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Ground Report India Journal ISSN 1839-6232

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11/06/2024

निम्न चार विषयों पर चार किताबें दिसंबर 2024 तक पूरी करने की प्रतिबद्धता है। 2025 की शुरुआत में प्रकाशन होकर आप लोगों के हाथों में किताब आ जाने की संभावना है।
स्वास्थ्य
भारत का आर्थिक विकास
सामाजिक न्याय
पानी
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विवेक उमराव

04/06/2024

दिसंबर 2020 से तीन वर्षों तक औसतन प्रतिदिन 7 से 8 घंटे विश्व की नामचीन यूनिवर्सिटियों में होने वाले वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन किया, अब भी औसतन कई घंटे प्रतिदिन अध्ययन करता हूं। कई-कई सौ पृष्ठों के लंबे-लंबे कई सौ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन कर चुका हूं, अब भी करता हूं। शारीरिक स्वास्थ्य के संदर्भ में वैज्ञानिक समझ विकसित व परिष्कृत करने के लिए बहुत ही अधिक परिश्रम किया है व करता रहता हूं, ताकि सैकड़ों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में अपना सक्रिय सहयोग कर पाऊं।
स्वास्थ्य के संदर्भ में लोगों को सलाहें देने के लिए प्रतिदिन कई घंटे बिना कोई फीस लिए हुए लोगों से चर्चा करता हूं। कई सौ लोगों का स्वास्थ्य बेहतर कर चुका हूं, इनमें से बहुत लोग तो बहुत ही अधिक बीमार शरीर की स्थिति वाले रहे हैं।
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24 घंटे में औसतन 5 घंटे सोता हूं, अपवाद छोड़ शायद ही कभी 6 घंटे या अधिक सोता होऊं।
24 घंटे में केवल एक बार ही आहार लेता हूं, इसके अलावा किसी प्रकार का कोई स्नैक्स नहीं, कोई नास्ता नहीं, कोई लंच/डिनर नहीं, चाय/काफी नहीं, सिगरेट नहीं पीता, दारू/बियर नहीं पीता।
औसतन एक आम व्यक्ति नास्ता, लंच, डिनर, स्नैक्स, चाय/काफी, दारू/बियर इत्यादि में ही प्रतिदिन का लगभग 2−4 घंटे का प्रयोग करता है (पकाने या बनाने में नहीं, केवल ग्रहण करने की प्रक्रिया में)। मैं प्रतिदिन का औसतन 3 घंटे का समय यहां बचाता हूं।
औसतन लगभग 5 घंटे सोता हूं, जबकि औसतन एक आम व्यक्ति 8−10 घंटे सोता है। मैं प्रतिदिन का औसतन 3−5 घंटे का समय यहां बचाता हूं।
एक भी ऐसा मित्र नहीं है जिसके साथ बैठकर फालतू में गप्पबाजी करने में समय बर्बाद करता होऊं।
शरीर इतना फिट है कि भोजन करने के तुरंत बाद कम से कम घंटा भर पैदल चलता हूं। भोजन के बाद आलस्य नहीं आता। दिन में उनींदापन नहीं रहता। फुर्ती व ताजगी से काम करता हूं। काम करने की दक्षता बहुत बेहतर है।
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एक छोटी सी लेकिन गंभीर बात यह है कि मैं प्रतिदिन के 24 घंटे में लगभग 5−6 घंटे का समय तो भोजन व सोने से ही बचा लेता हूं। इस समय का प्रयोग यदि मैं एक्सरसाइज करने, डंबल करने, पैदल चलने, साइकिलिंग करने इत्यादि में करता हूं तो किसकी भैंस खोलता हूं।
लेकिन यह छोटी सी तर्कसंगत बात भी नीच, टुच्ची, धूर्त, मनोवैज्ञानिक बीमार, छिछली मानसिकता वाले, घटिया सोच वाले लोगों की समझ में बिलकुल भी नहीं आने वाली। नीचता व धूर्तता से परे इनकी कल्पनाशक्ति विचारशक्ति काम ही नहीं करती है।

फालतू में प्रतिदिन अनेक घंटे बर्बाद करेंगे, लेकिन यदि कोई व्यक्ति फालतू समय नहीं खर्च करके जवाबदेही महसूस करते हुए समय का कुशलता से प्रबंधन करते हुए शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कुछ घंटे का समय निकालता है तो इन जैसे लोगों को लगता है कि अगला पलाल है। इनकी नीच मानसिकता इनको अच्छा सीखने व करने से प्रतिबंधित करती है, इसलिए अपनी नीचता को ही गौरव मानकर जीते हैं।
यह बिलकुल उसी तरह की बात है कि क्लाईमेट-चेंज, पर्यावरण पर फर्जी ज्ञान बघारेंगे लेकिन इस संदर्भ में जीवन में एक भी गंभीर काम/प्रयास निरंतरता से नहीं किए होंगे। उल्टे जो लोग गंभीर प्रयास करते हैं उनकी खिल्ली उड़ाएंगे, मीनमेख निकालेंगे। नीचता की कोई सीमा नहीं इन जैसी मानसिकता वालों की।
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विवेक

31/05/2024

मुझे बहुत लोगों ने सुझाव दिया कि मैं अपना यूट्यूब चैनल ऐसे चलाऊं, वैसे चलाऊं। मैंने अपने जीवन में कभी भी पैसा, शक्ति, भोकाल व अहंकार इत्यादि की प्राथमिकता के लिए कभी न तो कार्य किया, न प्राथमिकता रखी, न ही कोई छुपा हुआ एजेंडा रखा। जब तक जीवन है तब तक जीवन-मूल्यों के आधार पर जीते रहना चाहता हूं। ढोंग नहीं करना चाहता, मैनीपुलेशन नहीं करना चाहता।
मेरा यूट्यूब चैनल आम लोगों से आर्थिक-विकास, सामाजिकता, उन्नति व सामाजिक समाधान इत्यादि मुद्दों पर उनकी अपनी जो समझ, सोच व कल्पना होगी उस आधार पर चर्चा करने के आधार पर होगा। आम लोगों द्वारा जमीन पर किए जा रहे जमीनी कार्यों के आधार पर होगा।
बिना दिखावा, बिना ढोंग, बिना फरेब के आम आदमी की मौलिकता के आधार पर होगा। कांटछांट इत्यादि भी नगण्य रहेगी।
आम लोगों से आर्थिक-विकास, सामाजिकता, उन्नति व सामाजिक समाधान इत्यादि मुद्दों पर छोटी-छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी बातों पर चर्चा की जाएगी। अधिकतर ग्रामीण व मजदूर परिवेश के लोगों से चर्चा पर आधारित रहेगी।
अब रही बार पाठकों की तो जिन लोगों को देखना होगा देखेंगे, जिनको नहीं देखना होगा नहीं देखेंगे। कोई मुजरा थोड़ी ना है कि पाठकों को खुश करने के लिए उनकी पसंद के ठुमके लगाए जाएंगे।
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विवेक उमराव

30/05/2024

*पंचायत स्वायत्त-शासन*
विषय पर शनिवार मतलब कल 1 जून को भारत समय अनुसार सुबह 7:00 बजे गूगल मीट होनी है। आप सादर व सप्रेम आमंत्रित हैं। आशा है कि आप भूल नहीं गए होंगे।
गूगल-मीट का कोड निम्न है।
sfi-mwfj-emq
कुछ महीने बाद भारत में 7 दिनों की एक गोष्ठी भी आयोजित की जाएगी, जिसमें देश के कई राज्यों से जमीन पर काम करने वाले विशेषज्ञों को आमंत्रित करके उनके साथ पंचायत स्वायत्त-शासन विषय पर व्यवहारिक चर्चा होगी। अतिथियों की अधिकतम संख्या 20 होगी। गोष्ठी में आने वाले अतिथियों को रहने खाने का खर्च नहीं देना होगा, भाग लेने की कोई फीस नहीं होगी। हां यदि कोई स्वेच्छा से आर्थिक सहयोग करना चाहे तो सहयोग का स्वागत रहेगा।
*सात (7) दिनों की इस गोष्ठी का आयोजन होने की बड़ी संभावना मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण व आदिवासी क्षेत्र में है। पक्की व बेहतर जानकारी आयोजन के लगभग दो महीने पहले प्रस्तुत की जाएगी।*
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विवेक उमराव

28/05/2024

भारत में बहुत गर्मी पड़ रही है, पिछले आठ-दस वर्षों में मेरा कैनबरा की ठंड में शरीर जैसा ढल गया है, उसके अनुसार भारत में जनवरी महीने की सर्दी भी मेरे शरीर के लिए गर्मी का मौसम ही है। इसलिए भारत आने के पहले एहतियातन कुछ बदलाव शुरू किए हैं ताकि जब भारत पहुंचू तब कुछ महीनों बाद खून की जांच के द्वारा यह देख सकूं कि बेहतर क्या रहेगा। गर्मी को देखते हुए अभी जो बदलाव किए हैं, वह निम्न हैं। यदि कुछ महीने बाद खून की जांच में परिणाम खराब नहीं आएंगे तो बदलाव स्थाई रहेंगे, नहीं तो बदलाव वापस।
मैं अब सुबह की बजाय शाम को भोजन करना शुरू कर चुका हूं। चूंकि 24 घंटे में केवल एक बार ही खाता हूं, इसलिए अधिक मात्रा में खाता हूं, दिन में बहुत गर्मी पड़ने के कारण अधिक मात्रा में भोजन करने के कारण दिन में मजा नहीं आएगा। इसलिए शरीर को तैयार करने के लिए भारत पहुंचने के पहले ही सुबह की बजाय शाम को भोजन करना शुरू किया है, शाम को गर्म कुछ कम रहती है। भोजन के बाद लगभग दो घंटे पैदल चलूंगा। भोजन करने के लगभग चार-पांच घंटे बाद सोऊंगा।
सुबह तीन-चार घंटे का व्यायाम जारी रहेगा। पूरा दिन केवल सादा पानी पिऊंगा। सादे पानी के अलावा कुछ भी खाना या पीना का काम केवल शाम को होगा।
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केवल सादे पानी पर नियतकालिक उपवास की अवधि अब स्थाई तौर पर 75 घंटे की बजाय 90 घंटे हुआ करेगी। यह अब जारी रहेगा चाहे 24 घंटे में एक बार भोजन सुबह किया जाए या शाम को किया जाए।
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विवेक उमराव

26/05/2024

*पंचायत स्वायत्त-शासन*
विषय पर शनिवार 1 जून को भारत समय अनुसार सुबह 7:00 बजे गूगल मीट होनी है। आप सादर व सप्रेम आमंत्रित हैं।
गूगल-मीट का कोड निम्न है।
sfi-mwfj-emq
कुछ महीने बाद भारत में 7 दिनों की एक गोष्ठी भी आयोजित की जाएगी, जिसमें देश के कई राज्यों से जमीन पर काम करने वाले विशेषज्ञों को आमंत्रित करके उनके साथ पंचायत स्वायत्त-शासन विषय पर व्यवहारिक चर्चा होगी। अतिथियों की अधिकतम संख्या 20 होगी। गोष्ठी में आने वाले अतिथियों को रहने खाने का खर्च नहीं देना होगा, भाग लेने की कोई फीस नहीं होगी। हां यदि कोई स्वेच्छा से आर्थिक सहयोग करना चाहे तो सहयोग का स्वागत रहेगा।
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विवेक उमराव

22/05/2024

अमूमन हम लोग जो रूटीन में स्थापित है या प्रतिष्ठित है, उसे ही सही मानकर चलते हैं। इसी प्रकार का एक मामला है − पानी बचाने का। मैं अपने बचपन से देख रहा हूं कि पानी बचाने की बात की जाती है, प्रचार किया जाता है। जब तक मुझे पानी, विकास, आर्थिक-विकास, स्वास्थ्य इत्यादि के संदर्भ में गहरी समझ नहीं थी, इनकी संपूरक-पारस्परिकता की समझ नहीं थी। तब तक मैं भी मानता था कि पानी बचाना ही एकमात्र तरीका है।
लेकिन जब मेरी समझ बढ़ी, तब मैंने इस विचार पर पहुंचा कि पानी बचाना अच्छी बात है, किसी भी वस्तु का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए सो पानी का भी नहीं किया जाना चाहिए।
लेकिन यदि हम वास्तव में ईमानदार व गंभीर हैं अपने व अपनी अगली पीढ़ी के जीवन के लिए, यदि हम वास्तव में ईमानदार व गंभीर हैं पर्यावरण व क्लाईमेट के लिए तो हमें सर्वोच्च प्राथमिकता पानी के उत्पादन को देना चाहिए उसके बाद दूसरी प्राथमिकता पानी बचाने को। पानी बचाने के नारों के चक्कर में हम इस मानसिकता में रहते हैं कि पानी का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। जबकि प्रकृति ने ऐसी व्यवस्थाएं दी हैं कि हम पानी का उत्पादन कर सकते हैं।
पेड़, जंगल, मिट्टी, वर्षा-जल, नदी, झील, पोखर इत्यादि को संपूरक-पारस्परिकता के साथ जानने समझने पहचानने के द्वारा ही पानी के उत्पादन की ओर बढ़ा जा सकता है। इसके लिए हमें वास्तविक अर्थों में बिना ढोंगबाजी के, बिना किसी निहित-स्वार्थ या स्वकेंद्रित एजेंडे के इन तत्वों को जानना समझना होगा।
पानी बचाए जाने से अधिक पानी का उत्पादन करना महत्वपूर्ण है। इसी द्वारा पानी समाधान की ओर चला जा सकता है।
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विवेक उमराव

यदि आप बनारस में रहते हों तो BHU के हृदय विभाग में जाकर प्रोफेसर डा० ओमशंकर जी (Om Shankar) द्वारा चलाए जा रहे पब्लिक-हे...
21/05/2024

यदि आप बनारस में रहते हों तो BHU के हृदय विभाग में जाकर प्रोफेसर डा० ओमशंकर जी (Om Shankar) द्वारा चलाए जा रहे पब्लिक-हेल्थ-सिस्टम को जवाबदेह बनाने के संघर्ष में अपना समर्थन/भागीदारी सुनिश्चित कीजिए। यदि आप बनारस में नहीं रहते हों, तो सोशल मीडिया के माध्यम से या मीडिया के माध्यम से इनके द्वारा चलाए जा रहे पब्लिक-हेल्थ-सिस्टम को जवाबदेह बनाने के संघर्ष में अपना समर्थन/भागीदारी सुनिश्चित कीजिए।
प्रोफेसर डा० ओमशंकर जी, भारत देश के चुनिंदा हृदय विशेषज्ञों में आते हैं। बहुत ही अधिक विद्वान हैं, चिकित्सा क्षेत्र में पीएचडी से भी ऊंची डिग्री प्राप्त किए हुए हैं, वह भी तब जब पूरे भारत में 10-20 सीटें हुआ करतीं थीं।
भारत देश के उन चुनिंदा व्यक्तित्वों में से आते हैं, जो भारत में पब्लिक-हेल्थ-सिस्टम को आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने की प्रबल इच्छा रखते हैं। इस संदर्भ में जमीन पर उतर कर संघर्ष करते रहते हैं।
10 दिन से अधिक गुजर चुके हैं, आमरण-उपवास पर हैं। पानी छोड़कर कुछ भी नहीं खा पी रहे हैं। 10 दिन से अधिक समय से आमरण उपवास पर रहने के बावजूद, मरीजों की देखभाल कर रहे हैं। आमरण-उपवास कर रहे हैं, इसलिए घर नहीं जा रहे हैं, इसलिए मरीजों की देखभाल करने की अवधि सामान्य दिनों की तुलना में बढ़ा दी है, और वास्तव में प्रतिदिन बीस घंटे या अधिक मरीजों की सेवा में तत्पर हैं।
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विवेक

18/05/2024

दो साल से अधिक हो गया है, ट्विटर पर पोस्ट किए हुए।
लेकिन अब दो चार दिनों बाद से X पर लिखना शुरू करने जा रहा हूं। मेरी पोस्टें/लेख मूल रूप से वहीं प्रकाशित होगीं। यदि आप चाहें तो मेरे साथ X पर मित्रता कर सकते हैं। पता फेसबुक प्रोफाइल पर दिया है।

18/05/2024

दो साल से अधिक हो गया है, ट्विटर पर पोस्ट किए हुए।
लेकिन अब दो चार दिनों बाद से X पर लिखना शुरू करने जा रहा हूं। मेरी पोस्टें/लेख मूल रूप से वहीं प्रकाशित होगीं। यदि आप चाहें तो मेरे साथ X पर मित्रता कर सकते हैं।
https://x.com/vivekaadiumrao

17/05/2024

लगभग 80 घंटे का सादे पानी पर प्रति दो-सप्ताह वाला रूटीन उपवास चल रहा है।
कल दिन में कुल लगभग 30 किलोमीटर पैदल चला।
आज लगभग चार घंटे की समयावधि में अब तक 25 किलोमीटर पैदल चल चुका हूं, जिसमें से लगभग 10 किलोमीटर पहाड़ चढ़ना व उतरना रहा, मतलब चलने की गति औसत गति अच्छी रही। पहाड़ की ऊंचाई इतनी थी कि 60 फ्लोर की ऊंची बिल्डिंग जैसी चढ़ाई थी, अधिकतर सीधी चढ़ाई थी। पहाड़ चढ़ाई उतराई व कुल पैदल चलना, बिना रुके एक बार में रहा। शेष दिन में लगभग 10 किलोमीटर पैदल और चलूंगा। इस तरह आज कुल लगभग 35 किलोमीटर पैदल चलना होगा।
थकावट नहीं,
पैरों में किसी प्रकार का कोई दर्द नहीं,
पैर भरे-भरे नहीं महसूस होते,
पहाड़ की चढ़ाई के बावजूद हृदयगति 100 नहीं पार की।
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इधर पिछले कुछ दिनों में दो-तीन मित्रों ने केवल 50-60 घंटे के उपवास में ही हायतौबा मचा दिया। जो लोग उपवास नहीं कर पाते हैं, उन लोगों में अधिकतर मामला मनोवैज्ञानिक होता है, तथा कान का कच्चा होना होता है। किसी भी फर्जी या मिथक या कहावत वाले तथाकथित ज्ञानी व्यक्ति ने कुछ कह दिया तो लोग महसूस करने लगते हैं कि दो-चार घंटे में मर जाएंगे, हौसला पस्त, पूरे प्रयास का बंटाधार।
दप-चार-पांच दिन के सादे पानी पर उपवास से लोग नहीं मरते हैं। लंबे उपवास से शरीर को बहुत लाभ मिलता है, अद्वितीय लाभ जो किसी और तरीके से मिलता ही नहीं है। यदि आपका खानपान बहुत ही अधिक चौपट है, तब आपका शरीर उपवास में अधिक प्रतिक्रिया देता है, एक तरह से आपको धमकाता है।
लंबा उपवास रखने से पहले अपना खानपान दुरुस्त कीजिए, जीवनशैली दुरुस्त कीजिए, उपवास का अद्वितीय आनंद लीजिए। बीपी, डायबिटीज, फैटी लिवर, ट्राइग्लिसराइड, जोड़ों के दर्द, मस्तिष्क की अनेक प्रकार की समस्याएं, डिमेंशिया, इम्युनिटी, इंसुलिन-रेजिस्टेंट (अधिकतर बीमारियां इसी की वजह से होती हैं) इत्यादि-इत्यादि के लिए रामबाण। कैंसर होने की संभावनाओं से दूर रहने का इससे बेहतर कुछ और है ही नहीं।
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विवेक उमराव

14/05/2024

दुनिया में जब भी किसी को हार्टअटैक होता है तो कम से कम दो दवाएं तो आजीवन खाना ही होता है (बीपी वाली दवा को छोड़कर), यह अंतर्राष्ट्रीय मानक है। बीपी की दवा बंद हुए लगभग एक साल पूरा होने को है। तब से मैं केवल दो दवाएं खा रहा था।
कल मैं लगभग 6 महीने बाद अपने डाक्टर से मिलने गया, डाक्टर ने अपनी ओर से मुझसे कहा कि आपने अपने शरीर को इतना बेहतर कर लिया है कि अब आपको आजीवन केवल एक ही दवा लेने की जरूरत है।
इस संदर्भ में मेरे कुछ टेस्ट हुए, उनके परिणाम आने के बाद निर्णय लिया जाएगा कि मैं अभी से केवल एक दवा लूंगा या कुछ महीने बाद से केवल एक दवा लूंगा। डाक्टर का यह भी कहना है कि एहतियातन आप चाहें तो न्यूनतम मात्रा वाली दवा आप लेते रह सकते हैं।
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विकसित देशों में हेल्थ को लेकर मानक व व्यवस्था बहुत अधिक जवाबदेह व अनुशाषित होती है। इसलिए अपनी मर्जी से मनचाहे निर्णय नहीं लिए जा सकते हैं। जो भी होता है वह आपके पंजीकृत डाक्टर की अनुमति से होता है।
मेरे लिए खुशी की बात है कि मैं दुनिया के उन अपवाद प्रतिशत लोगों में आ गया हूं, जिनको गंभीर हार्ट-अटैक पड़ने के बाद। पूरी दुनिया में मानक रूप में दी जाने वाली दवा बंद की जा रही है। बहुत लोग ऐसे होते हैं जो बिना डाक्टर की अनुमति के ही दवा लेना छोड़ देते हैं, उनकी बात नहीं कर रहा हूं।
मैं तो अपने पंजीकृत डाक्टर से रूटीन रूप में मिलने गया था, कोविड कि पांचवी बूस्टर वैक्सीन लगवाना था, एक दो वैक्सीन और लगवानी थी। लेकिन मेरी ओर से कोई प्रस्ताव दिए बिना ही डाक्टर ने अपनी ओर से स्वयं ही दवा हटाने का प्रस्ताव रख दिया। जिस दवा को बंद करने की बात हो रही है, वह दवा लेते रहने से कोई हानि नहीं है, सिवाय़ इसके कि यदि बहुत लंबा जीवन जीना है तो यह दवा अवरोध पैदा कर सकती है।
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विवेक उमराव

12/05/2024

*मांसपेशियों व हड्डियों का समृद्ध होना* ::
लगभग एक वर्ष पूरा हो चुका है, 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही सादा पानी के अलावा कुछ खाते/पीते हुए। लगभग ग्यारह महीने हो चुके हैं हर सप्ताह 48 घंटे, फिर हर दो सप्ताह में 75-80 घंटे का सादे पानी पर उपवास रहते हुए। लगभग दस महीने हो चुके हैं, प्रतिदिन लगभग 15 घंटे बिना पानी के भी रहते हुए।
जनवरी 2022 में मेरे शरीर का वजन 87 किलो से अधिक था, जो लगभग पंद्रह महीनों में घटकर लगभग 50 किलो हो गया। जिन लोगों ने मुझे देखा है जब मैं 87 किलो या 75 किलो का था। भारत में जिन लोगों ने भी मुझे 2012 के बाद देखा है, उन्होंने मुझे कम से कम लगभग 75 किलो के वजन का ही देखा होगा।
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मेरे पैरों, हाथों, कंधो व पेट की मांसपेशियां कभी भी इतनी मजबूत व समृद्ध नहीं रहीं जितनी कि आज हैं, लगातार बेहतर होती जा रहीं हैं। पैरों व कंधों की मांसपेशियां तो स्पष्ट रूप से खूबसूरत व मजबूत दिखाई देने लगी हैं। हड्डियां तो मजबूत होती जा ही रहीं हैं। शरीर की दक्षता व इंडुरेंस बहुत अधिक बढ़ गई है।
इससे एक बात समझ आती है कि बार-बार ठूंसते रहने से मांसपेशियों व हड्डियों की समृद्धि नहीं होती है, यह भी समझ आता है कि शरीर से चर्बी रूपी वजन घटने का मतलब मांसपेशियों व हड्डियों का कमजोर होना नहीं होता है, उल्टे चर्बी घटने से मांसपेशियों व हड्डियों के समृद्ध होने की संभावना बनती है।
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विवेक उमराव

11/05/2024

भारत आने के बाद, स्वास्थ्य पर विस्तृत किताब प्रकाशित करने के बाद (थोड़ा बहुत प्रयास समानांतर भी चलेगा), कृषि, कृषि-कुटीर-उद्योग, ग्रामीण-कुटीर-उद्योग इत्यादि उत्पादों के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग-श्रृंखला विकसित करने कि योजना है। कई वर्षों से सिद्धांत स्तर पर तैयारी चल रही है, प्रायोगिक स्तर पर हिचकोले लेते हुए कुछ-कुछ हो रहा है।
कई ऊर्जावान व विशेषज्ञता से पढ़े लिखे युवा हैं, जो बड़ी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने का अनुभव ले चुके हैं। इस तरह के काम को अपना प्रोफेशन बनाने की इच्छा रखते हैं। इन युवाओं के साथ मिलकर इस तरह की योजनाओं को धरातल पर सफलता पूर्वक करने की प्रतिबद्धता है।
लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुद्ध जैविक खाद्य पदार्थों का उत्पादन व आपूर्ति की व्यवस्था पर भी पिछले कुछ वर्षों से काम चल रहा है। स्थानीय स्तर पर मार्केटिंग सफलता पूर्वक चल रही है, अब राष्ट्रीय स्तर के मार्केटिंग फेज में आना है। कुछेक उत्पादों की आपूर्ति योरप व अमेरिका में भी की जाती है।
आशा है कि इस तरह के रोजगारपरक व आर्थिक विकास के जमीनी कामों में भी आपका सहयोग व तालमेल प्राप्त होगा।
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विवेक उमराव

10/05/2024

कल मैं सुबह/रात में दो बजे के लगभग जगने के बाद, लगभग तीन बजे से 15 किलो के डंबल से दो घंटे व्यायाम किया, डेढ़ घंटे बिना डंबल के भारी व्यायाम किया। फिर 20 किलोमीटर पैदल चला। फिर खाना खाया, खाने में तीन बड़े चम्मच शहद, दूध, 6 रोटियां, सब्जी, केला, गुड़, मिठाई तथा फल बादाम इत्यादि खाया। मतलब यह कि कल अच्छी खासी मात्रा में मीठा खाया। खाना खाने के डेढ़ घंटे (दो घंटे नहीं, दो घंटे से पहले) बाद ब्लड-शुगर चेक किया, ब्लड-शुगर 112 mg/dL निकली। 24 घंटे में केवल एक बार ही आहार लेता हूं, शेष केवल सादा पानी पीता हूं, कल खाने के डेढ़ घंटे के बाद आज सुबह जागने के बाद ब्लड-शुगर चेक किया, 82 mg/dL निकली।
ऐसा नहीं है कि कल ही ऐसा किया। व्यायाम करने का इस तरह का रूटीन मेरा, प्रतिदिन का रहता है। पिछले अनेक हफ्तों से ब्लड-शुगर के लिए अनेक प्रकार के कांबिनेशन करके देख रहा हूं कि क्या अंतर रहता है। कल ब्लड-शुगर की जांच इसी का एक हिस्सा थी।
सुबह बिना कुछ खाए, अच्छा खासा व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं, एक बड़ा लाभ ब्लड-शुगर पर नियंत्रण व शरीर का इंसुलिन-रेसिस्टेंस से बाहर निकल कर इंसुलिन-सेंसटिविटी की ओर बढ़ना भी होता है। बशर्ते कम से कम 16-18 घंटा का उपवास प्रतिदिन रखा जाए।
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विवेक उमराव

07/05/2024

पहला स्वास्थ्य व जीवनशैली शिविर नवंबर/दिसंबर 2025 से शुरू होने की संभावना है।
वर्ष में केवल एक ही स्वास्थ्य व जीवनशैली शिविर होगा। 2025 के बाद के वर्षों में प्रतिवर्ष होने वाले स्वास्थ्य व जीवनशैली शिविरों के लिए —
आवेदन जनवरी से मार्च महीने तक। जो आवेदन आएंगे, उन लोगों से हम लोग कई दौर बातचीत करेंगे, उनकी जीवनशैली समझेंगे, समझेंगे कि उनको स्वास्थ्य व जीवनशैली शिविर में आना चाहिए या नहीं। जून महीने तक हमारी ओर से कन्फर्म होगा। जुलाई महीने तक अग्रिम भुगतान करना होगा। ताकि जो लोग शिविर के लिए आएंगे उनके पास यात्रा की तैयारी के लिए कुछ महीने का समय हो ट्रेन या फ्लाइट इत्यादि का रिजर्वेशन करवाने के लिए। हमारे पास भी पर्याप्त समय हो, आगंतुकों की व्यवस्था करने के लिए।
शिविर में आने वाले लोगों के लिए एक महीना, दो महीना, तीन महीना समय अवधि वाले केवल तीन विकल्प होंगे। स्वस्थ जीवनशैली की आदत डालने के लिए कम से कम लगभग एक महीना का समय तो दिया ही जाना चाहिए। जीवनशैली व स्वास्थ्य शिविर का चरित्र होटल या रिसार्ट जैसे चरित्र का नहीं होगा, कि दो-चार-पांच दिन के लिए घूमने घामने चले आए। जो स्वास्थ्य व जीवनशैली के प्रति गंभीर होंगे, उन्हीं लोगों को आमंत्रित किया जाएगा।
शिविर में दो लोग आएं या शिविर के सभी स्थान भर जाएं। लोगों की संख्या कम होने पर शिविर निरस्त नहीं किया जाएगा। शिविर का आयोजन किया जाएगा।
2025 वाले शिविर के लिए आमंत्रण-आवेदन की शुरूआत, हेल्थ-किताब प्रकाशित होने के बाद ही होगी। इसलिए अभी से यह नहीं कहा जा सकता कि आमंत्रण-आवेदन की शुरुआत कब होगी। वैसे मेरा प्रयास रहेगा कि इस वर्ष 2024 में किताब का प्रकाशन हो जाए, या अधिकतम जनवरी/फरवरी 2025 तक तो हो ही जाए।
बीच-बीच में शिविर के संदर्भ में कुछ-कुछ चर्चा होती रहेगी, ताकि आपको भी याद रहे, हम लोगों को भी याद रहे।
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विवेक

06/05/2024

शरीर की जो अपनी प्राकृतिक परिभाषा होती है, उसके अनुसार "मील" का मतलब ऐसी कोई भी वस्तु कितनी भी कम मात्रा में ली जाए जिसमें कैलोरी/फैट/प्रोटीन/कार्ब्स हो। मतलब यह कि नमक, पानी, सप्लीमेंट्स, एलोपैथ दवा, इत्यादि को छोड़ कुछ भी खाइए/पीइए, मील की श्रेणी में आता है।
दिन का अंतिम मील व अगले दिन के पहले मील के बीच कम से कम 16 घंटे का अंतर रखना चाहिए। दिन में अधिकतम दो मील लेना चाहिए।
दिन के अंतिम मील व बेडटाइम के बीच में कम से कम लगभग चार घंटे का अंतर रखना चाहिए। सुबह बिस्तर छोड़ने व दिन के पहले मील के बीच में कम से कम लगभग चार घंटे का अंतर रखना चाहिए।
दिन का पहला मील लेने के पहले लगभग डेढ़ से दो घंटे तेज चाल से पैदल चलना चाहिए या साइकिल चलाना चाहिए या रेसिस्टेंट ट्रेनिंग करना चाहिए।
हफ्ते में एक बार लगभग 36 घंटे का सादे पानी पर उपवास रखना चाहिए। यदि हर हफ्ते वही दिन चुनते हैं तो शरीर की जैविक घड़ी उसी अनुसार ढल जाती है तो समय के साथ धीरे-धीरे शरीर मील की अपेक्षा करना बंद कर देता है।
महीने या डेढ़-दो महीने में एक बार लगभग 75 घंटे का सादे पानी पर उपवास रखना चाहिए।
उपवास में पानी पीते रहना चाहिए, सामान्य दिनों की तुलना में अधिक पानी पीना चाहिए।
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विवेक उमराव

06/05/2024

जिस स्वास्थ्य शिविर वाले कैंपस की बात मैंने लगभग दो दिन पहले की थी। उसी कैंपस के संदर्भ में, कुछ और जानकारी।
मिट्टी, बांस, घास-फूस इत्यादि से बनी झोपड़ियां होंगी।
नदी किनारे तंबू में रहने की व्यवस्था होगी।
रोटी बनाने वाले विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियां, फल इत्यादि जैविक होंगे, कैंपस के खेतों में उगाए गए होंगे। कई प्रकार के मसाले भी कैंपस के खेतों में जैविक तरीके से उगाए गए होंगे।
दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर इत्यादि भी कैंपस में ही उत्पादित होगा, जैविक होगा। गाय व बकरी के दूध द्वारा बनाया गया।
साइबेरिया सारस व अन्य अप्रवासी पक्षियों का आनंद होगा। कई प्रकार के जंगली जानवर।
प्रतिवर्ष नवंबर से फरवरी तक केवल तीन महीने के लिए ही कैंपस खुलेगा। ऐसा नहीं होगा कि हर तीन महीने में बैच चलते रहेंगे। प्रतिवर्ष केवल तीन महीने के लिए ही कैंपस में स्वास्थ्य शिविर रहेगा।
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विवेक उमराव

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