History of Things

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History of Things It is a page which talks about the real history of things and events. We also share knowledge of making products or handicrafts etc so that children can learn .
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History of Things is a Knowledge sharing platform in which we share only those things which are unique and different . We promote those artists and free lancers who are doing something 4 the society and humanity. If you have some latest news or something unique u can share with us and if you are an artist send us message and tell us wat u do we will promote your art for free of cost to everywhere around the world. "We believe that truth should reach to everyone in its original form"

 #डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान  #लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नही...
16/07/2024

#डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान #लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, #ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ हथियार उठाने का संकल्प लिया। अप्रैल, 1858 के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक #दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और #झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं। झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर मे उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होंने झांसी पर क़ब्ज़ा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा, मुझे फाँसी दो। जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ, और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया। इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"।

सम्मान
भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है। उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में निर्माणाधीन है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।

 #छत्रपति  #ताराबाई  #भोसले : महारानी ताराबाई राजाराम भोसले (१६७५-१७६१) राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी( पहली पत्नी जानकीब...
03/06/2024

#छत्रपति #ताराबाई #भोसले :
महारानी ताराबाई राजाराम भोसले (१६७५-१७६१) राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी( पहली पत्नी जानकीबाई) तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की कन्या थीं। इनका जन्म 1675 में हुआ और इनकी मृत्यु 9 दिसंबर 1761 ई० को हुयी। महारानी ताराबाई का पूरा नाम ताराबाई भोंसले था। उन्हे ताराराणी या ताराऊ कहां जाता था। राजाराम की मृत्यु के बाद इन्होंने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी दित्तीय का राज्याभिषेक करवाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गयीं। ताराबाई का विवाह छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज प्रथम के साथ हुआ राजाराम 1689 से लेकर 1700 में उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात ताराबाई मराठा साम्राज्य कि संरक्षिका बनी। और उन्होंने शिवाजी दित्तीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और एक संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य को चलाने लगी उस वक्त शिवाजी द्वितीय मात्र 4 वर्ष के थे 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका उन्होंने औरंगजेब को बराबर की टक्कर दी और उन्होंने 7 सालों तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई सरदारों को एक करके वापस मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनकी निर्देशक क्षमताएँ और सामर्थ्य का परिचय उनकी सामरिक ( युद्ध-नीति-विषयक ) उपलब्धियों में दिखता है। उदाहरण, मुग़ल बल के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय समर्थन जुटाना और मुगल हमलों के प्रतिरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना ।

उनकी प्रमुख उपलब्धियों में 1700 में कोल्हापुर की लड़ाई शामिल है, जहां उन्होंने मुग़ल सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक मराठा प्रबलबल की रक्षा की। विविध चुनौतियों का सामना करते हुए भी, ताराबाई ने मराठा साम्राज्य की रक्षा करने के लिए अपने उत्साह और योजनात्मक दक्षता का परिचय दिया।

ताराबाई का इतिहास सिर्फ सामरिक ( युद्ध-नीति-विषयक ) उपलब्धियों तक ही सीमित नहीं है। वह शासकीय क्षमताओं के लिए भी प्रसिद्ध थीं और मराठा फाटकांची ( द्वारपाल ) एकता बनाए रखने के प्रयासों में शामिल रहीं। उनके राजकीय कार्यक्षमता और महान दृढ़ता के कारण, उनका युग भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है ।

ताराबाई का निधन 1761 में हो गया, वह अपने साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व की विरासत छोड़कर गईं, उनका व्यक्तित्व महाराष्ट्र और देश की पीढ़ियों को आज भी प्रेरित करता है।

    with 26 faces, 52 hands known as  . The Sthanumalayan Temple, Kanyakumari.Sthanu is shiva,Mal is Vishnu,Ayan is Bram...
09/01/2024

with 26 faces, 52 hands known as . The Sthanumalayan Temple, Kanyakumari.
Sthanu is shiva,
Mal is Vishnu,
Ayan is Bramha

Picture of mahasadashiva taken from Thanumalyan Temple 🚩
What is the meaning behind Shiva with 26 heads and 52 hands?

I was wondering what the meaning is behind Shiva's 26 heads and 52 hands in a temple in Tamil Nadu? I have never seen him in this form before.

Only in Thanumalayan temple situated at Suchindram you can see this like Shiva as per our knowledge –

He is known as:
Maha Sadashiva

Maha sadashiva is an extended form of Sadashiva.

Sadasiva (Sanskrit: चताशिव, Catāśiva, Tamil: சதாசிவம் ), is the Supreme Being Lord Parashivam in the Mantra marga Siddhanta sect of Shaivism. Sadasiva is the omnipotent, subtle, lumnious absolute. The highest manifestation of almighty who is blessing with Anugraha or grace, the fifth of Panchakritya - "Holy five acts" of Shiva. Sadasiva is usually depicted having five faces and ten hands, is also considered as the one of 25 Maheshwara murtams of Lord Shiva. Sivagamas conclude, Shiva Lingam, especially Mukhalingam, is the another form of Sadasiva

Another variation of Sadasiva later evolved into another form of Shiva known as Mahasadasiva, in which Shiva is depicted with twenty five heads with seventy-seven eyes and fifty arms.

From Sanskrit, Maha means greater. Hence Maha sadhashiva is a greater form of Sadashiva. The significance is similar to Sadashiva. See this other post from Tezz What are the symbols and weapons in the hand of Sadashiva?.

He is known to have twenty five heads with seventy-seven eyes and fifty arms. (Even though the number is supposed to be infinite)


This image is in representation of one of the sixty-three bodily forms which Siva assumed, under the designation of Maha-Sadasiva. This monstrous and diabolical image is generally made of wood and stone, bearing no less than twenty-five heads and fifty hands according to the number described in the Skanda Puranam, but in the carved images made and worshipped by the Hindus, it bears twenty-five heads and thirty-two hands—(as represented in plateNo. 30) thirty of which arc shown as holding various kinds of destructive weapons—viz. the hand

No. 1, is shewn holding a Dhanussu (A bow),* No. 2, an Anbu or Banum (Arrow), No. 3, a Cudghum or Chundranytodunt (Sword) No. 4, a Gadum, (Mace) No. 5, a Chakram (discus), No. 6, a Sunkoo (Conch), No. 7, a Vultidy, No. 8, an Unkoosum (Goad), No. 9, a Pausum (A rope), No. 10, a Shoolam (trident), No. 11,a Velayudhum (spear), No. 12, an Belly, No. 13, an Pry-Betty, No. 14, allium, No. 15, a Coonthum, No. 16, a Thoamaram, No. 17, a Pitulypatt-lum, No. 18, a Baunkoo, No. 19, a Cut/a:cry, No. 20, a Bumpum, No. 21, a Dundanyoodutn, No. 22, a Guthay-oodum or Guthy, No. 23, a Vujrayoodum, No. 24, a Parashu (axe) or Cunda-Coadauly, No. 25, a Nairstsm, No. 26, a Nuosoondy, No. 27, a Gound, No. 28, a Cuppunum, No. 29, a Nattykum, No. 30, a Malloo.

The thirty-first hand is in the attitude of bestowing a benediction and the lust, as promising protection. We have described the above instruments as near as possible in English by the corresponding numbers in the Note below. It is stated in the Scunda Pooranum, that the five principal heads described in Plate No. 30 as rising one upon another immediately from the neck of the idol, are emblems of the five attributes of Siva, namely the pow-ers of-Creating, Preserving, Destroying, Judging, and Rewarding, these are the five powers of this deity ac-cording to the Agama of the Siva sect. Each of these is again subdivided into five separate offices making in all twenty-five, to represent which Siva assumed in the interval between creation and destruction, the bodily shape of Maha-Sadasiva having twenty-five faces and fifty hands. The work of creation during its continuance includes the exercise of the several powers of creating, destroying, judging and rewarding—and that Maha-Sadasiva exerts his Omnipotence in all creations animate and inanimate. The liindoo sacred writs also affirm in strong language, that many Vishnus, Brahmas, forty-eight thousand Rishis or Saints, seven Muroo-thoocal ; Indra, and numerous Devatahs, and heavenly musicians and others, so crowded together to worship the emblem of Maha-Sadasiva on the holy mountains of Maha-Kailasa, that their crowns clashed with each other. The adoration, and anointing of this image are the same as those performed for the idols preceding this No.
The significance of each of the different 25 heads as mentioned in a blog are:

From Eesaana

Somaskhandhar
Natarajar
Rishabha Roodar
Kalyana Sundarar
Chandrashekharar
From Thathpurusham

Bikshaadanar
Kaama dhahanar
Kaala Samharar
Salandara Vadhar
Tripuraari
From Aghoram

Ghaja Samharar
Veera Bhathrar
Dakshinamurthy
Thiru Neelakantar
Kraadhar
From Vaamadhevam

Kanghaalar
Chakra Dhaana
Ghajaari
Chandesa Anugraha Moorthy
Eka Paadha
From Sathyojaatham

Lingothbhava

Sukhaasana

Hariyartha Moorthy

Ardhanarishwara

Uma Maheshwar



A marvel of a kind ! Created by Khasi tribe in Meghalaya, N.E India !
11/12/2023

A marvel of a kind !

Created by Khasi tribe in Meghalaya, N.E India !

01/12/2023

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पुराने चित्रों में चीखता हुआ इतिहास जैसा की आप जानते ही हैं की अंग्रेज़ों को भारतीय शब्दों का उच्चारण में कठिनाई होती है...
23/10/2023

पुराने चित्रों में चीखता हुआ इतिहास

जैसा की आप जानते ही हैं की अंग्रेज़ों को भारतीय शब्दों का उच्चारण में कठिनाई होती है अत: जब भारत में वे राज्य करने लगे तो बहुत से स्थानों का नाम उन्होंने सुविधानुसार बदल दिया । यहाँ , सुविधा का तात्पर्य उनकी जीभ की बनावट से था ।

अंग्रेज़ी भाषा में जब “ m” और “ b” एक साथ प्रयुक्त होते हैं तब अंग्रेज़ “ ब” का उच्चारण नहीं करते , हम भारतीय कर लेते हैं ।

जैसे dumb का उच्चारण अंग्रेज़ “ डम” और भारतीय “डम्ब “ के रूप में करता है । दूसरा उदाहरण Plumber का देख लीजिए । अंग्रेज इसे “प्लमर “ उच्चारित करता है और भारतीय “प्लम्बर “ ।

अब रिवर्स एन्जयरिंग समझिए । जैसे भारत के एक राज्य का नाम “ जम्बू काश्मीर “ था तो अंग्रेज़ी में जम्बू को Jambu लिखा गया पर अंग्रेज़ Jambu को जमू ही उच्चारित कर पाएगा , अपनी भाषा और अपनी जीभ की बनावट के अनुसार । हम भारतीय तो नक़लची होते ही हैं । वे जमू कहने लगे तो हमने भी जम्मू कर लिया ।

दो तीन सौ वर्षों के जितने भी अभिलेख प्राप्त होते हैं उसमें जम्बू काश्मीर और तिब्बत ( वही तिब्बत जिसे नेहरू ने चीन को दे दिया ) को एक साथ ही दर्शाया गया है

#इतिहसhistory

इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्हों...
08/09/2023

इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्होंने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग चुना और हमेशा भजन तथा कीर्तन के माध्यम से श्री कृष्णा को याद किया करते थे मीराबाई ने बहुत सारे भजन लिखे थे इन भजनों में मीराबाई ने श्री कृष्ण के विभिन्न रूपों का उल्लेख भी किया है और श्री कृष्ण की मूर्ति हमेशा अपने साथ रखा करते थे और दिन और रात उसी मूर्ति की पूजा पाठ किया करते थे

मीराबाई राणा संग्राम सिंह की पुत्रवधू थी और महाराणा_प्रताप से उनका रिश्ता बड़ी माता का होता था जब मेवाड़ पर अकबर ने 1567 में आक्रमण किया और यह चित्तौड़ का तथा मेवाड़ का तीसरा साका था इस युद्ध में अकबर ने अनगिनत राज्य के लोगों को मरवाया था उसकी सेना ने राज्य में रह रहे नागरिकों का भी कत्लेआम किया था इन सभी से महाराणा प्रताप का मन युद्ध तथा ऐसी परिस्थितियों से दूर होने लगा तभी मीराबाई उनको दर्शन देकर समझाते हैं और महाराणा प्रताप का मनोबल पुनः बढ़ाने का प्रयास करते हैं जिससे महाराणा प्रताप युद्ध करने का निश्चय करते हैं और अपनी प्रजा तथा लोगों को न्याय दिलाने के लिए अकबर से युद्ध करने के लिए सेना को संगठित करतेे हैं और अपने प्रदेश को आजाद रखने का प्रयत्न करते हैं जिसमें उनको सफलता मिल जाती है

मीराबाई का प्रारंभिक जीवन :-

मीराबाई का जन्म मेड़ता के शासक रतन सिंह राठौड़ के घर हुआ था मीराबाई उनके माता-पिता की इकलौती संतान थी और मीराबाई के जन्म के कुछ वर्षों बाद उनकी माता का देहांत हो गया था उनकी माता के देहांत के बाद मीराबाई के दादा राव दूदा राठौड़ मीराबाई को अपने पास ले आते हैं और उनका लालन-पालन करते हैं राव दूदा राठौड़ भगवान विष्णु के उपासक थे और उनकी उपासना दिन और रात किया करते थे जब वे उपासना करते थे तो मीराबाई भी उनको देखकर प्रभावित हुई और मीराबाई भक्ति भाव तथा पूजा पाठ करनेे लगे मीराबाई उनकी माता की दी हुई श्री कृष्ण की मूर्ति की पूजा पाठ करने लगे थे राव दूदा राठौड़ एक योद्धा भी थे जिन्होंने विभिन्नन सैन्य अभियान में भाग लिया था और एक विष्णु भक्त उपासक भी थे इस कारण उनके महल के आसपास साधु-संतों का आना-जाना लगा रहता था और उनके साथ भजन कीर्तन किया करते थे इन सभी को देखकर मीराबाई भी बाल्यावस्था से ही तथा नए भजन लिखने लगे और उन्हें गाने भी लगे थे राव दूदा राठौड़ ने मीराबाई को बाल्यावस्था से तलवारबाजी घुड़सवारी तथा युद्धध करने की विभिन्न पद्धतियोंं से अवगत करवाया था तथा इने परीक्षण भी दिया था

मीराबाई का विवाह :-

मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह ने अपने बड़े पुत्र भोजराज का रिश्ता मेड़ता के शासक रतन सिंह राठौड़ की पुत्री मीराबाई से करने का प्रस्ताव भेजा और इस प्रस्ताव को मेड़ता के शासक रतन सिंह राठौड़ ने स्वीकार किया और इसके बाद मीराबाई और कुंवर भोजराज का विवाह सांस्कृतिक रीति रिवाज से संपन्न हो जाता है विवाह के 10 वर्षों के बाद कुंवर भोजराज की मृत्यु हो जाती है और पति की मृत्यु के बाद ही उनके ससुर महाराणा संग्राम सिंह जो इतिहास में राणा सांगा के नाम से भी प्रसिद्ध है उनकी भी मृत्यु खानवा के युद्ध में 1527 में मुगल अक्रांता बाबर के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं इसके बाद राणा सांगा के दूसरे पुत्र रतन सिंह मेवाड़ के महाराणा बनते हैं लेकिन 1531 में उनकी भी मृत्यु हो जाती है इसके बाद विक्रमादित्य को मेवाड़ का महाराणा बनाया जाता है मीराबाई अपने श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थी और दिन और रात साधु संतों के साथ भजन करना और भगवा वस्त्र धारण करके साधु साध्वीयों के साथ यात्रा पर जाना यह सब देख कर विक्रमादित्य ने अपनी बहन को मीराबाई को समझाने के लिए कहा परंतु मीराबाई ने उनकी बात नहीं मानी और वे इसी तरह पूजा पाठ तथा भजन कीर्तन और यात्रा पर जाना यह सब लगातार करने लगे थे इसके बाद 1533-34 के आसपास राव वीरमदेव राठौड़ मीराबाई को मेड़ता ले आते हैं और जैसे ही मीराबाई मेवाड़ को छोड़कर मेड़ता पहुंचते हैं तो पीछे मेवाड़ पर संकट के काले बादल छा जाते हैं

मेवाड़ पर संकट आना :-

मीराबाई राव वीरमदेव राठौड़ के प्रस्ताव पर मेवाड़ छोड़कर मेड़ता चले जाते हैं और मेड़ता पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है और उनके लिए भजन कीर्तन कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है और दूसरी तरफ 1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह मेवाड़ पर आक्रमण कर देता है इस आक्रमण में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं और राजमाता कर्मावती के नेतृत्व में हजारों की संख्या में क्षत्राणीया जोहर करते हैं यह मेवाड़ का दूसरा साका था और मेवाड़ की प्रस्तुतियां और भी कठिन होती जा रही थी मेड़ता से मीराबाई भगवान कृष्ण की नगरी की यात्रा करने के लिए निकलते हैं मीराबाई के मेड़ता से चले जाने के बाद जोधपुर रियासत के शासक राव मालदेव राठौड़ मेड़ता पर अधिकार कर लेते हैं और मेड़ता के शासक वीरमदेव राठौड़ मेड़ता को छोड़कर अजमेर की तरफ चले जाते हैं मीराबाई द्वारिका में श्रीकृष्ण की भक्ति में साधु संतों के साथ भजन कीर्तन करते हैं

कृष्ण भक्ति में लीन मीराबाई :-

मीराबाई द्वारिका में श्रीकृष्ण की भक्ति में भजन कीर्तन करते हैं और साधु संतो के साथ वन वन भटकते हैं और ईश्वर को प्राप्त करने की चेष्टा में भारत के विभिन्न मंदिरों की यात्रा करते हैं यह सब समाचार सुनकर मेवाड़ के राजपरिवार को अच्छा नहीं लगने लगा इसलिए उन्होंने कुछ ऐसे प्रयत्न किए परंतु इनमें सफलता नहीं मिली जब मेवाड़ के शासक महाराणा उदयसिंह बनते हैं तो उदय सिंह इतिहास में घटी हुई परिस्थितियों को समझते हैं और अपने परिवार तथा सगे संबंधियों से कहते हैं कि मेवाड़ की स्थिति इतनी खराब हुई इसके पीछे एक मात्र कारण हम लोग ही है क्योंकि हमने एक ईश्वर रूपी देवी का अपमान किया है इस कारण हमारी रियासत पर इतने सारे संकट आए हैं और इसके बाद महाराणा उदय सिंह आदेश देते हैं और साधु-संतों तथा मंत्रियों को कहते हैं कि आप सह सम्मान से मीराबाई को वापिस मेवाड़ लेकर आए इसके बाद ब्राह्मण तथा कुछ मंत्री मीरा बाई को लाने के लिए चले जाते हैं जब वे द्वारका पहुंचते हैं तो मीराबाई से कहते हैं कि हमें माफ कर दीजिए आप दोबारा मेवाड़ चलिए हमारे साथ लेकिन मीराबाई मना कर देते हैं परंतु ब्राह्मण तथा कुछ मंत्री जिद पर बैठ जाते हैं और कहते हैं कि जब तक आप हमारे साथ नहीं चलेंगे तब तक हम भी यहां रुकेंगे फिर मीराबाई कहते हैं के आज कृष्णा जन्माष्टमी के उत्सव की तैयारी चल रही है इस तैयारी में सभी लोग थे और मीराबाई कहते हैं कि अगली सुबह मैं आपके साथ मेवाड़ चलूंगी तब सभी ब्राह्मण तथा मंत्री खुश हो जाते हैं और कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव में शामिल हो जाते हैं उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा था भजन कीर्तन तथा ढोलक शहनाई की गूंज सुनाई दे रही थी तभी अचानक मीराबाई मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करती है और मंदिर के कपाट बंद कर देती है जब ज्यादा समय के बाद पुजारी ने कपाट खोले तो देखा मीराबाई गर्भ ग्रह में नहीं थी अर्थता मीराबाई मूर्ति में समाहित हो चुके थे

अपनी ताकत पर भरोसा करो, उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है।- नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीआज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापक और स्वत...
18/08/2023

अपनी ताकत पर भरोसा करो, उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है।

- नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी

आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापक और स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता, जिनकी वीरता, साहस और देशभक्ति ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया। ऐसे महान राष्ट्रवादी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी को उनकी पुण्य तिथि पर शत्-शत् नमन।

 #साल_था_1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में को...
10/08/2023

#साल_था_1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर डाली।
मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर 'उल्लाल' राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी 'अबक्का चौटा'
पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। लेकिन उनमेंसे कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल 'डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा' (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।

चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल 'जाओ पिक्सीटो' (João Peixoto) बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला।
लेकिन यह क्या..?? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लड़े किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पड़ी।
बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।कालीकट के राजा के जनरल ने रानी अब्बक्का की ओर से लड़ाई लड़ी और मैंगलुरु में पुर्तगालियों का किला तबाह कर दिया। लेकिन वहाँ से लौटते वक्त जनरल पुर्तगालियों के हाथों मारे गए।
अब आप अन्त जानने में उत्सुक होंगे..??
रानी अबक्का के देशद्रोही पति लक्षमप्पा ने पुर्तगालियों से धन लेकर उसे पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान मारी गई।
क्या आपने इस वीर रानी अबक्का चौटा के बारे में पहले कभी सुना या पढ़ा है..?? इस रानी के बारे में जो चार दशकों तक विदेशी आततायियों से वीरता के साथ लड़ती रही, हमारी पाठ्यपुस्तकें चुप हैं। अगर यही रानी अबक्का योरोप या अमेरिका में पैदा हुई होती तो उस पर पूरी की पूरी किताबें लिखी गई होती।
है।
आज भी रानी अब्बक्का चौटा की याद में उनके नगर उल्लाल में उत्सव मनाया जाता है और इस ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ में प्रतिष्ठित महिलाओं को ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार से नवाज़ा जाता है।
इस कहानी से दो बातें साफ हैं..
हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से जानबूझ कर वन्चित रखा गया है। "रानी अबक्का चौटा" के बारे में "कुछ लोग" तो शायद पहली बार ही ये सुन रहे होगे, ये हमारी 1000 साल की दासता अपने ही देशवासियों (भितरघातियों) के विश्वासघात का नतीजा है। दुर्भाग्य से यह आज भी यथावत है.

क्रांतिकारी वीणा दास (बिना दास):   1986 में दिसंबर के महीने में ऋषिकेश में एक खाई से एक अनाथ शव मिला जो पूरी तरह सड़ चुक...
10/08/2023

क्रांतिकारी वीणा दास (बिना दास):

1986 में दिसंबर के महीने में ऋषिकेश में एक खाई से एक अनाथ शव मिला जो पूरी तरह सड़ चुका था काफी पता करने पर पता चला कि वो एक महान देश भक्त बीनादास है, जो कलकत्ता विश्वविद्यालय की छात्रा थी,
ये वही बिनादास थी जिन्होंने बंगाल के गवर्नर जैक्सन पर गोली चलाई थी जो बहुत घटिया ब्रिटिश अधिकारी था इसके बाद बिनादास को गिरफ्तार कर के 9 सालों के लिए जेल भेज दिया,और लगभग 9 सालों बाद उन्हें रिहा किया गया था।
रिहाई के तुरंत बाद दास 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर के 1942 से 1945 तक जेल भेज दिया गया।
उन्होंने 1947 में स्वतंत्रता सेनानी ज्योतिष भौमिक से शादी की, लेकिन आज़ादी की लड़ाई में भाग लेती रही, अपने पति की मृत्यु के बाद वे कलकत्ता छोड़कर, जमाने की नजरों से दूर ऋषिकेश के एक छोटे से आश्रम में जाकर रहने लगी अपना गुजारा करने के लिए बच्चो को ट्यूशन पढ़ाती थी और एक प्राइवेट स्कूल में 25 रुपए की नौकरी भी करती थी पर उहोंने सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को लेने से इंकार कर दिया।
हम लोगो को शर्म आनी चाहिए कि देश के लिए खुद को समर्पित कर देने वाली इस वीरांगना का अंत बहुत ही दुखदपूर्ण था, महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रोफेसर सत्यव्रत घोष ने अपने एक लेख,
"फ्लैश बैक: बिना दास-रीबोर्न" में उनकी मार्मिक मृत्यु के बारे में लिखा है,
उन्होने कहां,
उन्होंने सड़क के किनारे अपना जीवन समाप्त किया,
उनका मृत शरीर बहुत ही छिन्न भिन्न अवस्था में था,
रास्ते से गुजरने वाले लोगों को उनका शव मिला, पुलिस को सूचित किया गया और महीनो की तलाश के बाद पता चला कि यह शव बिनादास का है, यह सब उसी आज़ाद भारत में हुआ जिसके लिए इस अग्नि - कन्या ने अपना सब कुछ ताक पर रख दिया था, देश को इस मार्मिक कहानी को याद रखते हुए देर से ही सही, लेकिन अपनी इस महान स्वतंत्रता सेनानी को नमन करना चाहिए।

शत शत नमन 🙏

आज के छात्रों को भी नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है ...
03/08/2023

आज के छात्रों को भी नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। जैसे देखे

क ख ग घ ड़ - पांच के इस समूह को
🌺कण्ठव्य🌺

कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें।

च छ ज झ ञ - इन पाँचों को
🌺तालव्य🌺
तालुकहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।

ट ठ ड ढ ण - इन पांचों को
🌺मुर्धन्य🌺
कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।

त थ द ध न - पांच के इस समूह को
🌺दन्तवय🌺
कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। उच्चारण का प्रयास करें।

प फ ब भ म - पांच के इस समूह को कहा जाता है 🌺ओष्ठव्य🌺

क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। उच्चारण का प्रयास करें।

दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है! निःसंदेह, हमें अपनी ऐसी भारतीय भाषा पर गर्व होना चाहिए।
साभार

 #अद्भुत_सनातन_धर्म- :: तमिलनाडु के रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर का यह बाहरी गलियारा दुनिया का सबसे लंबा गलियारा है,||38...
02/08/2023

#अद्भुत_सनातन_धर्म- :: तमिलनाडु के रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर का यह बाहरी गलियारा दुनिया का सबसे लंबा गलियारा है,||

3850 फीट की कुल लंबाई वाले इस गलियारे में 30 फीट की ऊंचाई वाले 1212 खंभे हैं,||

आज से लगभग 1000 साल पहले सैकड़ो टन वजनी पत्थरों को इतनी ऊंचाई तक ले जाने के लिए किन मशीनों का प्रयोग किया गया यह अभी भी अज्ञात है,||

भारत में कई सदियों पहले एक किताब- ( #मेरुतुंगाचार्य_रचित_प्रबन्ध_चिन्तामणि) आई थी जिसमें महान लोगों के बारे में कई हस्तल...
16/07/2023

भारत में कई सदियों पहले एक किताब- ( #मेरुतुंगाचार्य_रचित_प्रबन्ध_चिन्तामणि) आई थी जिसमें महान लोगों के बारे में कई हस्तलिखित कहानियाँ थी। कोई कहता है किताब १३१० के दशक में आई तो कोई उसे १३६० के दशक का मानता है, १३१० वाले ज़्यादा लोग हैं। खैर मुद्दा वो नहीं है, किताब का १४ वीं सदी का होना ही काफी है। उसमें राजा भोज पर भी कई कहानिया है जिसमें से एक ये है, जिसे थोड़ा ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए -

एक रात अचानक आँख खुल जाने से राजा भोज ने देखा कि चाँदनी के छिटकने से बड़ा ही सुहावना समय हो रहा है, और सामने ही आकाश में स्थित चन्द्रमा देखने वाले के मन मे आल्हाद उत्पन्न कर रहा है। यह देख राजा की आँखें उस तरफ अटक गई और थोड़ी देर में उन्होने यह श्लोकार्ध पढ़ा -

यदेतइन्द्रान्तर्जलदलवलीलां प्रकुरुते।
तदाचष्टे लेाकः शशक इति नो सां प्रति यथा॥

अर्थात् - "चाँद के भीतर जो यह बादल का टुकड़ा सा दिखाई देता है लोग उसे शशक (खरगोश) कहते हैं। परन्तु मैं ऐसा नहीं समझता।"

संयोग से इसके पहले ही एक विद्वान् चोर राज महल मे घुस आया था और राजा के जाग जाने के कारण एक तरफ छिपा बैठा था।
जब भोज ने दो तीन वार इसी श्लोकार्ध को पढ़ा और अगला श्लोकार्ध उनके मुँह से न निकला तब उस चोर से चुप न रहा गया और उसने आगे का श्लोकार्ध कह कर उस श्लोक की पूर्ति इस प्रकार कर दी-

अहं त्विन्दु मन्ये त्वरिविरहाक्रान्ततरुणो।
कटाक्षोल्कापातव्रणशतकलङ्काङ्किततनुम्॥

अर्थात् - "मै तो समझता हूं कि तुम्हारे शत्रुओ की विरहिणी स्त्रियो के कटाक्ष रूपी उल्काओं के पड़ने से चन्द्रमा के शरीर में सैकड़ों घाव हो गए हैं और ये उसी के दाग़ हैं।"

अपने पकड़े जाने की परवाह न करने वाले उस चोर के चमत्कार पूर्ण कथन को सुनकर भोज बहुत खुश हुये और सावधानी के तौर पर उस चोर को प्रातःकाल तक के लिये एक कोठरी मे बंद करवा दिया। परंतु उस समय विद्वता की पूछ परख ज्यादा थी सो अगले दिन प्रातः उसे भारी पुरस्कार देकर विदा किया गया।

लगभग 250 साल के लंबे अंतराल के बाद, गेलेलियों ने ३० नवंबर सन १६०९ को पहली बार टेलिस्कोप से चंद्रमा देखा और अपनी डायरी में नोट किया कि, "चंद्रमा की सतह चिकनी नहीं है जैसी कि मानी जाती थी (क्योंकि केवल आंखो से वह ऐसी ही दिखती है), बल्कि असमतल और ऊबड़-खाबड़ है।" वहाँ उन्हे पहाड़ियाँ और गढ़हों जैसी रचनाएँ नज़र आई थी। उन्होने टेलिस्कोप से खुद के देखे चंद्रमा एक स्केच भी अपनी डायरी में बनाया।

कहानी का सार बस इतना है कि जिस समय चर्च यह मानता था कि रात का आसमान एक काली चादर है, जिसमें छेद हो गए और उसमे से स्वर्ग का प्रकाश तारों के रूप में दिख रहा है, उस समय भारत के एक चोर को भी ये पता था कि चंद्रमा की सतह समतल नहीं है और उस पर जो दाग हैं वो उल्काओं के गिरने से बने हैं।

अब ये अलग बात है कि स्वयंभू वामपंथी इतिहासकारों, सेक्युलरता के घातक रोग से पीड़ित लिबरलों, और खुद पर ही शर्मिंदा कुछ भारतीय गोरों को यह बात आज भी नहीं पता, क्योंकि ना तो उन्हे इतिहास का अध्ययन करना आता है और ना ही उनमें इतनी क्षमता ही है।

 #प्रेरकप्रसंग एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के ...
04/07/2023

#प्रेरकप्रसंग

एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।

डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।

किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वह शांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं।

अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा।सभी उसको गालियां दे रहे थे।गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे।किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।

ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया. कड़क आवाज में पूछा, "किसने ट्रेन रोकी"।
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"।
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, अकारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ! ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।

उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- यहाँ से करीब एक फरलाँग की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं।आप चाहे तो चलकर देख सकते है।

गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी।नट-बोल्ट खुले हुए थे।अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे।वे उसकी और कौतूहलवश देखने लगे, मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..

गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- श्रीमान लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे।उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ।ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो।अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।

गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये. गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान ! आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते।अपना परिचय दीजिये।

शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- श्रीमान मैं भारतीय #इंजीनियर #मोक्षगुंडम_विश्वेश्वरैया...

जी हाँ ! वह असाधारण शख्स कोई और नही "डॉ विश्वेश्वरैया" थे।

 #गोरा_बादल : गौरा और बादल ऐसे ही दो  #शूरवीरों के नाम है, जिनके पराक्रम से राजस्थान की मिट्टी बलिदानी है .जीवन परिचय और...
06/06/2023

#गोरा_बादल :
गौरा और बादल ऐसे ही दो #शूरवीरों के नाम है, जिनके पराक्रम से राजस्थान की मिट्टी बलिदानी है .

जीवन परिचय और इतिहास :

गौरा ओर बादल दोनों चाचा भतीजे जालोर के चौहान वंश से सम्बन्ध रखते थे | #मेवाड़ की धरती की गौरवगाथा गोरा और बादल जैसे वीरों के नाम के बिना अधूरी है. हममें से बहुत से लोग होंगे, जिन्होंने इन शूरवीरों का नाम तक न सुना होगा !

मगर मेवाड़ की माटी में आज भी इनके रक्त की लालिमा झलकती है. मुहणोत नैणसी के प्रसिद्ध काव्य ‘ #मारवाड़ रा परगना री विगत’ में इन दो वीरों के बारे पुख्ता जानकारी मिलती है. इस काव्य की मानें तो रिश्ते में चाचा और भतीजा लगने वाले ये दो वीर जालौर के चौहान वंश से संबंध रखते थे, जो रानी पद्मिनी की विवाह के बाद चितौड़ के राजा रतन सिंह के राज्य का हिस्सा बन गए थे।

ये दोनों इतने पराक्रमी थे कि दुश्मन उनके नाम से ही कांपते थे. कहा जाता है कि एक तरफ जहां चाचा गोरा दुश्मनों के लिए काल के सामान थे, वहीं दूसरी तरफ उनका भतीजा बादल दुश्मनों के संहार के आगे मृत्यु तक को शून्य समझता था. यहीं कारण था कि मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उन्हें अपनी सेना की बागडोर दे रखी थी।

#राणा #रतनसिंह को #खिलजी की कैद से छुड़ाना :

खिलजी की नजर मेवाड़ की राज्य पर थी लेकिन वह युद्ध में राजपूतों को नहीं हरा सका तो उसने कुटनीतिक चाल चली , मित्रता का बहाना बनाकर रावल रतनसिंह को मिलने के लिए बुलाया और धोके से उनको बंदी बना लिया और वहीं से सन्देश भिजवाया कि रावल को तभी आजाद किया जायेगा, जब रानी #पद्मिनी उसके पास भजी जाएगी।

इस तरह के धोखे और सन्देश के बाद राजपूत क्रोधित हो उठे, लेकिन रानी पद्मिनी ने धीरज व चतुराई से काम लेने का आग्रह किया। रानी ने गोरा-बादल से मिलकर #अलाउद्दीन को उसी तरह जबाब देने की रणनीति अपनाई जैसा अलाउद्दीन ने किया था। रणनीति के तहत खिलजी को सन्देश भिजवाया गया कि रानी आने को तैयार है, पर उसकी दासियाँ भी साथ आएगी।

खिलजी सुनकर आन्दित हो गया। रानी पद्मिनी की पालकियां आई, पर उनमें रानी की जगह वेश बदलकर गोरा बैठा था। दासियों की जगह पालकियों में चुने हुए वीर राजपूत थे। खिलजी के पास सूचना भिजवाई गई कि रानी पहले रावल रत्नसिंह से मिलेंगी। खिलजी ने बेफिक्र होकर अनुमति दे दी। रानी की पालकी जिसमें गोरा बैठा था, रावल रत्नसिंह के तम्बू में भेजी गई।

अलाउद्दीन खिलजी पर आक्रमण

गोरा ने #रत्नसिंह को घोड़े पर बैठा तुरंत रवाना कर और पालकियों में बैठे राजपूत खिलजी के सैनिकों पर टूट पड़े। राजपूतों के इस अचानक हमले से खिलजी की सेना हक्की-बक्की रहा गई वो कुछ समझ आती उससे पहले ही राजपूतों ने रतनसिंह को सुरक्षित अपने दुर्ग पंहुचा दिया , हर तरफ कोहराम मच गया था गोरा और बादल काल की तरह दुश्मनों पर टूट पड़े थे , और अंत में दोनों वीरो की भांति लड़ते हुवे #वीरगति को प्राप्त हुवे |

गोरा और बादल जैसे वीरों के कारण ही आज हमारा इतिहास गर्व से अभिभूत है. ऐसे वीर जिनके बलिदान पर हमारा सीना चौड़ा हो जाये, उन्हें कोटि-कोटि नमन | मेवाड़ के #इतिहास में दोनों वीरों की वीरता स्वर्ण अक्षरों में अंकित है |
#भारत #इतिहास #वीरता

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