अरावली पर्वतशृंखला के आंचल में महाराजा अजयराज चौहान द्वारा स्थापित अजमेर नगरी दुनिया में अपनी खास पहचान रखती है। इसका आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व इसी तथ्य से आंका जा सकता है कि सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा ने तीर्थगुरू पुष्कर में ही आदि यज्ञ किया था। पद्म पुराण के अनुसार सभी तीर्थों में तपो भूमि पुष्कर की महिमा उतनी ही हैए जितनी पर्वतों में सुमेरु और पक्षियों में गरुड़ की मानी जाती है। सूफी
मत के कदीमी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के रूहानी संदेश से महकती इस पाक जमीन में पल्लवित व पुष्पित विभिन्न धर्मों की मिली.जुली संस्कृति पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल पेश करती है। इस रणभूमि के ऐतिहासिक गौरव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सम्राटोंए बादशाहों और ब्रितानी शासकों की सत्ता का केन्द्र रही है। अनेक सियासी उतार.चढ़ाव की गवाह यह धरा कई बार बसी और उजड़ीए मगर प्रगाढ़ जिजीविषा की बदौलत आज भी इसका वजूद कायम है। आजादी के आंदोलन में तो यह स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणास्थली रही। ऐसी विलक्षण और पावन धरा को देश दुनिया से जोडने का यह एक छोटा सा प्रयास है।