27/06/2023
'रानी दुर्गावती'
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल के यहाँ हुआ था। वह अपने पिता की इकलौती संतान थीं। दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण, उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि हर ओर फैल गयी।
18 साल की उम्र में दुर्गावती की शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुई। 1545 में रानी दुर्गावती ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। लेकिन 1550 में दलपत शाह का निधन हो गया। यही वह समय था, जब दुर्गावती न केवल एक रानी, बल्कि एक बेहतरीन शासक के रूप में उभरीं। उन्होंने अपने बेटे को सिंहासन पर बिठाया और खुद गोंडवाना की बागडोर अपने हाथ में ले ली। 1556 में मालवा के सुल्तान बाज़ बहादुर ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया। लेकिन रानी दुर्गावती के साहस के सामने वह बुरी तरह से पराजित हुआ। फिर 1562 में, अकबर ने मालवा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। इसके अलावा, रेवा पर असफ खान का राज हो गया।
1564 में असफ खान ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने खुद सेना का मोर्चा सम्भाला। हालांकि, उनकी सेना छोटी थी, लेकिन दुर्गावती की युद्ध शैली ने मुग़लों को भी चौंका दिया। उन्होंने अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को जंगलों में छिपा दिया और बाकी को अपने साथ लेकर चल पड़ीं। जब असफ खान ने हमला किया और उसे लगा कि रानी की सेना हार गयी है, तब ही छिपी हुई सेना ने तीर बरसाना शुरू कर दिया और उसे पीछे हटना पड़ा।
कहा जाता है, इस युद्ध के बाद भी तीन बार रानी दुर्गावती और उनके बेटे वीर नारायण ने मुग़ल सेना का सामना किया और उन्हें हराया। लेकिन जब वीर नारायण बुरी तरह से घायल हो गए, तो रानी ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और स्वयं युद्ध को सम्भाला। रानी दुर्गावती के पास केवल 300 सैनिक बचे थे। रानी भी बुरी तरह घायल थीं। सैनिकों ने उन्हें युद्ध छोड़कर जाने के लिए भी कहा। लेकिन इस योद्धा रानी ने ऐसा करने से मना कर दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक मुग़लों से लड़ती रहीं। जब रानी दुर्गावती को आभास हुआ कि उनका जीतना असम्भव है, तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र मंत्री आधार सिंह से आग्रह किया कि वह उनकी जान ले लें, ताकि उन्हें दुश्मन छू भी न पाएं। लेकिन आधार ऐसा नहीं कर पाए, तो उन्होंने खुद ही अपनी कटार अपने सीने में उतार ली। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे ने युद्ध जारी रखा। लेकिन शीघ्र ही वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ। इस देश की महान वीरांगना को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन।
साभार - बेटर इंडिया।