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Via Sakhuaआदिवासी विद्रोहों के इतिहास में भले ही स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है लेकिन आदिवासी औरतों के बलिदान की गाथा...
27/02/2022

Via Sakhua

आदिवासी विद्रोहों के इतिहास में भले ही स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है लेकिन आदिवासी औरतों के बलिदान की गाथाएं अब भी इतिहास की वस्तु नहीं बन पायी। पहले की तरह आज भी उनके सवाल, उनके मुद्दे हाशिए पर धकेले जाते रहे हैं। विकास विस्थापन और महिलाएँ एक ऐसा ही ज्वलंत और बुनियादी सवाल है।

आज हम छत्तीसगढ़ में होने वाले विस्थापन और संस्कृति में हो रहे बदलावों पर बात करेंगे।

आज शाम 6 बजे सखुआ के फेसबुक पेज पर live

https://www.facebook.com/sakhua.tribalwomen/

आदिवासी विद्रोहों के इतिहास में भले ही स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है लेकिन आदिवासी औरतों के बलिदान की गाथाएं अब भी इतिहास के पन्नों पर जगह नहीं बना पाई है। पहले की तरह आज भी उनके सवाल, उनके मुद्दे हाशिए पर धकेले जाते रहे हैं। विकास विस्थापन और महिलाएँ एक ऐसा ही ज्वलंत और बुनियादी सवाल है।

आज हम छत्तीसगढ़ में होने वाले विस्थापन और संस्कृति में हो रहे बदलावों पर बात करेंगे।

आज शाम 6 बजे सखुआ के फेसबुक पेज पर live

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11/11/2021

The Special Backward Tribes section of the Department of Tribal and Scheduled Castes Development showcased the Baiga tribe by putting up a live display.

My roots, and house and home and forest, my village –All that I had left behind, in the folds of lost time.Where was it ...
18/08/2021

My roots, and house and home and forest, my village –
All that I had left behind, in the folds of lost time.
Where was it that my traces were once alive –?
Medinipur or Bankura or was it Kalahandi?
Where else?
How were the wind, the rain and the dazzle of sunshine?
And the trees and birds and hills – left behind?

Kamal Kumar Tanti writes -

http://adivasiresurgence.com/2017/05/26/long-shadows-reminiscence/

Long Shadows of Reminiscence (1) First showers of the Monsoon, and the earth and sky washed, awash. Green, I am Green. And green is my world. My people too are green. Who am I ? And who are we ? Do…

~ आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति के...
13/08/2021

~ आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति के शिखर में ले जाने का जरिया है| पहले भौतिक पूँजी, फिर मानव पूंजी से जुड़ी आर्थिक सिद्धांतों की शुरुवात 1930-40 से लेकर भविष्य में भी विभिन्न आर्थिक विकास के मॉडल की बात करना भौतिक और मानव पूंजी की चर्चा के बिना संभव नहीं है. ये आलेख मानव पूंजी निर्माण को लेकर झारखण्ड सरकार के द्वारा शुरु किये गए ‘ मरंङ गोमके जयपाल सिंग मुण्डा परदेशीय छात्रवृत्ति योजना‘ की विस्तृत जानकारी के साथ छात्रों को किस प्रकार से लाभ उठाना चाहिए उसके बारे में है. जयपाल सिंग मुण्डा की उच्च शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी और भारत लौटने के बाद उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों को लेकर संविधान सभा में प्रभावपूर्ण बात रखी थी.पहली बात, प्रतिभावान जयपाल सिंग मुंडा के नाम पर इस परदेशीय छात्रवृति योजना का नाम रखना उच्च शिक्षा और मानव पूंजी की कद्र है, दूसरी बात झारखण्ड के 21 वीं सदी के आदिवासी छात्रों को विदेश में पढ़ने का अभूतपूर्व मौका| 28 दिसंबर 2020 को इस छात्रवृति की घोषणा की गयी थी. वैसे, अगर आपने एडमिशन प्रक्रिया में अभी तक प्रवेश नहीं किया है या एडमिशन का ऑफर लेटर नहीं मिला है, या IELTS, TOEFL, GRE इत्यादि नहीं दिया है तो इस साल आप देर कर चुके हैं. अगर आप देर कर चुके हैं तो अगले साल के लिए तैयारी अभी से शुरू करें.

यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है.

Ganesh Majhi

https://bit.ly/3zHFJ7B

आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति ...

Historically, tea garden workers in West Bengal and Assam have been living in vulnerable conditions that include exploit...
08/08/2021

Historically, tea garden workers in West Bengal and Assam have been living in vulnerable conditions that include exploitative wages, inadequate water and sanitation facilities and poor investment in education and healthcare. These have been further aggravated by the current pandemic and lockdown. The central and state governments’ lack of political will to uphold the fundamental right to life of the tea garden workers is appalling and shameful. And the owners of the tea gardens who have minted wealth over decades by exploiting workers and their families are least bothered to support and help them in this time of need.

The number of people testing positive for COVID-19 is increasing exponentially around the world and in India. Foreign countries and state governments in India have taken a variety of steps to deal with the pandemic. However the manner in which the Modi government is managing the pandemic shows that neither he nor does his government care for the people living in poverty.

In unparalleled times like these, governments must ensure that workers, including temporary workers, are paid in full during the lockdown. While the pandemic certainly requires social distancing and a planned lockdown, the survival of tea garden workers and other marginalized communities also necessitates the sharing of resources by individuals and companies who have historically looted and exploited Adivasi communities in tea gardens for generations."

Christopher Nag writes:

http://adivasiresurgence.com/2020/04/15/markets-closed-no-work-or-money-at-home-how-the-covid-19-lockdown-is-affecting-tea-garden-workers-in-west-bengal/

The COVID-19 pandemic has wreaked havoc across the globe in the past three months, causing over one lakh deaths worldwide so far, with over 19 lakh people being tested positive. In India, the numbe…

जंगलों को काटकर सड़क बनाने वाले तुम,जंगलों में आग लगाकर अपनी रोटी सेंकने वाले तुम,यहां रहने वालों को जंगली, असभ्य,पिछड़ा...
06/08/2021

जंगलों को काटकर सड़क बनाने वाले तुम,
जंगलों में आग लगाकर अपनी रोटी सेंकने वाले तुम,
यहां रहने वालों को जंगली, असभ्य,पिछड़ा कहने वाले तुम..
फिर कैसे कह दिये कि यह जंगल तुम्हारा है?
लेकिन इस जंगल की रक्षा करने वाले हम,
उसकी व्यवस्था में चलने वाले हम,
उसकी धरोहर को बचाने वाले हम,
क्योंकि हमारे याया बुबा ने कहा है कि यह जंगल हमारा है.

रीना गोटे लिखती है -

(पूरी कविता पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)

http://adivasiresurgence.com/2018/12/20/इसका-उसका-नही-ये-जंगल-हमार/

Featured Image courtesy : Souparno Chatterjee, PRADAN मेरे याया बुबा ने कहा कि यह जंगल हमारा है, उनके याया बुबा ने कहा था कि यह जंगल हमारा है, उनके भी य.....

सवाल ये भी है कि आदिवासी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 1 मई को जारी आदेश के अनुसार संशोधित दरों पर  राज्य के अंदरूनी इलाको ...
02/08/2021

सवाल ये भी है कि आदिवासी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 1 मई को जारी आदेश के अनुसार संशोधित दरों पर राज्य के अंदरूनी इलाको में वनोपजों की बिक्री हो रही है या नहीं उक्त आदेशनुसार 49 प्रकार के वनोपजों के दामो में वृद्धि की गई है. जबकि ज्यादातर जगहों पर पुरानी दरों की लिस्ट का संशोधन वन विभाग द्वारा नहीं किया गया है. उपरोक्त तथ्यों से ये समझ बनती है कि आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं है. आपके लिए आपकी सरकार ही काफी है पूंजीवादी व्यवस्था थोप कर आपको लूटने के लिए.

छत्तीसगढ़ वन विभाग के 16 अप्रैल के सर्कुलर के हिसाब से राज्य से लगभग 16.71 लाख मानक बोरे तेंदू पत्तों की खरीद होनी थी इससे लगभग 13 लाख परिवारों को सीधे तौर पर राशि मिलनी थी. किंतु बस्तर संभाग के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का लगातार आरोप रहा है कि सरकार ने तेंदू पत्ता संग्रहण के दिनों में कटौती की है. जहाँ लोग लगभग 7 से 10 दिनों तक पत्ते एकत्रित करते थे, वहीं इस बार परिवारों को सिर्फ 3 दिनों की मोहलत दी गई, जिससे पत्ते जंगलो में बचे रह गए."

Anubhav Shori लिखते हैं:

http://adivasiresurgence.com/2020/05/22/%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%95-%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%89%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b8/

फ़ोटो : तुरी समुदाय का एक व्यक्ति 1996 में बांस की टोकरी बुनता हुआ. (बीजू टोप्पो द्वारा) COVID-19 महामारी से निपटने के लिए कें...

02/08/2021

New Zealand’s Prime Minister Jacinda Ardern formally apologised to Pacific communities for the racially-targeted “Dawn Raids” that took place in the 1970s.

~ आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति के...
28/07/2021

~ आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति के शिखर में ले जाने का जरिया है| पहले भौतिक पूँजी, फिर मानव पूंजी से जुड़ी आर्थिक सिद्धांतों की शुरुवात 1930-40 से लेकर भविष्य में भी विभिन्न आर्थिक विकास के मॉडल की बात करना भौतिक और मानव पूंजी की चर्चा के बिना संभव नहीं है. ये आलेख मानव पूंजी निर्माण को लेकर झारखण्ड सरकार के द्वारा शुरु किये गए ‘ मरंङ गोमके जयपाल सिंग मुण्डा परदेशीय छात्रवृत्ति योजना‘ की विस्तृत जानकारी के साथ छात्रों को किस प्रकार से लाभ उठाना चाहिए उसके बारे में है. जयपाल सिंग मुण्डा की उच्च शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी और भारत लौटने के बाद उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों को लेकर संविधान सभा में प्रभावपूर्ण बात रखी थी.पहली बात, प्रतिभावान जयपाल सिंग मुंडा के नाम पर इस परदेशीय छात्रवृति योजना का नाम रखना उच्च शिक्षा और मानव पूंजी की कद्र है, दूसरी बात झारखण्ड के 21 वीं सदी के आदिवासी छात्रों को विदेश में पढ़ने का अभूतपूर्व मौका| 28 दिसंबर 2020 को इस छात्रवृति की घोषणा की गयी थी. वैसे, अगर आपने एडमिशन प्रक्रिया में अभी तक प्रवेश नहीं किया है या एडमिशन का ऑफर लेटर नहीं मिला है, या IELTS, TOEFL, GRE इत्यादि नहीं दिया है तो इस साल आप देर कर चुके हैं. अगर आप देर कर चुके हैं तो अगले साल के लिए तैयारी अभी से शुरू करें.

हाल के अधिसूचना के आधार पर, 2021-22 सत्र में ‘ मरंङ गोमके जयपाल सिंग मुंडा छात्रवृति‘ के लाभ लेने की अंतिम तिथि 31 जुलाई 2021 है, और जिस प्रकार से छात्रों की तैयारी है वो इस बार शायद काफी लोग इस लाभ से वंचित हो जायेंगे. कई छात्रों से सोशल मीडिया में रूबरू होने के बाद पता चला की इस छात्रवृति को लेने की प्रक्रिया से अवगत नहीं है, जबकि तमाम चीजों के बारे में अधिसूचना में ही बता दी गयी है| ये छात्रवृति निम्नलिखित विश्वविद्यालय के लिए ही लागू होंगी — ऑक्सफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स, इम्पीरियल कॉलेज लंदन, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग, किंग्स कॉलेज लंदन, एस.ओ.ए.एस. यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन, मेनचेस्टर, वारविक, ब्रिस्टल, रीडिंग, ससेक्स, बॉर्नमाउथ, लॉफबॉरोफ विश्वविद्यालय। ये सारे विश्वविद्यालय मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन में है| इन विश्वविद्यालयों में मुखतः 22 विषयों में से किसी एक की पढाई कर सकते हैं जो निम्नवत है — मानवविज्ञान/ समाजशास्त्र, कृषि, कला एवम संस्कृति, जलवायु परिवर्तन, डेवलपमेंट स्टडीज, गवर्नेंस, अर्थशास्त्र, शिक्षा, पर्यावरण विज्ञान, वन संरक्षण, विश्व शांति, सुरक्षा और गवर्नेंस, अंतराष्ट्रीय सम्बमेडिसिन न्ध/ राजनीति शास्त्र, कानून और मानव अधिकार, मीडिया और संचार, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक हेल्थ, पब्लिक पालिसी, विज्ञान और अन्वेषण, स्पोर्ट्स मेडिसिन और प्रबंधन, टूरिज्म एवं हॉस्पिटैलिटी, सस्टनेबल डेवलपमेंट, अर्बन एवं रीजनल प्लानिंग, वीमेन स्टडीज/ जेंडर स्टडीज.

इस छात्रवृति योजना के लिए सरकार ने 10 करोड़ आबंटित किये हैं और हर साल 10 आदिवासी छात्रों को विदेश भेजने की योजना है. खास बातें जो छात्रों को ध्यान देनी है, वो हैं — व्यक्तिगत प्रयास करके पहले खुद इन विदेशी विश्वविद्यालयों के दाखिला प्रक्रिया में प्रवेश करें. दाखिला प्रक्रिया की पहली शुरुवात दिसंबर में होती है, फिर मार्च और अंतिम बचे सीट के लिए जून में आवेदन होते हैं. सारी प्रक्रिया ख़त्म होने और दाखिला होने के बाद लगभग सितम्बर में क्लास की शुरुवात होती है. दिसंबर महीना को लक्ष्य करके चलने का मतलब है कम-से-कम आपको सितम्बर महीना में तैयारी शुरू कर देनी है, जैसे — आपके सारे प्रमाणपत्र तैयार होना चाहिए, इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम (IELTS), या टेस्ट ऑफ़ इंग्लिश एज ए फॉरेन लैंग्वेज (TOEFL) के बढ़िया स्कोर आपके पास होनी चाहिए और किसी-किसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन (GRE) के बढ़िया स्कोर भी आपके पास होनी चाहिए. इन सारी परीक्षाओं की तैयारी आप खुद भी कर सकते हैं, या कोचिंग का सहारा भी ले सकते हैं. गंभीर रूप से तैयारी करने में 3-6 महीने लग सकते हैं. आप अपने समय सारणी बढ़िया से देख लें. प्रमाण पत्र, बायोडाटा, इंग्लिश टेस्टिंग स्कोर इत्यादि के अलावा आपको उस विश्वविद्यालय में जाने के लिए ‘स्टेटमेंट ऑफ़ परपस’, या ‘परसनल स्टेटमेंट’ भी लिखने होंगे। इन तमाम चीजों की जानकारी भी इंटरनेट में आसानी से उपलब्ध है. एक और खास बात, आप जिन-जिन विश्वविद्यालय में आवेदन करने वाले हैं, सारे का विस्तृत जानकारी जैसे — कौन सा विषय में आवेदन कर रहे हैं, फैकल्टी कौन और कैसे हैं, अंतिम तिथि इन सारी चीजों का साफ़ तौर पर एक एक्सेल शीट बना लें.

छात्रवृति आवेदन और इसकी अधिसूचना में स्पष्ट तौर पर लिखा है की जो लोग दाखिला ले चुके हैं या दाखिला के लिए ऑफर लेटर मिल चुका है उनको प्राथमिकता दी जाएगी फिर जो लोग इंग्लिश टेस्टिंग परीक्षा में अच्छा स्कोर किये हैं उनको मौका दिया जायेगा. ये छात्रवृति पाने वाला सदस्य अपने परिवार का पहला व्यक्ति होना चाहिए तथा राज्य या देश में किसी मंत्री का बेटा/ बेटी नहीं होना चाहिए. साथ ही अगर किसी प्रकार की गड़बड़ी, जैसे – कोर्स बदलाव, उपलब्ध कराये गए दस्तावेज गलत पाए जाते हैं तो 10% चक्रवृद्धि ब्याज के साथ सरकार आपको दिए गए रकम की वसूली करेगी. विस्तृत जानकारी के लिए 28 दिसंबर 2020 की अधिसूचना जरूर देखें जरुरत पड़ने पर हमारे ईमेल में भी संपर्क किया जा सकता है. इसी प्रकार की योजना अन्य राज्यों में भी लाने की जरुरत भी है. ~

यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है.

Ganesh Majhi

https://bit.ly/3zHFJ7B

आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूंजी के साथ मानव पूंजी का होना नितांत आवश्यक है| इन दोनों पूंजियों का संचय देश को प्रगति ...

In 1925, recognising the need for Santali to have its own script, Pandit Raghunath Murmu, a Santal teacher and writer, c...
26/07/2021

In 1925, recognising the need for Santali to have its own script, Pandit Raghunath Murmu, a Santal teacher and writer, created the “Ol Chiki” script. He also wrote songs, plays and textbooks using the script. Santal leaders fought for many decades demanding official recognition for the language. This struggle came to fruition on 22 December 2003, when the language was placed in the 8th schedule of the Indian Constitution and became an official language of the country.”

Shefali Hembram writes:

http://adivasiresurgence.com/2021/01/20/the-journey-of-santali-from-script-less-to-official-language/

Image: A snapshot of Santali version of Wikipedia that was launched in August 2018. It was also the first tribal language in the country to get it’s own Wikipedia edition. Language is essenti…

On the 165th anniversary of Santal Hul rebellion:"According to some research scholars, Phulo and Jhano ran into the enem...
27/04/2021

On the 165th anniversary of Santal Hul rebellion:

"According to some research scholars, Phulo and Jhano ran into the enemy camp of soldiers, under cover of darkness and, wielding their axe, they eliminated 21 soldiers. Their share of revolutionary fervour was great contribution to the uprising. It bolstered the spirit of their comrades. They form the group of tribal heroines who fought alongside their men folk and laid down their lives.

The role of tribal women in tribal freedom movements cannot be negated. The history of Jharkhand and its identity cannot be complete without the revolutionary role of women in the arena. But, it is not often that these women are honoured or even remembered.

Researcher Vasavi Kiro of Chotanagpur, Jharkhand, India, in her booklet Ulgulan ki Aurathen (Women of Revolution) records the following heroines who were martyred for the cause of freedom and tribal identity. Phulo and Jhano Murmu in the Santal Uprising of 1855-56; Maki, Thigi, Nagi, lembu, Sali and Champi and wives of Bankan Munda, Manjhia Munda and Dundanga Munda in the Birsa Munda Ulgulan 1890-1900; Devmani alias Bandani in Tana Andolan (1914); and Singi Dai and Kaili Dai in Rohtasgarh Resistance (Oraon women dressed as men and fought the enemy attack)."

http://www.adivasiresurgence.com/phulo-murmu-and-jhano-murmu-the-adivasi/

P. A. Chacko writes

By : P.A. Chacko The article is republished from tribaldarshan.com and can be accessed here. Phulo Murmu and Jhano Murmu are little known as heroic revolutionary fighters even among their own Santh…

"जैसे-जैसे देश का जीएसटी बढ़ता जा रहा है, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए आजादी के बाद बने भारतीय संविधान में मौजू...
26/04/2021

"जैसे-जैसे देश का जीएसटी बढ़ता जा रहा है, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए आजादी के बाद बने भारतीय संविधान में मौजूद कानून को तोड़ कर दुनिया के बाजार के हिसाब से कानून में संशोधन किया जा रहा है. अब देश के किसानों के लिए भारतीय संविधान में जो प्रावधान थे, उनको अंतराष्ट्रीय कानूनों के साथ जोड़ा जा रहा है. अब यह भारतीय कृषि नीति नहीं, राष्ट्रीय कृषि नीति कहलाएगी. अब सभी कानून अंतराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से होंगे; शिक्षा नीति और स्वास्थ्य नीति सहित जिंदगी की तमाम सेवाएं सरकार द्वारा नहीं बल्कि निजी उद्योग घरानों के हाथों होंगी. निजी उद्योग घरानों का पहला लक्ष्य – मुनाफा कमाना है. मुनाफ़ा कमाने की होड़ में रोज़गार और सामाजिक संबंध के बीच कोई मानवीयता का संबंध नहीं रहा है, वहीं उत्पादन और गुणवता बढ़ाने के नाम पर मशीनी करण के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जा रही है.

विकास के रास्ते आज हम यहां पहुंच गये हैं कि जंगली जानवरों के रहने के लिए जंगल सुरक्षित नहीं है, न ही जंगल में जानवरों के लिए भोजन, पानी मिल रहा है. हाथी को मूलतःपीपल के पत्ते, उसकी छाल, जंगली घांस, बरगद के पत्ते, उसकी छाल, केले के पत्ते, केला आदि पसंद है. जंगल में अब न तो बरगद रह गए हैं, न पीपल, न केला. अब बरगद, पीपल और केला आदि है तो गांव में ही बचे हैं. जानवरों के लिए चरने के लिए भी जंगल नहीं बचा, यही कारण है कि अब सभी जंगली जानवर गांव पहुंच जा रहे हैं. हाथी का भोजन अब गांव में किसान के फसल, किसानों के घरों का अनाज, कटहल है. अब हाथी गांव गांव पहुँचकर हडिया पी रहा है और शराब के लिए तैयार महुंआ से अपना पेट भरने को मजबूर है. अब यह गलती किसकी है?"

http://www.adivasiresurgence.com/कोरोना-वायरस-महामारी-असन/

COVID -19 या कोरोनावायरस महामारी ने विश्व भर में संकट की स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें अब तक तीन लाख के ऊपर जानें गयी हैं. इस...

यह देखा जा सकता है कि पढ़े लिखे व्यक्ति से अधिक प्रभावी रूप से गायणे को निरक्षर भील लोग गाते हैं। उनके सांस्कृतिक व्यक्त...
24/04/2021

यह देखा जा सकता है कि पढ़े लिखे व्यक्ति से अधिक प्रभावी रूप से गायणे को निरक्षर भील लोग गाते हैं। उनके सांस्कृतिक व्यक्तित्व को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

भीलों की संस्कृति ही इतनी समृद्ध है कि भील अपनी भाषा में गीत गाते हैं, नाचते जाते है। भीलों द्वारा गायणा का आयोजन ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण प्राणियों के हित में गाये जाते है। जीव उत्पत्ति की अवधारणा अर्थात परिकल्पनाओं से लेकर वर्तमान समय तक को मौखिक रूप से गायणा में प्रस्तुत किया जाता है। जो व्यक्ति यह कथा गाकर सुनाता है, उसके गीत को ढाक वादन के साथ गायणा कहते हैं। इस गायणे पर जो बड़वा नाचते हुये नृत्य करता है, उसे बड़वा ख्याल की गाथा भी कहा जाता है। जिन्हें गायणा की सम्पूर्ण मौखिक जानकारी होती है। वे समूह में ढाक (डमरू के आकार का वादय यंत्र) बजाकर गायणा के गीत गाते है और जब तक गायणा के प्रारंभ से लेकर उसके आखिरी तक गाया जाता है। गायणा के समय बीच-बीच में बड़वा को ढाक बजाकर और गीत गाकर रात भर नचाते हैं।

http://adivasiresurgence.com/2019/09/16/भील-दर्शन-एक-परिचय/

फोटो : भीलों के लोक देवता “बापदेव”, जो उनके गांवों में आदिकाल से स्थापित हैं। उन्हे भीली भाषा में “बाबूढा” कहा जाता ...

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