14/12/2023
शैलेंद्र के लिए बिहार ने क्या किया?
उस लड़के का नाम शंकर दास केसरीलाल था। जन्म तो उसका रावलपिंडी में हुआ था लेकिन उसके पिता और दादा बिहार के आरा के थे। जो लोग बिहार और यूपी के हैं उन्हें पता है कि दास सरनेम होने का स्थानीय समाज में क्या मतलब होता है। पिता की बीमारी और गरीबी के चलते शंकर दास का पूरा परिवार रावलपिंडी से मथुरा आ गया था जहां उसके चाचा रेलवे में नौकरी करते थे। एक दिन शंकर दास को हॉकी खेलते देख कुछ छात्रों ने कहा कि ‘अब ये लोग भी खेलेंगे’ ..बालक शंकर दास को इतनी तकलीफ हुई कि उसने तुरंत वहीं अपनी हॉकी स्टिक तोड़ दी और वहां से निकल गया। वही शंकर दास आगे चलकर मुंबई में लिखता है-
होठों पे सच्चाई रहती है
जहाँ दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
क्या कोई कल्पना कर सकता है कि जिस समाज में जाति को लेकर लोगों के मन में इतनी मैल हो और जो व्यक्ति उस गंदगी से दिल के भीतर तक आहत रह चुका हो, वो आसमान से भी बड़ा दिल रख कर कहता है कि ‘…जहां दिल में सफाई रहती है, हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है…’
शंकर दास केसरीलाल उर्फ गीतकार शैलेन्द्र ने क्या-क्या नहीं रचा।
आवारा हूँ
या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ
आवारा हूँ...
किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है ...
दिल का हाल सुने दिलवाला
सीधी सी बात न मिर्च मसाला
कहके रहेगा कहनेवाला,
दिल का हाल सुने दिलवाला..
सजन रे झूठ मत बोलो
खुदा के पास जाना है...
आज फिर जीने की तम्ना है
आज फिर मरने का इरादा है...
ये तो बस चंद बानगी हैं..तभी तो गुलजार कहते हैं कि शैलेंद्र से बड़ा गीतकार आज तक कोई नहीं हुआ।
शैलेंद्र जब इतने बड़े गीतकार थे तो उन्हें कोई बड़ा सरकारी सम्मान क्यों नहीं मिला? मरणोपरांत हमने कई दिग्गजों को सम्मानित किया है। मरणोपरांत भी क्या शैलेंद्र हमारे लिए पद्म भूषण या पद्म विभूषण भी नहीं हैं?
शैलेंद्र मूलत: बिहार में आरा के अख्तियारपुर गांव के रहने वाले थे। उनके दादा-परदादा को रोटी के लिए बिहार से बाहर जाना पड़ा था। पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे, मथुरा में पले-बढ़े और मुंबई को कर्म भूमि बनाया..फिर भी शैलेंद्र के दिल में हमेशा बिहार धड़कता था। दुनिया से रुखसत होने से पहले अपनी डायरी में अपने बच्चों के लिए उनके गांव का पता ‘अख्तियारपुर, भोजपुर,बिहार’ लिख कर गए थे।
‘पान खाय सैंया हमार’,
‘सजनवा बैरी हो गए हमार’,
‘अब के बरस मोरे भैया को भेजो’
‘चलत मुसाफिर मोह लियो पिंजरे वाली मुनिया’
शैलेंद्र के इन गानों में आप आरा को,भोजपुर को, बिहार को दिल खोल कर महसूस कर सकते हैं। इतना ही नहीं अपनी जिंदगी की एक मात्र फिल्म बनाई जो उनकी मौत की वजह भी बनी वो फिल्म (तीसरी कसम) भी बिहार की मिट्टी और अंचल पर बनाई गई कृति थी।
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस शैलेंद्र का दिल बिहार में बसता था उस महान गीतकार और कवि के लिए बिहार सरकार ने क्या किया? क्या बिहार सरकार उनके नाम कोई सम्मान, कोई संस्थान, सड़क-चौराहा तक समर्पित नहीं कर सकती !
Nitish Kumar CMO Bihar Sanjay Kumar Jha