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"हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष : हनुमान जी के जन्म की कथा"एक बार की बात है। भस्मासुर नाम के दैत्य ने महादेव की घनघोर तपस्या ...
16/04/2022

"हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष : हनुमान जी के जन्म की कथा"

एक बार की बात है। भस्मासुर नाम के दैत्य ने महादेव की घनघोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उसे वरदान मांगने को कहा। भस्मासुर ने कहा, 'हे महादेव, यदि आप मुझ पर प्रसन्न ही है तो मुझे वर दीजिए कि मैं जिसके भी सर पे हाथ रखूं वो तत्काल भस्म हो जाए'। महादेव बोले-तथास्तु। भस्मासुर बोला, प्रभु मुझे वरदान की टेस्टिंग करनी है, आपके ऊपर ही करूँगा, भस्मासुर दौड़ा महादेव के पीछे। अब महादेव आगे आगे, भस्मासुर पीछे पीछे।

महादेव ने श्रीहरि विष्णु का स्मरण किया और इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने की प्रार्थना की। दोनो ने मन ही मन टेलीपैथी के जरिए सम्पर्क साध लिया और प्लान बन गया। महादेव अंतर्ध्यान हो गए और भगवान विष्णु मोहिनी रूप धर के भस्मासुर के सामने आ गए। मोहिनी बने विष्णु की सुंदरता से मोहित हो कर भस्मासुर मोहित हो गया। बोला देवी जी मुझसे शादी करो। मोहिनी ने कहा पहले मेरे लेवल का डांस करके दिखा। भस्मासुर बोला ठीक है फिर, चलिए शुरू करते है। दोनो लगे डांस करने। डांस करते करते एक स्टेप ऐसा आया कि मोहिनी ने अपने सर पे हाथ रख लिया, देखादेखी भस्मासुर ने भी अपने सर पे हाथ रख लिया और शिव के वरदान स्वरूप खुद ही भस्म हो गया। मोहिनी ने बोला महादेव आपकी मुसीबत खत्म अब आ जाओ।

महादेव प्रकट हुए, मोहिनी की सुंदरता में स्वयं महादेव भी सम्मोहित हो गए। भगवान शिव स्वयं नृत्य के देवता नटराज है, उनका भी मन हो गया मोहिनी के साथ डांस करने का। मोहिनी से बोले, प्रभु, उसके साथ तो कर लिया डांस अब थोड़ा सा ता ता थैया हमारे साथ भी कर लो। मोहिनी बोली चलिए फिर शुरू करते है। मोहिनी बने विष्णु और भगवान शिव ने डांस करना शुरू कर दिया। डांस करते करते दोनो के शरीर से एक एक तेजपुंज निकला और दोनो तेजपुंज एकाकार हो गए। तब महादेव ने पवन देवता को बुलाया और वो तेजपुंज उनको हैंडओवर करते हुए बोले, "देव! अगला आदेश मिलने तक इस तेजपुंज की रक्षा करिए"। पवनदेव बोले ठीक है महाराज। और ये किस्सा इधर ही खत्म हो गया।

****
उधर देवराज इंद्र के दरबार मे एक अप्सरा थी, नाम था पुंजकस्थला। उसका एक गन्धर्व के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। एक दिन दोनो प्रेमी एक सरोवर में जलक्रीड़ा कर रहे थे। उसी सरोवर में कुछ दूरी पर ऋषि दुर्वासा भी स्नान कर रहे थे। ये दोनों जलक्रीड़ा में इतने मस्त थे कि इनको ऋषि दुर्वासा का ध्यान ही नही रहा। एक दूसरे पर पानी उछालते उछालते पुंजकस्थला के हाथ से कुछ छींटे दुर्वासा ऋषि पर पड़ गए। दुर्वासा मुनि का टेम्पर एकदम हाई हो गया। हाथ मे जल लेकर श्राप दे दिया कि बन्दरों की तरह उछलकूद करने वाली, जा तू वानरी ही हो जा। पैर पकड़कर क्षमा मांगने लगी, मुनिवर बोले वानर योनि में तो जाना ही पड़ेगा लेकिन आप अपनी इच्छानुसार अपना रूप धारण कर सकेंगी।

अगले जन्म में यही अप्सरा पुंजिकस्थला ने अंजना के रूप में जन्म लिया। वानरराज केसरी से विवाह हुआ। सन्तान हो नही रही थी, कुलगुरु मतंग मुनि ने शिव की आराधना करने के लिए कहा। अंजना ने शिव आराधना शुरू कर दी। बाबा भोले प्रसन्न हो गए। बोले, बताइये देवी जी, कैसे याद किया। अंजना ने कहा, प्रभु आपके जैसा एक पुत्र चाहिए। बाबा बोले मेरे जैसा तो कहाँ से लाऊँ। मैं ही अंशावतार में आपके गर्भ से जन्म लूँगा। लेकिन इसके लिए आपको पवनदेव की तपस्या भी करनी पड़ेगी।

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महादेव ने पवनदेव को बुलाया, बोले याद है देवता एक टाइम हमने आपको एक तेजपुंज दिया था संभाल के रखने के लिए। पवनदेव बोले हाँ प्रभु अच्छी तरह से याद है। महादेव ने कहा, हाँ तो ठीक है जाओ वो तेजपुंज वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में स्थानांतरित कर दो। पवनदेव ने ऐसा ही किया। समय आने पर भगवान महादेव और भगवान विष्णु के उस साझा तेजपुंज से रुद्रावतार हनुमान जी का जन्म हुआ।

।। जय बजरंगबली ।।

जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु कहते है कि मुझे दिव्य साकेत लोक में सब सुख प्राप्त है। अगर किसी चीज की कमी है तो वो...
10/04/2022

जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु कहते है कि मुझे दिव्य साकेत लोक में सब सुख प्राप्त है। अगर किसी चीज की कमी है तो वो यही है कि संसार के समस्त प्राणियों की तरह हमे कभी माता पिता का प्यार नही मिला, क्योंकि सारे जगत के माता पिता तो हमही बने बैठे है, हमारा माता पिता कौन बने?

परन्तु जब मनु-सतरूपा ने वरदान मांगा- "चाहूं तुमहि समान सूत"

तब भगवान ने सोचा कि अच्छा मौका है, क्योंकि मेरे समान तो कोई और है नहीं, मुझे ही बेटा बनना पड़ेगा और इस तरह माता पिता का प्यार भी मिल जाएगा। तब भगवान पहली बार इस धरा धाम पर विधिवत पुत्र बनकर आए, महर्षि कश्यप और माता अदिति के घर वामन अवतार लेकर। (इससे पहले भी प्रभु अवतार लेकर तो आए थे लेकिन उनके माँ-पिताजी कोई नही थे)

अब जब वामन रूप में माता पिता का प्यार दुलार मिलने लगा तो भगवान बड़े प्रसन्न हुए, किन्तु जब बलि को विराट रूप दिखाया तो माँ पिताजी भी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और स्तुति करने लगे। विराट रूप देखकर किस माँ की हिम्मत होगी कि बालक को गोद मे लेकर पुचकारे। भगवान से सोचा, इस जन्म में थोड़ा सा मिला माँ पिता का प्यार लेकिन विराट रूप ने सब गड़बड़ कर दिया। चलो कोई बात नही अगले अवतार में इस बात का ध्यान रखेंगे और माँ-पिता के वात्सल्य रस की कसर पूरी करेंगे।

अगला अवतार हुआ, अयोध्या के महाराज दशरथ और माता कौशल्या के यहाँ 'राम' रूप में।

"भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला
कौशल्या हितकारी
हर्षित महतारी, मुनि मन हारी
अद्भुत रूप विचारी"

प्रभु अपने चतुर्भुज रूप में शंख चक्र गदा पद्म धारण कर माता कौशल्या के सामने प्रकट हुए।

"लोचन अभिरामा, तनु घनश्यामा
निज आयुध भुज चारी
भूषण बल वाला, नैन विशाला
शोभासिंधू खरारी"

अब जब माँ कौशल्या के सम्मुख जैसे ही प्रभु राम चतुर्भुज रूप धारण कर प्रकट हुए माता कौशल्या हाथ जोड़ कर स्तुति करने लगी -

"कह दुई कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केही बिधि करो अनंता
माया गुण ज्ञानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता"

भगवान ने कानो पर हाथ रखकर कहा -बस करिए माता, स्तुति सुनते सुनते तो पक गया हूँ, अब तो आपकी प्यार भरी फटकार सुनने आया हूँ। आप तो मुझे लाड़ प्यार करिए, दुलार करिए, जिसके लिए मैं अवतार लेकर आया हूं। माता कौशल्या ने कहा, प्रभु, पुत्रवत दुलार पाना चाहते हो तो पुत्र बनकर आइए, आप तो चतुर्भुज रूप धर पिताजी बनकर आए हो।

"उपजा जब ज्ञाना, प्रभु मुस्काना
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहे
कही कथा सुहाई, मातु बुझाई
जेहि प्रकार सूत प्रेम लाहे"

भगवान चंचल मुस्कुराहट धारण कर बोले- माता, अवतार तो खूब लिए लेकिन बेटा बनना आता नही, आप सिखा दीजिए।

तब कौशल्या माता कहती है :

"माता पुनि बोली, सो मति डोली
तजहु तात यह रूपा
कीजै शिशु लीला, अति प्रियशीला
यह सुख परम अनूपा"

सबसे पहले तो इन चार हाथों में से दो हाथों को विदा कीजिए और दो हाथ रहने दीजिए। चार हाथ वाले बेटे कोई अच्छे थोड़ी लगते है, दुनिया की भीड़ लग जाएगी चार हाथ वाला मनुष्य देखने के लिए। प्रभु ने कहा- ठीक है माताजी, और बताओ। माता बोली- अब ये जो कपड़े लत्ते पहन रखे है पीताम्बर ओढ़ रखा है इन्हें भी विदा करो, बच्चे कोई कपड़े लत्ते पहन कर थोड़ी पैदा होते है। प्रभु ने कहा, जैसा आप बोलो माता जी और बताओ। कौशल्या माता पुनः कहती है की अब ये शंख चक्र गदा पदम् धारण कर रखा है इन्हें भी विदा करो। बच्चे कोई लाठी बंदूक लेकर थोड़े पैदा होते है।

"तजहु तात यह रूपा"- इस रूप का त्याज्य कीजिए और साधारण बालको की तरह आइए फिर देखिए कितना लाड़ प्यार दुलार मिलता है। प्रभु तुरंत अपना चतुर्भुज रूप त्याग कर नन्हे निरावर्ण निश्छल बालक का रूप धर के मुस्कुराते हुए माता से कहते है - देखिए माता जी , बन गया न बालक, अब तो कोई कमी नही है न। माता ने कहा- एक कमी अब भी है।

प्रभु बोले- क्या कमी रह गई अब। माता ने कहा- प्रभु, बालक जब पैदा होता है तो हँसता खिलखिलाता नही बल्कि रोता है, और न रोये तो घर वाले रोने लग जाते है की बालक गूंगा बहरा तो नही है, सो आप भी रोइये।

प्रभु ने कहा- "अजीब संसार है, पैदा होते ही रुलाता है"।
ठीक है, हम भी रो लेते है।

"सुनी वचन सुजाना, रोदन ठाना
होई बालक सुरभूपा
यह चरित जे गावही, हरिपद पावही
ते ना परहिं भवकूपा"

इस पावन चरित्र को गाने और सुनने वाला हरि की विशेष कृपा प्राप्त करता है और इस संसार रूपी भवकूप में दुबारा नही पड़ता।

बोलिए अयोध्या नरेश प्रभु श्री रामचन्द्र जी की जय 🙏
क्षीरसागर अवतारी धर्मात्मा महाराज भरत की जय 🙏
शेषनाग रूपी भैया लक्ष्मण जी की जय 🙏
सुदर्शन चक्र के अवतार भैया शत्रुघ्न की जय 🙏

जय जय जय श्री राम 🚩🚩🚩🚩

जय जय श्री नारायण नारायण हरि हरि🙏🚩
28/03/2022

जय जय श्री नारायण नारायण हरि हरि🙏🚩

एक ही नारा, एक ही नामजय श्री राम, जय श्री राम।।
27/03/2022

एक ही नारा, एक ही नाम
जय श्री राम, जय श्री राम।।

राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की 🚩🚩🚩🚩
26/03/2022

राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की 🚩🚩🚩🚩

जय जय जय श्री राम ❤️❤️❤️❤️
25/03/2022

जय जय जय श्री राम ❤️❤️❤️❤️

❤️❤️❤️❤️
24/03/2022

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23/03/2022
22/03/2022

• की कमाई कश्मीर के विकास के लिए दान करनी चाहिए।
• दशकों चला, श्री राम मंदिर, का मुकदमे जीते तो जगह पर अस्पताल बनवा दो।
• वोट तुम एक नहीं दोगे पर *सबका साथ सबका विकास* में तुम्हें अपने अलग से हिस्सा चाहिए।

° कुश्ती और हरियाणा पर आधारित सुलतान और दंगल की कमाई सलमान, आमिर ने दान की? तुमने मुद्दा उठाया?
° अमेरिका के अफ़गानिस्तान से हटने के बाद तुमने वहां (तुम और पाकिस्तानी तो भीखमंगे हो) सऊदी अरब और तुर्की ने कितने अस्पतालों और स्कूलों का निर्माण कराया? तुमने सवाल किया?
° जब शौचालय, गैस, बिजली, मकान के सीधे फायदे उठाए तब #वोट नहीं देने की फितरत की कुत्ते से तुलना की? खुद को जानवर से भी नीच पाया?

फालतू मुकदमों में कोर्ट भी, संविधान नहीं, किताब के हिसाब से फैसला दे पर तुम्हें सजा सुनाने के टाइम पर तुमको सजा भी किताब के हिसाब से मिले ये ईमान की आवाज कभी आई?
क्या इसी ईमान को मसल देना के कारण ही तुम्हारा नामकरण हुआ है? इसका सच तुमने कभी बताया।

नारद जी को विष्णु माया का दर्शन राजा युधिष्ठिर ने पूछा - भगवन् ! यह विष्णु भगवान की माया किस प्रकार की है ? जो इस चराचर ...
09/03/2022

नारद जी को विष्णु माया का दर्शन

राजा युधिष्ठिर ने पूछा - भगवन् ! यह विष्णु भगवान की माया किस प्रकार की है ? जो इस चराचर जगत को व्यामोहित करती है ।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा - महाराज ! किसी समय नारद मुनि श्वेतद्वीप में नारायण का दर्शन करने के लिये गये । वहां श्रीनारायण का दर्शन कर और उन्हें प्रसन्न मुद्रा में देखकर उनसे जिज्ञासा की । भगवन् ! आपकी माया कैसी है ? कहां रहती है ? कृपा कर उसका रूप मुझे दिखायें ।

भगवान ने हंसकर कहा - नारद ! माया को देखकर क्या करोगे ? इसके अतिरिक्त जो कुछ चाहते हो वह मांगो ।

नारद जी ने कहा - भगवन ! आप अपनी माया को ही दिखायें, अन्य किसी वर की अभिलाषा नहीं है । नारद जी ने बार बार आग्रह किया ।

नारायण ने कहा - अच्छा, आप हमारी माया देखें । यह कहकर नारद की अंगुली पकड़कर श्वेतद्वीप से चले । मार्ग में आकर भगवान ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया । शिखा, यज्ञोपवीत, कमण्डलु, मृगचर्म को धारण कर कुशा की पवित्री हाथों में पहनकर वेद पाठ करने लगे और अपना नाम उन्होंने यज्ञशर्मा रख लिया । इस प्रकार का रूप धारण कर नारद के साथ जंबूद्वीप में आये । वे दोनों वेत्रवती नदी के तट पर स्थित विदिशा नामक नगरी में गये । उस विदिशा नगरी में धन - धान्य से समृद्ध उद्यमी, गाय, भैंस, बकरी आदि पशु पालन में तत्पर, कृषिकार्य को भलीभांति करने वाला सीरभद्र नाम का एक वैश्य निवास करता था । वे दोनों सर्वप्रथम उसी के घर गये । उसने इन विशुद्ध ब्राह्मणों का आसन, अर्घ्य आदि से आदर सत्कार किया । फिर पूछा - ‘यदि आप उचित समझें तो अपनी रुचि के अनुसार मेरे यहां अन्न का भोजन करें ।’ यह सुनकर वृद्ध ब्राह्मणरूपधारी भगवान ने हंसकर कहा ‘तुम को अनेक पुत्र - पौत्र हों और सभी व्यापार एवं खेती में तत्पर रहें । तुम्हारी खेती और पशु धन की नित्य वृद्धि हों’ - यह मेरा आशीर्वाद है । इतना कहकर वे दोनों वहां से आगे गये । मार्ग में गंगा के तट पर वेणिका नाम के गांव में गोस्वामी नाम का एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था, वे दोनों उसके पास पहुंचे । वह अपनी खेती की चिंता में लगा था । भगवान ने उससे कहा - ‘हम बहुत दूर से आये हैं, अब हम तुम्हारे अतिथि हैं, हम भूखे हैं, हमें भोजन कराओ ।’ उन दोनों को साथ में लेकर वह ब्राह्मण अपने घर पर आया । उसने दोनों को स्नान - भोजन आदि कराया, अनंतर सुखपूर्वक उत्तम शय्या पर शयन आदि की व्यवस्था की । प्रात: उठकर भगवान ने ब्राह्मण से कहा - ‘हम तुम्हारे घर में सुखपूर्वक रहे, अब जा रहे हैं । परमेश्वर करे कि तुम्हारी खेती निष्फल हो, तुम्हारी संतति की वृद्धि न हो’ - इतना कहकर वे वहां से चले गये ।

मार्ग में नारद जी ने पूछा - भगवन ! वैश्य ने आपकी कुछ भी सेवा नहीं की, किंतु उसको आपने उत्तम वर दिया । इस ब्राह्मण श्रद्धा से आपकी बहुत सेवा की, किंतु उसको आपने आशीर्वाद के रूप में शाप ही दिया - ऐसा आपने क्यों किया ?

भगवान ने कहा - नारद ! वर्षभर मछली पकड़ने से जितना पाप होता है, उतना ही एक दिन हल जोतने से होता है । वह सीरभद्र वैश्य अपने पुत्र - पौत्रों के साथ इसी कृषि कार्य में लगा हुआ है, वह नरक में जाएंगा, अत: हमने न तो उसके घर में विश्राम किया और न भोजन ही किया । इस ब्राह्मण के घर में भोजन और विश्राम किया । इस ब्राह्मण को ऐसा आशीर्वाद दिया है कि जिससे यह जगज्जाल में न फंसकर मुक्ति को प्राप्त करें । इस प्रकार मार्ग में बातचीत करते हुए वे दोनों कान्यकुब्ज देश के समीप पहुंचे । वहां उन्होंने एक अतिशय रम्य सरोवर देखा । उस सरोवर की शोभा देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए ।

भगवान ने कहा - नारद ! यह उत्तम तीर्थस्थान है । इसमें स्नान करना चाहिए, फिर कन्नौज नाम के नगर में चलेंगे । इतना कहकर भगवान उस सरोवर में स्नानकर शीघ्र ही बाहर आ गये । तदनंतर नारद जी भी स्नान करने के लिये सरोवर में प्रविष्ट हुए । स्नान संपन्न कर जब वे बाहर निकले, तब उन्होंने अपने को दिव्य कन्या के रूप में देखा । उस कन्या के विशाल नेत्र थे । चंद्रमा के समान मुख था, वह सर्वांग सुंदरी कन्या दिव्य शुभलक्षणों से संपन्न थी । अपनी सुंदरता से संसार को व्यामोहित कर रही थी । जिस प्रकार समुद्र से संपूर्ण रूप की निधान लक्ष्मी निकली थीं, उसी प्रकार सरोवर से स्नान के बाद नारद जी स्त्री के रूप में निकले । भगवान अंतर्धान हो गये । वह स्त्री भी अपने झुंड से भ्रष्ट अकेली हरिणी की तरह भयभीत होकर इधर - उधर देखने लगी । इसी समय अपनी सेनाओं के साथ राजा तालध्वज वहां आया और उस सुंदरी को देखकर सोचने लगा कि यह कोई देवस्त्री है या अप्सरा ? फिर बोला - ‘बाले ! तुम कौन हो, कहां से आयी हो ?’ उस कन्या ने कहा - ‘मैं माता पिता से रहित और निराश्रय हूं । मेरा विवाह भी नहीं हुआ है, अब आपकी ही शरण में हूं ।’

इतना सुनते ही प्रसन्नचित्त हो राजा उसे घोड़े पर बैठाकर राजधानी पहुंचा और विधिपूर्वक उससे विवाह कर लिया । तेरहवें वर्ष में वह गर्भवती हुई । समय पूर्ण होने पर उससे एक तुम्बी (लौकी) उत्पन्न हुई, जिसमें पचास छोटे - छोटे दिव्य शरीर वाले युद्ध में कुशल बलशाली बालक थे, उसने उनकी घृतकुण्ड में छोड़ दिया, कुछ दिन बाद पुत्र और पौत्रों की खूब वृद्धि हो गयी । वे महान अहंकारी, परस्पर विरोधी और राज्य की कामना करनेवाले थे । अनंतर राज्य के लोभ से कौरव और पाण्डवों की तरह परस्पर युद्ध करके समुद्र की लहरों की भांति लड़ते हुए वे सभी नष्ट हो गये । वह स्त्री अपने वंश का इस प्रकार संहार देखकर छाती पीटकर करुणापूर्वक विलाप करती हुई मूर्च्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी । राजा भी शोक से पीड़ित हो रोने लगा ।

इसी समय ब्राह्मण का रूप धारण कर भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर भगवान विष्णु द्विजों के साथ वहां आये और राजा तथा रानी को उपदेश देने लगे - ‘यह विष्णु की माया है । तुम लोग व्यर्थ ही रो रहे हो । संपूर्ण प्राणियों की अंत में यही स्थिति होती है । विण्णु माया ही ऐसी है कि उसके द्वारा सैकड़ों चक्रवर्ती और हजारों इंद्र उसी तरह नष्ट कर दिये गये हैं जैसे दीपक को प्रचण्ड वायु विनष्ट कर देती है । समुद्र को सुखाने लिये भूमि को पीसकर चूर्ण कर डालने की तथा पर्वत को पीठ पर उठाने की सामर्थ्य रखनेवाले पुरुष भी काल के कराल मुख में चले गये हैं । त्रिकूट पर्वत जिसका दूर्ग था, समुद्र जिसकी खाईं थी, ऐसी लंका जिसकी राजधानी थी, राक्षसगण जिसके योद्धा थे, सभी शास्त्रों और वेदों को जाननेवाले शुक्राचार्य जिसके लिये मंत्रणा करते थे, कुबेर के धन को भी जिसने जीत लिया था, ऐसा रावण भी दैववश नष्ट हो गया । युद्ध में, घर में, पर्वत पर, अग्नि में, गुफा में अथवा समुद्र में कहीं भी कोई जाएं, वह काल के कोप से नहीं बच सकता । भावी होकर ही रहती है । पाताल में जाएं, इंद्रलोक में जाएं, मेरु पर्वत पर चढ़ गये, मंत्र, औषध, शस्त्र आदि से भी कितनी भी अपनी रक्षा करे, किंतु जो होना होता है, वह होता ही है - इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है । मनुष्यों के भाग्यानुसार जो भी शुभ और अशुभ होना है, वह अवश्य ही होता है । हजारों उपाय करने पर भी भावी किसी भी प्रकार नहीं टल सकती । कोई शोक विह्वल होकर आंसू टपकाता है, कोई रोता है, कोई बड़ी प्रसन्नता से नाचता है, कोई मनोहर गीत गाता है, कोई धन के लिये अनेक उपाय करता है, इस तरह अनेक प्रकार के जाल की रचना करता रहता है, अत: यह संसार एक नाटक है और सभी प्राणिवरेग उस नाटक के पात्र हैं ।’

इतना उपदेश देकर भगवान ने रानी का हाथ पकड़कर कहा - ‘नारद जी ! तुमने विष्णु की माया देख ली । उठो ! अब स्नान कर अपने पुत्र - पौत्रों को अर्घ्य देकर और्ध्वदैहिक कृत्य करो । यह माया विष्णु ने स्वयं निर्मित की है ।’ इतना कहकर उसी पुण्यतीर्थ में नारद को स्नान कराया । स्नान करते ही स्त्री रूप को छोड़कर नारद मुनि ने अपना रूप धारण कर लिया । राजा ने भी अपने मंत्री और पुरोहितों के साथ देखा कि जटाधारी, यज्ञोपवीतधारी, दण्ड कमण्डलु लिये, वीणा धारण किये हुए, खड़ाऊं के ऊपर स्थित एक तेजस्वी मुनि हैं, यह मेरी रानी नहीं है । उसी समय भगवान नारद का हाथ पकड़कर आकाश मार्ग से क्षणमात्र में श्वेतद्वीप आ गये ।

भगवान ने नारद से कहा - देवर्षि नारद जी ! आपने मेरी माया देख ली । नारद के देखते देखते ऐसा कहकर भगवान विष्णु अंतर्हित हो गये । देवर्षि नारद जी ने भी हंसकर उन्हें प३णाम किया और भगवान की आज्ञा प्राप्त कर तीनों लोकों में घूमने लगे । महाराज ! इस विष्णु माया हमने संक्षेप में वर्णन किया । इस माया के प्रभाव से संसार के जीव पुत्र, स्त्री, धन आदि में आसक्त हो रोते गाते हुए अनेक प्रकार की चेष्टाएं करते हैं ।

🙏
06/03/2022

🙏

मृगाधीश चर्माम्बरम् मुण्डमालम्, प्रियं शंकरम् सर्वनाथम् भजामि 💐सभी को महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं, हर हर महा...
01/03/2022

मृगाधीश चर्माम्बरम् मुण्डमालम्,
प्रियं शंकरम् सर्वनाथम् भजामि 💐

सभी को महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं, हर हर महादेव 🙏🚩

🚩

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥महर्षि मनु ने कहा है कि धृति, क्षमा, ...
07/02/2022

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

महर्षि मनु ने कहा है कि धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शोच, इंद्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध-धर्म के ये दश लक्षण हैं। जिसमें ये लक्षण विद्यमान हों उसो को धर्मात्मा समझना चाहिए ।

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षारडमरू की वह प्रलयध्वनि हूं , जिसमे नचता भीषण संहाररणचंडी की अतृप्त प्यास म...
06/12/2021

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं , जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

𝗝𝗮𝘆 𝗦𝗵𝗿𝗶 𝗥𝗮𝗺🙏🚩

हर हर महादेव 🚩🚩🚩🚩🚩
02/12/2021

हर हर महादेव 🚩🚩🚩🚩🚩

जय श्री राम
21/11/2021

जय श्री राम

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