18/01/2023
‘भाभी तो आज भैया के साथ उज्जैन गई हैं,’ मैंने दरवाज़े के पीछे से ही कह दिया.
उसके चेहरे पर निराशा का भाव था. फिर मेरी सवालिया नज़रों को देख उसने सकपकाते हुए कहा,‘मैं राहुल हूं. माला दीदी मेरी मौसेरी बहन हैं. दीदी की शादी में मैं अपनी परीक्षा के कारण नहीं आ पाया था इसलिए मुझे आप नहीं पहचान पा रही हैं.’
वह बाहर बारिश की तेज़ बौछारों से भीगा कांप रहा था. बड़े संकोच से उसने पूछा,‘माला दीदी नहीं हैं तो क्या आप मुझे अंदर आने के लिए भी नहीं कहेंगी?’
मैंने दरवाज़ा खोलकर किनारे खिसकते हुए कहा,‘क्यों नहीं? आइए.’
अंदर आकर भी वह दरवाज़े पर ही ठिठक गया, क्योंकि उसके तर-ब-तर कपड़ों से लगातार पानी से सारा फ़र्श गीला हो गया था. उसने वहीं से कैफ़ियत देते हुए कहा,‘मैं एक मीटिंग में इंदौर आया था. माला दीदी से बहुत सालों से मिलना नहीं हुआ था, सोचा आज मिलता चलूं.’.......
by डॉ. अरुणा शास्त्री रात गहराती जा रही थी. मेरा मन घबरा रहा था. भैया-भाभी आज सुबह मुंह अंधेरे ही उज्जैन के लिए निकल गए .....