29/11/2024
हमर भाषा, हमर शान,
हमर मैथिली, हमर पहचान।
संविधानक मोती जकाँ झिलमिल,
सभ अधिकार केर बनल आधार।
मिथिलाक माटि, जल आ गगन,
संविधानमे होयत सबहक लगन।
नारीक मान, पुरुखक स्वाभिमान,
सभटा राखत अपन संविधान।
लिखल गेल ई पन्ना स्वाभिमानक,
जहिया माटि के गूंज सुनल गानक।
लोकक अधिकार, संस्कृति केर सम्मान,
संविधान देलक सब के समान स्थान।
मखानक झील, सरसोंक खेत,
संविधानमे भेटल सबहक नेत्र।
नव आशा, नव सृजन,
मैथिली मे लिखल ई संविधान।
पढ़ू, बुझू, अपनाओ ई गाथा,
संविधान हमर सभक साथा।
अभिमानसँ कहल अपन पहिचान,
मैथिली संविधान - हमर अभिमान।
कविता का अर्थ:
यह कविता मैथिली भाषा में संविधान की महिमा और महत्व को दर्शाती है। इसमें बताया गया है कि मैथिली केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान और स्वाभिमान है। संविधान को "मोती" के समान बहुमूल्य बताते हुए कहा गया है कि यह सभी अधिकारों का मजबूत आधार है।
मिथिला की धरती, उसके पानी और आकाश से जुड़ी सभ्यता और संस्कृति को संविधान में समाहित किया गया है। इसमें नारी के सम्मान और पुरुष के स्वाभिमान का विशेष ध्यान रखा गया है।
संविधान को एक ऐसी रचना बताया गया है, जो सबको समान अधिकार और सम्मान प्रदान करती है। मिथिला की प्राकृतिक सुंदरता, जैसे मखान के तालाब और सरसों के खेत, को इसमें प्रतीक रूप में जोड़ा गया है।
यह संविधान केवल कानून का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि आशा और सृजन की नई किरण है। अंत में, कविता हमें इसे अपनाने, समझने और इस पर गर्व करने का संदेश देती है, क्योंकि यह हमारी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है।