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मनुष्य को आनंदित करने वाली लोक साहित्य की परम्परायें इस देश व समाज मे पाई जाती है।लोक साहित्य किसी भी देश और समाज के प्र...
16/01/2024

मनुष्य को आनंदित करने वाली लोक साहित्य की परम्परायें इस देश व समाज मे पाई जाती है।लोक साहित्य किसी भी देश और समाज के प्राचीन रूप को देखने-जानने का सशक्त माध्यम है।यह वाचिक माध्यम है जिसे देश की सभी भाषाओं और बोलियों में देखा जा सकता है।
भारतीय लोक साहित्य भी व्यापक जन समूह की मौलिक सर्जनाओ का परिणाम है।यह लोक काव्य या लोकगीतों तक सीमित न होकर लोगो के जीवन, धर्म,संस्कृति तथा परम्पराओ से भी जुड़ा है।मुहावरे, लोकोक्तिया, लोक कथाएँ व लोकगीत उस समाज को प्रतिबिंबित करती है।किसी भी देश की लोक संस्कृति उस देश के इतिहास का दर्पण होता है।निःसंदेह भारत की लोक संस्कृति विस्तृत और समृद्ध है

हिंदी साहित्य में कृष्ण काव्य परंपरा में कृष्ण ही आकर्षण और भक्ति का केंद्र रहे हैं। मध्ययुगीन सगुण भक्ति के आराध्य देवत...
19/08/2023

हिंदी साहित्य में कृष्ण काव्य परंपरा में कृष्ण ही आकर्षण और भक्ति का केंद्र रहे हैं। मध्ययुगीन सगुण भक्ति के आराध्य देवताओं में श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है। कृष्ण भारतीय पुराण और इतिहास दोनों में सर्वाधिक वर्णित भी हुए हैं ।
श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के आदर्श हैं। उनका व्यक्तित्व अनादि काल से भारतवासियों के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र रहा है। कृष्ण ने अपने बहुआयामी- गरिमामय व्यक्तित्व से सामाजिक संतुलन और दार्शनिक समन्वय का आदर्श प्रस्तुत किया।
समाज और साहित्य की बदलती मान्यताओं के साथ कृष्ण के रूप में भी परिवर्तन होता रहा है। वैदिक साहित्य के वासुदेव कृष्ण, महाभारत के महान् योद्धा, कुशल राजनीतिज्ञ, कर्म योगी तथा तत्ववेत्ता और भागवत् के यशोदा नंदन तथा गोपीबल्लभ कृष्ण ने समन्वित रूप में एक विलक्षण व्यक्तित्व का निर्माण किया। यह विलक्षणता साहित्य में भी दिखाई देती है।
भारतीय जीवन के हर पहलू पर चाहे वह संगीत हो,नृत्य हो, कविता हो, कहानी हो, नाटक हो या मूर्तिकला - चित्रकला हो सब में कृष्ण के जीवन और संदेश की छाप दिखाई देती है। कृष्ण के चुंबकीय व्यक्तित्व और मंत्रमुग्ध कर देने वाली मुस्कान उनके अद्वितीय व्यक्तित्व को दर्शाती है और हम उन से बंधे चले जाते हैं।

*वागड़ के साहित्य की उपलब्धि*राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के आंशिक आर्थिक सहयोग से प्रकाशित बांसवा...
06/06/2023

*वागड़ के साहित्य की उपलब्धि*
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के आंशिक आर्थिक सहयोग से प्रकाशित बांसवाड़ा जिले के बोदिया गांव से श्री विजय गिरी गोस्वामी का लघु कथा संग्रह *टांकलू* राजस्थानी साहित्य के लिए वागड़ की तरफ से एक और योगदान है।यह लेखक का प्रथम संग्रह है। वागड़ की संस्कृति के कई अनछुए पहलुओं को श्री गोस्वामी जी ने अपनी लघु कथाओं के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया है।
इस संग्रह को आशा है सराहा जायेगा व पढ़ा जाएगा।वागड़ के साहित्य को सम्बल प्रदान करने के लिये राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का भी आभार कि उन्होंने नवोदित प्रतिभा को साहित्यिक मंच प्रदान किया।साथ ही इस पुस्तक के लेखक श्री विजयगिरि गोस्वामी जी को भी स्वस्तिकामनाये।

*वागड़ में साहित्य की उपलब्धि* *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से बांसवाड़ा ज...
04/06/2023

*वागड़ में साहित्य की उपलब्धि*
*राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से बांसवाड़ा जिले के बोदिया गांव से *श्री कैलाश गिरी गोस्वामी जी* का काव्य संग्रह *व्हाली म्हारी वागड़ी* प्रकाशित हुआ है। वागड़ की स्थानीय भाषा वागड़ी की कविताओं का यह बहुत अच्छा संग्रह है। यह लेख़क प्रथम संग्रह है ।इन्होंने अपनी बोली का आत्मसम्मान व्यक्त करते हुए इसका शीर्षक भी *व्हाली म्हारी वागड़ी* रखा है। आशा है इसे पढ़ा जाएगा और सराहा जाएगा। वागड़ साहित्य के प्रकाशन को संबल प्रदान करने के लिये बीकानेर की राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी का भी आभार की उन्होंने नवोदित प्रतिभा को साहित्यिक मंच प्रदान किया।साथ ही कैलाशगिरी जी को भी स्वस्तिकामनाये।

प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. कमला जी जैन का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से कवित...
03/06/2023

प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. कमला जी जैन का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से कविता संग्रह *दिवला नेह रा* का प्रकाशन राजस्थानी भाषा के साहित्य के लिए राजस्थानी भाषा में बड़ा योगदान है।राजस्थानी भाषा मे यह काव्य संग्रह राजस्थानी भाषा मे कविता के प्रति पाठकों में अलख जगाने का काम करेगी।

ख्यातनाम कवि और अनुवादक ऋषभदेव के *श्री उपेंद्र जी 'अणु'* का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर* के आं...
02/06/2023

ख्यातनाम कवि और अनुवादक ऋषभदेव के *श्री उपेंद्र जी 'अणु'* का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से नाटक संग्रह *न्यात गंगा* का प्रकाशन राजस्थानी भाषा के साहित्य केलिए वागड़ की तरफ से बड़ा योगदान है। वागड़ की संस्कृति और वागड़ी के संरक्षण के लिए ये नाटक बड़े संबल का काम करेंगे।

प्रसिद्ध लेखक समीक्षक, कवि व अनुवादक *श्री तरुण कुमार जी दाधीच* का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर*...
02/06/2023

प्रसिद्ध लेखक समीक्षक, कवि व अनुवादक *श्री तरुण कुमार जी दाधीच* का *राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर* के आंशिक आर्थिक सहयोग से बाल कथा संग्रह *उड़वा वालो गुब्बारो* का प्रकाशन राजस्थानी भाषा के साहित्य के लिए राजस्थानी भाषा में बड़ा योगदान है।राजस्थानी भाषा मे यह बालोपयोगी कथा संग्रह बच्चों में बाल साहित्य की अलख जगाने में बड़े संबल का काम करेगी।श्री तरुण कुमार जी दाधीच साहब को हार्दिक शुभकामनाएं।

हिंदी में विद्यापति और सूरदास से निसृत कृष्ण साहित्य की सरणि में जीवन मूल्यों का अजस्र प्रवाह देखने को मिलता है । सांस्क...
13/03/2023

हिंदी में विद्यापति और सूरदास से निसृत कृष्ण साहित्य की सरणि में जीवन मूल्यों का अजस्र प्रवाह देखने को मिलता है । सांस्कृतिक- आध्यात्मिक मूल्यों को बिना नकारे जड़ता के प्रतिकार और प्रतिरोध का यह स्वर हर युग में अपनी सार्थकता को व्यक्त करता है । ब्रज की गोचरण सादगी, लीलाओं की सरसता, माधुरी और वात्सल्य की प्रमुदित करने वाली भावानुभूतियों से साहित्य-रसिकों को कृष्ण चरित आकर्षित करता रहा है।यही कारण है कि आदिकाल से लेकर समकालीन हिंदी साहित्य में कृष्ण को केंद्र में रखकर विभिन्न विधाओं में विपुल साहित्य का सर्जन हुआ है।हिंदी गद्य की विविध विधाओं में कृष्ण आधारित रचनाओं द्वारा लेखकों ने युगीन चिंताओं को तत्कालीन विमर्शों में व्यंजित करने का प्रयास किया है। आधुनिक साहित्य में काव्य के अतिरिक्त नाटक, निबंध, उपन्यास, कहानी आदि कई विधाओं में कृष्ण के विविध स्वरूप की आधुनिक युग बोध एवं नवीन उद्भावना लिए हुए हैं । इस प्रकार हिंदी साहित्य में श्रीकृष्ण को भारतीय चिंतन,दर्शन और विमर्श में स्थान प्रदान कर उन्हें परब्रह्म परमेश्वर मानकर अपनी- अपनी भावानुभूतियों के साथ ग्रहण करते हुए वात्सल्य,सख्य और माधुर्य के आधार पर लौकिक जीवन का अभिन्न अंग माना गया है।

राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित मेरे प्रस्तुत कविता संग्रह 'कविता की अनुगूँज' में मेरे मन के वे भाव ...
13/03/2023

राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित मेरे प्रस्तुत कविता संग्रह 'कविता की अनुगूँज' में मेरे मन के वे भाव गुंजायमान हुए हैं जो मेरे अंतरतम में कहीं बहुत गहरे पैठे हैं और अवसर-दर-अवसर उफान मारते हैं। प्रस्तुत कविता संग्रह के माध्यम से सहृदय विभिन्न रसों को अनुभूत कर पाने में समर्थ होगा। इसमें भाव भी है और भक्ति भी। इसमें समाज के विभिन्न वर्ग जैसे फौजी,नारी,बेटी,इत्यादि के भावों की अभिव्यंजना का प्रयास भी किया गया है वास्तव में 'कविता की अनुगूँज' कविता के बहाने से आमजन के हृदय के नाजुक तारों को झंकृत करने का एक छोटा-सा प्रयासभर है।

*रणधर्मी -प्रीत* कहानी है एक युवा की अद्भुत राष्ट्रभक्ति की,एक योद्धा की,जिसके त्याग,शौर्य और अनोखे बलिदान का उदाहरण समू...
13/03/2023

*रणधर्मी -प्रीत* कहानी है एक युवा की अद्भुत राष्ट्रभक्ति की,एक योद्धा की,जिसके त्याग,शौर्य और अनोखे बलिदान का उदाहरण समूचे विश्व इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।सिर कट जाने पर भी युद्धरत रहकर शत्रुदल को दहला देने वाले पराक्रम ने जिसे लोकदेवता के आसन पर प्रतिष्ठित किया।
*रणधर्मी -प्रीत* कहानी है राष्ट्र पर आये संकट का समाचार सुनते ही विवाह मण्डप में अधूरी भांवरों के बीच अपने सुहाग को राष्ट्र की रक्षार्थ समर भूमि में रण हेतु विदा करने अद्भुत साहस की,वीरांगना कृष्णा कुंवर की। *इदं राष्ट्राय स्वाहा*-
तत्कालीन परिस्थितियों में राष्ट्र रक्षा की वेदी पर समर्पित लोकदेवता कल्ला राठौड़ और कृष्णा कुंवर के अधूरे परिणय की लोमहर्षक,अमरगाथा को,मर्यादा एवं शालीनता के साथ पाठकों को परिचित कराने का एक छोटा सा प्रयास है - *रणधर्मी -प्रीत*

वैसे तो ये जीवन क्षणभंगुर है।  जन्म के साथ मृत्यु  भी निश्चित है।जन्म के बाद मौत का समय निर्धारित नहीं है।काल कभी भी किस...
13/03/2023

वैसे तो ये जीवन क्षणभंगुर है। जन्म के साथ मृत्यु भी निश्चित है।जन्म के बाद मौत का समय निर्धारित नहीं है।काल कभी भी किसी के भी प्राण हर लेता है। इसके वाबजूद जीवन का सफर सागर की गहराई व गगन की अनंत ऊँचाई जैसा प्रतीत होता है। मनुज अपना कर्म,बुद्धि और बल का प्रयोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार करता है।इन सबके होते हुवे भी वह रीति-रिवाज़ों, संस्कारों,परिस्थितियों,रिश्तों,आपसी संबंधों,नियमों,कानूनों,अपनी व पारिवारिक परिस्थिति,लोक व्यवहार और जीवन में घटने वाली घटनाओं से भी प्रभावित होता है। कभी वह इन झंझावातों को पार कर जाता है और कभी इनमे उलझ कर संघर्ष करता है। कहीं कर्म की प्रधानता होती और कही भाग्य भी प्रबल नज़र आता है।इस संसार में वैभव ,बल,पद व धन का भी बहुत महत्व है।यहीं पर दया,परोपकार,सेवा व प्रेम का भाव भी पनपता है और यहीं पर,स्वार्थ,घृणा,द्वेष,छल,कपट हिंसा,वैर,काम,क्रोध आदि विकारों का भी जन्म होता है। भौतिकतावादी समाज में नैतिक मूल्यों का तेजी से ह्रास हुवा है। इन्हीं घटित होने वाली घटनाओं का एक छोटा सा अक्ष है *लघु कथा संग्रह है 'नियति '*


*शम्भू दत्त मठपाल*

डॉ. किरण जी आचार्य द्वारा लिखित कहानी संग्रह *बहती हुई औरत* का साहित्य जगत में स्वागत है।*------------------------------...
13/03/2023

डॉ. किरण जी आचार्य द्वारा लिखित कहानी संग्रह *बहती हुई औरत* का साहित्य जगत में स्वागत है।
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वैसे जीवन कहानियों का संग्रह ही तो है, कई-कई कहानियों का संग्रह । अपने आस-पास का हर व्यक्ति अनेक कहानियों का पात्र है, और हम स्वयं भी इससे पृथक नहीं। अनगिनत कहानियाँ वक़्त हर वक्त रचता है। इस कहानी - संग्रह में कुछ मेरी माँ की व कुछ मेरी पीढ़ी कि महिलाओं की मूक-कथाओं को मैंने शब्दों ढाला है।
जीवन रूपी हिमालय से निकली हुई महिलाएँ हर परिस्थित में नदी बनकर बहती रहती हैं, ताकि धरती पर जीवन की सभ्यताएँ सामाजिक नियमों के किनारों के बीच फलती फूलती रहे। कुछ ऐसी महिलाओं की कहानियों का कहानी-संग्रह है, 'बहती हुई औरत'।
*डॉ. किरण आचार्य*

प्रस्तुत आलोचनात्मक पुस्तक *"निर्गुण भक्ति के स्तंभ कबीर और जायसी"* के लेखक *डा.दिनकर दाधीच* ने कबीर और जायसी पर एक उद्द...
26/02/2023

प्रस्तुत आलोचनात्मक पुस्तक *"निर्गुण भक्ति के स्तंभ कबीर और जायसी"* के लेखक *डा.दिनकर दाधीच* ने कबीर और जायसी पर एक उद्देश्यपूर्ण कृति लिखी है। हिंदी साहित्य की विधाओं में आलोचना का अपना अलग ही महत्व है। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक में पाठकों और विद्यार्थियों को पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होगी। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि डा.दिनकर द्वारा लिखित आलोचनात्मक पुस्तक का साहित्य जगत में स्वागत होगा। *राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर* के आलोचना पर प्रकाशन सहयोग से प्रकाशित इस कृति का साहित्य जगत में स्वागत है।

हिंदी साहित्य का भक्ति काल स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है। इस काल में सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति दोनों ने जन मानस को प्रभावित किया। सूर और तुलसी ने जहां भक्ति के आयाम स्थापित किए वहीं कबीर और जायसी ने निर्गुण भक्ति के माध्यम से निराकार का परचम लहराया। एक ओर जहां कबीर ने अपनी वाणी से प्रभावित किया तो दूसरी ओर जायसी ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भक्ति का आधार बनाया।
"निर्गुण भक्ति के स्तंभ कबीर और जायसी" पुस्तक में दोनों कवियों के व्यक्तित्व से लेकर कृतित्व तक पर सामग्री का समावेश हुआ है। इन दोनों कवियों पर लिखी यह आलोचनात्मक पुस्तक शोध छात्रों के अलावा महाविद्यालय में अध्ययनरत स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
*अंकुर प्रकाशन मूल्य 200/-*

*राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर* के आलोचना में प्रकाशन सहयोग से प्रकाशित नवीनतम पुस्तक *गद्य-समालोचना*  लेखक- *डॉ. नीतू...
26/02/2023

*राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर* के आलोचना में प्रकाशन सहयोग से प्रकाशित नवीनतम पुस्तक *गद्य-समालोचना* लेखक- *डॉ. नीतू परिहार* सह आचार्य एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महविद्यालय, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर

*तकनीकी युग में सब कुछ तकनीक के सहारे है निरंतर परिवर्तित होते समय में हम सभी की पसंद भी बदलती रही है। नए से नए की चाह में हमें स्थिर नहीं रहने देती फिर भी आज जो नहीं बदला है वह पुस्तक को हाथ में लेकर पढ़ने का सुख । जो सुख- आनंद किताब को हाथ में लेकर पढ़ने का है, वह लैपटॉप, मोबाइल की स्क्रीन पर पढ़ने में नहीं है*| यह पुस्तक ऐसे ही लेखों का संग्रह है जिनके केंद्र में ऐसी रचनाएँ हैं जिन्होंने मुझे कहीं न कहीं गहरे तक प्रभावित किया। उपन्यास,कहानियाँ,आत्मकथा है सभी समय-समय पर पढ़े। निरंतर पढ़ने और चिंतन करने से पढ़े हुए को समझने की दृष्टि विकसित होती है।इस आलोचनात्मक पुस्तक में यही प्रयास किया गया है।
*अंकुर प्रकाशन,उदयपुर*
मूल्य ₹400/-

स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर कबीर की साखियाँ, सबद और रमैनियाँ पाठ्यक्रम में समाविष्ट हैं। उनका भाव एवं कला सौन्दर्य वि...
18/11/2022

स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर कबीर की साखियाँ, सबद और रमैनियाँ पाठ्यक्रम में समाविष्ट हैं। उनका भाव एवं कला सौन्दर्य विवेचनीय है। उस दृष्टि से 'कबीर: दृष्टि एवं आधार' पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है। कबीर की दार्शनिक दृष्टि में पारिभाषिक शब्दों, गूढ़ अर्थों आदि की सरल भाषा में प्रस्तुति का प्रयास इस पुस्तक में है, साथ ही कबीर के विचारों का अवगाहन भी सम्यक् दृष्टि से करने का प्रयास रहा है, जिससे अध्ययन-अध्यापन में समग्रता बनी रहे।
लेखक के लेखन की प्रेरणा का श्रेय विद्यार्थियों की जिज्ञासा को है,जिन्होंने कबीर के अध्यापन के समय कई मौलिक प्रश्न किए।यह पुस्तक उन सभी विद्यार्थियों एवं अध्यापकों के लिए उपयोगी रहेगी, जो कबीर की वाणी का अध्ययन करना चाहते हैं।
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पुस्तक: कबीर: दृष्टि एवं आधार
लेखक: डॉ. राजेंद्र कुमार सिंघवी
प्रकाशक: अंकुर प्रकाशन, उदयपुर (राज.)
आमंत्रण मूल्य : ₹ 225.00 सजिल्द
संपर्क : 9413528299,
8619857891
मेhttp://xn---ankurprakashan15gmail-215b.com/

नवीनतम प्रकाशन,*"लघुकथाओं का वृहद संसार"* *डॉ.नीता जी त्रिवेदी सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्याल...
12/06/2022

नवीनतम प्रकाशन,*"लघुकथाओं का वृहद संसार"* *डॉ.नीता जी त्रिवेदी सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय,उदयपुर द्वारा सम्पादित है।
बीसवीं सदी में लघुकथाकारों की एक सशक्त पीढ़ी ने अपनी लेखनी से लघुकथा को रचनात्मक ऊंचाइयां प्रदान की है।समकालीन लघु कथाओं में आए परिवर्तन की पहचान का एक लघु प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है इस पुस्तक में संकलित आलेख लघुकथा साहित्य के स्वरूप, परंपरा, विकास एवं महत्व पर अपनी आलोचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हैं।
पुस्तक में प्रस्तुत आलेख इक्कीसवीं सदी के लघुकथा साहित्य एवं विद्धवान साहित्यकारों की आलोचनात्मक दृष्टि, साहित्य में आए विमर्श के स्वर लघुकथा साहित्य की भाषा और नवाचारों साथ ही लघु कथा साहित्य के क्षेत्र में यह पुस्तक शोधार्थियों शिक्षकों एवं विद्वानों व स्कूलों व महाविद्यालय के पुस्तकालयों व जिला पुस्तकालयों के लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साबित होगी।

नवीनतम पुस्तक-जून2022"हिंदी के समकालीन कवि: सर्जना के आयाम" डॉ. नीतू जी परिहार, विभागाध्यक्ष,हिन्दी विभाग,मोहनलाल सुखाड़ि...
11/06/2022

नवीनतम पुस्तक-जून2022
"हिंदी के समकालीन कवि: सर्जना के आयाम" डॉ. नीतू जी परिहार, विभागाध्यक्ष,हिन्दी विभाग,मोहनलाल सुखाड़िया विश्व विद्यालय,उदयपुर द्वारा सम्पादित।इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है कि अलग- अलग कवियों पर 37आलेख संग्रहित कर उन्हें एक साथ सम्मिलित किया जाए इसी दृष्टि से सुधि पाठकों के लिए समकालीन कवियों को पढ़ने का सुअवसर यह पुस्तक प्रदान कर पाएगी।सभी कवियों पर एक साथ सामग्री उपलब्ध हो सके यही ध्यान में रखकर पुस्तक का प्रकाशन हुआ है। पुस्तक जिला पुस्तकालयों,महाविद्यालय व स्कूलों के पुस्तकालयों के लिये एव देश के विश्वविद्यालयों में वर्तमान में शोधकर्ताओं द्वारा शोधकार्य में पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।

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