Dr. Jash Desai- Vasudhaiva Kutumbakam

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गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।उमासुतं शोक विनाशकारकम्,नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
05/09/2024

गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥

01/09/2024
कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभ...
26/08/2024

कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं। इसके कुछ कारण हैं।
सबसे बड़ा कारण तो यह है कि कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना है। जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ।
कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यक्ति हैं। हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म मर गया है और पुराना ईश्वर, जिसे हम अब तक ईश्वर समझते थे, जो हमारी धारणा थी ईश्वर की, वह भी मर गई है।
जीसस के संबंध में कहा जाता है कि वह कभी हंसे नहीं। शायद जीसस का यह उदास व्यक्तित्व और सूली पर लटका हुआ उनका शरीर ही हम दुखी-चित्त लोगों को बहुत आकर्षण का कारण बन गया। महावीर या बुद्ध बहुत गहरे अर्थों में इस जीवन के विरोधी हैं। कोई और जीवन है परलोक में, कोई मोक्ष है, उसके पक्षपाती हैं।
समस्त धर्मों ने दो हिस्से कर रखे हैं जीवन के, एक वह जो स्वीकार योग्य है और एक वह जो इनकार के योग्य है। कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है। इसलिए, इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। राम भी अंश ही हैं परमात्मा के, लेकिन कृष्ण पूरे ही परमात्मा हैं। यह कहने का, यह सोचने का, ऐसा समझने का कारण है और वह कारण यह है कि कृष्ण ने सभी कुछ आत्मसात कर लिया है।
~ओशो

Jai HInd,,,,,Hum sabko tum per garv  hai....Tum Hind ki beti ho,,,,
07/08/2024

Jai HInd,,,,,Hum sabko tum per garv hai....Tum Hind ki beti ho,,,,

EK BAAR AWASHYA  SUNIYE....
06/07/2024

EK BAAR AWASHYA SUNIYE....

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BOTTLE BAND PAANI SAFE NAHI....https://youtu.be/64iX2OcyHCQ?si=LXL4iTc0dEkX24ym
16/06/2024

BOTTLE BAND PAANI SAFE NAHI....

https://youtu.be/64iX2OcyHCQ?si=LXL4iTc0dEkX24ym

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GOODH BAATON KO JAANANE KE LIYE GAHRAI ME UTARNA PADTA HAI...
08/05/2024

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JAY MAA BHARTI
13/04/2024

JAY MAA BHARTI

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शेर पर सवार होकर, खुशियों का वरदान लेकर, हर घर में विराजी अंबे मां, हम सबकी जगदंबे मां ! चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभका...
09/04/2024

शेर पर सवार होकर, खुशियों का वरदान लेकर, हर घर में विराजी अंबे मां, हम सबकी जगदंबे मां ! चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं!

09/04/2024

हिंदू संस्कृति की गौरवशाली परंपरा अमर रहे - जैसे-जैसे पीढ़ियां गुजर रही हैं, हिंदू संस्कृति मजबूत और समृद्ध होती जा रही है! हैप्पी गुड़ी पड़वा 2024!

सामान्य कद काठी वाले उस युवक से अंग्रेजी सत्ता को इतना भय था कि सन 1879 में उनके ऊपर चार हजार रुपये का इनाम घोषित किया ग...
18/02/2024

सामान्य कद काठी वाले उस युवक से अंग्रेजी सत्ता को इतना भय था कि सन 1879 में उनके ऊपर चार हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था। तब के चार हजार अब के चार करोड़ से भी अधिक मूल्य रखते होंगे।
1857 के सिपाही विद्रोह को असफल हुए दस बारह वर्ष हुए थे। पुणे की सड़कों,गलियों में एक युवक चम्मच से थाली पीटते हुए लोगों को शनिवार वाड़ा के मैदान में इक्कठा होने के लिए चलावा देता। अकेले, बिना भयभीत हुए... शाम के समय बिल्कुल थोड़ी सी भीड़ जुटती और उस इकलौते वक्ता का ओजस्वी भाषण प्रारम्भ होता। पर कोई लाभ नहीं, लोग सुन कर फिर अपनी दिनचर्या में लग जाते। पर उसे भी रुकना कहाँ था? वह लगा रहा... यह अकेले व्यक्ति का प्रयास था। क्रांति का प्रारम्भ एक से ही होता है न!
उन्ही दिनों महाराष्ट्र में भीषण अकाल पड़ा। भयानक दुर्भिक्ष, लोग भूख से तड़प तड़प कर मरने लगे। समझने वाले समझ रहे थे कि भुखमरी का कारण अन्न की कमी नहीं, अंग्रेजों की लूट है। इस घटना ने भारतीय जनमानस में अंग्रेजों के विरुद्ध पुनः घृणा का संचार किया। उसी समय महाराष्ट्र में बासुदेव नायक बन कर उभरे।
अब फड़के ने गुप्त बैठकें शुरू कीं। वे इतना तो समझ ही गए थे कि राष्ट्र के लिए लड़ने वाले चंद ही होते हैं, सो वैसे युवकों पर ही क्यों न मेहनत की जाय जिनमे आत्मोत्सर्ग का भाव है। फड़के का असर यहाँ हुआ... फरवरी 1879 में 200 युवकों के साथ खड़ा हुआ भारत का पहला क्रांतिकारी संगठन रामोशी, जिसके मुखिया थे बासुदेव बलवंत फड़के।
तो तय हुआ कि अंग्रेजों को लूटेंगे। उन्हें भगाने के लिए जो भी करना पड़ेगा, करेंगे। बर्बरता का प्रतिरोध सभ्य तरीके से नहीं हो सकता, जो ईंट का उत्तर पत्थर से दिया जाना ही धर्म है।
राष्ट्र के लिए लड़ने निकले दो सौ संसाधन विहीन योद्धाओं की फौज से आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे क्रूर ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिला दें। सो उन्होंने भी अपना लक्ष्य तय किया था कि स्वाधीनता की ज्वाला समूचे देश में जला कर निकल जाना है। और उनकी सफलता का अंदाजा इसी से लगाइए कि एक महीने के भीतर ब्रिटिश सरकार को उनके ऊपर 4000 का इनाम घोषित करना पड़ा।
एक ओर 200 लोग और दूसरी ओर 200 से अधिक देशों पर शासन करने वाली पूरी व्यवस्था। तो अंततः पराजय किसकी होनी थी?
लगातार दौड़ते-भागते वासुदेव बीमार हुए और एक दिन बीमार हो कर किसी मन्दिर में विश्राम करते समय पकड़ लिए गए। केस चला, और उन्हें कालापानी की सजा हुई। चार वर्ष तक जेल में कठिन यातना सहते हुए आज ही के दिन 17 फरवरी सन 1883 ई को उन्हें मुक्ति मिली।
उन्हें आदि क्रांतिकारी कहा जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के लिए पहला सशस्त्र आन्दोलन छेड़ने वाले वासुदेव बलवंत फड़के के आंदोलन का समय कम रहा, पर राष्ट्र में राष्ट्रवाद की प्रथम ज्योति जलाने वाले इस महान क्रांतिकारी का प्रभाव भविष्य के हर क्रांतिकारी पर रहा।
पुण्यतिथि पर नमन योद्धा को।
( Sarvesh Tiwari Ji की टाइम लाइन से साभार )

पौराणिक कहानियां बड़ी गूढ़ होती हैं,,,उनका तात्पर्य गहराई में उतरने के बाद ही पता चलता है ....
25/01/2024

पौराणिक कहानियां बड़ी गूढ़ होती हैं,,,उनका तात्पर्य गहराई में उतरने के बाद ही पता चलता है ....

द्रौपदी का वस्त्रहरण I द्रौपदी चीरहरण I द्रौपदी ने कैसे की कृष्ण से प्रार्थना Dr. Jash Desai-- hindiAbout Video: ab tak ham yahi samajhte aaye Hain ki, Draup...

Unveil the gripping narrative of "Satyam Vad," exploring the delicate balance between justice and judgment. Follow Sunil...
23/01/2024

Unveil the gripping narrative of "Satyam Vad," exploring the delicate balance between justice and judgment. Follow Sunil's journey from unjust imprisonment to a beacon of hope for justice.
Determined, Sunil studied law in prison, facing challenges upon release. Tackling an impossible case, he navigates dirty politics, corruption, and a sluggish judiciary, securing justice for victims and untangling innocents in the complex web.
• Gripping narrative on justice's thin line.
• Protagonist's journey from injustice to hope.
• Insights into legal system complexities.
• Unravelling truth amid politics and prejudices.
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ऐसी छवि कभी कहीं देखी थी ,,,,
13/12/2023

ऐसी छवि कभी कहीं देखी थी ,,,,

Bas tumhare aane ka hi intjar hai Ram....
07/12/2023

Bas tumhare aane ka hi intjar hai Ram....

07/12/2023

एक वृद्ध लेकिन कुंआरी महिला ने अकेलेपन से घबड़ा कर, एकाकीपन से ऊब कर एक तोते को खरीद लिया था।
तोता बहुत बातूनी था। बहुत चतुर और बुद्धिमान था। उसे शास्त्रों के सुंदर-सुंदर श्लोक याद थे, सुभाषित कंठस्थ थे। भजन वह तोता कह पाता था। वह वृद्धा उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उसके अकेलेपन में एक साथी मिल गया।
लेकिन थोड़े दिनों ही बाद उस तोते में एक खराबी भी दिखाई पड़ी। जब घर में कोई भी न होता था और उसकी मालकिन अकेली होती, तब तो वह भजन और कीर्तन करता, सुभाषित बोलता, सुमधुर वाणी और शब्दों का प्रयोग करता। लेकिन जब घर में कोई मेहमान आ जाते, तो वह तोता एकदम बदल जाता था।
वह फिल्मी गाने गाने लगता और सीटियां बजाने लगता। और कभी-कभी अश्लील गालियां भी बकने लगता। वह महिला बहुत घबड़ाई। लेकिन उस तोते से उसे प्रेम भी हो गया था। और अकेले में वह उसका बड़ा साथी था। लेकिन जब भी घर में कोई आता तो वह कुछ ऐसी अभद्र बातें करता कि वह महिला बड़ी संकोच और परेशानी में पड़ जाती।
वह तोता ही तो था। आदमी होता तो ऐसा कभी न करता। आदमी इससे उलटा करता है। अकेले में फिल्मी गाने गाता है, सबके सामने भजन कहता है। वह तोता ही तो था आखिर। वह कोई बहुत समझदार नहीं था। वह पागल अकेले में तो भजन गाता, और सबके सामने फिल्मी गाने गाता, और सीटियां बजाता, और अश्लील शब्द बोलता। वह महिला घबड़ाई! क्या करे? तो उसने अपने चर्च के पादरी को कहा।
क्योंकि चर्च के पादरी का धंधा यही थाः लोगों को सुधारना, उनके जीवन को अच्छा बनाना, उनके आचरण को शुद्ध करना। तो उस महिला ने सोचा कि जो हजारों लोगों के जीवन को शुद्ध करता है, क्या एक तोते के जीवन को नहीं बदल सकेगा?
उसने जाकर चर्च के पादरी को प्रार्थना कीः मेरे तोते में एक खराब आदत है, क्या आप इसे नहीं बदल सकेंगे? चर्च के पादरी को तोतों के संबंध में कोई भी ज्ञान नहीं था। लेकिन उपदेशक कभी भी अपना अज्ञान स्वीकार करने को राजी नहीं होते। वह भी राजी नहीं हुआ। और उसने कहाः हां, इसमें कौन कठिनाई है, मैंने तो सैकड़ों तोतों को ठीक किया है। यद्यपि यह पहले ही तोते से उसका पाला था। रात भर वह सोचता रहाः क्या करे, क्या न करे? और तभी उसे खयाल आया, उसके पास खुद भी एक तोता है।
और वह तोता चूंकि चर्च के पादरी के पास था, इसलिए चर्च का पादरी जितने उपदेश देता था, उतने ही उपदेश उसे भी याद हो गए थे। और निरंतर चर्च में कीर्तन और भजन चलता, और अच्छी बातें चलतीं, तो उस तोते ने उनको भी याद कर लिया था। वह तोता बहुत धार्मिक था। पादरी ने सोचाः मैं तो नहीं समझा पाऊंगा उस बिगड़े हुए तोते को, लेकिन क्या यह अच्छा न होगा कि मैं अपने तोते को कुछ दिनों के लिए उस तोते के पास छोड़ दूं। यह धार्मिक तोता है, उस अधार्मिक को ठीक कर लेगा।
और वह अपने तोते को लेकर दूसरे दिन उस महिला के घर गया। और उसने कहाः एक मादा तोता मेरे पास भी है, और यह बहुत धार्मिक है। और निरंतर धर्म की चर्चा के अतिरिक्त इसे किसी बात में कोई रुचि नहीं। इसकी प्रार्थनाएं तो इतनी हृदय से भरी होती हैं कि सुनने वाले के आंसू आ जाएं। इसके प्राणपण निरंतर प्रार्थना में जुटे रहते हैं। तो मैं इस अपने मादा तोते को तुम्हारे तोते के पास छोड़े जाता हूं। यह सप्ताह, दो सप्ताह में ही उसका हृदय परिवर्तन कर देगा।
वह अपने मादा तोते को उसके पास छोड़ गया। एक ही पिंजरे में उन दोनों को बंद कर दिया गया।
बिगड़ा हुआ तोता बहुत...थोड़ी देर तक तो स्तब्ध होकर इस नये अजनबी को देखता रहा। फिर उसने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया, थोड़ी बातचीत हुई। उन दोनों में मित्रता हो गई। और जैसा स्वाभाविक था, मित्रता के बाद उसने प्रेम के लिए भी आमंत्रण दिया। और मादा तोते के आस-पास उसने प्रेम का जाल रचा। लेकिन वह मन में डरा हुआ था, क्योंकि मादा तोता धार्मिक थी।
धार्मिक लोग प्रेम से बहुत डरते हैं। वह तोता भी डरा हुआ था कि पता नहीं प्रेम के संबंध में यह आमंत्रण स्वीकार भी होगा या नहीं? लेकिन प्रयास करना जरूरी था। उसने कोशिश की, वह नाचा-कूदा, उसने गीत गाए। और अंत में इस वजह से उसने पूछा कि कहीं मेरी ये सारी हरकतें उसे नाराज तो नहीं कर रही हैं? उसने उस मादा तोते को पूछाः मेरे गीत और मेरे प्रेम का आमंत्रण तुम्हें नाराज तो नहीं कर रहा हैं? क्योंकि मैंने सुना है तुम तो दिन-रात प्रार्थनाओं में लीन रहने वाली हो। उस मादा तोते ने कहाः तुम पागल हो, मैं प्रार्थनाएं करती ही किसलिए थी?
उस मादा तोते ने कहाः मैं प्रार्थनाएं करती ही किसलिए थी, तुम्हें पाने को। दूसरे दिन से उस मादा तोते ने प्रार्थनाएं करनी बंद कर दी। और उस बिगड़े हुए तोते ने गालियां देनी बंद कर दी। वह भी किसी पत्नी की तलाश में था, और इसलिए क्रोध में गालियां दे रहा था। और वह मादा तोता किसी पति की तलाश में थी, और इसलिए प्रार्थनाएं कर रही थी। वे प्रार्थनाएं और गालियां एक ही अर्थ रखती थीं, उनमें कोई भेद नहीं था।
यह एक घटना मैं इसलिए कहना चाहता हूं कि यदि आदमी का अंतःकरण न बदले तो उसकी गालियों और प्रार्थनाओं में कोई भेद नहीं होता है। उसके मंदिर जाने में, उसके शिवालय जाने में और उसके मधुशाला जाने में कोई भेद नहीं होता है।
मनुष्य का हृदय न बदले तो वह चाहे कुछ भी करे, उसके करने के पीछे वे ही क्षुद्र आकांक्षाएं, इच्छाएं और वासनाएं काम करती हैं। ऊपर स्वरूप बदल जाता है। ऊपर से ढंग बदल जाता है, और वस्त्र बदल जाते हैं। लेकिन भीतर, भीतर की बात वही रहती है।
इसलिए मैंने यह बात कही। वे दोनों बातें अलग दिखाई पड़ती हैंः एक तोते का गालियां बकना, और एक तोते का प्रार्थनाएं करना बहुत भिन्न मालूम होता है। लेकिन जो नहीं जानते उन्हीं को यह भिन्न मालूम होगा। जो गहरे देखेंगेः वे पाएंगे, उनके अंतःकरण की आकांक्षा और वासना एक ही है।
मनुष्य के ऊपरी आचरण के बदल जाने से कुछ भी नहीं होता; और न ही मनुष्य के शब्द बदल जाने से कुछ होता है; और न ही मनुष्य के वस्त्र और स्थान बदल जाने से कुछ होता है; बदलनी चाहिए मनुष्य की अंतर्रात्मा।
लेकिन हम हजारों वर्षों से शब्दों के बदलने में, कृत्य के बदलने में, वस्त्र के बदलने में इतने संलग्न रहे हैं कि हम यह बात ही भूल गए हैं कि ये चीजें बदलने से कुछ बदलाहट नहीं होती। कोई क्रांति नहीं होती।
ओशो, जीवन दर्शन-५

धर्म और अध्यात्म को एक समझने वालों के लिए विशेष
18/11/2023

धर्म और अध्यात्म को एक समझने वालों के लिए विशेष

धर्म और अध्यात्म में अंतर क्या है? I धर्म क्या है ? | अध्यात्म क्या है? Dharma aur Adhyatma me antar kya hai? Adhyatma kya hai? HindiHi,I am Dr. Jash Desai w...

क्या आपने कभी सोचा है ?
01/11/2023

क्या आपने कभी सोचा है ?

पानी पीने का सही तरीका | कब, कैसा, कितना पीना चाहिए I गलतियां जो आप पानी पीते समय करते है I Hindi Dr. Jash DesaiHi,I am Dr. Jash Desai welcome to my channe...

JAY HO BHOLENATH KI....
01/11/2023

JAY HO BHOLENATH KI....

Maa jay Ambe Gauri
19/10/2023

Maa jay Ambe Gauri

गाँधी ने तीन बंदरों की मुद्रा की गलत व्याख्या की महात्मा गांधी को जापान से किसी ने तीन बंदर की मूर्तियां भेजी थीं। गांधी...
07/10/2023

गाँधी ने तीन बंदरों की मुद्रा की गलत व्याख्या की

महात्मा गांधी को जापान से किसी ने तीन बंदर की मूर्तियां भेजी थीं। गांधी जी उनका अर्थ जिंदगीभर नहीं समझ पाए। या जो समझे वह गलत था।
और जिन्होंने—भेजी थीं, उनसे भी पुछवाया उन्होंने अर्थ, उनको भी पता नहीं था। आपने भी वह तीन बंदर की मूर्तियां देखीं चित्र में, मूर्तियां भी देखी होंगी। एक बंदर आंख पर हाथ लगाए बैठा है, एक कान पर हाथ लगाए बैठा है, एक मुंह पर हाथ लगाए बैठा है।
गांधी जी ने जो व्याख्या की, वह वही थी, जो गांधी जी कर सकते थे। उन्होंने व्याख्या की कि बुरी बात मत सुनो, तो यह बंदर जो कान पर हाथ लगाए बैठा है, यह बुरी बात मत सुनो। मुंह पर लगाए बैठा है, बुरी बात मत बोलो। आंख पर लगाए बैठा है, बुरी बात मत देखो।
लेकिन इससे गलत कोई व्याख्या नहीं हो सकती। क्योंकि जो आदमी बुरी बात मत देखो, ऐसा सोचकर आंख पर हाथ रखेगा, उसे पहले तो बुरी बात देखनी पड़ेगी। नहीं तो पता नहीं चलेगा कि यह बुरी बात हो रही है, मत देखो।
तो देख ही ली तब तक आपने। और बुरी बात की एक खराबी है कि आंख अगर थोड़ी देख ले और फिर आंख बंद की तो भीतर दिखाई पड़ती है। वह बंदर बहुत मुश्किल में पड़ जाएगा।
बुरी बात मत सुनो, सुन लोगे तभी पता चलेगा कि बुरी है। फिर कान बंद कर लेना, तो वह बाहर भी न जा सकेगी अब। अब वह भीतर घूमेगी।
नहीं, यह मतलब नहीं है।
मतलब यह है, देखो ही मत, जब तक भीतर देखने की कोई जरूरत न हो जाए। सुनो ही मत, जब तक भीतर सुनना अनिवार्य न हो जाए। बोलो ही मत, जब तक भीतर बोलना लनिवार्य न हो। यह बाहर से संबंधित नहीं है।
लेकिन गांधी जी जैसे लोग सारी चीजें बाहर से ही समझते हैं। यह भीतर से संबंधित है।
बुरी बात को अगर मुझे सुनने के लिए रुकना पड़े, यह तो बाहर वाले पर निर्भर है, वह कब बोल देगा। हो सकता है संगीत बजाना शुरू करे, फिर गाली दे दे। क्या करिएगा? और अक्सर गाली देना हो तो संगीत से शुरू करना सुविधापूर्ण होता है। बंद करते—करते तो बात पहुंच जाएगी। और यह तो बड़ी कमजोरी है कि बुरी बात सुनने से इतनी घबडाहट हो। अगर बुरी बात सुनने से आप बुरे हो जाते हैं, तो बिना सुने आप पक्के बुरे हैं। इस तरह बचाव न होगा।
लेकिन यह मत सोचना कि यह बात बंदरों के लिए है। असल में वह जापान में परंपरागत बंदरों की मूर्ति बनाई जाती है, क्योंकि जापान में कहा जाता रहा है कि आदमी का मन बंदर है। और जो भी थोड़ा सा मन को समझते हैं, वे समझते हैं कि मन बंदर है।
डार्विन तो बहुत बाद में समझा कि आदमी बंदर से ही पैदा हुआ है। लेकिन मन को समझने वाले सदा से ही जानते रहे हैं कि मन आदमी का बिलकुल बंदर है।
आपने बंदर को उछलते—कूदते, बेचैन हालत में देखा है? आपका मन उससे ज्यादा बेचैन हालत में, उससे ज्यादा उछलता—कूदता है पूरे वक्त।
अगर आपके मन का कोई इंतजाम हो सके और आपकी खोपड़ी में कुछ खिड़कियां बनाई जा सकें, और बाहर से लोग देखें तो बहुत हैरान हो जाएंगे कि यह भीतर आदमी क्या कर रहा है!
हम तो देखते थे कि पद्यासन लगाए शांत बैठा है, भीतर तो यह बड़ी यात्राएं कर रहा है, बड़ी छलांगें मार रहा है—इस झाड से उस झाड पर। और यह भीतर चल रहा है। यह भीतर आदमी का मन बंदर है।
उन मूर्तियों का अर्थ आपके लिए उपयोगी होगा इस सात दिन के लिए। वह मत देखो जिसे देखने की कोई अनिवार्यता नहीं है। और कैसा हम अजीब काम कर रहे हैं। रास्ते पर चले जा रहे हैं, तो दंतमंजन का विज्ञापन है वह भी पढ़ रहे हैं, सिगरेट का विज्ञापन है वह भी पढ़ रहे हैं, साबुन का विज्ञापन है वह भी पढ़ रहे हैं। जैसे पढ़ाई—लिखाई आपकी इसीलिए हुई थी।
अमरीका का एक बहुत विचारशील व्यक्ति एक रास्ते से गुजर रहा है, चौराहे से। वह आदमी. सोच—विचार की गहराइयों में जा सके...। चौराहे पर देखा उसने इतना प्रकाश और इतने प्रकाश से जले हुए विज्ञापन कि उसने कहा, हे परमात्मा, अगर मैं गैर पढ़ा—लिखा होता तो रंगों का मजा ले सकता। अगर गैर पढ़ा—लिखा होता तो रंगों का मजा ले सकता, इतना रंग—बिरंगापन, लेकिन पढ़ क्या गया, खोपड़ी पकी जा रही है। जलते हुए विज्ञापन और लक्स टायलेट सोप और पनामा सिगरेट सरस सिगरेट छे, सब पढ़े जा रहे हैं वह, खोपड़ी में कुछ भी कचरा डाला जा रहा है।
आप अपने मालिक नहीं इतने भी, अपनी आंख के भी कि कचरे को भीतर न जाने दें। अनिवार्य हो उसे देखें, तो आपकी आंख का जादू बढ़ जाएगा। देखने की दृष्टि बदल जाएगी। क्षमता और शक्ति आ जाएगी। अनिवार्य हो उसे सुनें, तो आप सुन पाएंगे।
जितना कम देख सकें, जितना कम सुनें, जितना कम बोलें, उतना ध्यान में गहराई आ जाएगी।
निर्वाण--उपनिषद--ओशो (पहला प्रवचन)

Jay bajarang bali......
03/10/2023

Jay bajarang bali......

गणेश उत्सव की आप सभी को ढेर साडी शुभकामनाएं,,,,
20/09/2023

गणेश उत्सव की आप सभी को ढेर साडी शुभकामनाएं,,,,

राधे राधे जय श्री कृष्ण....
05/09/2023

राधे राधे जय श्री कृष्ण....

श्री कृष्ण का चरित्र इतना बृहद है की कोई पूरी तरह समझ ही नहीं सकता...
05/09/2023

श्री कृष्ण का चरित्र इतना बृहद है की कोई पूरी तरह समझ ही नहीं सकता...

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