History of Things

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History of Things It is a page which talks about the real history of things and events. We also share knowledge of making products or handicrafts etc so that children can learn .
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History of Things is a Knowledge sharing platform in which we share only those things which are unique and different . We promote those artists and free lancers who are doing something 4 the society and humanity. If you have some latest news or something unique u can share with us and if you are an artist send us message and tell us wat u do we will promote your art for free of cost to everywhere around the world. "We believe that truth should reach to everyone in its original form"

 #कोणार्क चक्र और काल गणना - ●कोणार्क चक्र ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर में स्थित है ।●इसमें 8 चौड़ी तीलियाँ और 8 पतली त...
27/10/2024

#कोणार्क चक्र और काल गणना -
●कोणार्क चक्र ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर में स्थित है ।
●इसमें 8 चौड़ी तीलियाँ और 8 पतली तीलियाँ हैं।
●2 चौड़ी तीलियों के बीच की दूरी 3 घंटे है ।
●पतली तीली और चौड़ी तीली के बीच की दूरी 1.5 घंटे है ।
●एक चौड़ी तीली से अगली पतली तीली के बीच 30 मनके हैं और प्रत्येक मनका 3 मिनट दर्शाता है।
●सूर्य डायल वामावर्त दिशा में समय दिखाता है ।
●शीर्ष केंद्र की चौड़ी तीली मध्यरात्रि के 12 बजे को दर्शाती है।

#कोणार्क चक्र का उपयोग करके समय कैसे देखें -
धुरी के केंद्र में उंगली/छड़ी रखें और उंगली की छाया दिन का सटीक समय दिखाती है।

The Hindu king statue in the Kabul Museum, Afghanistan, is a significant artifact representing the rich cultural and rel...
01/10/2024

The Hindu king statue in the Kabul Museum, Afghanistan, is a significant artifact representing the rich cultural and religious history of the region.

This statue, dating back to the Turk Shahi period (7th-8th century CE), exemplifies the intricate artistry and religious diversity that flourished in Afghanistan before the advent of Islam.

The statue is a testament to the Hindu Shahi dynasty’s influence, showcasing the syncretic blend of Hindu and Buddhist traditions prevalent during that era.

In ancient times, Hinduism was practiced across various regions in Asia, notably in Southeast Asia (Indonesia, Malaysia, Thailand, Cambodia, Vietnam, and the Philippines) and Central Asia (Afghanistan and parts of China). The spread of Hinduism was facilitated by trade, cultural exchanges, and the establishment of Indianized kingdoms.

Do You Know "Rishi  " was the Inventor of   and Electric Battery?In ancient India, there were numerous gadgets for examp...
19/09/2024

Do You Know "Rishi " was the Inventor of and Electric Battery?

In ancient India, there were numerous gadgets for example high flying balloons, parachutes, electricity, and batteries.

The sages of India created science alongside religion.

We all have been learned that scientists such as Newton, Einstein, & Benjamin Franklin had invented Power, Bulbs, and Batteries.

What has not been taught to us is that the electricity was being utilized in India 1000s of yrs before that.

Many of us do not realize that "Agastya Rishi" was the father of the Electricity & Electric battery.

Maharishi Agastya was one of the Saptrishi.

He was the elder brother of Sage Vashistha.

Agastya Rishi lived in Northern India at Kashi, later, he moved to the south.

The basic formula for creating electricity is based on the ancient principles of "Rishi Agastya".

The code composed by him covered the tremendous knowledge of subjects including a formula for making a battery.

In the code, Agastya has mentioned several theories to create clean energy thereby providing electricity with natural resources.

Furthermore, similar theories are even followed by the advanced batteries we use today.

Agastya Samhita-

Rishi Agastya composed a book called ‘Agastya Samhita’.
The sources related to power generation are found in this book.

Agastya Samhita-

Rishi Agastya composed a book called ‘Agastya Samhita’.
The sources related to power generation are found in this book.

Agastya Samhita-

Rishi Agastya composed a book called ‘Agastya Samhita’.
The sources related to power generation are found in this book.

Bulb inventor "Thomas Edison" writes in one of his books that — “one night I slept while reading a Sanskrit sentence. That night I realized in my dream the meaning and mystery of that Sanskrit word that helped me make bulbs”.

Agastya Samhita portrays formula of making an Battery, & that water can be divided into O2 & H.

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥

दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

Take an earthenware,put the copper sheet in it. Cover it first with copper sulfate & then by moist sawdust.
After that,put a mercury-amalgamated zinc sheet on top of the sawdust to avoid polarization.The contact will produce an energy known by the twin name of Mitra-Varuna.

ताम्रपत्रं means (Copper Sheet)

Mitra is Cathode

Varuna is the Anode

शिखिग्रीवा means Copper sulfate

दस्तलोष्ट means (Zinc)

मित्रावरुणशक्ति (Electricity).

Agastya Samhita also gives details of using electricity for Electroplating.

Rishi Agastya figured out the method of polishing copper or gold or silver by the battery, Due to such brilliant invention, Rishi Agastya is also called Kumbodbhav (Battery Born).

अनने जलभंगोस्ति प्राणोदानेषु वायुषु।एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

If U use the power of 100Kumbha’s (10cells made in the above manner & added in series)on water, then the water will change its form into O2 & Hydrogen. Here प्राणवायु means O2,उदान वायु means H.

Rishi Agastya’s accomplishment as one of India’s oldest & wisest Rishis is surprising that shows the prosperous history & culture of India.

We are unaware of the information provided in our ancient Sanskrit texts.

while the Western countries have followed our Sanskrit texts for carrying out all major inventions.

We should read our Vedas and other Sanskrit texts to know how the Indian Rishi’s were having a treasure of knowledge & had done inventions much before any other country.

विष्णु जी की प्राचीन प्रतिमा, विदिशा म्यूजियम ।
11/09/2024

विष्णु जी की प्राचीन प्रतिमा, विदिशा म्यूजियम ।

 #डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान  #लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नही...
16/07/2024

#डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान #लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, #ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ हथियार उठाने का संकल्प लिया। अप्रैल, 1858 के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक #दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और #झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं। झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर मे उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होंने झांसी पर क़ब्ज़ा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा, मुझे फाँसी दो। जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ, और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया। इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"।

सम्मान
भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है। उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में निर्माणाधीन है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।

 #छत्रपति  #ताराबाई  #भोसले : महारानी ताराबाई राजाराम भोसले (१६७५-१७६१) राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी( पहली पत्नी जानकीब...
03/06/2024

#छत्रपति #ताराबाई #भोसले :
महारानी ताराबाई राजाराम भोसले (१६७५-१७६१) राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी( पहली पत्नी जानकीबाई) तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की कन्या थीं। इनका जन्म 1675 में हुआ और इनकी मृत्यु 9 दिसंबर 1761 ई० को हुयी। महारानी ताराबाई का पूरा नाम ताराबाई भोंसले था। उन्हे ताराराणी या ताराऊ कहां जाता था। राजाराम की मृत्यु के बाद इन्होंने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी दित्तीय का राज्याभिषेक करवाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गयीं। ताराबाई का विवाह छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज प्रथम के साथ हुआ राजाराम 1689 से लेकर 1700 में उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात ताराबाई मराठा साम्राज्य कि संरक्षिका बनी। और उन्होंने शिवाजी दित्तीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और एक संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य को चलाने लगी उस वक्त शिवाजी द्वितीय मात्र 4 वर्ष के थे 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका उन्होंने औरंगजेब को बराबर की टक्कर दी और उन्होंने 7 सालों तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई सरदारों को एक करके वापस मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनकी निर्देशक क्षमताएँ और सामर्थ्य का परिचय उनकी सामरिक ( युद्ध-नीति-विषयक ) उपलब्धियों में दिखता है। उदाहरण, मुग़ल बल के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय समर्थन जुटाना और मुगल हमलों के प्रतिरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना ।

उनकी प्रमुख उपलब्धियों में 1700 में कोल्हापुर की लड़ाई शामिल है, जहां उन्होंने मुग़ल सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक मराठा प्रबलबल की रक्षा की। विविध चुनौतियों का सामना करते हुए भी, ताराबाई ने मराठा साम्राज्य की रक्षा करने के लिए अपने उत्साह और योजनात्मक दक्षता का परिचय दिया।

ताराबाई का इतिहास सिर्फ सामरिक ( युद्ध-नीति-विषयक ) उपलब्धियों तक ही सीमित नहीं है। वह शासकीय क्षमताओं के लिए भी प्रसिद्ध थीं और मराठा फाटकांची ( द्वारपाल ) एकता बनाए रखने के प्रयासों में शामिल रहीं। उनके राजकीय कार्यक्षमता और महान दृढ़ता के कारण, उनका युग भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है ।

ताराबाई का निधन 1761 में हो गया, वह अपने साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व की विरासत छोड़कर गईं, उनका व्यक्तित्व महाराष्ट्र और देश की पीढ़ियों को आज भी प्रेरित करता है।

    with 26 faces, 52 hands known as  . The Sthanumalayan Temple, Kanyakumari.Sthanu is shiva,Mal is Vishnu,Ayan is Bram...
09/01/2024

with 26 faces, 52 hands known as . The Sthanumalayan Temple, Kanyakumari.
Sthanu is shiva,
Mal is Vishnu,
Ayan is Bramha

Picture of mahasadashiva taken from Thanumalyan Temple 🚩
What is the meaning behind Shiva with 26 heads and 52 hands?

I was wondering what the meaning is behind Shiva's 26 heads and 52 hands in a temple in Tamil Nadu? I have never seen him in this form before.

Only in Thanumalayan temple situated at Suchindram you can see this like Shiva as per our knowledge –

He is known as:
Maha Sadashiva

Maha sadashiva is an extended form of Sadashiva.

Sadasiva (Sanskrit: चताशिव, Catāśiva, Tamil: சதாசிவம் ), is the Supreme Being Lord Parashivam in the Mantra marga Siddhanta sect of Shaivism. Sadasiva is the omnipotent, subtle, lumnious absolute. The highest manifestation of almighty who is blessing with Anugraha or grace, the fifth of Panchakritya - "Holy five acts" of Shiva. Sadasiva is usually depicted having five faces and ten hands, is also considered as the one of 25 Maheshwara murtams of Lord Shiva. Sivagamas conclude, Shiva Lingam, especially Mukhalingam, is the another form of Sadasiva

Another variation of Sadasiva later evolved into another form of Shiva known as Mahasadasiva, in which Shiva is depicted with twenty five heads with seventy-seven eyes and fifty arms.

From Sanskrit, Maha means greater. Hence Maha sadhashiva is a greater form of Sadashiva. The significance is similar to Sadashiva. See this other post from Tezz What are the symbols and weapons in the hand of Sadashiva?.

He is known to have twenty five heads with seventy-seven eyes and fifty arms. (Even though the number is supposed to be infinite)


This image is in representation of one of the sixty-three bodily forms which Siva assumed, under the designation of Maha-Sadasiva. This monstrous and diabolical image is generally made of wood and stone, bearing no less than twenty-five heads and fifty hands according to the number described in the Skanda Puranam, but in the carved images made and worshipped by the Hindus, it bears twenty-five heads and thirty-two hands—(as represented in plateNo. 30) thirty of which arc shown as holding various kinds of destructive weapons—viz. the hand

No. 1, is shewn holding a Dhanussu (A bow),* No. 2, an Anbu or Banum (Arrow), No. 3, a Cudghum or Chundranytodunt (Sword) No. 4, a Gadum, (Mace) No. 5, a Chakram (discus), No. 6, a Sunkoo (Conch), No. 7, a Vultidy, No. 8, an Unkoosum (Goad), No. 9, a Pausum (A rope), No. 10, a Shoolam (trident), No. 11,a Velayudhum (spear), No. 12, an Belly, No. 13, an Pry-Betty, No. 14, allium, No. 15, a Coonthum, No. 16, a Thoamaram, No. 17, a Pitulypatt-lum, No. 18, a Baunkoo, No. 19, a Cut/a:cry, No. 20, a Bumpum, No. 21, a Dundanyoodutn, No. 22, a Guthay-oodum or Guthy, No. 23, a Vujrayoodum, No. 24, a Parashu (axe) or Cunda-Coadauly, No. 25, a Nairstsm, No. 26, a Nuosoondy, No. 27, a Gound, No. 28, a Cuppunum, No. 29, a Nattykum, No. 30, a Malloo.

The thirty-first hand is in the attitude of bestowing a benediction and the lust, as promising protection. We have described the above instruments as near as possible in English by the corresponding numbers in the Note below. It is stated in the Scunda Pooranum, that the five principal heads described in Plate No. 30 as rising one upon another immediately from the neck of the idol, are emblems of the five attributes of Siva, namely the pow-ers of-Creating, Preserving, Destroying, Judging, and Rewarding, these are the five powers of this deity ac-cording to the Agama of the Siva sect. Each of these is again subdivided into five separate offices making in all twenty-five, to represent which Siva assumed in the interval between creation and destruction, the bodily shape of Maha-Sadasiva having twenty-five faces and fifty hands. The work of creation during its continuance includes the exercise of the several powers of creating, destroying, judging and rewarding—and that Maha-Sadasiva exerts his Omnipotence in all creations animate and inanimate. The liindoo sacred writs also affirm in strong language, that many Vishnus, Brahmas, forty-eight thousand Rishis or Saints, seven Muroo-thoocal ; Indra, and numerous Devatahs, and heavenly musicians and others, so crowded together to worship the emblem of Maha-Sadasiva on the holy mountains of Maha-Kailasa, that their crowns clashed with each other. The adoration, and anointing of this image are the same as those performed for the idols preceding this No.
The significance of each of the different 25 heads as mentioned in a blog are:

From Eesaana

Somaskhandhar
Natarajar
Rishabha Roodar
Kalyana Sundarar
Chandrashekharar
From Thathpurusham

Bikshaadanar
Kaama dhahanar
Kaala Samharar
Salandara Vadhar
Tripuraari
From Aghoram

Ghaja Samharar
Veera Bhathrar
Dakshinamurthy
Thiru Neelakantar
Kraadhar
From Vaamadhevam

Kanghaalar
Chakra Dhaana
Ghajaari
Chandesa Anugraha Moorthy
Eka Paadha
From Sathyojaatham

Lingothbhava

Sukhaasana

Hariyartha Moorthy

Ardhanarishwara

Uma Maheshwar



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