमुक्त कब होंगे| प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने नयी कविता में प्राप्त होने वाली दार्शनिक शब्दावली और विचार को बहुविध आयामों में उद्घघाटित करने का एक सफल प्रयास किया है| अभी तक प्राप्त भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक शब्दों और विचारों का अनुसंधान करते हुए विभिन्न नये कवियों की कविताओं को लक्षित करना लेखिका का अभिप्राय रहा हैं| नयी कविता में उपलब्ध दार्शनिक शब्दावली के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नयी कविता की भाषिक संवेदना दर्शन से ही अनुप्रेरित है| इस पुस्तक के माध्यम से लेखिका का अभिप्राय यही रहा है की हमारा समाज सभ्य, परिस्कृत एवं स्वच्छ बन सके जिसके लिये हमें मानवीय मूल्य को अपनाना होगा एवं मन में----
“सर्व भवन्तु सुखिनः एवं बहुजन हिताय की भावना रखनी होगी|

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24/01/2024

जय श्री राम🙏

Exact याद तो नही लेकिन वर्ष 1999 से वर्ष 2000 के आस पास इलाहाबाद में एक बड़े पुस्तक मेले का आयोजन हुआ था, जहाँ कई बड़े शहर...
18/12/2023

Exact याद तो नही लेकिन वर्ष 1999 से वर्ष 2000 के आस पास इलाहाबाद में एक बड़े पुस्तक मेले का आयोजन हुआ था, जहाँ कई बड़े शहरों के प्रकाशकों ने अपने स्टाल लगाये थे, और वहाँ इलाहाबाद के पत्रकारों नें तीन प्रकाशकों का इंटरव्यू लिया था, जनचेतना प्रकाशन को तो अच्छे से नही जानता, दूसरा मेरा बाबा स्वर्गीय शिव कुमार सहाय (परिमल प्रकाशन) का, तीसरे थे आशु प्रकाशन के मित्रा बाबा जी का, मित्रा बाबा को तो जानता रहा हूँ। बहुत लाड़ मिलता था उनसे और उनके सुपुत्र आशुतोष मित्रा (बेटू) भईया से भी अक्सर मुलाकात किया हूँ, मित्रा बाबा के यहाँ से स्वर्गीय शैलेश मटियानी बाबा की काफ़ी पुस्तकें प्रकाशित हुई थी, खैर अब तो सब सपना सा हो गया है, लेकिन आज भी वो बचपन की बातें याद करता हूँ, तो थोड़ा मायूस होता हूँ, जब ये देखता हूँ, क़े अब के लोगों में इतना स्वार्थ छिपा है के बस अपना काम बनता रहे बाकी तुम कौन? मुझे अपना मानने वाले सिखातें है कि बेटा अब थोड़ा Professional हो जाओ अरे कहाँ से हो जाऊं। ऐसी परवरिश ना बाबा से मिली और ना ही पापा से के मैं स्वार्थी हो जाऊं। आशुतोष मित्रा

ज़रूरी यह नही के उम्रदराज़ लोगों को ज़माने का तज़ुर्बा कुछ ज़्यादा होता है, अरे जो कम उम्र से बुरी परिस्थितियों में ज़माने का ...
06/12/2023

ज़रूरी यह नही के उम्रदराज़ लोगों को ज़माने का तज़ुर्बा कुछ ज़्यादा होता है, अरे जो कम उम्र से बुरी परिस्थितियों में ज़माने का मज़ा चखते आयें हों... उनका तज़ुर्बा तो अपनी उम्र से चार गुना उम्रदराज़ लोगों से भी ज़्यादा हो जाता है!

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महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी । हरी प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।। *दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकाम...
12/11/2023

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी । हरी प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।।
*दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ*।।

दूधनाथ सिंह (बाबा) के 87वें जन्मदिवस पर सेंट जोसेफ स्कूल एंड कॉलेज के हॉगन हाल में बड़े भईया सुधीर सिंह, प्रो.संतोष भदौरि...
19/10/2023

दूधनाथ सिंह (बाबा) के 87वें जन्मदिवस पर सेंट जोसेफ स्कूल एंड कॉलेज के हॉगन हाल में बड़े भईया सुधीर सिंह, प्रो.संतोष भदौरिया, डॉ. रचना ठाकुर,प्रो.सलिल मिश्रा (दिल्ली) ने प्रकाशित पुस्तक ( दूधनाथ सिंह का आलोचनात्मक साहित्य और केदारनाथ अग्रवाल का वैशिष्ट्य )का विमोचन किया।

परिमल प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित वर्ष 2023 में पुस्तकें - केदारनाथ अग्रवाल का वैशिष्ट्य लेख़क- डॉ. साकेत कुमार पाठक हज़...
17/10/2023

परिमल प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित वर्ष 2023 में पुस्तकें - केदारनाथ अग्रवाल का वैशिष्ट्य लेख़क- डॉ. साकेत कुमार पाठक हज़ारीबाग झारखंड - पुस्तक में लेख़क ने केदारनाथ अग्रवाल के जीवन और उनके लेखन यात्रा में काव्य और उपन्यास में कई ऐसे महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराया है, जो शायद ही अभी तक किसी आलोचना में शामिल होगा। इनकी पुस्तक समाज का एक दर्पण है. इस दर्पण में समाज का हर एक रूप वास्तविक झलक के साथ प्रकट होता है।

स्वतंत्र भारत के बाद देश का बटवारा देख कवि केदार का मन दु:खीत होता है और देश को बर्बाद होता देख अपना उदगार प्रकट करते है-

"हर्ष न आया
आया तो बस आया
विषम विषाद,
जब से तुम-भुजंग ने शासन पाया
देश हुआ बर्बाद "२४
देश के भीतर की स्थिति को भी इन्होंने समझा -
"देश के भीतर दहन और दाह है,
अंतरास्ट्रीय स्तर पर
वाह-वाह है"

Cover Photo Designed By Upendra Sahu
Photo India Prayagraj

दूधनाथ सिंह का आलोचनात्मक अध्ययन - इस पुस्तक में लेखक ने दूधनाथ सिंह जी के जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं और उनकी कठ...
11/10/2023

दूधनाथ सिंह का आलोचनात्मक अध्ययन - इस पुस्तक में लेखक ने दूधनाथ सिंह जी के जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं और उनकी कठिन परिस्थितियों में रह कर पढ़ाई पूरी करने से लेकर नौकरी, विवाह और एक साहित्यकार बनने तक के सफ़र की चर्चा करते हुऐ, कल और आज के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला है। यह पुस्तक आपको और पर भी उपलब्ध हो जाएगी।

वो भी क्या दिन थे।
19/06/2023

वो भी क्या दिन थे।

कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के अस्सी वर्ष पुरे होने के अवसर पर 26 अक्टूबर 1991 में इलाहाबाद स्थित हिन्दुस्तानी एकेडेमी मे....

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