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Publishing since 2009, Brahm Udghosh is not just a newspaper or magazine. It's all the patriotism, care, defense feeling to secure the originality of the historical societies. Brahm Udghosh not only provides news and information but also places equal, often greater, emphasis on perspective and context to empower the reader.

07/07/2023

मै मानता हूँ कि आप व समूचा संगठन जन्मना ब्राह्मण समुदाय की उन्नति को केन्द्रित करने के लक्ष्य को लेकर चल रहा है, और क्यों न चलें, जब पूरा देश ही जाति समूहों में विभाजित होकर केवल निज हित में सन्निहित है, सारे दल जातिगत, नेता जातिवादी, कायदे कानून इसी आधार पर, सबका दुश्मन ब्राह्मण, तो ब्राह्मण का कौन सोचेगा????
१८५७ की क्रांति ब्राह्मण द्वारा, १९२० से ४७ में स्वतंत्रता सैनानि सर्वाधिक ब्राह्मण और आज़ादी के बाद क्रमशः रसातल में जाता समुदाय, क्यों?????
लेकिन यह भी सोचे कि क्या तुलसी ने मानस कोरे ब्राह्मण के लिए लिखा??? दयानन्द को तो काशी में बड़े पद का उत्कोच था पर उनके सामने वेदोद्धार, धर्मोद्धार व राष्ट्रोद्धार प्रधान था, बौद्धों का अनिश्वरवाद मिटा कर राष्ट्र चिन्तन धर्मोत्थान हेतु आचार्य शंकर, कुमारिल भट्ट, पुष्यमित्र शुंग, तिलक, सावरकर, हेडगेवार सब का लक्ष्य महान धर्म व महान राष्ट्र था।
निश्चय ही ब्राह्मणोद्धार मूल विषय रहें पर क्या कम्युनिस्ट, बामसेफ, चर्च, इस्लाम की वेगवती षड्यंत्रकारी घातक कार्यवाही से निपटने हेतु पंडित अंबेडकर की युक्ति गलत है? sc के निर्माण का कारक इस्लाम को प्रकाशित करना गलत है?
आज की एक पोस्ट भेज रहा हूँ कृपया मार्गदर्शन करें।🙏🏻

06/07/2023

यद्यपि आप सब इतने विद्वान हो कि अधिकांश कॉपी पेस्ट करते हैं, दूसरे का न तो पढ़ते हैं न सार्थक चर्चा बढ़ पाती है।
विगत दिनों किसी महाशय ने विप्र व ब्राह्मणार्थ पर प्रश्न किया पर अटक गया, किसी ने दान व भिक्षा पर स्व विवेक से लिख दिया बस ,समाप्त खैर, ब्राह्मण से पहले ऋषि लिखते है" मनुर्भव", इसे भी छोड़ो " उदयपुर के क़ब्रिस्तानों, मज़ारों, मीरा दातारों की भीड़ देखकर जरा पहचानने का यत्न करें, ये कौन लोग हैं??? इनकी बाजुओं पर बंधी सांकल व ताले देखें होंगे, क्या दर्शा रहे हैं??? हमने इनको जनेऊ चोटी की प्रेरणा देना ठीक नहीं समझा या सीमित समाज का अधिकार मान लिया पता नहीं??? मेरी समझ में चोटी जनेऊ व मेखला प्रत्येक सनातन का अधिकार है, ठीक वैसे ही जैसे टोपी व सुन्नत केवल शेख सय्यद का ही नहीं बल्कि मुगल पठान भिश्ती बावर्ची कसाई सबका हक है? आप क्या समझते हो???
ऐसा ही- क्रोस व बपतिस्मा भी रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेन्ट, ऑर्थोडॉक्स सबका हक है, मुझे पता है ग्रुप शान्त रहेगा पर मेरा कर्तव्य मैने पूरा किया॥ नमस्ते ॥

20/02/2023

रुप यौवन सम्पन्ना, विशाल कूल सम्भवा।
विद्याहीना न शोभन्ते, निर्गन्धा एव किंशुका॥
अर्थात् चाहे व्यक्ति का रुप सुन्दर हो, भरपूर यौवन हो, बड़ा कुटुम्ब हो पर यदि विद्यावान नहीं है तो वो पलाश के सुगन्ध रहित सुन्दर पुष्प सदृश महत्वहीन है।

15/11/2022

आत्मानाम् रथिनम् विद्धि शरीरं रथमेव तू
बुद्धिम् सारथिम् विद्धि मनः प्रग्रहमेव च
इंद्रियाणाम् हयानार्हू विषयांतेषु गोचरान्
आत्मेन्द्रिय मनोर्युक्तम् भोक्ते त्याहुर्मनिषिणः॥

25/03/2022

ब्राह्मणोSस्य मुख मासिद् अर्थात् ज्ञान, बुद्धि, तप,ब्रह्म,विद्या ये मुख्य विषय है, ईश्वर में ये सब प्रचुर है, जीव में न्यून है।जिस प्रकार मुख देखते ही व्यक्ति व जीव की पहचान होती है वैसे ही ब्रह्म से ईश्वर की.....

02/03/2022

वेदों के शिव

प्रियांशु सेठ

हिन्दू समाज में मान्यता है कि वेद में उसी शिव का वर्णन है जिसके नाम पर अनेक पौराणिक कथाओं का सृजन हुआ है। उन्हीं शिव की पूजा-उपासना वैदिक काल से आज तक चली आती है। किन्तु वेद के मर्मज्ञ इस विचार से सहमत नहीं हैं।उनके अनुसार वेद तथा उपनिषदों का शिव निराकार ब्रह्म है।

पुराणों में वर्णित शिव जी परम योगी और परम ईश्वरभक्त थे। वे एक निराकार ईश्वर "ओ३म्" की उपासना करते थे। कैलाशपति शिव वीतरागी महान राजा थे। उनकी राजधानी कैलाश थी और तिब्बत का पठार और हिमालय के वे शासक थे। हरिद्वार से उनकी सीमा आरम्भ होती थी। वे राजा होकर भी अत्यंत वैरागी थे। उनकी पत्नी का नाम पार्वती था जो राजा दक्ष की कन्या थी। उनकी पत्नी ने भी गौरीकुंड, उत्तराखंड में रहकर तपस्या की थी। उनके पुत्रों का नाम गणपति और कार्तिकेय था। उनके राज्य में सब कोई सुखी था। उनका राज्य इतना लोकप्रिय हुआ कि उन्हें कालांतर में साक्षात् ईश्वर के नाम शिव से उनकी तुलना की जाने लगी।

वेदों के शिव--

हम प्रतिदिन अपनी सन्ध्या उपासना के अन्तर्गत नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च (यजु० १६/४१) के द्वारा परम पिता का स्मरण करते हैं।

अर्थ- जो मनुष्य सुख को प्राप्त कराने हारे परमेश्वर और सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान् का भी सत्कार कल्याण करने और सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले का भी सत्कार मङ्गलकारी और अत्यन्त मङ्गलस्वरूप पुरुष का भी सत्कार करते हैं,वे कल्याण को प्राप्त होते हैं।

इस मन्त्र में शंभव, मयोभव, शंकर, मयस्कर, शिव, शिवतर शब्द आये हैं जो एक ही परमात्मा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।

वेदों में ईश्वर को उनके गुणों और कर्मों के अनुसार बताया है--

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। -यजु० ३/६०

विविध ज्ञान भण्डार, विद्यात्रयी के आगार, सुरक्षित आत्मबल के वर्धक परमात्मा का यजन करें। जिस प्रकार पक जाने पर खरबूजा अपने डण्ठल से स्वतः ही अलग हो जाता है वैसे ही हम इस मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जायें, मोक्ष से न छूटें।

या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।। -यजु० १६/२

हे मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुंचाने वाले दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिए सुखकारी शिक्षक विद्वन्! जो आप की घोर उपद्रव से रहित सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी कल्याणकारिणी देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है उस अत्यन्त सुख प्राप्त करने वाली देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से हम लोगों को आप सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये।

अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहीँश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव।। -यजु० १६/५

हे रुद्र रोगनाशक वैद्य! जो मुख्य विद्वानों में प्रसिद्ध सबसे उत्तम कक्षा के वैद्यकशास्त्र को पढ़ाने तथा निदान आदि को जान के रोगों को निवृत्त करनेवाले आप सब सर्प के तुल्य प्राणान्त करनेहारे रोगों को निश्चय से ओषधियों से हटाते हुए अधिक उपदेश करें सो आप जो सब नीच गति को पहुंचाने वाली रोगकारिणी ओषधि वा व्यभिचारिणी स्त्रियां हैं, उनको दूर कीजिये।

या ते रुद्र शिवा तनू: शिवा विश्वाहा भेषजी।
शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे।। -यजु० १६/४९

हे राजा के वैद्य तू जो तेरी कल्याण करने वाली देह वा विस्तारयुक्त नीति देखने में प्रिय ओषधियों के तुल्य रोगनाशक और रोगी को सुखदायी पीड़ा हरने वाली है उससे जीने के लिए सब दिन हम को सुख कर।

उपनिषदों में भी शिव की महिमा निम्न प्रकार से है-

स ब्रह्मा स विष्णु: स रुद्रस्स: शिवस्सोऽक्षरस्स: परम: स्वराट्।
स इन्द्रस्स: कालाग्निस्स चन्द्रमा:।। -कैवल्यो० १/८

वह जगत् का निर्माता, पालनकर्ता, दण्ड देने वाला, कल्याण करने वाला, विनाश को न प्राप्त होने वाला, सर्वोपरि, शासक, ऐश्वर्यवान्, काल का भी काल, शान्ति और प्रकाश देने वाला है।

प्रपंचोपशमं शान्तं शिवमद्वैतम् चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः।।७।। -माण्डूक्य०

प्रपंच जाग्रतादि अवस्थायें जहां शान्त हो जाती हैं, शान्त आनन्दमय अतुलनीय चौथा तुरीयपाद मानते हैं वह आत्मा है और जानने के योग्य है।
यहां शिव का अर्थ शान्त और आनन्दमय के रूप में देखा जा सकता है।

सूक्ष्मातिसूक्ष्मं कलिलस्य मध्ये विश्वस्य सृष्टारमनेकरुपम्।
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा शिवं शान्तिमत्यन्तमेति।। -श्वेता० ४/१४

परमात्मा अत्यन्त सूक्ष्म है, हृदय के मध्य में विराजमान है, अखिल विश्व की रचना अनेक रूपों में करता है। वह अकेला अनन्त विश्व में सब ओर व्याप्त है। उसी कल्याणकारी परमेश्वर को जानने पर स्थाई रूप से मानव परम शान्ति को प्राप्त होता है।

नचेशिता नैव च तस्य लिंङ्गम्।। -श्वेता० ६/९

उस शिव का कोई नियन्ता नहीं और न उसका कोई लिंग वा निशान है।

योगदर्शन में परमात्मा की प्रतीति इस प्रकार की गई है-

क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्वर:।। १/१/२४

जो अविद्यादि क्लेश, कुशल, अकुशल, इष्ट, अनिष्ट और मिश्र फलदायक कर्मों की वासना से रहित है, वह सब जीवों से विशेष ईश्वर कहाता है।

स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात्।। १/१/२६

वह ईश्वर प्राचीन गुरुओं का भी गुरु है। उसमें भूत भविष्यत् और वर्तमान काल का कुछ भी सम्बन्ध नहीं है,क्योंकि वह अजर, अमर नित्य है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने भी अपने पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में निराकार शिवादि नामों की व्याख्या इस प्रकार की है--

(रुदिर् अश्रुविमोचने) इस धातु से 'णिच्' प्रत्यय होने से 'रुद्र' शब्द सिद्ध होता है।'यो रोदयत्यन्यायकारिणो जनान् स रुद्र:' जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रुलाता है, इससे परमेश्वर का नाम 'रुद्र' है।

यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति, यद्वाचा वदति तत् कर्मणा करोति यत् कर्मणा करोति तदभिसम्पद्यते।।

यह यजुर्वेद के ब्राह्मण का वचन है।

जीव जिस का मन से ध्यान करता उस को वाणी से बोलता, जिस को वाणी जे बोलता उस को कर्म से करता, जिस को कर्म से करता उसी को प्राप्त होता है। इस से क्या सिद्ध हुआ कि जो जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है। जब दुष्ट कर्म करनेवाले जीव ईश्वर की न्यायरूपी व्यवस्था से दुःखरूप फल पाते, तब रोते हैं और इसी प्रकार ईश्वर उन को रुलाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम 'रुद्र' है।

(डुकृञ् करणे) 'शम्' पूर्वक इस धातु से 'शङ्कर' शब्द सिद्ध हुआ है। 'य: शङ्कल्याणं सुखं करोति स शङ्कर:' जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम 'शङ्कर' है।

'महत्' शब्द पूर्वक 'देव' शब्द से 'महादेव' शब्द सिद्ध होता है। 'यो महतां देव: स महादेव:' जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इस लिए उस परमात्मा का नाम 'महादेव' है।

(शिवु कल्याणे) इस धातु से 'शिव' शब्द सिद्ध होता है। 'बहुलमेतन्निदर्शनम्।' इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम 'शिव' है।

निष्कर्ष- उपरोक्त लेख द्वारा योगी शिव और निराकार शिव में अन्तर बतलाया है। ईश्वर के अनगिनत गुण होने के कारण अनगिनत नाम है। शिव भी इसी प्रकार से ईश्वर का एक नाम है। आईये निराकार शिव की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना करे।

01/03/2022

शम् करोति शंकरःअर्थार्थ जो ईश्वर कष्टों, दुःखों का शमन, नाश करता है इसलिए उनको शंकर कहते हैं ।
शिव= कल्याणे, ईश्वर सबका कल्याण करते है सो एक नाम उनका शिव भी है।
रुद्र = वो दुष्टों को रुलाते है सो रुद्र कहलाते है।

09/02/2022

भारत राष्ट्र के बहुआयामी उन्नति का आधार वेदोपनिषद पर आधारित ज्ञान का जीवन है।प्रत्येक मनुष्य को वर्णाश्रम व्यवस्था के तहत ब्राह्मण बनने को प्रयत्नशील रहना चाहिए व मुक्तिनुगमन का प्रयास करना चाहिए

31/01/2022

जैसे टोपी दाढ़ी व सुन्नत मुसलमानों के बाहरी चिन्ह हैं, बपतिस्मा व क्रोस इसाईयों के है वैसे ही जनेऊ, चोटी व मेखला सभी सनातनियों के चिन्ह हैं । सुपठित व दीक्षित ब्राह्मण सभी वर्ग वर्ण व स्तर के हिन्दू सनातनियों को ये चिन्ह धारण करने हेतु प्रेरणा करें पर अंधविश्वास व ढकोसला न करें।

16/01/2022

मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषों वेद ।।

वस्तुत: जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात् एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य होवे तभी मनुष्य ज्ञानवान होता है । वह कुल धन्य ! वह संतान बड़ा भाग्यवान ! जिसके माता और पिता धार्मिक विद्वान हो । जितना माता से संतानों को उपदेश और उपकार पहुंचता है उतना किसी से नहीं । जैसे माता संतानों पर प्रेम, उनका हित करना चाहती है, उतना अन्य कोई नहीं करता । इसलिए (मातृमान्) अर्थात् प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान् धन्य वह माता है कि जो गर्भाधान से लेकर जब तक पूरी विद्या न हो तब तक सुशीलता का उपदेश करें ।

महान दार्शनिक, विज्ञानवेत्ता, शिक्षाविद् महर्षि दयानंद सरस्वती कृत सत्यार्थ प्रकाश द्वितीय समु०

16/01/2022

. ॥ओ३म्॥
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि व स्तुवन्तु,
लक्ष्मी: समाविशतु वा यथेष्टम ।
अद्येव वा मरणवस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात् पथ : प्रविचलन्ति पदं न धीरा: ।।

भावार्थ - नीति में निपुण व्यक्ति चाहे निदा करें या प्रशंसा, धन ऐश्वर्य की प्राप्ति हो या जो पास में हो वह भी चला जावे, आज ही मृत्यु हो जाए या लंबे काल तक जीवन बना रहे, किन्तु जो धीर व्यक्ति है, वे सत्य, न्याय, आदर्श के मार्ग से एक कदम भी इधर-उधर नहीं हटते, प्रसन्न होकर कष्टों को सहन करते हुए दृढ़ता से उसी मार्ग पर चलते रहते हैं ।

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