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22/01/2020

आखिर क्यों ,मनोहर सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है ?

विज के साथ सीएम का शीत युद्ध जारी, महम विधायक बलराज कुंडू भी लगातार सरकार पर जड़ रहे आरोप
इस बार आखिर ऐसा हुआ क्या कि सीएम इतने लाचार से साबित हो रहे हैं।

दा न्यूज इनसाइडर .चंडीगढ़
दूसरे कार्यकाल में सीएम मनोहर लाल की मुश्किल लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसा उनके साथ क्यों हो रहा है। गृह मंत्री अनिल विज जहां लगातार एक के बाद एक बयान दाग कर सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। दूसरी ओर महम के विधायक बलराज कुंडू भी लगातार मुखर है। दोनों ही मामलों में निपटने में सीएम मनोहर लाल खुद को असहाय मान रहे हैं। हालात यह है कि सीएम न तो विज को चुप करा पा रहे हैं न कुंडू को। यदि मनोहर लाल का पहला कार्यकाल देखे तो हम पाएंगे कि सरकार में उनकी चलती थी। उनका एक एक शब्द न सिर्फ कार्यकर्ता बल्कि विधायक और मंत्री भी मानते थे। इस बार आखिर ऐसा हुआ क्या कि सीएम इतने लाचार से साबित हो रहे हैं। प्रदेश में दस लोकसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी विधानसभा चुनाव में बहुमत से चुक गयी। इस स्थिति के लिए पार्टी के कई नेता मनोहर लाल की नीतियों व कार्यप्रणाली का जिम्मेदार मान रहे हैं। क्यों मनोहर के लिए विपरीत बन रहे हालात...।

विज मनोहर विवाद क्या रंग लेगा
बीच गृह मंत्री अनिल विज ने सीआईडी प्रमुख अनिल राव को चार्जशीट करने के आदेश जारी कर दिए। उन्हें पता है यह आदेश माने नहीं जाएंगे। फिर भी उन्होंने यह आदेश जारी कर दिए। हुआ भी वही, स्टोरी लिखा जाने तक विज के आदेश माने भी नहीं गए थे। फिर भी विज ने न सिर्फ आदेश दिए, बल्कि सीएम को पत्र भी लिख दिया। यह पत्र उन्होंने मीडिया में लीक भी कर दिया। इस तरह से बिना कुछ किए वह प्रदेश में खासी चर्चा बटोर गए। विज अपनी छवि आक्रमक नेता के तौर पर बनाना चाह रहे हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि उन्हें सीएम खुल कर खेलने का मौका नहीं दे रहे हैं।

तो क्या सीएम पद से मनोहर लाल की छुट्टी हो सकती है

ऐसा अभी होता नजर तो नहीं आ रहा है। हालांकि यह बात सही है कि सीएम की जानकारी के बिना ही विज को गृह मंत्रालय दिया गया है। यह भी सही है कि विज को इस बार मुखर होने की थोड़ी छूट केंद्रीय आलाकमान की ओर से दी गयी है। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि सीएम मनोहर लाल की साफ्ट छवि आैर विज के मुखर तेवर में ऐसा तालमेल बन जाए कि सरकार हर क्षेत्र में प्रभावी नजर आए। लेकिन फिलहाल केंद्र का यह प्रयोग फ्लाप होता नजर आ रहा है। ऐसे में कुछ सियासी हलको में यह चर्चा आम हो रही है कि क्या मनोहर लाल को सीएम पद से हटाया जा सकता है। लेकिन इसकी संभावना अभी खासी कम नजर आ रही है। एक तो यह है कि अभी मनोहर लाल का कोई विकल्प प्रदेश में नहीं है। दूसरी वजह यह है कि जिस तरह से विज आक्रामक है, उन्हें भी सीएम पद पर बिठाने का जोखिम भाजपा शायद ही लें। ऐसे में अभी कुछ समय तक मनोहर लाल ही सीएम के पद पर रह सकते हैं। लेकिन यह भी तय है कि यदि उनका विरोध इसी तरह से बढ़ता रहा तो आने वाला समय उनके लिए खासा मुश्किल भरा हो सकता है। क्योंकि

वर्कर की बेकद्री हुई
इस सरकार में सबसे ज्यादा बेकद्री इसके वर्कर की हो रही है। कई ऐसे मौके आए, जब वर्कर इस बात का रोना रोते नजर आए कि उनकी बात को सुना ही नहीं जा रहा है। इसके लिए ज्यादातर नेता सीएम को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सीएम कई मौकों पर वर्कर की अनदेखी कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव से पहले भी सीएम सार्वजनिक तौर पर वर्कर की बेइज्जती कर गए। इससे पार्टी का एक बड़ा तबका निष्क्रिय हो गया। इन हालात में अब भी बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है। अभी भी वर्कर की ज्यादा नहीं सुनी जा रही है।

न घोटाले थमे न भ्रष्टाचार

कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में एक बड़ी भूमिका घोटाले और भ्रष्टाचार की रही है। लेकिन इस सरकार में भी यह कम नहीं हो रहे हैं। मनोहर के दूसरे कार्यकाल में धान घोटाला हुआ। जिससे आम किसान को आर्थिक तौर पर दिक्कत का सामना करना पड़ा। विधानसभा तक में यह मामला उठा। इसके बाद भी सरकार इस घोटाले की तह तक नहीं पहुंच पायी। ऐसे में एक बड़ा वोटर्स तबका यह मान कर चल रहा है कि सरकार जानबूझ कर घान घोटालेबाजों तक पहुंचना नहीं चाह रही है। इसलिए बार बार फिजिकल वैरिफिकेशन कराने के बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। इससे सरकार की छवि भ्रष्टाचार को लेकर आम आदमी के मन में कुछ कम हुई है। इसी तरह से भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा है। आम आदमी इससे बेहद त्रस्त है।

विपक्ष तो चुप है फिर दिक्कत क्या?
कांग्रेस के पास वर्कर नहीं है। नेता है, जो ग्राउंड में उतरना नहीं चाह रहे हैं। क्योंकि पता है अभी विधानसभा चुनाव दूर है। एक आध नेता के छोटे छोटे बयान को यदि छोड़ दिया जाए तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस फिलहाल मौन ही नजर आ रही है। कांग्रेस की नीति रही है कि जनता को परेशान होने दो। तभी वह सरकार से विमुख होकर उन्हें वोट देगी। इसी थ्यूरी पर अभी भी कांग्रेस चल रही है। जहां तक इनेलो की बात है, वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। जेजेपी सरकार के साथ है। ऐसे में आवाज उठाने वाला बचा ही कौन?

विज ही क्यों बोल रहे हैं
इसलिए क्योंकि कुछ मंत्री स्थिति बदलना चाह रहे हैं। उन्हें पता है कि मतदाता तेजी से भाजपा से छिटक रहा है। दूसरे कार्यकाल में पिछले कार्यकाल की तुलना में सरकार की लोकप्रियता तेजी से कम हो रही है। विज समेत कुछ मंत्रियों को चिंता यह है कि यदि इसी तरह से चलता रहा तो आने वाल समय खासा दिक्क्तों वाला हो सकता है। इसलिए वह बोल रहे हैं। हालांकि ज्यादातर मंत्री अभी भी सीएम के खिलाफ बोलने से बच रहे हैं। लेकिन वह कहीं न कहीं यह तो मान कर चल रहे हैं कि वह खुलकर काम नहीं कर पा रहे हैं। गृह मंत्री अनिल विज के तेवर उन्हें भी कहीं न कहीं अच्छे लग रहे हैं।

रहस्मयमी है हारे हुए मंत्रियों की चुप्पी
मनोहर अकेले ही मुश्किल हालात में हैं। हारे हुए मंत्री भी उनके बारे में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। इसमें से ज्यादातर मंत्री अपनी हार की वजह भी सीएम की कार्यप्रणाली को ही मान कर चल रहे हैं। इसलिए वह विज के बयान से सहमत होते नजर आते हैं। यह अलग बात है कि इस पर वह खुल कर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। मनोहर के लिए दूसरी दिक्कत यह है कि उनके पास अपने विधायकों व मंत्रियों की टीम नहीं है। जो उनके लिए ढाल का काम कर सके। सीएम अपने विधायकों व मंत्रियों की बजाय अधिकारियों पर ज्यादा यकीन करते हैं। इसलिए भी उनके प्रति नाराजगी बढ़ रही है।

16/01/2020

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January 16, 2020

क्या सरकार अपने ही गृह मंत्री अनिल विज का फोन टैप करा रही है?

इस तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है, सीएम और मंत्री के बीच नया विवाद
सीआईडी को गृह विभाग से अलग करने पर बढ़ी तकरार, विज पीछे हटने को तैयार नहीं
दा न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़
क्य गृह मंत्री अनिल विज का फोन टैप हो रहा है। विज ने इस तरह की आशंका व्यक्त की है। उन्होंने एक रिपोर्ट भी मांगी है कि प्रदेश में किस किस के फोन टैप हो रहे हैं।
यह विवाद उस वक्त सामने आया, जब सीएम और विज के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने कहा कि जिस प्रदेश का गृह मंत्री का ही फोन टैप हो रहा है तो आम आदमी का क्या होगा? ढुल ने बताया कि यह बहुत ही चिंता की बात है। सरकार को इस पर स्प्ष्टीकरण देना चाहिए।
फोन टैपिंग का क्या है नियम

फोन टैपिंग करने से पहले एक प्रपोजल तैयार होगा। इसमें स्पष्ट करना होगा कि क्यों और किस कारण से यह कदम उठाना प़ रहा है। वह व्यक्ति कौन है? उसके फोन को टेप करने की जरूरत क्यों है? इससे कानून को क्या मदद मिल सकती है। यह प्रस्ताव गृह विभाग के पास जाएगा। वहां इसकी समीक्षा होगी। अब गृह विभाग तय करेगा कि फोन टेप की इजाजत दी जाए या नहीं। यदि गृह विभाग को लगता है कि फोन टेप जरूरी है तो वह इसकी इजाजत दे सकता है। यदि लगता है कि यह सही नहीं है तो वह इससे इंकार भी कर सकता है। गृह विभाग की इजाजत के बाद भी एक कमेटी इसकी समीक्षा करेगी। इस कमेटी में एक कैबिनेट सचिव, विधि सचिव और टेलीकम्यूनिकेशन सचिव होगा। प्रदेश स्तर पर बनी कमेटी में मुख्य सचिव, विधि सचिव और सचिव स्तर का एक अधिकारी होगा। इन तीनों का काम टैपिंग पर दिए गए निर्णय की समीक्षा करना होता है। फोन टैपिंग के मामले में यह भी नियम है कि किसी भी व्यक्तिका फोन एक बार अनुमति मिलने के बाद दो महीने तक टैप किया जाएगा। इसके बाद समयावधि बढ़ाने के लिए फिर से अनुमति लेनी होगी। किसी भी व्यक्ति का फोन अधिकतम 6 महीने ही टैप किया जा सकता है।

क्या इस तरह से फोन टैप हो सकता है
भले ही यह नियम हो, लेकिन पुलिस के लिए फोन टैप करना बेहद आसान है। मनोहर सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान करनाल के कई पत्रकारों के फोन टैप होते रहे हैं। उनकी बातचीत को सरकार के लिए काम करने वाले एक विशेष अधिकारी ने सार्वजनिक भी कर दिया था। यह रिकार्डिंग करनाल में सरकार के लिए तब काम करने वाले लोगों ने एक पुलिसकर्मी के साथ मिल कर की थी। इन्होंने लगातार लंबे समय तक काल टैप की, इस बातचीत का इस्तेमाल तब तब किया जब जब उन्हें लगा कि पत्रकार पर खबर रोकने का दबाव बनाना है। करनाल के बहुत से लोगों के पास इस फोन टैप की जानकारी थी। फोन टैप करने वालों ने भी अपना प्रभाव दिखाने के लिए कई बार सार्वजनिक तौर पर यह दावा किया था कि वह इस काम को अंजाम दे रहे हैं।

सीएम और विज में बढ़ रहा है टकराव
दूसरी ओर सीएम और विज के बीच अब टकराव बढ़ने लगा है। मुद्​दा सीआईडी विभाग गृह विभाग से अलग करने का हो, लेकिन पीछे वजह दूसरी भी है। हालांकि हर बार की तरह इस बार भी विज जहां विवाद पर संभल कर बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सीएम चुप है। लेकिन दूसरी ओर सीआईडी को गृह विभाग से अलग करने की तैयारी जोरो पर चल रही है। सीएम चुप रह कर यह काम बहुत ही शांत ढंग से कर रहे हैं। विज की अभी तक की टिप्पणी पर उन्होंने कोई ठोस प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी है। हालांकि विज ने अब इस विवाद को पार्टी आलाकमान तक पहुंचा दिया है। इसके बाद भी वह शांत बैठते नजर नहीं आ रहे हैं। वह यह भी बोल रहे हैं कि सीएम को अधिकार है कि वह किसी भी मंत्री के विभाग कम कर सकता है या बढ़ा सकता है।
तकरार की वजह क्या है?
दरअसल अनिल विज सीएम की कार्यप्रणाली से ज्यादा सहमत नहीं है। यहीं वजह है कि जब भी मौका मिलता है वह सीएम को घेर लेते हैं। पिछले कार्यकाल में भी और इस बार भी सीएम की कार्यप्रणाली में खास बदलाव नहीं आया है। विज क्योंकि पार्टी के सीनियर नेता है। उनका मानना है कि सीएम की जो अभी तक की कार्यप्रणाली है, इससे न तो जनता को लाभ हो रहा है न पार्टी को। यहीं वजह है कि वह कुछ मुद्​दों को लेकर मुखर है।

सीएम और मंत्री में दूरी की एक वजह तालमेल की कमी है
हरियाणा की राजनीति पर शोध कर रहे दीपक शर्मा ने बताया कि ऐसा लगता है कि दूसरे कार्यकाल में भी मनोहर लाल वहीं गलती कर रहे हैं, जो पहले कार्यकाल में करते रहे हैं। उनका अपने मंत्रियों के साथ तालमेल नहीं है। सीएमओ में ऐसे लोगों को मुख्य पदों पर लगा दिया है जो मंत्रियों को खास तवज्जो नहीं देते। हालांकि कई दूसरे मंत्री भी इस व्यवस्था से नाराज है, लेकिन वह खुल कर बोलने से बचते हैं।

तो इस विवाद का हल क्या है?
फिलहाल सीएम और विज के बीच चल रहे विवाद का हल होता दिखायी नहीं दे रहा है। इसके पीछे बढ़ वजह यह है कि मनोहर लाल का इस बार पार्टी आलाकमान में कद कुछ हद तक कम हुआ है। इसकी वजह यह रही कि पार्टी बहुमत के आंकड़े से दूर रही। इसके लिए सीधे तौर पर मनोहर लाल की नीतियों को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सीएम का विरोध करने वालों का तर्क है कि यदि इस बार भी सरकार के कामकाज में बदलाव नहीं हुआ तो प्रदेश का मतदाता भाजपा से दूर जा सकता है। यहीं वजह प्वाइंट है जिसका मनोहर लाल के पास फिलहाल तोड़ नहीं है।

बहरहाल विज और मनोहर विवाद ने एक बात तो साफ कर दी कि जब प्रदेश के गृह मंत्री के साथ फोन टैप जैसी घटना हो सकती है तो फिर आम आदमी का तो खैर कहना ही क्या? उसका तो फोन जब चाहे टैप करा लिया जाए। फिर भी गृह मंत्री ने अपनी ओर से पहल करते हुए पुलिस को एक पत्र लिखा हैं, जिसमें उन्होंने फोन टैप करने को लेकर हिदायत जारी की है। अब देखना यह है कि इस हिदायत का कितना पालन होता है। हालांकि जिस तरह से सीआईडी को गृह विभाग से अलग किया जाने की कोशिश हो रही है, इसके पीछे भी कहीं न कहीं फोन टैपिंग विवाद भी एक वजह हो सकता है। क्योंकि विज इस मामले की तह में जाना चाहते हैं, वहीं कुछ सरकार के कुछ लोग चाहते हैं कि इस तरह की जानकारी लीक नहीं होनी चाहिए। अब देखना यह है कि फोन टैपिंग पर नियमों की पालना होती है या नहीं।

21/12/2019

पीवी के लिए बनी कमेटियां, पहले चरण की जांच के लिए मिल किए चिंहित
द न्यूज इनसाइडर के पास सबसे पहले पहुंची लिस्ट
द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़
फिजिकल वैरिफिकेशन के लिए आखिरकार टीमों का गठन कर दिया गया है। पहले चरण में काैन कौन से राइस मिल की पीवी होगी, इसकी भी लिस्ट तैयार हो गयी है। यह लिस्ट संबंधित अधिकारियों तक भेज दी गयी है। अब से कुछ देर में पीवी का काम शुरू हो जाएगा। यह स्पेशल पीवी तब हो रही है, जब इस बार धान की सरकारी खरीद में घोटाले के आरोप लगे हैं। इन आरोपों के बाद ही सरकार ने यह निर्णय लिया था। बताया गया कि पीवी के लिए इस बार वीडियोग्राफी भी होगी। विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी पीके दास ने बताया कि पीवी के दौरान किसी भी तरह की अनियमितता बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने मिल संचालकों को यह भी यकीन दिलाया कि पीवी के दौरान उन्हें किसी भी तरह से तंग नहीं किया जाएगा। यदि कोई अधिकारी उन्हें तंग करता है तो इसकी शिकायत वह विभाग को करें, निश्चित ही ऐसा करने वाले अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ उचित कार्यवाही होगी। दूसरी ओर पीवी के लिए अब मिल संचालक भी तैयार होना शुरू हो गए हैं। अपने अपने स्टाक की जांच कर रहे हैं। जिससे पीवी के दौरान किसी तरह की दिक्कत न आए।
पीवी को लेकर द न्यूज इनसाइडर ने अपने स्तर पर एक टीम तैयार की है। वह हर गतिविधियों पर नजर रखेगी। यदि टीम किसी भी मिल संचालक को नाजायज तरीके से तंग करती है तो इसकी शिकायत हमारी टीम को कर सकते हैं। आपका नाम भी गुप्त रखा जाएगा। इसके लिए हमारे वाट्सअप पर मैसेज भेज सकते हैं। आप हमें इस बाबत मेल भी कर सकते हैं। हमारा मेल आईडी [email protected] पर भी शिकायत दी जा सकती है।

पहली लिस्ट में कई राइस मिलर्स छोड़ दिए गए, जिन पर संदेह हैं

पहली लिस्ट में कई ऐसे नाम छोड़ दिए, जिन पर गड़बड़ी का संदेह है। यह नाम बहुत ज्यादा नहीं है। न्यूज पोर्टल ने पहले ही ऐसे राइस मिलर्स की एक लिस्ट जारी की थी, जिन्होंने बड़ी मात्रा में सरकारी धान लिया है। उनकी जांच की दिशा में ज्यादा कुछ स्पष्ट नहीं है। हालांकि निदेशालय से मिली जानकारी के मुताबिकि जरूरत हुई तो पीवी के लिए कुछ और नाम भी चिंहित किए जा सकते हैं। फिलहाल पहली लिस्ट पर ही काम होगा। लेकिन जिस तरह से कुछ नाम लिस्ट से गायब है, वह कुछ अलग ही संकेत देते नजर आ रहे हैं। यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने कहा कि इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि मिलर्स और सरकार के बीच कोई समझौता तो नहीं हो गया। जिससे सरकार की बात भी रह जाए, मिलर्स की बात भी खराब न हो। दूसरी वजह यह भी हो सकती कि सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों ने ही घोटालेबाज मिलर्स को बचाने का काम किया हो। क्योंकि यदि पीवी में रिकार्ड में हेराफेरी मिलती है तो उनकी भी जवाबदेही सुनिश्चित होगी। इस वजह से उन्होंने बीच का रास्ता निकाल लिया हो। जिससे पीवी भी हो जाए, गड़बड़ी करने वाले भी बचे रहे।

यह वजह जो पीवी पर सवाल खड़े कर रही है

जिला मिलिंग कमेटी ने धान की जो मात्रा तय की थी, सरकारी खरीद में कुछ राइस मिलर्स को इससे बहुत ज्यादा धान दिया गया।
क्या इसके लिए सरकार ने निर्देश दिए थे। यदि नहीं तो फिर खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने अपने स्तर पर ऐसा क्यों किया?
ज्यादा धान देने वाले अधिकारियों की अभी तक जांच क्यों नहीं हुई।
जिन राइस मिलर्स ने बहुत ज्यादा मात्रा में चावल एफसीआई में दे दिया, उनकी मिलिंग क्षमता की जांच क्यों नहीं?
जो चावल एफसीआई के पास आ रहा है, वह पूराना चावल तो नहीं, इसकी जांच के लिए अलग से अभी तक कुछ नहीं किया गया।

पीवी के विरोध से मिलर्स पीछे हटे
दूसरी ओर पीवी का विरोध कर रहे मिलर्स अब पीछे हट गए हैं। उन्होंने काम शुरू करने का ऐलान भी कर दिया है। इससे यहीं लग रहा है कि अब मिलर्स व सरकार के बीच जो टकराव के हालात थे, वह फिलहाल टलते नजर आ रहे हैं। निदेशालय ने अधिकारियों को विशेष तौर पर हिदायत दी कि वह इमानदारी से इस काम को करेंगे। किसी भी तरह की अनियमितता की शिकायत मिलने पर तुरंत कार्यवाही होगी। पीवी पर निदेशालय के आला अधिकारी लगातार नजर बनाए हुए हैं। जिससे इस काम को सही तरह से अंजाम दिया जा सके।

18/12/2019

भाजपा के चेहते मिलर्स करा रहे सरकार की फजीहत, नहीं झूकी सरकार, पीवी 20 से शुरू

द न्यूज इनसाइडर की स्टोरी से सरकार की सीख, मिलर्स को दो टूक, पीवी होगी, मंजूर नहीं तो कर दो धान वापस
हमारा मत मत: विरोध करने वाले मिलर्स की पीवी सही से तो घोटाला खुद ब खुद उजागर होगा

द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़
फिजिकल वैरिफिकेशन (पीवी ) का विरोध करने वालों में ज्यादातर वह मिलर्स शामिल है, जो एक समय भाजपा के काफी नजदीक रहे हैं। यहीं मिलर्स बाकी मिलर्स पर दबाव बना कर सरकार की फजीहत करा रहे हैं। पीवी के विरोध में सरकारी धान से चावल न बनाने का निर्णय लेने के पीछे भी इनकी अपनी सोच है। न्यूज वैबसाइट के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि यदि पीवी का विरोध करने वाले मिल संचालक नेताओं के धान के स्टॉक का सही से निरीक्षण हो जाए तो पता चल जाएगा कि इस बार धान खरीद में कितना बड़ा घोटाला हुआ है। यहीं वह चंद लोग है जो बाकी मिलर्स पर दबाव बनाए हुए हैं कि वह भी पीवी का विरोध करे। यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि सरकार को चाहिए कि उन राइस मिलर्स की पीवी विशेष तौर पर कराए, जिन्हें जिला मिलिंग कमेटी द्वारा तय की धान की मात्रा से ज्यादा धान दिया गया है। क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ वहीं से शुरू हुई है।

सरकार नहीं झूकी, पीवी 20 से शुरू
दूसरी ओर मिलर्स के विरोध को दरकिनार करते हुए सरकार ने स्पेशल पीवी कराने के अपने निर्णय को अमली जामा पहनाते हुए 20 दिसंबर से से काम शुरू करने का निर्णय ले लिया है। इसी को लेकर निदेशालय खाद्य आपूर्ति विभाग की ओर से अंबाला फतेहाबाद, जींद, हिसार, कैथल,करनाल, कुरुक्षेत्र,पलवल, सिरसा और यमुनानगर के डीसी से वीरवार को एडिशनल चीफ सेक्रेटरी पीके दास वीडियो कांफ्रेंसिंग करेंगे। इसक सब्जेक्ट भी पीवी होगा। निदेशालय के प्रवक्ता ने द न्यूज इनसाइडर को बताया कि इस बार पीवी कराने के लिए अतिरिक्त इंतजाम किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछली बार जो गड़बड़ी रह गयी थी, वह इस बार नहीं होगी। उन्होंने यह भी बताया कि टीम पारदर्शी तरीके से पीवी के काम को करेगी।

सांसद ने बैरंग लौटाया मिलर्स को
दूसरी ओर पीवी के विरोध करने वाले मिलर्स बुधवार को सांसद संजय भाटिया से मिलने गए। लेकिन वहां सांसद ने उनकी एक नहीं सुनी। सांसद इस बात से भी खफा है कि क्यों मिलर्स ने सरकार विरोध नारे लगाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि मिलर्स को कोई दिक्कत थी तो उन्हें सही तरीके से व उचित माध्यम से अपनी बात सरकार के सामने रखनी चाहिए थी। लेकिन उनका तरीका गलत है। दूसरी ओर मिलर्स सरकार का विरोध तो कर रहे हैं, लेकिन वह विभाग के मंत्री डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के पास जाने से भी बच रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यदि मिलर्स को कोई दिक्कत है तो उन्हें विभाग के मंत्री के सामने उठानी चाहिए। तभी तो वह उनकी समस्या का समाधान करेंगे। बताया जा रहा है कि पीवी का विरोध करने वाले कुछ नेता क्योंकि खुद को भाजपा के नजदीक मान कर चल रहे थे,इसलिए वह काफी समय से विभाग के मंत्री की अनदेखी कर रहे थे।

पीवी से डर कैसा?

इधर जानकारों का कहना है कि पीवी से आखिर मिल संचालक डर क्यों रहे हैं। इसके पीछे दो वजह साफ तौर पर सामने आ रही है। मिलर्स के मुताबिक एक तो पीवी टीम में शामिल कुछ जांच अधिकारी रिश्वत की मांग करते हैं। यदि मिल संचालक उन्हें यह रिश्वत नहीं देते तो उन्हें तंग किया जाता है। पिछली बार पीवी के दौरान द न्यूज इनसाइडर की टीम ने भी एक मिल का स्टिंग किया था,इसमें सामने आया था कि टीम के सदस्यों का व्यवहार बहुत ही खराब रहा। उन्होंने चैकिंग के नाम पर मिल संचालक को खासा परेशान किया। इसलिए सही काम करने वाले मिलर्स को इस बार भी डर सता रहा है कि कहीं टीम अब फिर से रिश्वत की मांग न कर लें।
दूसरा वह मिलर्स डर रहे हैं जिन्होंने सरकारी धान की फर्जी खरीद दिखायी है। जबकि उन्होंने पिछली पीवी में अपना स्टॉक पूरा दिखा दिया था। अब यदि पीवी सही तरह से होती है तो उनके घोटाले का पता चल सकता है। जिससे उन पर कार्यवाही हो सकती है। विरोध के पीछे उनका यहीं डर काम कर रहा है।

डरे नहीं सहयोग करें, कोई रिश्वत मांगे तो करें शिकायत

मिलर्स के इस डर पर द न्यूज इनसाइडर की टीम ने एसीएस से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि पीवी से मिलर्स को डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि मिलर्स सहयोग करें, यदि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया तो डरने की जरूरत ही नहीं है। टीम अपना काम इमानदारी से करेगी। यदि इसके बाद भी किसी मिलर्स को शिकायत है तो वह इसकी जानकारी दें, गलत करने वालों से भी सख्ती से निपटा जाएगा। पीवी कराने के पीछे किसी को तंग करने की मंशा सरकार की नहीं है, बल्कि बार बार जो आरोप लग रहे हैं, उसकी तह में जाने की कोशिश है। जिससे घोटाला करने वालों की पहचान कर उन्हें उचित सजा दी जा सके।

द न्यूज इनसाइडर विचार यदि मिलर्स इमानदार है, उन्होंने कोई घोटाला नहीं किया तो एक बार क्या यदि दस बार भी पीवी हो जाती है तेा उन्हें डरना नहीं चाहिए। टीम अपना काम करेगी, मिलिंग से स्टॉक निरीक्षण का कोई सीधा कनेक्शन नहीं है। इसलिए यह तर्क गलत है कि यदि पीवी होती है तो इस दौरान काम रोकना पड़ेगा। टीम स्टॉक चैक करेगी, न की काम बंद कराएगी। जहां तक रिश्वत की मांग है, एक तो ज्यादातर मिल परिसर में कैमरे लगे हैं, इसलिए कैमरों के सामने कोई भी इतनी हिम्मत नहीं जुटाएगा कि रिश्वत की मांग करेगा। यदि कोई करता है तो उसकी सीधी शिकायत सरकार से की जानी चाहिए। द न्यूज इनसाइडर भी मिल संचालकों का यह भरोसा दिलाता है कि यदि पीवी के दौरान कोई अधिकारी या कर्मचारी रिश्वत मांगता है तो हमारी टीम मिलर्स के साथ कदम से कदम मिला कर खड़ी होगी, जिससे भ्रष्ट अधिकारियों को बेनकाब किया जा सके। अंत द न्यूज इनसाइडर की पूरी टीम भी मिलर्स से अपील करती है कि वह पीवी का विरोध करने की बजाय , सरकार का सहयोग करें। क्योंकि सरकारी धान में घोटाले को लेकर न सिर्फ मिलर्स बल्कि सरकार की साख भी दांव पर है। विपक्ष ने सदन में सरकार से जवाब मांगा था। सरकार पर लगातार विपक्ष घोटाला करने वाले मिलर्स को बचाने का आरोप लगा रहे हैं। अंत यदि मिलर्स विरोध करते हैं तो यहीं संदेश जाएगा कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। यूं भी सरकारी धान की खरीद का कनेक्शन सीधे सीधे किसान से हैं। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देती है। यह इसलिए कि खेती में नुकसान का जो जोखिम किसान उठाता है, उसे सामाजिक सुरक्षा मिल सके। यदि कोई फसल के समर्थन मूल्य में भ्रष्टाचार करता है तो यह एक तरह से देशद्रोह है, ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी ही चाहिए। दूसरी ओर पीडीसी का चावल गरीब की थाली में जाता है। सरकार इसके लिए भी भारी अनुदान देती है। सरकार के इस कदम से गरीबों को भी सामाजिक सुरक्षा मिलती है। इसमें भ्रष्टाचार का सीधा मतलब है गरीब के निवाले पर डाका, क्या सभ्य समाज में हम ऐसे भ्रष्टाचारियों को बर्दाश्त करेंगे? इस सवाल का जवाब आप खुद से तय कर लिजिए... संपादक

17/12/2019

सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले अब सरकार को कर रहे ब्लैकमेल, काम बंद करने की धमकी
सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले अब सरकार को कर रहे ब्लैकमेल, काम बंद करने की धमकी

घरौंडा में सोमवार को बैठक की, मंगलवार को एसडीएम को सीएम के नाम सौंपा ज्ञापन

द न्यूज इनसाइडर का मत : सरकार को चाहिए कि ज्ञापन सौंपने वाले मिलर्स से एफसीआई और विशेषज्ञों की देखरेख मे उठवा लें धान सारे घोटाले का आसानी से पर्दाफाश हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्ट मिल संचलाकों ने अफसरों, नेताओं व मीडिया को रिश्वत देने के लिए खूब जुटाया चंदा

द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़

सीएम सिटी करनाल में सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले मिलर्स ने फिजिकल वैरिफिकेशन से बचने के लिए अब नया दांव खेला है। तीन मीटिंगों के बाद भी जब सरकार ने पीवी वापस नहीं ली तो मिलर्स ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसमें वह मिलर्स सबसे ज्यादा है, जिन्होंने सरकारी धान खरीद में गड़बड़ी की है। क्योंकि पीवी का सबसे ज्यादा खतरा उन्हें हैं, इसलिए वह सही काम करने वाले मिलर्स को साथ मिला कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है। मिल की प्रशासन को चाबियां सौंपने के पीछे भी यहीं चाल है। जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके। सरकार पीवी का निर्णय वापस लें। द न्यूज इनसाइडर ने एक टीम इस बार सरकारी धान खरीद सिस्टम की स्टडी करने के लिए लगा रखी है। टीम ने पाया कि यह घोटाला बहुत बड़ा है। इसमें फूड माफिया की सीधी मिलीभगत है। जो यूपी, बिहार, पंजाब हरियाणा तक फैला हुआ है। इसके साथ ही इस गैंग में एफसीआई और खाद्य आपूर्ति विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी मिले हुए है। यह अधिकारी भी नहीं चाह रहे कि स्पेशल पीवी हो, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो उनके काले कारनामे भी सामने आ सकते हैं। इसलिए ऐसे ही कुछ अधिकारियों ने अब इन मिलर्स को यह सलाह दी है। ध्यान रहे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सरकारी धान लेने वाले राइस मिलर्स की स्पेशल पीवी कराने का आदेश दिया है। घोटालेबाज राइस मिलर्स का यह पीवी से बचने का पहला हथकंड नहीं है, इससे पहले जब सरकार ने मिलों में पुलिस तैनात की थी तब भी उन्होंने काफी हो हल्ला मचाया था। पीवी पर भी उन्होंने खासा ऐतराज जताते हुए दावा किया था इससे उनका काम प्रभावित हो रहा है। जबकि जानकारों का कहना है कि पीवी टीम के निरीक्षण से धान से चावल बनाने का काम प्रभावित नहीं होता। इसके बाद भी जब सरकार स्पेशल पीवी कराने पर अड़ी है तो राइस मिलर्स ने पहले कुरुक्षेत्र के सफायर होटल में, फिर नीलकंठ में और सोमवार को घरौंडा में बैठक आयोजित की। घरौंडा की बैठक में ही तय किया गया कि प्रशासन को मिल की चाबियां सौंप दी जाए। इस पर अमल करते हुए मंगलवार को करनाल के राइस मिलर्स ने एसडीएम नरेंद्र पाल मलिक को ज्ञापन सौंपा है।

क्यों, द न्यूज इनसाइडर की टीम बता रही कि सरकारी धान की खरीद में घोटाला हुआ
1 जब जिला मिलिंग कमेटी ने मिल संचालकों के लिए धान खरीद का कोटा निश्चित किया था, फिर कुछ राइस मिलर्स को इस कोटे से ज्यादा धान क्यों दिया गया? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है

क्या होना चाहिए था

इसकी जांच होनी चाहिए थी। वह क्या कारण है, जिससे कुछ मिलर्स को तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया। इसमें कौन कौन अधिकारी शामिल है। उस अधिकारी ने ऐसा क्यों किया? उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

क्यों होनी चाहिए थी यह जांच?

क्योंकि इससे पता चलता कि घोटाले की शुरुआत हुई कैसे। कुछ राइस मिलर्स ने खाद्य आपूर्ति अधिकारी अतिरिक्त मेहरबानी कैसे दिखा रहे है? इसके पीछे आखिर क्या खेल है।

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पीवी सही तरह से क्यों नहीं हुई?

जब सरकार ने पीवी का निर्णय लिया, इसमें गड़बड़ी पकड़ी जा सकती थी। लेकिन पीवी टीम में शामिल कुछ अधिकारियों ने जांच के नाम पर उगाही की। इस वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आयी।

क्या होना चाहिए था

इस टीम की जवाबदेही तय होनी चाहिए थी। पीवी में एफसीआई के विशेषज्ञों के साथ साथ दूसरे क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए था। जिससे पीवी निष्पक्ष तरीके से होती। टीम में शामिल हर कर्मचारी व अधिकारी को अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी चाहिए थी।

क्यों होनी चाहिए थे यह प्रावधान
क्योंकि हुआ यह कि गड़बड़ करने वाले मिलर्स ने बासमती धान को भी परमल धान दिखा दिया। यहीं सबसे बड़ा घोटाला है। दूसरा वजन का अध्ययन सही नहीं किया गया। टीम की जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए

गरीब के निवाले और किसान की मेहनत पर डाका है
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धान की सरकारी खरीद और पीडीएस दरअसल कल्याणकारी योजना है। इससे जहां किसान को न्यूतम समर्थन मूल्य की गारंटी रहती है, वहीं इससे पीडीएस सिस्टम भी चलता है। यह कल्याणकारी योजना में घोटाला है।

क्या होना चाहिए
होना तो यह चाहिए कि सरकारी धान की खरीद पूरी इमानदारी से हो, जिससे किसान को उसकी मेहनत का वाजिब दाम मिल सके। गरीब को पेट भरने के लिए सस्ता राशन मिलता रहे। इसके लिए हर चरण पर इमानदारी होनी चाहिए थी।

क्यों होना चाहिए
प्याज उदाहरण है। इस बार धान उत्पादक किसान फसल बेचने के लिए मारे मारे फिरते रहे। उन्हें न्यूनम समर्थन मूल्य तक नहीं मिला। यदि किसानों ने धान उगाना बंद कर दिया तो क्या हम प्याज की तरह महंगा चावल खरीदने पर मजबूर नहीं हो जाएंगे।

भ्रष्टाचार कितना बड़ा, इसे यूं समझे

खरीद में गड़बड़ी करने वाले हर अधिकारी को उसका तय हिस्सा दिया गया है।
जान पहचान वाले अधिकारी खरीद सिस्टम में रहे, उन्हें मंडी में लगवाने के लिए भारी पैसा दिया गया।
दूसरे राज्यों से आया एफसीआई के अधिकारी बिना आब्जेक्शन के ले लें, इसलिए उन्हें प्रति ट्रक पैसा दिया जाता है।

मीडिया खबरे प्रकाशित न करें, इसके लिए मीडिया को भी नवाजने का दावा किया गया है। नीलकंठ में मिलर्स की बैठक में मीडिया की भी एक सूचि जारी की गयी,जिसमें बताया गया कि किसे कितनी रकम दी गयी। इसमें पानीपत से प्रकाशित उपेक्षाकृत कम सकुर्लेशन वाले समाचार पत्र को दो लाख रुपए, यहीं से प्रकाशित बड़े सकुर्लेशन वाले समाचार पत्र को पांच लाख रुपए, रोहतक से प्रकाशित समाचार पत्र को पांच लाख रुपए, अंबाला से प्रकाशित समाचार पत्र को एक लाख रुपए, फेसबुक पर अति सक्रिय रहे पत्रकार को 10 लाख रुपए, व अन्य को उनके पोर्टल की रीच के हिसाब से रकम दी हुई बतायी गयी है। द न्यूज इनसाइडर इस मीडिया के नाम पर जारी इस सूचि की पुष्टि नहीं करता।न्यूज इनसाइडर की टीम इन मीडिया में चल रही खबरों का अध्ययन कर रही है, जिससे यह बताया जा सके कि इस घोटाले में किस मीडियाकर्मी की भूमिका क्या रही।

द न्यूज इनसाइडर का मत : सरकार का चाहिए कि सरकारी धान से चावल न बनाने की बात करने वाले मिलर्स की धान को उठवा लें। क्योंकि भ्रष्टाचारी मिल संचालक मान कर चल रहे हैं कि सरकार ऐसा निणर्य नहीं ले सकते, इसलिए उन्होंने दबाव की यह रणनीति बनायी है। यदि सरकार इस धान को उठा लेती है तो अपने आप गड़बड़ी पता चल जाएगी। जिससे गड़बड़ करने वाले मिल संचालकों की पोल खुद ब खुद खुल सकती है। सरकार को चाहिए कि इनसे धान उठवा कर उन राइस मिलर्स को दे दी जाए, जिन्हें या तो कम धान मिली है, या उनका रिकार्ड काफी अच्छा है। इससे जहां सरकार का काम आसान हो जाएगा, वहीं धान की सरकारी खरीद में होने वाली गड़बड़ी को पकड़ा जा सकता है। क्योंकि इस घोटाले के आरोपियों को सजा मिलनी बेहद जरूरी है। यदि ऐसा नहीं होता तो इससे किसान, गरीब और आम आदमी को आने वाले वक्त में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

14/12/2019

पीवी में बचने के हथकंडे खोजने में जुटे राइस मिलर्स, स्टॉक पूरा करने को मंगाया बाहर से चावल

कुरुक्षेत्र में मिलर्स ने बैठक कर फंड जुटाने पर दिया जोर, बोले उपर पैसे भेजने हैं

द न्यूज इनसाइडर , चंडीगढ़
सरकारी धान से चावल बनाने का काम करने वाले मिलों के फिजिकल वैरिफिकेशन (पीवी )दोबारा कराने के सरकार के निर्णय से राइस मिलर्स में हड़कंप मचा हुआ है। पहली पीवी किसी तरह से पूरी करने वाले मिल संचालकों के सामने अब समस्या यह है कि दोबारा कैसे स्टॉक पूरा दिखाया जाए। इसी को लेकर एक ओर जहां राइस मिल संचालक बैठक कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी मात्रा में यूपी और बिहार से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का चावल मंगाया जा रहा है। इस चावल के दम पर अपना स्टॉक पूरा दिखाया जा सके। करनाल में हर रोज बड़ी संख्या में चावल के ट्रक आ रहे हैं। जिन्हें मिल परिसरों के गोदामों में खाली कराया जा रहा है। इस बार धान की सरकारी खरीद में बड़ा घोटाला हुआ है। खरीद एजेंसियों के अधिकारियों ने मिलर्स व आढ़तियों के साथ मिल कर धान की फर्जी खरीद की। द न्यूज इनसाइडर ने इस घोटाले को उठाया। सरकार ने इस पर संज्ञान लिया। विपक्ष ने विधानसभा में मामला उठाया तो उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने पीवी कराने के निर्देश दिए। उन्होंने विधानसभा में यह भी बोला था कि जो भी दोषी होगा उसे सख्त सजा दी जाए। मामला उछलता देख कर गड़बड़ी करने वाले अधिकारी अब घोटाले को दबाने का प्रयास करने में जुटे हुए हैं। यहीं वजह रही कि पहली पीवी में मिलों में ज्यादा गड़बड़ी सामने नहीं आयी। अब सरकार ने दोबारा से पीवी कराने का निर्णय लिया है। इस बार भी कोशिश यहीं हो रही है कि किसी भी तरह से स्टॉक पूरा दिखा दिया जाए। जिससे यह मामला दब जाए। विपक्ष के नेता चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि यह सरकार घोटाला करने वालों को ही संरक्षण दे रही है। सरकार की गलत नीतियों की वजह से धान उत्पादक किसानों को खासी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा। किसानों को धान का वाजिब दाम तक नहीं मिला। एक ओर तो सरकार बार बार दावा करती है कि भ्रष्टाचार खत्म किया जाएगा। दूसरी ओर सरकार का भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर कोई दबाव नहीं है।

पहली पीवी के कागजों की यदि जांच कर ली जाए तो सामने आ जाएगा घोटाला

यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि दोबारा पीवी करने की बजाय यदि जांच अधिकारी पहली पीवी के कागजों की सही से जांच कर लें तो घोटाला सामने आ सकता है। एडवोकेट ढुल ने बताया कि बहुत से राइस मिलर्स ने दिखाया कि उन्होंने बड़ी मात्रा में चावल तैयार कर एफसीआई को दे दिया। यहां यह सवाल उठाया जाना चाहिए कि उनके मिल की चावल बनाने की क्षमता कितनी है। इस क्षमता से ही एफसीआई को दिये गये चावल की मात्रा का मिलान कर लिया जाए तो गड़बड़ सामने आ सकती है। क्योंकि इनके राइस मिल इतना चावल इतने कम समय में तैयार नहीं कर सकते। यानी यह चावल यूपी और बिहार से आया है। दूसरा यह है कि कई राइस मिल संचालक तो सिर्फ बासमती धान का काम करते हैं। वह परमल धान से चावल कैसे तैयार करेंगे? तीसरा मामला यह है कि सरकारी दस्तावेजों में ही बहुत से राइस मिलर्स को जिला मिल कमेटी द्वारा तय किए गए धान के कोटे से ज्यादा सरकारी धान दिया गया। यह क्यों दिया गया? इसके पीछे वजह क्या है? इसकी जांच होनी चाहिए। इस तरह से यदि छोटी छोटी जांच हो जाए तो यह घोटाला अपने आप सामने आ सकता है। एडवोकेट ने बताया कि लेकिन इस तरह की जांच नहीं हो रही है। ऐसा नजर आ रहा है कि चंडीगढ़ मुख्यालय में बैठे कुछ अधिकारी भी इस भ्रष्टाचार को दबाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।

दोबारा पीवी करने वाली टीम को मैनेज करने की तैयारी

दूसरी ओर कुरुक्षेत्र में राइस मिलर्स ने एक बैठक कर दो से तीन लाख रुपए प्रति मिल जुटाने का प्रस्ताव रखा। बैठक में दावा किया गया कि यह रकम सरकार तक भेजी जाएगी, जिससे पीवी करने वाली टीम सख्ती न बरते। मिल संचालकों के नेताओं ने कहा कि फंड देना जरूरी है। इस मसले पर हालांकि राइस मिलर्स दो भागों में बंटे हुए हैं। एक वह राइस मिलर्स है जो इस रकम को देना नहीं चाह रहे हैं। उनका कहना है कि क्योंकि उन्होंने किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की है, इसलिए वह यह रकम क्यों दें। यदि पीवी होती है तो उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। दूसरे वह राइस मिलर्स है, जिन्होंने तय कोटे से ज्यादा धान लिय है, वह चाहते हैं कि रकम जुटायी जानी चाहिए।इस मामले में अभी तक कोई सहमति तो नहीं बनी है।

बस किसी तरह से समय निकल जाए

मिलर्स और गड़बड़ करने वाले अधिकारियों की कोशिश है कि किसी भी तरह से समय निकल जाए। क्योंकि जैसे जैसे समय निकल रहा है, उतनी ही तेजी से चावल का स्टॉक एफसीआई को दिया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि फूड माफिया इसके पीछे काम कर रहा है। वह यूपी और बिहार से पीडीएस का सस्ता चावल खरीद कर यहां ला रहा है, यहीं चावल एफसीआई को दिया जा रहा है। इस तरह से राइस मिलर्स यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने तो तय समय में धान से चावल तैयार कर एफसीआई को दे दिया है। इसलिए उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की है। राइस मिलर्स के साथ गड़बड़ी करने वाले अधिकारी भी यहीं चाह रहे है कि एक बार चावल एफसीआई के गोदाम में लग जाए। इसके बाद किसी तरह की दिक्कत नहीं रहेगी। इसलिए अधिकारी और मिलर्स तेजी से चावल सप्लाई कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गड़बड़ी करने वालों में एफसीआई के कुछ अधिकारी भी शामिल है, इसलिए वह भी तेजी से चावल जमा कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। हर कोई यहीं चाह रहा है कि बस कुछ समय निकल जाए। इसके बाद वह सब कुछ ठीक कर लेंगे।

इस बार यदि पीवी हो तो टीम में होने चाहिए विशेषज्ञ

इस गड़बड़ी को रोकने का एक ही तरीका है, वह यह है कि पीवी टीम में एफसीआई विशेषज्ञों की टीम को शामिल किया जाए। यह टीम चावल में नमी की मात्रा चैक करेगी। जिससे यह पता चलेगा कि चावल नया है या पुराना है। इसके साथ ही टीम में वह विशेषज्ञ भी शामिल होन चाहिए जो बासमती व परमल धान का अंतर करना जानता हो। पीवी की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। टीम के ज्यादातर सदस्या बाहर से होने चाहिए। इसके साथ ही टीम में पुलिस या विजिलेंस के अधिकारी भी शामिल होने चाहिए। जिससे पीवी निष्पक्ष तरीके से हो सके। भ्रष्टाचार मिटाओ मोर्चे के अध्यक्ष पवन कुमार ने बताया कि पीवी इमानदारी से हो जाए तो करनाल, तरावड़ी, नीलोखेड़ी व इंद्री और घरौंडा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आ सकती है। यह मामला इसलिए गंभीर है, क्योंकि इससे किसान और गरीब के हक पर सीधा डाका डल रहा है। यह ऐसा माफिया है जिसकी जड़ तक जाना जरूरी है,क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में माफिया को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक किसान को उसकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल सकता। गरीब आदमी तक अनुदान पर दिया जाने वाला भोजन नहीं पहुंच सकता। इसलिए इस माफिया का पर्दाफास होना जरूरी है।

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