Anil Tripathi

Anil Tripathi Anil Tripathi is a News Anchor, Commentator, Producer/Director/Actor, and an Active Media Expert.

09/11/2023

अनोखा सफ़र
***********
(धारावाहिक - भाग -३)

गतांक -
(हाय रे ये भैया..उन्होंने तनु और वेद के मौन-प्रेम के बीच ज़ालिम ज़माने की भूमिका अकेले ही सम्हाल ली।)
अब आगे -
वो सफ़ेद स्कूटर अब रुकने में संकोच करने लगी थी। संयोग से कभी मम्मी दिख जातीं तो वेद की बाँछें खिल जातीं कि वो उसे ज़रूर रोकेंगी और यही तो वो चाहता था। मम्मी न दिखतीं तो वो दुकान और गलियारे पर हसरत भरी निगाह डालते आगे बढ़ जाता। वेद का आना जाना कम हुआ तो तनु भी बेचैन होने लगी। वो अक्सर बार बार घर के बारजे के चक्कर सिर्फ़ इसलिये लगाती कि शायद आते जाते वेद दिख जाये। दूर से आती कोई सफेद स्कूटर दिखी नहीं कि आस जग जाती, लेकिन हर सफ़ेद स्कूटर वेद की तो नहीं हो सकती थी न ! नज़दीक आते ही आस मायूसी में बदल जाती।
इसी बीच होली आई। होली के दिन तो दोपहर बाद शाम आते आते तनु की बेचैनी ने छटपटाहट का रूप अख़्तियार कर लिया। कभी वो दौड़ के बारजे पर जाती तो कभी गलियारे के मुहाने पर। उसे पूरी उम्मीद थी कि आज तो मौका भी है और दस्तूर भी वेद ज़रूर आएँगे। ढलती शाम के साथ तनु की बेचैनी-छटपटाहट वितृष्णा-विषाद में बदलती जा रही थी। रात होने को आई लेकिन नहीं आया वेद।
बारजे से कमरे में आ उसने आलमारी से वो डायरी निकाली जिसमें अपने दिल की बात अपने वेद से कहती थी। उसके एक पन्ने पर बीचोबीच सिर्फ़ एक शब्द लिखा था 'वेद' जिसे हल्के ग़ुलाबी रंग ने घेर रखा था। ये गुलाबी रंग वेद के लिये उसके प्यार की मोहर बन तब उभर आया था जब वेद के ख़यालों में गुम उसने गुलाब-पंखुड़ी से अपने नाज़ुक होंठ अपने वेद के होंठों पर रख दिये थे। वही पन्ना खोल वो पलंग पर धड़ाम हो गई। दिल का ग़ुबार आँखों के रास्ते फूट पड़ा। सिसकियों के सैलाब ने ग़ुलाबी मोहर के बीच घिरे 'वेद' को तरबतर कर दिया, गुलाबी रंग और वेद दोनो एकमेव हो गये। सुबकते हुए तनु ने बुदबुदाया "देखा, खेल ली न मैंने आपके साथ होली..! आपके ऊपर रंग भी है और पानी भी,.. जाइये, न आइये आप।"
वेद आता होली के दिन लेकिन भैया की घूरती निगाहों में तैरते संदेह की कल्पना ने रोक दिया था उसे। तनु को देखने को छटपटाया तो वो भी बहुत था लेकिन किसी भी सूरतेहाल में भैया की निगाह में अपनी तनु को रुसवा नहीं करना चाहता था। धीरे धीरे उसने तनु के घर आना लगभग बंद कर दिया।
अब आते जाते तनु के घर से थोड़ा बढ़ स्कूटर किनारे लगा के कुछ देर बारजे की तरफ़ निहारता ज़रूर कि शायद तनु की एक झलक मिल जाय, लेकिन हाय री कम्बख़्त किस्मत..
ये सुख दोनों को कभी नसीब नहीं हुआ।
शुरू में ही बताया था दोनों अनोखे अलबेले थे। दोनों में सामान्य लड़के लड़कियों जैसी कोई आदत-हरकत नहीं। एक दूसरे को जानते समझते धीरे धीरे दो साल बीत चुके थे लेकिन इस बीच ज़माने से छुप-छुपाकर पार्क-पिक्चर, रेस्टोरेंट या कहीं अन्य एकांत में कभी मिलना-बतियाना तो दूर घर हो या मंच आमने-सामने होने के बावजूद दोनों के बीच प्रेमालाप के नाम पर हमेशा मौन ही तारी रहा। बस नैन-संवाद ही मनोभाव की अभिव्यक्ति का एकमात्र ज़रिया था।
इस बीच वेद के घर उसकी शादी की चर्चा होने लगी, ये जान वेद को अजीब सी बेचैनी होने लगी। वो तो प्रथम-स्पर्श के साथ ही तनु को अपना मान उसका हो चुका था। तनु के जीवन मे आने के बाद तनु के अलावा किसी और के साथ जीवन की कल्पना, उसकी कल्पना से भी परे थी। इसे संस्कारगत शालीनता-संकोच कहें या कुछ और कि आँखों के ज़रिये अपने अपने दिलों में एक दूसरे के लिये प्रथम-प्रेम की परिभाषा गढ़-पढ़ चुकने के बावजूद दोनों की ज़ुबान पर इस बाबत कभी एक शब्द नहीं आया।
जैसे जैसे शादी की चर्चा ज़ोर पकड़ रही थी वेद की बेकली बढ़ती जाती। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो किससे क्या कहे, करे तो क्या करे। अपनी माँ से चर्चा करे तो सबसे बड़ी बाधा तनु का विजातीय होना। और तनु की मम्मी से चर्चा करे तो कैसे.. वो तो उसे अच्छा आदर्श लड़का मान बहुत स्नेह देती हैं, फिर दोनों की उम्र में भी काफ़ी फ़ासला, क्या सोचेंगी वो उसके बारे में !
सारी जद्दोजहद के बीच वेद ने तय किया जो होगा देखा जाएगा। लेकिन इससे पहले कि वो अपनी माँ या तनु की मम्मी से कोई बात करे एक बार तनु से बात करना ज़रूरी है। इतने अहम फ़ैसले की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले ये जानना बेहद ज़रूरी है कि इस बारे में तनु क्या कहती है क्या चाहती है। अगर तनु साथ देने को तैयार है तो वो सारी दुनिया से लड़ जाएगा।
लेकिन तनु से इस बाबत बात करे तो कैसे ?
भैया के कारण उसके घर जाने से वो गुरेज़ करता है और तनु इस बीच वेद का ग्रुप छोड़ दूसरी संस्था से जुड़ चुकी है।
उसे लगा चिट्ठी ही एकमात्र ज़रिया है। वो किसी भी तरह तनु तक पँहुचायेगा, फिर जो कुछ भी करना है सब तनु के जवाब के मुताबिक होगा।
रात अपने कमरे में पँहुचते ही कागज़ कलम उसके हाथ में थे। अपने जीवन का पहली प्रेमपाती लिखने जा रहा था वो भी उसे जिससे प्रेमानुभूति के बावजूद कभी चार लाइन की भी बात नही हुई ! नितांत नया अनुभव।
काफ़ी समय बस ये सोचते बीत गया कि शुरुआत कैसे और कहाँ से करे !
कशमकश के बाद आख़िरकार भावों ने आकार लेना शुरू किया -
'मेरी तनु,....
------------------------------
क्रमशः -
(भाग - ४)

07/11/2023

अनोखा सफ़र
************
(धारावाहिक - भाग -2)
गतांक -.... तनु को लग रहा था 'सोलह बरस की बाली उमर को सलाम' गीत फ़िल्माया भले रति अग्निहोत्री पर गया हो लेकिन लिखा इसे गीतकार नीरज जी ने सिर्फ़ उसके लिये,..उसके आज के ख़ास दिन के लिये ही था।..

अब आगे -

तीखे नैन-नक्श के साथ बाँकी चितवन लिये तरुणाई की दहलीज़ पर दस्तक देती सकुचाई-शरमाई सोलह-सत्रह साल की तनु में जहां गज़ब का आकर्षण था तो तेईस-चौबीस साल का अलमस्त ख़ुशमिज़ाज, अपने आप मे मगन वेद भी किसी से कम नहीं। गठी क़द-काठी, बलखाते ख़ूबसूरत बाल, बोलती आँखे, चेहरे पर हमेशा सजी मृदु मुस्कान बरबस हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये काफी थे।
वेद रंगमंच का स्थापित कलाकार तो तनु प्रतिभाशाली नवागंतुक। एक ही संस्था में होने के कारण अक्सर मुलाकात होने लगी। लेकिन दोनों अनोखे-अलबेले। न ये दिल की बात ज़ुबाँ पर लाने को राज़ी न वो पहल करने को तैयार। प्रस्तुति में वांछित संवाद के अलावा कभी दो लाइन की भी बातचीत नहीं। सिर्फ़ निगाहें कह देतीं, और निगाहें ही पढ़ लेतीं। ये पहली निगाह ही तो थी जिसने मिलते ही दोनों को हमेशा के लिये एक दूसरे का बना दिया था।
संस्था की प्रस्तुतियाँ देखने कभी कभी तनु की मम्मी भी आती थीं। वेद का हँसमुख स्वभाव उन्हें बहुत भाता। वेद भी उन्हें बहुत आदर सम्मान देता सो स्वाभाविक तौर वात्सल्यपूर्ण रिश्ता बन गया, मम्मी का स्नेह उसके हिस्से आने लगा।
रंगमंच से इतर वेद का अपना व्यवसाय भी था। एक दिन सफ़ेद रंग की अपनी वेस्पा स्कूटर से वेद अपने प्रतिष्ठान से वापस लौट रहा था कि अचानक उसे अपना नाम ले के बुलाती आवाज़ सुनाई दी। बीस-तीस मीटर ही आगे बढ़ा था सो स्कूटर किनारे लगा पीछे मुड़ के देखा। सड़क किनारे खड़ी कोई महिला उसे बुला रही थीं। स्कूटर मुड़ी, नज़दीक आते ही आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता चेहरे पे तारी हो गई।
"अरे आंटी... आप यहाँ.. कैसे..!!"
बुलाने वाली ये स्नेहिल आवाज़ तनु की मम्मी की थी।
खिलखिलाती हँसी के साथ तनु की मम्मी बोलीं -
"मेरा तो यही घर है, आप बताइये.. आप यहाँ कैसे ?"
चौंकते हुए वेद बोला -
'ये आपका घर है..! यहाँ रहती हैं आप..!!
अरे यहाँ से तो मैं रोज़ सुबह शाम गुज़रता हूँ, बस एक किलोमीटर आगे ही तो मेरा प्रतिष्ठान है।'
"अच्छा..! कहाँ है आपका प्रतिष्ठान ?"
'सब पूछताछ इनसे हियँय सड़कय प खड़ेन खड़े कै लिहेव.! अरे अंदर लै जाओ इनका, बैठाय के एक कप चाय पियाओ औ करव खूब पूछताछ।'
ये आवाज़ तनु की मम्मी के ठीक पीछे स्थित दुकान पर बैठे तनु के पापा की थी।
मम्मी वेद का परिचय तनु के पापा से कराते हुए वेद से बोलीं- "आइये आइये अंदर चलिये।"
वेद को तो मानों बिन माँगे कोई खज़ाना मिल गया था, फिर भी बनावटी इनकार करते हुए बोला - 'आज नहीं, आज थोड़ा जल्दी में हूँ आँटी.. फिर कभी आऊँगा तो बैठूँगा।'
"फिर कभी नहीं, अब तो आपको रोज़ आना होगा। चाहे जाते समय, चाहे लौटते समय लेकिन हमसे मिले बिना आप नहीं जाएँगे, आप ही ने बताया कि रोज़ सुबह शाम गुज़रते हैं आप इधर से, और हाँ कभी की बात बाद में पहले अभी चलिये अंदर, जितनी देर लगाएँगे उतना ही आपको देर होगी, और आप जल्दी में हैं.." दोनो खिलखिला कर हँस पड़े।
वेद ने स्कूटर किनारे खड़ी की और दुकान के बगल की गैलरी में तनु की मम्मी के पीछे चल दिया। दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। तनु से मुलाक़ात..वो भी तनु के घर में..!
ये सोचकर एक अजीब सी सिहरन पूरे शरीर में दौड़ गई। गैलरी पार होने पर दुकान के ठीक पीछे एक बैठकनुमा बरामदा, या बरामदानुमा बैठक। सोफे की तरफ़ इशारा करते तनु की मम्मी बोलीं - "बैठिए, हाँ अब बताइये यहाँ से कितनी दूर और कहाँ है आपका प्रतिष्ठान, और हाँ उससे पहले ये बताइये चाय लेंगे या कॉफ़ी।"
'कॉफी नहीं, चाय पी लूँगा आँटी।'
"ठीक, अभी आते हैं" इतना कह तनु की मम्मी चल दीं।
बैठक-बरामदे की आगे आंगन और आंगन के दूसरी तरफ़ कमरा, और उसके ठीक बगल में ऊपरी मंज़िल पर जाने के लिये सीढ़ी। वेद बैठा तो था बरामदे में रखे सोफे पर लेकिन उसका तेज़ी से धड़कता दिल और बेताब निगाहें आँगन के पीछे के कमरे, और सीढ़ियों पर सिर्फ़ तनु को तलाश रही थीं। इस कमरे से निकलेगी या फिर सीढ़ियों से उतरती दिखाई पड़ेगी !
मम्मी वापस आ गईं.. लेकिन अकेली ! वेद के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं - "और सुनाइये क्या हालचाल हैं,.. रिहर्सल कैसी चल रही है.. कब है अगला शो। ये तनु भी मेहनत तो बहुत करती है लेकिन कुछ ठीक ठाक कर पा रही है कि नहीं ?
'नहीं नहीं आँटी बहुत बढ़िया कर रही है तनु, लगता ही नहीं कि न्यूकमर है।'
वेद का सब्र अब जवाब देने लगा था, संकोच भरभरा के ढह गया -
'कहाँ है तनु , दिखाई नहीं पड़ रही !'
"ऊपर पढ़ रही है...(कहते हुए उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई) - तनुऊऊ.. ए तनु, नीचे आओ, देखो तो कौन आया है।"
'आई मम्मी' .. ऊपर से आती ये आवाज़ वेद के कानों में जैसे मिश्री घोल गई।
तेज़ी से सीढियां उतरते कदमों की आहट.. आँगन तक पँहुचते मानो ठिठक गई..
सामने वेद को बैठा देख उसकी आँखें जैसे फटी की फटी रह गईं..! कुछ क्षणों के लिये सारा संकोच मानों काफ़ूर हो गया.. मोहनी मुस्कान के साथ बेशुमार ख़ुशी उसके होठों से फूट पड़ी -
"आप... यहाँ.. मेरे घर में..! ओह माय गॉड !!"
हँसते हुये वेद बोला - 'क्यों,..
नहीं आना चाहिये था क्या..?'
साथ काम करते काफ़ी वक़्त बीत चुका था लेकिन रिहर्सल और शो से इतर उन दोनों के बीच शायद ये पहला अनौचरिक संवाद था।
अगले ही पल उसे लगा छलकती ख़ुशी कहीं दिल का राज़ फाश न कर दे। हर्षातिरेक पर लगाम लगा सामान्य होते हुए बोली - 'मैं चाय ले के आती हूँ मम्मी।'
दो चार मिनट बाद तनु चाय की ट्रे ले के आई और मेज पर रख के किनारे पड़े स्टूल पर बैठ गई। चाय पीते वेद और मम्मी बातों में मशगूल लेकिन तनु एकदम चुप। चाय ख़तम होते ही वेद खड़ा हो गया।
'अच्छा आँटी अब तो हो गया न आपके आदेश का पालन, पी ली चाय, अब जाऊँ..।'
"ठीक है आपने बताया था जल्दी में हैं आप, लेकिन अगली बार इतनी जल्दी नहीं जाने देंगे। अब तो आपको रोज़ हमसे मिलने आना पड़ेगा"
ये सुन तनु के दोबारा आश्चर्यचकित होने की बारी थी। तनु की प्रश्नवाचक निगाह देख मम्मी तनु से बोलीं - "अरे तनु ये रोज़ सुबह शाम अपने घर के सामने से गुज़रते हैं। यहीं थोड़ी दूर आगे ही इनका कारोबार है।
ये सुन पता नहीं तनु ख़ुश हुई या परेशान। उसके मुँह से धीरे से बस एक शब्द निकला - 'अच्छा..!'
इधर वेद और मम्मी गलियारे में बढ़े उधर तनु सीढ़ियों पर।
रोज़ तो नहीं हाँ कभी कभी वेद का तनु के घर आना जाना होने लगा। वेद के बुलावे पर तनु की मम्मी भी उसे लेकर वेद के घर आने लगीं। जितनी देर दोनों आमने सामने या आसपास होते अजब सा सुकून मिलता दोनों को एक दूसरे को देखकर। बस एक दूसरे की मौजूदगी से ही दोनों की रूमानी दुनिया आबाद हो जाती। दिन ब दिन देखने-दिखने की बेताबी बढ़ने लगी। ये बेताबी अक्सर वेद की स्कूटर तनु के घर के सामने रोकने लगी। वेद के आने से वेद की मम्मी तो बहुत ख़ुश होतीं लेकिन चार-छः बार के आवागमन के बाद वेद को देखते ही तनु के बड़े भाई के माथे पर बल पड़ने लगे। पापा की जगह अक्सर वही दुकान पर बैठते थे। मम्मी न देख पातीं तो वो वेद को ज़्यादातर दुकान से ही टरका देते। वेद का मन तो होता कि कहे अंदर जाने के लिये लेकिन उसकी ख़ुद्दारी और भैया की भाव-भंगिमा इस लालसा पर लगाम लगा देते।
वेद को आभास हो चुका था कि भैया ताड़ गये हैं कि वेद तनु से मिलने के लिये ही आता है। मतलब मामला गड़बड़ है। हालांकि इस बाबत किसी को कानों-कान भी कोई ख़बर नहीं थी, कारण किसी के सामने तो क्या एकांत में भी दोनों ने एक दूसरे से कभी कोई बात ही नहीं करते, प्रेम-प्रपंच तो बहुत दूर की बात। लेकिन हाय रे ये भैया..उन्होंने तनु और वेद के मौन-प्रेम के बीच ज़ालिम ज़माने की भूमिका अकेले ही सम्हाल ली।
क्रमशः -
(भाग - ३)

07/11/2023

'अनोखा सफ़र'
************
(धारावाहिक- भाग- १)

रात का दूसरा पहर। दूर दूर तक पसरे सन्नाटे को इंजन के शोर से चीरती टू बाई टू सीटर मिनी बस तेज़ गति से चली जा रही थी। घुप्प अंधेरा, सामने से आ रही गाड़ियों या कहीं कहीं सड़क किनारे घरों में लगे बल्ब्स की पेड़ों के झुरमुट से छन के आती रोशनी बीच बीच मे अंधेरे का सिलसिला तोड़ जाती। अधिकांश यात्री नींद के आगोश में थे। नींद से बोझिल तो उन दोनों की आँखे भी थीं, लेकिन एक दूसरे को निगाह भर देखने की चाहत नींद को धता बता रही थी। बाहर से छन के आती रोशनी पड़ती तो तनु और वेद के चेहरे पर लेकिन बिजली सी चमक जाती दोनों की आँखों से होते दोनों दिलों में। निगाहें चार होतीं लेकिन इससे पहले कि आँखों के ज़रिये दिल का पयाम बयां हो कम्बख़्त अंधेरा बैरी बन बीच मे आ जाता। इसी कशमकश में दोनों में से पहले किसकी आँख लगी पता नहीं।
झपकी आई तो ख़याल ख़ाब बन दिलकश दुनिया की सैर करने करने लगे। यकबयक वेद को ख़ाब हक़ीकत में तब्दील होता लगा। नींद के आगोश में कब उसका हाथ तनु के शाने से नीचे सरक आया था कुछ पता नहीं। सुखद अहसास के साथ कोमल स्पर्श की एकदम अलौकिक सी अनुभूति। परम् सुखद अलौकिक आनंद के बीच अचानक वेद की झपकी मद्धिम पड़ने लगी। तंद्रा टूटी।
'अरे..! मेरा हाथ तो तनु के...!!'
पूरे वजूद में रोमांचक सिहरन दौड़ गई। अगले ही पल उसे लगा, ये ठीक नहीं, उसे अपना हाथ फौरन हटा लेना चाहिये। लेकिन अगर एक झटके से हटाया तो कहीं तनु की आँख न खुल जाये..! क्या सोचेगी वो..!
बहुत आहिस्ता आहिस्ता वो अपना हाथ सरकाने लगा। हाथ हटने की कगार पर था लेकिन इससे पहले कि परे हो पाता एक झटके में बिजली की सी तेज़ी से तनु का हाथ वेद के हाथ के ऊपर आया और दोनों के हाथ वहीं फ्रीज़।
दोनों के लिये ही ये पहला विशेष सुखद स्पर्श-अहसास था। इसी स्थिति में पहले झपकी दोबारा आई या हाथों की पकड़ पहले ढीली पड़ी, दोनों को पता नहीं।
अंधेरा अपना साम्राज्य समेटने लगा, पौ फूटने को आई। रास्ते के दोनों ओर खेतों के दूर छोर पर सिर उठा रही सिंदूरी लालिमा इतराने को बेताब होने लगी।
'अरे ड्राइवर साहब सुबह हो गई, कहीं चाय पिलाएँगे क्या..? '
इसी आवाज़ से दोनों की नींद एक साथ टूटी। अंधेरा छट चुका था, उजाले में दोनों की आँखे चार हुईं। एक दूसरे को अपलक निहारते किसी की नज़र हटने को तैयार नहीं, जैसे रात जी भर न देख पाने की सारी कसर बस अभी ही पूरी करनी हो।
आँखों ही आँखों में रात के अधूरे पयाम पूरे होने लगे। निगाह हटने से पहले रात के अनकहे प्रस्ताव की स्वीकृति का संदेश दोनों के पुलकित-प्रफुल्लित हृदय में गहरे समा चुका था।
दोनों के जीवन में प्रथम-प्रेम के पावन पदार्पण से दसों दिशाएं चहक उठीं। महज़ एक रात में दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है क्या..! रूमानियत के मलमली पंख पे सवार दोनों के मख़मली अहसास सातवें आसमान की सैर करने लगे।
तनु को यूँ लग रहा था जैसे 'सोलह बरस की बाली उमर को सलाम' गीत फ़िल्माया भले रति अग्निहोत्री पर गया हो लेकिन लिखा इसे गीतकार नीरज जी ने सिर्फ़ उसके लिये,..उसके आज के ख़ास अहसास के लिये ही था।
क्रमशः -
(भाग - २)

Address

C-5 Alka Puri. Sector/C, Aliganj Lucknow
Allahabad
226024

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Anil Tripathi posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Anil Tripathi:

Share