01/12/2022
परिभाषा
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रंगों से नही
शब्दों से बनाई गई एक तस्वीर होती है
मस्तिष्क के कैनवास पर यथार्थ की
जिसको हर भाषा मे एक सा दिखना होता है
एक अंधेरे कमरे के कोने में
जहा विद्वता और अज्ञानता लिपट कर
एक दूसरे को निहार रहे होते हैं
वहीं कहीं दीवार पर लटकी ये तस्वीर
कई बार खोल देती है अनंत अंतरिक्ष को उड़ान के लिए
और कभी कभी एक खूंटे से बांध देती है विचार को
निराकार को आकार देती है
हमारी दुनिया को एक ही समय मे तरल और ठोस बनाती है
जिसको या तो हम पीते हैं लम्हा लम्हा या फिर
कुरेदते हैं मानो खोज रहे हैं खुद को ही
ये एक परीधि तय करती है हमारे चारों तरफ
बिना ये बताये कि इसके भीतर कब तक रुकना है
और इसको अगर लांघ दिए तो क्या होगा
भय और साहस से परे एक ऐसे बिंदु तक हमे ले जाती है
जो न केंद्र है न किनारा
इसी से निकले हैं सारे संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण
इसी ने गढ़ा है हमारे ईश्वर और धर्म को
विज्ञान भी इसी के विस्फोट से निकला है
और इसी ने बताया है कि हम सब शरीर और भावनाओं से परे
चलती फिरती परिभाषाएं हैं...