09/11/2024
सर्दियों का मौसम था। महाराज कृष्णदेव अपने कुछ मंत्रियों के साथ किसी काम से नगर से बाहर जा रहे थे। ठंड इतनी थी कि सभी दरबारी मोटे-मोटे ऊनी वस्त्र पहनने के बाद भी काँप रहे थे। चलते-चलते राजा की दृष्टि एक बूढ़े भिखारी पर पड़ी जो हाथ में कटोरा लिए इस कड़कड़ाती ठंड में एक पत्थर पर बैठा काँप रहा था।
भिखारी की ऐसी स्थिति देखकर महाराज से रहा न गया। रथ रूकवाकर पहुँच गए उस स्थान पर जहाँ वह बूढ़ा भीख मांग रहा था। कुछ देर तक राजा कृष्ण देव भिखारी को देखते रहे और फिर अपना कीमती शॉल उतार कर बूढ़े भिखारी को ओढ़ा दिया। महाराज की ऐसी उदारता देख सभी दरबारी व आसपास के लोग राजा की प्रशंसा करते हुए जय-जयकार करने लगे। जब सब लोग महाराज की प्रशंसा करने में लगे थे तब केवल तेनालीरामन ही ऐसा व्यक्ति था जो चुप खड़ा हुआ था। तेनाली को चुप देख राजपुरोहित को बोलने का अवसर मिल गया।
वह तपाक से बोला- क्या बात है तेनालीरामन यहाँ सभी महाराज के इस कार्य की प्रशंसा कर रहे हैं? केवल तुम ही चुप हो। क्या तुम्हें महाराज की उदारता पर कोई संदेह है? तेनाली फिर भी चुप रहे। अब महाराज को भी तेनालीराम की यह चुप्पी खलने लगी। वह वही से वापस राजमहल लौट चले। पूरे रास्ते राजपुरोहित तेनालीराम के विरुद्ध महराज कृष्ण देव को भड़काता रहा।
अगले दिन जब दरबार लगा तो सबसे पहले दरबार में महाराज ने तेनालीराम को संबोधित करते हुए पूछा – लगता है तुम्हें स्वयं पर अधिक घमंड हो गया है। तभी कल तुम चुप चाप खड़े थे। महाराज के पूछने पर भी तेनालीराम कुछ नहीं बोले। अब तो महाराज तिलमिला उठे और तेनाली को एक वर्ष के लिए देश निकाले की सजा दे डाली। सजा सुनाते हुए महाराज ने कहा – “तुम अभी विजयनगर को छोड़कर चले जाओ और जाते समय अन्य सभी कुछ यहीं छोड़कर केवल एक वस्तु अपने साथ ले जा सकते हो। बताओ, तुम क्या साथ ले जाना चाहते हो?” तेनालीरामन ने मुस्कुराते हुए कहा – “महाराज!, आपका दिया दंड भी मेरे लिए पुरूस्कार के समान है। लेकिन आपकी आज्ञा है तो मैं अपने साथ वह शॉल ले जाना चाहता हूं। जो कल आपने उस बूढ़े भिखारी को दिया था।”
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