06/04/2024
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
उम्मीदों से भरा मन, जाता है तुम्हारे शरण में ।
जोर हो रहा है कम, जिंदगी उलझ रही है तरूणी तन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
हलचल हो रहा मन में ,
क्यू है भरा प्रीत इतना देह में बदन में।
भावना क्यूं विह्वल तन में,
लगन क्यू गुलाबी सुमन में ।
है वेदना एक मेरे मन, प्रीत के अंतः करण में ।
उड़ रहा क्यू उन्मादें गगन में,
क्यू हो रहा है सिमटन सजन में,
क्यू फिसल रही है उम्मीदों पे काया,
माया क्यू घिर रही जीवन में।
है वेदना एक मेरे मन में प्रीत के अंतः करण में ।
क्यू हो रहा है उलझन,
क्यू है ये तड़पन,
क्या ये है जवानी का हवन,
बता दो मेरे देवता होके मगन,
क्यू भरा है पानी नयन में।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
दुखते रगो में क्यू नशा है,
मूरत मोहनी मन में बसा है,
जाऊं कहां, पाऊं तुमको जहां,
क्यूं हो रही है पीड़ा, खुद को छुवन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
रिझाते हैं क्यू बलखाती केशवन,
पास क्यूं आते हैं उन्मादी पवन,
क्यूं सिहरन हो रही हैं मेरे अंतः भुवन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
है विभोर क्यूं प्रेम के भाव मेरे,
मन को सूझे ना कुछ साँझ सवेरे,
उलझे हैं क्यू हम नैनो के झपकन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
्यू कर रही है विचलित उहेलना सृजन में,
गर्माहट बस रही क्यूं चंदन में,क्यूं हो रहा है तर्पण अश्रु में क्रन्दन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
हैं पास सावरे सलोने पिया,
फिर क्यूं मोह रही है मोहनी मुरतिया,
क्यू है भटक रहे बावरेपन में ।
है वेदना एक मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।
रास अब तुम आए हो,
पास जब तुम आए हो,
अब लक्ष्य हासिल होगा इसी जीवन में,
पूरे होंगे हम आके थारे शरण में ।
अब ना रहेगी वेदना मेरे मन में, प्रीत के अंतः करण में ।।।।
लेखक /कवि /गीतकार
"हर्षद गुरुश्रेष्ठ वशिष्ठ चौबे"