26/08/2022
✍️स्टूडेंट्स_के_दर्द_की_कहानी✍️
"एक और एग्जाम "
मां की कॉल,,
मां - ट्रेन मिल गई ना बेटा,,
बेटा -हाँ मिल गई,,
मां - बैठने को सीट मिली या नही,, बोला था ,, रिजर्वेशन करा लिया कर !
बेटा -अरे मिल गई सीट पूरा डिब्बा खाली है,,अरे वो रिजर्वेशन जल्दी मे नहीं करा पाया,,
मां- ठीक है,,किसी से लड़ना झगड़ना नही,,और कोई कुछ खिलाए तो खाना मत,,जब पहुंच जाना तो होटल मे रुक जाना, और अच्छी जगह ,,खाना खा लेना,,
बेटा -हां हां पता है,,अरे रुक जाऊंगा,,खा भी लूंगा,,
ये था ,,वो सच जो सबको दिखता है,,,
पर असल मे,,,
वो लड़का,,जो कभी घर मे एक मच्छर काटने पर,, सो नही पाता था,,जो अच्छा खाना ना मिलने पर,,पूरा घर सर पे उठा लेता था,,
वो अब सारी रात स्टेशन मे गुजारने लगा है,,वो भी वहीं सो जाता है,, एक मोहनी नमकीन और बिस्कुट खाकर रात गुजारने लगता है,,
वो अब मां से झूठ बोलने लगा है,,उसे नही पता ,,यही एग्जाम आखिरी है,,या अभी ये सफर और कितना लंबा होगा,, उसे ये भी नही पता,,की एग्जाम देने के बाद,,,,,
जब कोई पूछता है,,कैसा गया?
तो उसे क्या जवाब दे,,
लाखों स्टूडेंट्स बैठते है एग्जाम में,,जिसमे सेलेक्शन सिर्फ कुछ हजार का ही होना है,,पर उम्मीद उन लाखों के परिवारों की टूटती है,,
इन स्टूडेंट्स को तो ये भी नही पता,,की जॉब की तैयारी करते करते,,वो कहां पहुंच गए,,
हार के बाद,,फिर से उठना होगा,, हर बार,,0 से स्टार्ट करना होगा,,,
पता है ,,उसे पता है,, उसे सब कुछ पता है ,, कि वो बेहतर कर रहा है,,पर उसे फिक्र है,,कि क्या होगा ना जाने आगे !!
दही चीनी की बातें तो बहुत पुरानी सी लगती है,,अब यकीन भी नही होता,,क्योंकि ,,स्टूडेंट्स की जिदंगी मे जो कड़वाहट घुली है,, उससे किस्मत तो नही बनती होगी,,
सच कहूं तो बचपन कब निकल गया , पता ही नहीं चला,,घरों से कब जिम्मेदार बनने के सफर मे निकल गए,,या निकाले गए !!
आसान नही होता , उस उम्र में घरों से दूरियां बनाना जिस वक्त हमें उनकी सबसे ज़्यादा जरूरत होती है, आसान नई होता अपने बड़े बड़े सपनों को बुनना,या उन्हे सच बनाने के लिए पूरी दुनिया के खिलाफ खड़ा होना !
जीत के मुसाफिरों के शहर में , सपनों को हकीकत बनाने वाले स्टूडेंट्स के साथ ,कोई खड़ा होना ही नही चाहता,,यहां तक आते आते ना जाने कितना कुछ पीछे छूट जाता है,,वो लोग जिनके होने से हमें उम्मीद मिलती थी,,वो कब बदलते हुए दिखते हैं,,वो कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता,,
फिर से बोलता हूं,,ये बात सिर्फ संघर्ष की नही है,,,क्योंकि स्टेशन मे रात गुजारने वालों को ,,दो समोसों मे 2 दिन के पेपर का आना जाना कर लेना,,संघर्ष से तो नहीं डरे होंगेहोंगे !!
संघर्ष की पहली सीढ़ी तो उसी दिन पार हो जाती है,,जिस दिन मां बोलती है,, तू अपना ध्यान रखना,,एग्जाम तो होते रहते है,,एग्जाम जिंदगी थोड़े ही है....
एग्जाम का सफर,, पता है,,कठिन कब बन जाता है--- जब मां किसी मुहल्ले के लोगों व रिश्तेदारों से बोलती है,,
कि अरे वो .... पड़ने में बहुत होशियार है,,पर एग्जाम के टाइम थोड़ा तबीयत खराब हो गई थी,,तो अच्छे से पड़ नही पाया था,,इसलिए कुछ no. से सेलेक्शन नई हुआ,,,अभी उसके और भी एग्जाम है,,उसमे हो जायेगा,,
सच बोलूं तो ये सब डरावना लगता है,,
अब वो स्टूडेंट्स,, ऐसे दौर मे पहुंच गया है,, जहां रिश्तेदारों से बात करनी बंद कर चुका है,,कोई खास दोस्त भी नही है,,
प्रेम में सिर्फ यादें बची हो,,अब उसे हार जीत से फर्क कम पड़ने लगा है,,क्योकि उसे जिंदगी ने वो सीखा दिया,,जो कभी किताबों मे पड़ाया ही नही गया,,,,
और एक बात... अगर आप इन स्टूडेंट को किसी स्टेशन मे,,ट्रेन मे,,बसों मे, ऑटो मे,,रुके ,पड़े,, थमे देखें तो अगर इनका हौसला ना बढ़ा पाएं,,तो इन्हे कमजोर होने का अहसास मत कराइयेगा,,,
वो स्टूडेंट्स है,, रुकेंगे, उठेगे,फिर कोशिश करेगे,पर हार नही मानेगे,
क्योंकि एग्जाम जिंदगी तो नई है,,,पर अब उसके लिए उससे कम भी नही है। 🙏🏼🙏🏼