Sifarzeroshunya

  • Home
  • Sifarzeroshunya

Sifarzeroshunya जिंदा हूँ। सोचने में समर्थ हूँ। तर्क मुझे ताकत देता है और कुतर्क मौका।

कुछ नये दोस्त घर आये हैं।
30/03/2024

कुछ नये दोस्त घर आये हैं।

Hello friends, New Episode of Books Chai & A Bunch of Stories is out. If you love books, this is for you. Please go to m...
13/02/2024

Hello friends, New Episode of Books Chai & A Bunch of Stories is out. If you love books, this is for you. Please go to my channel and watch it. Please do like, share and subscribe, this will help me a lot.

Ram, Maryada Purushottam, the King of Ayodhya, banished his beloved queen, in whole chastity he has complete faith, simply because his subjects disapproved o...

Hello. Please like the video and subscribe my channel.
24/01/2024

Hello. Please like the video and subscribe my channel.

It had been long since I was moved by a book as much as I was moved by this one. For most, this book might have been written for a female audience. For me, t...

Hello. Please like the video and subscribe my channel.
23/01/2024

Hello. Please like the video and subscribe my channel.

Virat Kohli is not playing 1st two test matches for India Vs England. Who will take his place in the team and how big this will affect India's chances in the...

https://youtu.be/iNlwvO6yIDI?si=8GvzK-3j0snKQ6KLPlease check book reviews on "Books Chai & Bunch Of Stories"
02/01/2024

https://youtu.be/iNlwvO6yIDI?si=8GvzK-3j0snKQ6KL
Please check book reviews on "Books Chai & Bunch Of Stories"

This is 1st introduction episode of Books , Chai & Bunch of stories. Here i will talk about why i decide to make a podcast and why i choose books as a subject

Listen to my latest Podcast.Link: https://spotifyanchor-web.app.link/e/mTKtl0RRXEb"लोग कहते हैं कि बचपन के दिन सबसे ख़ास...
23/11/2023

Listen to my latest Podcast.
Link: https://spotifyanchor-web.app.link/e/mTKtl0RRXEb
"लोग कहते हैं कि बचपन के दिन सबसे ख़ास होते हैं, कोई टीन-एज खास बताता है तो कोई ट्वेंटीज़| मुझे तो ये वाली उम्र सबसे खास लगती है, जिसमे मैं हूँ। तीस को टच करती, सहज-सी, छुपी-सी, आसान-सी उम्र। हार्मोन्स रह-रह के उबाल नहीं मारते, नए-नए क्रश रात-रात भर नहीं जगाते, ब्रेक-अप्स रात-रात भर नहीं रुलाते। कहने को आप बोरिंग कह सकते हैं, लेकिन मुझे बहुत खास लगती है यह उम्र। किताब पढ़ते हैं तो बस पढ़ते ही जाते हैं, बिना कोई मिस्ड कॉल या बैकग्राउंड में किसी की याद लिए। अपना पैसा थोड़ा कमा लिया है, तो पूरी आज़ादी लगती हैं— घूमने की, पहनने की, बोलने की, फ़िरने की।" -अनुराधा बेनीवाल

रवीश कुमार के लंदन के एक विडिओ में मालूम चला था इस किताब और इसकी लेखिका अनुराधा बेनीवाल जी के बारे में । बेवजह ही किताब ...
26/10/2023

रवीश कुमार के लंदन के एक विडिओ में मालूम चला था इस किताब और इसकी लेखिका अनुराधा बेनीवाल जी के बारे में । बेवजह ही किताब के शीर्षक से लगाव हो गया । और जब पढ़ना चालू किया तो किताब शानदार निकली , साथ ही फायर है लड़कियों के लिए । और जितना जरूरी यह लड़कियों के लिए है उतना ही लड़कों के लिए भी क्योंकि यह किताब बहुत सारे सवाल करती है आप से और अपने समाज से जो संस्कृतियों और परंपराओ के नाम पर लिपटे उन बंधनो को देख पाती है, जो आज भी अपने देश में अधिकांश लड़कियों को आजादी महसूस ही करने ही नहीं देता ज्यादातर उन्हें जकड़े रहता है , इच्छानुसार चलने नहीं देता ।
तुम चलोगी तो तुम्हारी बेटी भी चलेगी, और मेरी बेटी भी । फिर हम सबकी बेटियाँ चलेगी । और जब सब साथ चलेगी तो सब आजाद , बेफिक्र और बेपरवाह ही चलेगी । दुनिया को तुम्हारे चलने की आदत हो जाएगी और नहीं होगी तो आदत डलवानी पड़ेगी, लेकिन डर के घर मैं मत रहे जाना। तुम्हारे अपने घर से ज्यादा सुरक्षित ये पराई अंजनी दुनिया है। वह कांही ज्यादा तेरी अपनी है। बाहर निकलते हुए खुद पर यकीन रखना और खुद पर यकीन रखते हुए घूमना। अपने गम , अपनी खुशियां , अपनी तनहाई सब साथ लिए -लिए इस दुनिया के नायाब खजाने खोजना। ये दुनिया तेरे लिए बनी है , इसे देखना जरूर, इसे जानना , इसे जीना । ये दुनिया अपनी मुट्ठी मैं लेकर घूमना , इस दुनिया मैं गुम होने के लिए घूमना ,इस दुनिया मैं खोजने के लिए घूमना। कुछ पाने के लिए घूमना , कुछ खो देने के लिए घूमना। अपने तक पहुँचने और अपने आप को पाने के लिए घूमना; तुम घूमना !

हमें लगता है कि हमारा होना बहुत से कोनों से बना है। जैसे लिखने के कोने में किसी एक जगह से बाहर का विस्तार दिख रहा होता ह...
03/10/2023

हमें लगता है कि हमारा होना बहुत से कोनों से बना है। जैसे लिखने के कोने में किसी एक जगह से बाहर का विस्तार दिख रहा होता है। हम सोचने लगते हैं कि कोई एक कोना ऐसा होगा जहां बैठकर हम वो रच पाएंगे जिसे रचने की कल्पना किन्हीं अच्छे क्षणों में हमारे भीतर उपजा करती थी। उन जगहों को पाते ही लगता है शायद जगह बाहर नहीं है, सारी जगह कहीं भीतर ही है। और भीतर सारा कुछ पृथ्वी की तरह गोल है। इस गोले में कोई कोना नहीं है। सब जगह एक है और हम एक ही जगह पर गोल गोल घूम रहे हैं। और सारा बदलाव भीतर होता है, जैसे लिखना जब बदलता है तो लगता है कि बाहर सारा कुछ बदल गया है। इस वक़्त बाहर सब कुछ बदला हुआ नज़र आ रहा है जबकि मैं वहीं हूँ......

Listen to my Podcast .Link : https://spotifyanchor-web.app.link/e/iThNvgT0EBbइक्कीस साल का पृथ्वी एक अधेड़ और रहस्यमयी अ...
23/07/2023

Listen to my Podcast .
Link : https://spotifyanchor-web.app.link/e/iThNvgT0EBb
इक्कीस साल का पृथ्वी एक अधेड़ और रहस्यमयी अघोरी ओम्‌ शास्त्री की तलाश कर रहा है, जिसे पकड़कर भारत के एक सुनसान द्वीप पर अत्याधुनिक सुविधाओं के बीच भेज दिया गया | विशेषज्ञों की एक टीम ने जब उस अघोरी को नशे की दवा दी और पूछताछ के लिए सम्मोहित किया, तो उसने दावा किया कि वह सभी चार युगों-सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलियुग–(हिंदू धर्म के अनुसार चार युग) को देख चुका है और रामायण तथा महाभारत की घटनाओं में हिस्सा ले चुका है |
जीवन के बाद मृत्यु के नियम को भी बेअसर साबित करनेवाले ओम्‌ के अविश्वसनीय अतीत से जुड़े खुलासे सभी को हैरान कर देते हैं। उस टीम को यह भी पता चला कि ओम्‌ हर युग के दूसरे अमर लोगों की भी तलाश कर रहा है। तो यह ओम्‌ शास्त्री कौन है? उसे पकड़ा क्यों गया? पृथ्वी उसे क्यों ढूँढ़ रहा है?
मृत संजीवनी में कौन से रहस्य हैं, जो गलत हाथों में पड़ने पर अराजकता और विनाश ला सकते हैं ?
ओम् कौन है? एल.एस.डी. और परिमल की वास्तविकता क्या है? अन्य अमर लोग कहाँ छिपे हैं? क्या हैं ये शब्द, जो अजीबोगरीब गूढ़ जगहों में बिखरे पड़े हैं और नागेंद्र इन्हें क्यों इकट्ठा कर रहा है ?
Link : https://spotifyanchor-web.app.link/e/iThNvgT0EBb

20/07/2023

Mahender could never love Sudha, the way she wanted yet Sudha never complained and left one day carrying all her grief safely embedding it in her heart knowing Mahender's heart belongs to someone else and can never be hers. Love can be so selfless at times that you don't hesitate to shatter yourself for the sake of your lover's happiness. There's no one other than time who can rejoin the shards of your broken heart back together but does all those emotions fade away with time, does time wash away all those memories, I guess time just teaches us and our heart to cope up with the distress in a better way so that next time whenever the season of grief that revolves around our unrequited love revisits us, our heart and soul aches a little less, yet a part of the person whom we once loved remains alive in us forever because of the little ways in which they changed our life and our perception towards different things in life.

Neruda once said, "Loving is so short and forgetting is so long", when Mahender and Sudha reunited after years, everything changed with circumstances but the love Sudha had for Mahender always stayed with her which was evident in the above conversation where she remembered all her lover's traits even after years. The "maachis", here symbolize the power of true love that transcends all the barriers of mortal world and Sudha's love for Mahender was enough for her to spend the rest of her life, nurturing the numbered days they spent together. The habits of her lover were engraved in her heart forever as she built her own world with the help of them, remembering them and maybe in this remembrance kept alive the hope of crossing paths with her lover for a proper closure so that she could leave this time taking his permission, "Pichli baar bina pooche chali gayi thi, Is baar Ijaazat de do"

Maya and Sudha both the female characters in this film are victims of half-love, while Maya's lover tied the knots of marriage with someone else, Sudha's husband who was the love of her life never got over his past lover and remained besotted with her thus turning their marriage into a sham.

Unlike relationships, love afterall has no expiry date, it stays lurking in the corners of our heart even if we wish to erase it as delete option doesn't exist for feelings.
Love is like this….we cross miles…we stretch our limits in love…it hurts when that love is not responded..the person we love understands that but love can not be forced…it just happens..so we have only two ways …either to stay with a person you love and be hurted or get away..: but grief is constant….

If get a chance , watch Ijazat and listen to " mera kuch Samaan , tumahre pass pada hai..."

19/07/2023

कल रात खुद से मैंने सवाल किया की ज़िंदगी से मुझे क्या क्या मलाल है, सोचता रहा पुरानी बातों को , अधूरे सपने भी आ गए सामने। एक ऐसा भी वक्त था जब लगता था हर सपना पूरा कर लूँगा। पर ज़िंदगी मैं सबको मुकमल जहां नहीं मिलता। कुछ सपने अधूरे रहे गए हालत की वजह से और बहुत से मेरी आलस भारी हरकतों की वजह से । इन सबके बाद भी ज़िंदगी ने जो कुछ भी दिया , बहुतों को वो सब भी नहीं मिलता। इसीलिए मुझे ज़िंदिगी से कोई मलाल नहीं है।
जिन्दगी कल भी खूबसूरत थी
जिन्दगी आज भी खूबसूरत है।🤗😃

Let me know what you think about your life. 🧐
❤️

12/07/2023

कल एक नई किताब पड़ के ख़त्म की है।
उसके ख़त्म होते ही चाय हाथों में थी, बाहर बारिश हो रही थी। चाय, बारिश और नई किताब का सुख आप लोगों से साझा करने में ये सुख बढ़ा हुआ लग रहा है।
कल रात ही ये एक नज़म रिकार्ड की है , अंमर इकबाल की ये नज़म मेरी पसंदीदा नज़मों मैं से एक है। फोटो ढेड साल पहेले की गोवा मे ली हुई है।
आपको कैसे लगी नज़म बताइयेगा । ☺️
☕ ☕️❤️

मैं हमेशा ऐसी किताबों को पढ़कर सोचता हूँ कि इस क़िस्म की किताबें मुझे बचपन में क्यों नहीं मिली, जिसमें एक छोटा Mole एक B...
09/07/2023

मैं हमेशा ऐसी किताबों को पढ़कर सोचता हूँ कि इस क़िस्म की किताबें मुझे बचपन में क्यों नहीं मिली, जिसमें एक छोटा Mole एक Boy से पूछता है कि तुम बडे होकर क्या बनोगे और बहुत सोचने के बाद वो Boy जवाब देता है- kind.
फिर लगता है कि शायद इस किताब को स्कूल मैं भी पढ़ाया जाना ज़रूरी था और अब भी पड़ा जाना जरूरी है । और जाने कितने लोग हैं जिन्हें इस किताब को पढ़ना चाहिए। दया, स्नेह, प्रेम की इस दुनिया में बर्फ़ है, पेड़ हैं, तितली है और घर ढूँढने में घर का मिल जाना है।
इस किताब को घर में रखेंगे तो चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहेगी।
If you want it i can gift it to you 😊.
(“What is the bravest thing you've ever said? asked the boy.
'Help,' said the horse.
'Asking for help isn't giving up,' said the horse. 'It's refusing to give up.”)
(“What do you want to be when you grow up?"
"Kind", said the boy)
("To be honest, I often feel I have nothing interesting to say," said the fox.
"Being honest is always interesting" said the horse)

08/07/2023
3 किताबे , 3 दिन , 6 सिटिंग और कहानी अभी बाकी है। बहुत समय बाद एक ऐसी किताब मिली जिसको 1 दिन मैं पड़ पाया , दूसरे दिन उसक...
30/06/2023

3 किताबे , 3 दिन , 6 सिटिंग और कहानी अभी बाकी है। बहुत समय बाद एक ऐसी किताब मिली जिसको 1 दिन मैं पड़ पाया , दूसरे दिन उसका दूसरा भाग और तीसरे दिन तीसरा। आज कल रील के जमाने मैं ऐसे किताबे नहीं मिलती जो आपको बांध सके। अक्षत गुप्ता की लिखी कहानी “ द हिडन हिन्दू “ जिसके 3 भाग पिछले एक साल मैं आए है एक ऐसे किताब है जो ये कर पाती है। लेखक ने बहुत ही खूबसूरती से भारत के इतिहास के पुराने किरदारों को ले कर जिस तरह आज के समय मैं ढाला है वो बहुत शानदार है। सबसे खूबसूरत बात ये है की लेखक ने इतिहास को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत नहीं किया है, जो जैसा लिखा गया है उसको बिल्कुल वैसे ही लिखा है। काम से काम इन कितबको को पड़ कर ये नहीं लगेगा की अगर आज की पीड़ी इन कहानियों को पड़ेगी तो ये नहीं सोचेंगे की क्या ये सब सच है। अक्षत ने जो पुरानी कहानिया है उनको बिल्कुल वीस हे बताया है। इन तीनों कितबको को पड़ कर उन लोगों को भी बहुत कुछ जानने को मिलेगा जिनको भारत की पौराणिक कथाओ की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है।
जिस तरह अमीश ने पौराणिक कथाओ को अपने तरीके से लिखा है और नई पीड़ी को कन्फ्यूज़ किया है , अक्षत ने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया है। जो की बहुत ही शानदार है। अक्षत ने पौराणिक कहानियों को तो शानदार ढंग से बताया ही है पर जो बाकी कहानी है वो भी बहुत दमदार है। मुझसे काफी समय से इंतज़ार था ऐसी ही किसी किताब का जो भारत के इतिहास की बात करती हो। अब समय आ गया है की ऐसे और भी कहानिया लिखी जाए। कब तक हम लोग पश्चिम की कहानियों को पड़ते रहेंगे।
सुना है इन तीनों किताबों पर एक वेब सीरीज बनेगी, अगर बनी तो बेहद शानदार होगी। जिनको पड़ने का शौक है उनको ये तीनों किताबे पड़नी चाहिए। पहेले 50 पेज पड़ लो , उसके बाद तीनों भाग बिना पड़े नहीं रुकोगे।



📚

आमिश ने कुछ जयदा ही क्रिएटिव लिबर्टी ली है आज के समय की बातें और ५००० साल पहेले की बातों को मिलने मैं। जैसे ब्रियानी और ...
23/06/2023

आमिश ने कुछ जयदा ही क्रिएटिव लिबर्टी ली है आज के समय की बातें और ५००० साल पहेले की बातों को मिलने मैं। जैसे ब्रियानी और इडली दोसा खाते हुए रावण और सीता के संवाद। इसको पड़ते हुए मुझे ये भी लगा की आज की नई पीडी इसको पड़ते हुए confuse न हो जाए की क्यूँ रावण और सीता उस समय मैं “बुध” की बातें का रहे है।
कहानी २ भाग मे चलती है , एक जिस मैं रावण , सीता और कुंभकरण साथ मै नाशत करते हुए कैसे राम को विष्णु बनाया जाए, कैसे भारत राष्ट को महान बनाया जाए की योजना बना रहे हैं और दूसरा जिस मैं लंका मै जाने के लिए शत्रुघन सेतु बना रहा है । भरत और लक्ष्मण मिल कर लंका की अलग अलग जगह पर हमले कर रहे है । आमिश को ये बात confirm कर देनी चाहिए की ये रामायण नहीं है और न ही रामायण से प्रेरित है, ये एक अलग कहानी है जिस मैं हनुमान का भी प्रेमिका है।
अंतिम युद्ध बहुत ही छोटा है, राम और रावण तलवारों से लड़ते है और रावण आराम से हर जाता है। अगर मैं इसको एक fictional कहानी समझ के पड़ूँ तो कमाल लिखा है आमिश ने , अपनी बाकी लिखी हुई कहानियों की तरह। पर एक सवाल ये है की क्यूँ लेखक हमारे पुराने ग्रंथों पर आज अपने तरीके से लिख रहे है जब आज ये सब पूरी दुनिया मैं पड़ा जाता है। क्या आज की नई पीडी जब इसको पाड़ेगी तो वो इसको ही रामायण नहीं समझेगी , क्या कोई उनको बताएगा की नहीं ये रामायण नहीं है। पर लिखा कमाल है अमीश ने , अमीश की कल्पना शक्ति को जानने की लिए आपको इसे पड़ना जरूर चाहिए ।
# #

15/06/2023

मैं अक्सर उन जज़्बातों को लिख लिया करता हूँ ... जो बायाँ न हो सकते है जुबां से मेरी!

मैं अक्सर गहरी सोच मैं डूबकर कुछ लफ़्ज़ चुरा लेता हूँ खयालों से... जो मुझे अक्सर ही तंग किया करते है एक याद बन कर।

लगता है जब घुटन स जीने मे जिंदगी को अक्सर बयान कर देता हूँ अपनी कहानियों मे ।

और कभी जब न रहूँ इस दुनिया मे मैं तुम पड़ कर शब्दों को मेरे वजूद की तलाश करना और ढूंढ लेना मुझे कुछ अधूरी और कुछ पूरी कहानियों मैं ।

कल कुछ लिखने का मन नहीं किया, आज भी कम ही है। आज कल के करोना काल मैं, ख़ाली दफ़्तर का सनटा भी कुछ करने या लिखने पड़ने की...
07/05/2023

कल कुछ लिखने का मन नहीं किया, आज भी कम ही है। आज कल के करोना काल मैं, ख़ाली दफ़्तर का सनटा भी कुछ करने या लिखने पड़ने की हिम्मत नही देता। ऊँचाई से दूर नीचे देखते देखते ये ही ख़याल आते है की कर क्या रहा हूँ इधर अकेले। दूर सड़क पर दोड़ती गाड़ियाँ बीते हुए जाने कितने सफ़र की याद दिलाती है। मैं न बहुत अजीब हूँ। हमेशा से मुझे मंज़िल से ज्यादा सफ़र में दिलचस्पी रही है। मंज़िल पर पहुँचने के बाद हमेशा से ही मैंने ख़ुद के अंदर एक अजीब सी कमी को महसूस किया हैं । एक ऐसे कमी जो मुझसे पूछ रही होती है की अब क्या? अब तो ये भी हसली कर लिया, अब क्या नया करोगे? लो, एक और मंज़िल पर पहुँच गए हो हो। ऐसे कमी जो मेरी हँसी उड़ा रहा हो और पूछ रही हो कह रहा हो कि ‘क्या तुम ख़ुश हो’ और मेरे पास इसका कोई जवाब नही होता..!!

आज कल भी मैं ऐसे ही किसी कमी से परेशान हूँ। सालों से जब मैं दिन-रात एक कर रहा था,, कोशिश पर कोशिश, चांस पर चांस ले रहा था, देश भर में जिसके लिए भटकता था, पागलों की तरह कभी ये करता था, कभी वो पड़ता था किसी भी तरह एक सफल जीवन बना सकूँ , के कभी किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े। वो अब मेरे हाथ में है तो मुझे कोई ख़ुशी, कोई रोमांच महसूस नही होता। बचपन से अभी तक जो जो करने का सोच था, लेने का सोच था सब लिया पर कोई रोमांच नही। नौकरी मैं जब एक मुक़ाम पर पहुँचा, मुझे कोई ख़ुशी या रोमांच नही हुआ, और अब ऐसा लगता है कि सब कुछ छोड़ दूँ, कभी कभी इतना परेशान हो जाता हूँ की कुछ सुझता ही नही की क्या करूँ। ये बिलकुल सही बात है की जीवन मैं असफलता सफलता से हमेशा ही ज्यदा होती है। मैं भी बिलकुल सामने से, अपने हाथों से सफलता को फिसलते हुए देखा है। कभी कभी साथ काम करने वालों पर, उनकी ग़लतियों पर इतना ग़ुस्सा आता है की, पर कुछ कर नही पता। अपने काम करने की जगह पर होती राजनीति, मेरी पीठ पीछे होती मेरी बुराई, मेरे चरित्र को लेकर मसखरी करते लोग , वो लोग जो मुझे बिलकुल नही जानते। शायद जो लोग मेरे साथ इस सफ़र मैं है वो लोग मुझे अपने मुक़ाम का रोमांच अनुभव नही होने दे रहे लेकिन मेरा ये सोचना की दूसरे भी मेरी ही तरह सोचे और मेरी ही तरह उनको भी किन्ही बातों से फ़र्क़ पड़े, ये भी बिलकुल ग़लत ही है। जब भी कोई पसंद की हुई चीज़ हासिल की, दिल ने कोई भाव नही दिया। जो भी दिन मेरे अभी तक के जीवन के सबसे बड़े और यादगार दिन थे मैं उन सभी दिन एक दम अकेला था, मैंने शायद किसी को फ़ोन भी नही किया की ऐसा हुआ है मेरे साथ। मेरे दिमाग में यही बात घूमती रहेती है की ये बदलाव मुझें ख़ुशी देगा कि नही,?? कभी कभी ये लागत है की क्या मैं खुद ही सिर्फ़ सबको खुश करने का सोचता हूँ, जो मुझे नही सोचना चाहिए। मुझे मालूम है कि मेरे आस पास के लोग को लिए मैं सिर्फ़ ज़रूरत पड़ने पर काम आने वाला इंसान हूँ, कभी किसी की प्रायऑरिटी या सब कुछ नही बन पाया।। सिर्फ़ दोस्तों मैं वो दोस्त बन पाया जिसका फ़ोन आप जब चाहे बीच मैं काट सकते है क्यूँकि वो ज़रूरी नही है, शायद ज़रूरत से ज्यदा अच्छा है, समझदार है समझ जाएगा। अच्छा आदमी है।

*मैं नही हूँ अच्छा आदमी। अच्छे आदमी बने रहने बहुत मुश्किल हैं.. एक क़िस्म का का बोझ है जिसे ढोते हुए मैं थक चुका हूँ। मैं एक दम साधारण बने रहना चाहता हूँ जिसपर हर चीज़ का असर होता है। बेअसर शरीर मृत होता है। ईर्ष्या, द्वेष, ग़ुस्सा सारे हमारे जीने के भीतर सफ़र करते हैं, जिस तरह हंसी को मैं रोकता नहीं हूँ उसी तरह इन सबके लिए भी मेरे घर के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं। हम हमेशा बदल रहे हैं… हम रोज़ अलग है। ठीक उसी तरह लगातार खुश रहने की दौड़ भी एकदम झूठी है। लगातार ख़ुशी की ऊँचाइयों पर बने रहने की अपेक्षा क्यों करना है? जब हम साधारण जी सकते हैं। सारा कुछ महसूस करने से क्यों बचते रहना है? जीते रहने की कीचड़ से सिर्फ़ ख़ुशी क्यों बटोरना है लगातार? ये अधूरा जीना है जैसे खाने से भरी थाली से सिर्फ़ मिठाई चुनना। ये शरीर सिर्फ़ मिठाई खाकर जीवित नहीं रह सकता है इसे बराबर मात्रा में सारा कुछ चाहिए। सदा खुश रहें और वो कितना अच्छा आदमी है जैसे वाक्य हमें जीने के अद्भुत घने जंगल में घुसने का डर देते है। और हमने हमारी मिली ज़मीन पर सिर्फ़ ख़ुशी की एक ही फसल उगाने की कोशिश में उसे बंजर बना दिया है। अब जंगल साँस ले रहा है और हम अभी भी बस ख़ुशी के प्यासे हैं।*

हां ये सच है कि हम हमेशा ख़ुशी की तलाश में रहते हैं और शायद ये तलाश सबसे ज़्यादा निराश करती है। अगर जो जैसा है उसे वैसा महसूस करें तो हम हर तरह के जज़्बात का मज़ा ले सकते हैं.. ज़रूरी नहीं कि ख़ुशी सिर्फ़ हंसने या मुस्कुराने में है। रोने में, गुस्से में या जलन में भी अक्सर ख़ुशी होती है, अगर हम समझ पाएं तो…हम ख़ुशी की कई छवियां अपने मन में बना लेते हैं और उनसे बाहर नहीं निकल पाते, इसलिए ख़ुशी पाने की दौड़ कभी ख़त्म नहीं होती। ज़िंदगी हमें जो देती हो उसे बाहें फैला कर स्वीकार करना चाहिए। सिर्फ खुशियों की उम्मीद लगाकर ज़िंदगी का लुत्फ़ नही लिया जा सकता।

इस दिमाग़ मैं हमेशा कुछ ना कुछ रहेता है, जीवन के बारे मैं, इस जीवन से जुड़े लोगों के बारे मैं। कुछ अभी भी दोस्त है, कुछ सिर्फ़ एक नाम बन कर रहे गए है फ़ोन लिस्ट मैं। जैसे जैसे वक्त गुजरता है सब बदल जाता है, एक जैसा कभी कुछ नही रहेता। फिर मन करता है कंही जाने का, किसी अकेली शांत जगह पर। इतना कुछ अंदर भरा है जिसका बाहर आना ज़रूरी है। दिल कहेता है की जाओ कंही और किसी से बोल दो, आज़ाद हो जाओ। अपने अंदर मत रखो कुछ भी, कोई ना कोई रास्ता देखो। ये शायद ज़रूरी है ताकि जब तुम किसी से मिलो और मुस्कुराओ तो वो मुस्कुराहट झूठी ना हो। हम सबके हर तरफ़ एक नयी कहानी बुन रही होती है, लेकिन ख़याल फटें-पुराने के इर्द-गिर्द रहता है। क्या खोया है, क्या कमाया है,क्या कमाया जा सकता है, हर चीज़ का हिसाब लगाते रहते है । हर समय एक अजीब से जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं । शायद बेहतर होता अगर हम इस जोड़ तोड़ को अपनी व्यावहारिक ज़िन्दगी का हिस्सा ना बनाते। ज़्यादा और कम के फेर में ना पड़ते। तो शायद इंसान इतना लालची ना होता। शायद तब इंसान अपनी ज़रूरत के अनुसार काम करता और ज़रूरत से ज़्यादा बटोरने में नही लगा रहता। कुदरत की तरह हम भी शायद बिना फायदा या नुक्सान का हिसाब लगाये, हर चीज़ देना सीख जाते। अब मुझसे कोई हिसाब नहीं होता, होगा ही नही, कभी हो सकता भी नहीं।

अपनी आगे की आधी ज़िन्दगी में मैं अच्छा नही एक नया इंसान बनना चाहता हूँ जो अपनी हर महसूस की हुई बात को किसी को बता सके और हस सके अपनी हर उलझन पर और सुलझा ले बिना किसी की मदद लिए और रो सके जितना चाहे जब तक चाहे और चुप हो सके बिना किसी के स्नेह की अपकेशा किए हुए । जो उस चीज़ को धुंडना बन्द करदे जिसे मै अक्सर ढूंढता रहता हूं । मै हमेशा से हर जगह कुछ ढूंढता सा रहता हूं। हर समय उस एक चीज़ की तलाश रहती है जिसके मिल जाने पर ही शायद मै जान सकूँ की वो क्या है। वो कहते है ना की ख़ुशियाँ और ग़म सब दिमाग़ का खेल है, आज़ादी से जीवन ज़ीना ही मेरा सपना है। मैं आधी रात को भी जीया हूँ, अकेले किताबे पड़ता हुआ भी जीया हूँ, सितारों से भरे हुए आसमान को देखते हुए भी जीया हूँ और काले बदलो से ढके हुए आसमान और कुछ ना दिखायी देनी वाली सर्द काली रातों मैं भी किया हूँ। अपने इस नए इंसान बंनने के क्रम मैं मैं चाहता हूँ अपनी बाइक पर कंही बाहर जाऊँ। कुछ नए दोस्त बनाऊँ जो अलग तरह से जीते हो, मेरी तरह नही। वो काम करूँ जिनको हमेशा किसी ना किसी बहने टालता रहा। वो किताब पूरी करूँ जो अधूरी छोड़ दी, अपनी लिखी बातों को, अपने कहे क़िस्सों को किसी को सुनाऊँ। ये सच है की अभी जीवन मैं बहुत से उतार चडव आने बाक़ी है। मेरा मक़सद उन सबके आगे आड़े रहेना, लड़ते रहेना, जीतते रहना और सबसे सीखते रहना ही है। मुझे लगता है जीवन कभी आपसे श्रेष्ट होने की उपेक्षा नही रखता , वो सिर्फ़ इतना चाहता है की आप पूर्ण रूप से अपने हो जाए। खुद को अपना लें, आप जैसे भी हों।

मैं जानता हूँ कि कि मैं हमेशा ही जीत नही सकता। सारी कोशिशें और प्रथना आपको बहुत कुछ सिखाती है और अहसास भी करती है की आप हमेशा नही जीत सकते। जीवन की यही हार जीत की लड़ाई चाहती है की आप आराम भी करो और इस सचाई को भी स्वीकार करो। कभी कभी हमें आराम से बैठ कर कॉफ़ी पीनी चाहिए और और एक अच्छे कल के बारे मैं सोचना चाहिए , जो मैं अब कर रहा हूँ। वैसे मैं कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि अगर ऑफ़िस मैं ना हूँ तो क्या मैं कॉफ़ी पीता, शायद नही…….

*मानव कॉल द्वारा लिखित । मैं इतना अच्छा नही लिख सकता था इस बात को बताने के लिए।

Episode -6 is live now. Please check.Ram - Scion Of Ishkvaku.
30/04/2023

Episode -6 is live now.
Please check.

Ram - Scion Of Ishkvaku.

This Podcast is about the 1st book of Ram Chandra Series written by Amish Tripathi.

३4०० ईसापूर्व, भारत.अलगावों से अयोध्या कमज़ोर हो चुकी थी. एक भयंकर युद्ध अपना कर वसूल रहा था. नुक्सान बहुत गहरा था. लंका ...
30/04/2023

३4०० ईसापूर्व, भारत.

अलगावों से अयोध्या कमज़ोर हो चुकी थी. एक भयंकर युद्ध अपना कर वसूल रहा था. नुक्सान बहुत गहरा था. लंका का राक्षस राजा, रावण पराजित राज्यों पर अपना शासन लागू नहीं करता था. बल्कि वह वहां के व्यापार को नियंत्रित करता था. साम्राज्य से सारा धन चूस लेना उसकी नीति थी. जिससे सप्तसिंधु की प्रजा निर्धनता, अवसाद और दुराचरण में घिर गई. उन्हें किसी ऐसे नेता की ज़रूरत थी, जो उन्हें दलदल से बाहर निकाल सके.
नेता उनमें से ही कोई होना चाहिए था. कोई ऐसा जिसे वो जानते हों. एक संतप्त और निष्कासित राजकुमार. एक राजकुमार जो इस अंतराल को भर सके. एक राजकुमार जो राम कहलाए.
वह अपने देश से प्यार करते हैं. भले ही उसके वासी उन्हें प्रताड़ित करें. वह न्याय के लिए अकेले खड़े हैं. उनके भाई, उनकी सीता और वह खुद इस अंधकार के समक्ष दृढ़ हैं.
क्या राम उस लांछन से ऊपर उठ पाएंगे, जो दूसरों ने उन पर लगाए हैं ?
क्या सीता के प्रति उनका प्यार, संघर्षों में उन्हें थाम लेगा?
क्या वह उस राक्षस का खात्मा कर पाएंगे, जिसने उनका बचपन तबाह किया?
क्या वह विष्णु की नियति पर खरा उतरेंगे?

https://anchor.fm/sifarzeroshunya


सच बताऊँ तो कलकत्ते जैसा शहर तो रूहे जमीन पर नहीं। अगर मेरे बस मैं होता और कुछ जिम्मेवारिया  मुझ पर हायल  न होती तो सब क...
06/04/2023

सच बताऊँ तो कलकत्ते जैसा शहर तो रूहे जमीन पर नहीं। अगर मेरे बस मैं होता और कुछ जिम्मेवारिया मुझ पर हायल न होती तो सब कुछ छोड़ -छाड़ के वहीं का हो जाता ।
" कलकत्ते का जो जिक्र किया तूने हमनशी
एक तीर मेरे सीने पर मारा की हाये हाये... "
कल शाम 6 बजे चाय की चुसकियों के साथ सुनिये , पाण्डेय बेचैन शर्मा "उग्र" की खुदरम और चंद हसीनों के खुतूत की बातें मेरे पॉडकास्ट Books Chai & A Bunch of Stories main.

Address


Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Sifarzeroshunya posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Videos

Shortcuts

  • Address
  • Alerts
  • Videos
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share