16/03/2022
दृश्य :अर्जुन युद्ध में अपने पुत्र अभिमन्यु का शव देख कर विचलित हो जाते है,और कृष्ण उन्हें एक वीर पुत्र यूँ नाहक विलाप न करने को कहते है , यह सुनकर अर्जुन बोलते हैं ........)
कैसे न मैं प्रलाप करूँ,क्यों न मैं पुरखों को आवाहन करूँ
युद्ध की विभीषिका में ,मुखाग्नि का सौभाग्य खोया पिता हूँ
बोलो केशव !,अपने इस दुर्भाग्य पर कैसे न संताप करूँ
हे केशव,आज अभागा मुझ सा बोलो धरा पर कौन होगा !
भू के चंद टुकड़ो के कारण,सत्ता और सिंहासन के कारण
जिसने अपने आँखों के तारें को,यूँ निसहाय ही खोया होगा
ये सच है कि शिशु, माँ के गर्भ में पलता है
पर चित्र तो पिता के हृदय में भी उभरता है
सच है की ,माँ तो तुलसी सी जीवन औषधि
तो पिता पुत्र के जीवन का वट वृक्ष होता है
(अभिमन्यु के शव को सम्मुख होकर .........। )
हे पुत्र ! जो खुद होते पिता तुम,तो मेरा क्रंदन संभवतः समझ लेते
जो लगे कभी खरोंच भी पुत्र को,तो कितना कष्ट हृदय में होता है
जो मां खुल के रो देती,हो द्रवित, उसको तो तुम अंगिया लेते हो
लेकिन पिता का क्या ? वो तो बस अंतर्मन में घुटता रहता है
जिस कंधे पर बैठा कर, दिखलाया था मैंने तुम्हे दूर संसार क्षितिज तक
उन्ही कन्धों पर ये दुःख-पहाड़ उठाकर मैं चल पाउँगा कैसे और कहाँ तक
पिता हूँ,ईश्वर नहीं,पर पुत्र संरक्षण को आया समय ,ईश्वर से मैं लड़ जाऊंगा
लौट के आ जाओ पुत्र जो एक बार, अब युद्ध में दूर तक न मैं लड़ने जाऊंगा
to be continue ....................
अभिमन्यु की वीरगति पर अर्जुन का करुण क्रंदन और एक सूर्यवीर पिता की अपने पुत्र को न बचा पाने की विवशता और पिता-पुत्र के संबंधों पर एक कविता लिख रहा हूँ , प्रस्तुत उसी का एक छोटा सा अपभ्रंश (draft ) संस्करण केवल...।
स्वरचित,मौलिक रचना: दिवाकरलाला