13/11/2023
मेरे जन्मदिन पर सुभेच्छा प्रकट करने वाले सभी महानभावों, मित्रों व शुभचिंतको क़ो बहुत बहुत धन्यवाद. Sarvendra Singh Pal (Advocate)🌹🌹🙏🏿🙏🏿🙏🏿
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मेरे जन्मदिन पर सुभेच्छा प्रकट करने वाले सभी महानभावों, मित्रों व शुभचिंतको क़ो बहुत बहुत धन्यवाद. Sarvendra Singh Pal (Advocate)🌹🌹🙏🏿🙏🏿🙏🏿
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Tark vitark ka level kitna gir gaya
कौन है आपके कुलदेवी, कुलदेवता और क्या है इनका महत्व, कैसे करें पहचान, और पूजा?????
हिन्दू पारिवारिक व्यवस्था में कुलदेवता या कुलदेवी का स्थान हमेशा से रहा है।
हमारे पूर्वजो ने अपने वंश- परिवार की नकारात्मक उर्जाओ और उनसे उत्पन्न बाधाओं से रक्षा करने के लिए एक पारलौकिक शक्ति का कुलदेवी के रूप में चुनाव किया और उन्हें पूजना शुरू किया। यह शक्ति उस वंश की उन्नति में नकारात्मक ऊर्जा को बाधाएं और विघ्न उत्पन करने से रोकती थी। और उस कुलदेवी का पूजन उस वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा बन गया।
हमारे सुरक्षा कवच हैं कुलदेवी / कुलदेवता,...
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं,
यदि हम इनकी उपेक्षा करें, तो किसी भी पूजा या साधना का फल उस ईष्ट देव तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके शक्तिहीन होने से होता है।
कुलदेवी की उपेक्षा के मुख्य कारण,..
आधुनिकता की अंधी दौड़ में समय के साथ परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, विजातीयता पनपने,
इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया ।
पूजा ना होने पर बाधाओं के कारण,....
कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती। कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है।
जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है।
अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है। कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं।
सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है। शादी-विवाह संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह मूकदर्शक हो जाते हैं,
और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। जिन नकारात्मक शक्तियों को कुलदेवी रोके रखती हैं, सुरक्षा चक्र के अभाव में वे सभी शक्तियां घर में प्रवेश कर परेशानियां उत्पन्न करती हैं। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति परिवार को अपने कुलदेवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा-उन्नति होती रहे । यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं –
#कौन हैं आपके कुलदेवता /देवी ,......
● यह एक प्रभावी प्रयोग है जिससे यह जाना जा सकता है की आपके कुलदेवता कौन है यह एक साधारण किन्तु प्रभावी प्रयोग है जिससे आप अपने कुलदेवता अथवा देवी को जान सकते हैं |
प्रयोग को मंगलवार से शुरू करें और
11 मंगलवार तक करते रहें |
● मंगलवार को सुबह स्नान आदि से स्वच्छ पवित्र हो अपने देवी देवता की पूजा करें |फिर एक साबुत सुपारी लेकर उसे अपना कुलदेवता/देवी मानकर स्नान आदि करवाकर ,उस पर मौली लपेटकर किसी पात्र में स्थापित करें,
● इसके बाद आप अपनी भाषा में उनसे अनुरोध करें की "हे कुल देवता में आपको जानना चाहता हूँ मेरे परिवार से आपका विस्मरण हो गया है हमारी गलतियों को क्षमा करते हुए हमें अपनी जानकारी दें इस हेतु में आपका यहाँ आह्वान करता हूँ आप यहाँ स्थान ग्रहण करें और मेरी पूजा ग्रहण करते हुए अपने बारे में हमें बताएं इसके बाद उस सुपारी का पंचोपचार पूजन करें,
● अब रोज रात को उस सुपारी से प्रार्थना करें की हे कुल देवता/देवी में आपको जानना चाहता हूँ कृपा कर स्वप्न में मार्गदर्शन दीजिये,
● फिर सुपारी को तकिये के नीचे रखकर सो जाइए |सुबह उठाकर पुनः उसे पूजा स्थान पर स्थापित कर पंचोपचार पूजन करें,
● यह क्रम प्रथम मंगलवार से 11 मंगलवार तक जारी रखें हर मंगलवार को व्रत रखें इस अवधि के दौरान शुद्धता पवित्रता व ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखें ,यहाँ तक की बिस्तर और सोने का स्थान तक शुद्ध और पवित्र रखें,
● ब्रह्मचर्य के साथ साथ मांस-मदिरा से पूर्ण परहेज रखें | इस प्रयोग की अवधि के अन्दर आपको स्वप्न में आपके कुलदेवता/देवी की जानकारी मिल जायेगी अगर खुद न समझ सकें तो योग्य जानकार से स्वप्न विश्लेषण करवाकर जान सकते हैं,
इस तरह वर्षों से भूली हुई कुलदेवता की समस्या हल हो जाएगी और पूजा देने पर आपके परिवार की बहुत सी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी,....
कुछ अन्य उपयोगी सुझाव,........
जीवन की बहुत समस्याओ से हम बच सकते हे यदि कुछ और बातों पर हम अमल करे और अपनी जन्म कुंडली में बुरे ग्रहो से भी मुक्त हो सकते है,
1, किसी भी ख़ुशी के मौके पर व होली,दीपावली व दशहरे, शादी,जन्मदिन,पर्व आदि पर घर में पूर्ण स्वच्छता से भोजन तैयार करें और दो थाली भोजन एक में भगवान् का भोग लगाएं और दूसरी थाली से अपने पितरों का भोग लगाकर उचित दक्षिणा के साथ किसी सात्विक ब्राह्मण को दे ।
2 अपने रस्म रिवाज अनुसार इन्ही अवसरों पर अपने कुल के देवी देवता का श्रद्धा पूर्वक पूजन और भोग सामग्री आदि दे।
3 अपने बुजुगों का कभी भी अपमान न करे बल्कि उनकी सेवा करे।
4 भूल से भी सर्प और कुत्ता जीव जंतुओं को ना मारे।
5 माह में एक बार परिवार सहित गऊ शाला में जाकर अपने हाथ से चारा पानी आदि दे।
6 गरीब और जरुरत मंद वृद्ध मजदूर कोड़ी दिव्यांग आदि लोगों की मदद करे।
7 दिल से प्रभु को जितना समय हो याद करे और विचारवान बने चिंतन करे भजन सुमिरन करे।
8 अपनी पुरानी कुल परंपरा रस्म रिवाजो व जो बुजुर्गों द्वारा चली आ रही है उनका श्रद्धा पूर्वक पालन करे।
गोंडवाना राज्य की मांग से जुडी हुई 8 रोचक जानकारियां ( ऐतिहासिक पृष्ठभूमि )
1. एक समय सेंट्रल प्रोविंस और बेरार के साथ (अभी का) उत्तर तेलंगाना गोंडवाना कहलाता था, इन क्षेत्रों में प्रमुख रूप से 4 गोंड राज्य थे, गढ़ मंडला (1300 ई से 1749 ई), देवगढ़ (1590 ई से 1796 ई), चांदा (1200 ई से 1751 ई) और खेरला (1500 ई से 1600ई)
(स्रोत विकिपीडिया)
2. गोंडवाना राज्य की मांग तेलंगाना आन्दोलन के समय से ही शुरू हो गई थी, साल 1941 में अदिलाबाद के कुरमा भीमू पहले शक्स थे जिन्होंने गोंडवाना राज्य की मांग की थी, ये आन्दोलन अगले दो दशक तक लगातार चलती रही और 1962-63 में अपने चरम पर थी, लेकिन विभिन्न राज्यों के गोंडो के अलग-थलग पड़ जाने से आन्दोलन कमजोर पड़ गया और लगभग समाप्त हो गई.
3. . आदिवासियों का शोषण, असुरक्षा का भाव आन्दोलन की समाप्ति के मुख्य कारण रहे जो पचासवें दशक के आखिर और शुरूआती साठवें दशक के समय हुये. अगस्त 1959 में कंगला मांझी ने भारतीय गोंडवाना संघ का गठन किया और गोंडवाना राज्य की मांग की, इसी समय छत्तीसगढ़ के महाराजा कोवा ने भी गोंडवाना राज्य की मांग की.
4. साल 1956 में जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो सरकार ने गोंडवाना राज्य के मांग को ठुकरा दिया. पानाबरस के राजा श्यामलाल शाह और राजनांदगांव (मध्यप्रदेश) के सासंद ने जब प्रधानमंत्री नेहरू से गोंडवाना राज्य की मांग उठाई तो प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे सिरे से नकार दिया, इस पर राजा श्यामलाल शाह ने अपना इस्तीफा नेहरू को सौंप दिया.
5. 19 मई 1963 को गोंडवाना आदिवासी सेवा मंडल के अध्यक्ष नारायण सिंह उइके ने महाराष्ट्र के विदर्भ से सटे जिलों और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों को मिलाकर फिर गोंडवाना राज्य की मांग दोहराई.
6. इसके बाद कुछ दशक तक छोटे छोटे आन्दोलन होते रहे फिर 1991 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का संस्थापन हुआ, जिसका प्रमुख लक्ष्य गोंडवाना राज्य के लिए संघर्ष करना और उन क्षेत्रों को मिलाकर गोंडवाना राज्य बनाना है जो कभी गोंडो के अधीन थे और गोंड राजा वहा के शासक थे. केन्द्र में पिछले साठ दशक से भी ज्यादा शासक जातियों के होने, इनके द्वारा गोंडो की उपेक्षा और सहायता ना करने के कारण ही गोंडवाना राज्य का सपना अभी तक पूरा नही हो पाया है.
7. भाषायी आधार और गोंडी भाषा के संघटित ना होने के कारण अभी तक गोंडवाना राज्य के मांग को ठुकराने का कारण बताया गया,,, हालांकि गोंडी विद्वान डॉ मोती रावण कंगाली इस कारण को बेतुका बताते हैं, क्योंकि मध्यप्रदेश राज्य का गठन किसी भाषायी आधार पर नही हुआ.. इसलिए गोंडवाना राज्य की मांग ना सिर्फ भाषायी आधार पर बल्कि गोंडो के हजारों सालों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इतिहास के कारण भी हो रही है,, गोंडवाना राज्य की मांग इसलिए भी हो रही जिससे वे अपने इतिहास और गोंडी संस्कृति को बचाये, अपने जाल, जंगल, जमीन को बचाये और थोपे हुए धर्म और राष्ट्रीयता हिन्दी/हिन्दू से निजात पाये.
8. . पिछले 10 सालों में पुरे मध्य भारत के गोंडो में खुद की पहचान होने का संघर्ष करना और विभिन्न संगठन जैसे गोंडवाना महासभा, गोंडवाना गिरिजन संकक्षेमा परिसद, महिला मंडल, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आदि, आदिवासी संगठनों के कारण गोंडवाना राज्य के मांग को एक बार फिर बल मिल रहा है, वही सोशल मीडिया नयी पीढ़ी के गोंडो के लिए एक वरदान जैसा है जिससे वो विभिन्न राज्यों के गोंडो से भाईचारा और सामंजस्य बिठा के इस आन्दोलन को और मजबूती दे सकते हैं, पर दुर्भाग्यवश ये आन्दोलन सामूहिक रूप से ना होके अलग अलग चल रहे हैं,, पिछले कुछ सालों से तेलंगाना में गोंडवाना राज्य की मांग लगातार चल रही है, वही महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के गोंडो में भी इसी तरह की उत्तेजना है, अगर गोंड दशकों पुराने अपने गोंडवाना राज्य के सपने को पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें आपसी मतभेद और झगड़ा निपटा के एक ही लक्ष्य स्वशासन और स्वायत्तता के लिए आगे आना होगा..
Written by Akash K Prasad
Hindi Translation: Ajay Netam Gond
http://gondwanafoundation.in/Current%20Affairs%20(hn).html
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