09/11/2023
अनोखा सफ़र
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(धारावाहिक - भाग -३)
गतांक -
(हाय रे ये भैया..उन्होंने तनु और वेद के मौन-प्रेम के बीच ज़ालिम ज़माने की भूमिका अकेले ही सम्हाल ली।)
अब आगे -
वो सफ़ेद स्कूटर अब रुकने में संकोच करने लगी थी। संयोग से कभी मम्मी दिख जातीं तो वेद की बाँछें खिल जातीं कि वो उसे ज़रूर रोकेंगी और यही तो वो चाहता था। मम्मी न दिखतीं तो वो दुकान और गलियारे पर हसरत भरी निगाह डालते आगे बढ़ जाता। वेद का आना जाना कम हुआ तो तनु भी बेचैन होने लगी। वो अक्सर बार बार घर के बारजे के चक्कर सिर्फ़ इसलिये लगाती कि शायद आते जाते वेद दिख जाये। दूर से आती कोई सफेद स्कूटर दिखी नहीं कि आस जग जाती, लेकिन हर सफ़ेद स्कूटर वेद की तो नहीं हो सकती थी न ! नज़दीक आते ही आस मायूसी में बदल जाती।
इसी बीच होली आई। होली के दिन तो दोपहर बाद शाम आते आते तनु की बेचैनी ने छटपटाहट का रूप अख़्तियार कर लिया। कभी वो दौड़ के बारजे पर जाती तो कभी गलियारे के मुहाने पर। उसे पूरी उम्मीद थी कि आज तो मौका भी है और दस्तूर भी वेद ज़रूर आएँगे। ढलती शाम के साथ तनु की बेचैनी-छटपटाहट वितृष्णा-विषाद में बदलती जा रही थी। रात होने को आई लेकिन नहीं आया वेद।
बारजे से कमरे में आ उसने आलमारी से वो डायरी निकाली जिसमें अपने दिल की बात अपने वेद से कहती थी। उसके एक पन्ने पर बीचोबीच सिर्फ़ एक शब्द लिखा था 'वेद' जिसे हल्के ग़ुलाबी रंग ने घेर रखा था। ये गुलाबी रंग वेद के लिये उसके प्यार की मोहर बन तब उभर आया था जब वेद के ख़यालों में गुम उसने गुलाब-पंखुड़ी से अपने नाज़ुक होंठ अपने वेद के होंठों पर रख दिये थे। वही पन्ना खोल वो पलंग पर धड़ाम हो गई। दिल का ग़ुबार आँखों के रास्ते फूट पड़ा। सिसकियों के सैलाब ने ग़ुलाबी मोहर के बीच घिरे 'वेद' को तरबतर कर दिया, गुलाबी रंग और वेद दोनो एकमेव हो गये। सुबकते हुए तनु ने बुदबुदाया "देखा, खेल ली न मैंने आपके साथ होली..! आपके ऊपर रंग भी है और पानी भी,.. जाइये, न आइये आप।"
वेद आता होली के दिन लेकिन भैया की घूरती निगाहों में तैरते संदेह की कल्पना ने रोक दिया था उसे। तनु को देखने को छटपटाया तो वो भी बहुत था लेकिन किसी भी सूरतेहाल में भैया की निगाह में अपनी तनु को रुसवा नहीं करना चाहता था। धीरे धीरे उसने तनु के घर आना लगभग बंद कर दिया।
अब आते जाते तनु के घर से थोड़ा बढ़ स्कूटर किनारे लगा के कुछ देर बारजे की तरफ़ निहारता ज़रूर कि शायद तनु की एक झलक मिल जाय, लेकिन हाय री कम्बख़्त किस्मत..
ये सुख दोनों को कभी नसीब नहीं हुआ।
शुरू में ही बताया था दोनों अनोखे अलबेले थे। दोनों में सामान्य लड़के लड़कियों जैसी कोई आदत-हरकत नहीं। एक दूसरे को जानते समझते धीरे धीरे दो साल बीत चुके थे लेकिन इस बीच ज़माने से छुप-छुपाकर पार्क-पिक्चर, रेस्टोरेंट या कहीं अन्य एकांत में कभी मिलना-बतियाना तो दूर घर हो या मंच आमने-सामने होने के बावजूद दोनों के बीच प्रेमालाप के नाम पर हमेशा मौन ही तारी रहा। बस नैन-संवाद ही मनोभाव की अभिव्यक्ति का एकमात्र ज़रिया था।
इस बीच वेद के घर उसकी शादी की चर्चा होने लगी, ये जान वेद को अजीब सी बेचैनी होने लगी। वो तो प्रथम-स्पर्श के साथ ही तनु को अपना मान उसका हो चुका था। तनु के जीवन मे आने के बाद तनु के अलावा किसी और के साथ जीवन की कल्पना, उसकी कल्पना से भी परे थी। इसे संस्कारगत शालीनता-संकोच कहें या कुछ और कि आँखों के ज़रिये अपने अपने दिलों में एक दूसरे के लिये प्रथम-प्रेम की परिभाषा गढ़-पढ़ चुकने के बावजूद दोनों की ज़ुबान पर इस बाबत कभी एक शब्द नहीं आया।
जैसे जैसे शादी की चर्चा ज़ोर पकड़ रही थी वेद की बेकली बढ़ती जाती। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो किससे क्या कहे, करे तो क्या करे। अपनी माँ से चर्चा करे तो सबसे बड़ी बाधा तनु का विजातीय होना। और तनु की मम्मी से चर्चा करे तो कैसे.. वो तो उसे अच्छा आदर्श लड़का मान बहुत स्नेह देती हैं, फिर दोनों की उम्र में भी काफ़ी फ़ासला, क्या सोचेंगी वो उसके बारे में !
सारी जद्दोजहद के बीच वेद ने तय किया जो होगा देखा जाएगा। लेकिन इससे पहले कि वो अपनी माँ या तनु की मम्मी से कोई बात करे एक बार तनु से बात करना ज़रूरी है। इतने अहम फ़ैसले की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले ये जानना बेहद ज़रूरी है कि इस बारे में तनु क्या कहती है क्या चाहती है। अगर तनु साथ देने को तैयार है तो वो सारी दुनिया से लड़ जाएगा।
लेकिन तनु से इस बाबत बात करे तो कैसे ?
भैया के कारण उसके घर जाने से वो गुरेज़ करता है और तनु इस बीच वेद का ग्रुप छोड़ दूसरी संस्था से जुड़ चुकी है।
उसे लगा चिट्ठी ही एकमात्र ज़रिया है। वो किसी भी तरह तनु तक पँहुचायेगा, फिर जो कुछ भी करना है सब तनु के जवाब के मुताबिक होगा।
रात अपने कमरे में पँहुचते ही कागज़ कलम उसके हाथ में थे। अपने जीवन का पहली प्रेमपाती लिखने जा रहा था वो भी उसे जिससे प्रेमानुभूति के बावजूद कभी चार लाइन की भी बात नही हुई ! नितांत नया अनुभव।
काफ़ी समय बस ये सोचते बीत गया कि शुरुआत कैसे और कहाँ से करे !
कशमकश के बाद आख़िरकार भावों ने आकार लेना शुरू किया -
'मेरी तनु,....
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क्रमशः -
(भाग - ४)