04/06/2024
दिसंबर 2020 से तीन वर्षों तक औसतन प्रतिदिन 7 से 8 घंटे विश्व की नामचीन यूनिवर्सिटियों में होने वाले वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन किया, अब भी औसतन कई घंटे प्रतिदिन अध्ययन करता हूं। कई-कई सौ पृष्ठों के लंबे-लंबे कई सौ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन कर चुका हूं, अब भी करता हूं। शारीरिक स्वास्थ्य के संदर्भ में वैज्ञानिक समझ विकसित व परिष्कृत करने के लिए बहुत ही अधिक परिश्रम किया है व करता रहता हूं, ताकि सैकड़ों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में अपना सक्रिय सहयोग कर पाऊं।
स्वास्थ्य के संदर्भ में लोगों को सलाहें देने के लिए प्रतिदिन कई घंटे बिना कोई फीस लिए हुए लोगों से चर्चा करता हूं। कई सौ लोगों का स्वास्थ्य बेहतर कर चुका हूं, इनमें से बहुत लोग तो बहुत ही अधिक बीमार शरीर की स्थिति वाले रहे हैं।
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24 घंटे में औसतन 5 घंटे सोता हूं, अपवाद छोड़ शायद ही कभी 6 घंटे या अधिक सोता होऊं।
24 घंटे में केवल एक बार ही आहार लेता हूं, इसके अलावा किसी प्रकार का कोई स्नैक्स नहीं, कोई नास्ता नहीं, कोई लंच/डिनर नहीं, चाय/काफी नहीं, सिगरेट नहीं पीता, दारू/बियर नहीं पीता।
औसतन एक आम व्यक्ति नास्ता, लंच, डिनर, स्नैक्स, चाय/काफी, दारू/बियर इत्यादि में ही प्रतिदिन का लगभग 2−4 घंटे का प्रयोग करता है (पकाने या बनाने में नहीं, केवल ग्रहण करने की प्रक्रिया में)। मैं प्रतिदिन का औसतन 3 घंटे का समय यहां बचाता हूं।
औसतन लगभग 5 घंटे सोता हूं, जबकि औसतन एक आम व्यक्ति 8−10 घंटे सोता है। मैं प्रतिदिन का औसतन 3−5 घंटे का समय यहां बचाता हूं।
एक भी ऐसा मित्र नहीं है जिसके साथ बैठकर फालतू में गप्पबाजी करने में समय बर्बाद करता होऊं।
शरीर इतना फिट है कि भोजन करने के तुरंत बाद कम से कम घंटा भर पैदल चलता हूं। भोजन के बाद आलस्य नहीं आता। दिन में उनींदापन नहीं रहता। फुर्ती व ताजगी से काम करता हूं। काम करने की दक्षता बहुत बेहतर है।
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एक छोटी सी लेकिन गंभीर बात यह है कि मैं प्रतिदिन के 24 घंटे में लगभग 5−6 घंटे का समय तो भोजन व सोने से ही बचा लेता हूं। इस समय का प्रयोग यदि मैं एक्सरसाइज करने, डंबल करने, पैदल चलने, साइकिलिंग करने इत्यादि में करता हूं तो किसकी भैंस खोलता हूं।
लेकिन यह छोटी सी तर्कसंगत बात भी नीच, टुच्ची, धूर्त, मनोवैज्ञानिक बीमार, छिछली मानसिकता वाले, घटिया सोच वाले लोगों की समझ में बिलकुल भी नहीं आने वाली। नीचता व धूर्तता से परे इनकी कल्पनाशक्ति विचारशक्ति काम ही नहीं करती है।
फालतू में प्रतिदिन अनेक घंटे बर्बाद करेंगे, लेकिन यदि कोई व्यक्ति फालतू समय नहीं खर्च करके जवाबदेही महसूस करते हुए समय का कुशलता से प्रबंधन करते हुए शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कुछ घंटे का समय निकालता है तो इन जैसे लोगों को लगता है कि अगला पलाल है। इनकी नीच मानसिकता इनको अच्छा सीखने व करने से प्रतिबंधित करती है, इसलिए अपनी नीचता को ही गौरव मानकर जीते हैं।
यह बिलकुल उसी तरह की बात है कि क्लाईमेट-चेंज, पर्यावरण पर फर्जी ज्ञान बघारेंगे लेकिन इस संदर्भ में जीवन में एक भी गंभीर काम/प्रयास निरंतरता से नहीं किए होंगे। उल्टे जो लोग गंभीर प्रयास करते हैं उनकी खिल्ली उड़ाएंगे, मीनमेख निकालेंगे। नीचता की कोई सीमा नहीं इन जैसी मानसिकता वालों की।
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विवेक