14/10/2023
दुर्गा पूजा भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला एक वार्षिक हिंदू त्योहार है, जिसमें हिंदू देवी - दुर्गा की पूजा की जाती है। जिसमें छह दिन महालया, षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयादशमी के रूप में मनाए जाता हैं।
हिंदू धर्म में दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे मां दुर्गा की पूजा और आराधना के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का सबसे पहला उल्लेख मार्कंडेय पुराण से संबंधित है जहां बताया गया है कि देवी दुर्गा को देवों द्वारा अनेक प्रकार की शक्ति दी गई थी। वहाँ उन्होंने एक उपवास / उत्सव के रूप में अपनी पूजा की जिसे बाद में दुर्गा पूजा के रूप में जाना जाने लगा ।
इस वर्ष दुर्गा पूजा जिसे नवरात्र , नवरात्रि भी कहते है। 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक मनाया जाएगा । घट स्थापना - नियमानुसार अभिजीत मुहूर्त - मध्याह्न - 11.36 से 12 . 24 के मध्य किया जाएगा । इस वर्ष आदिशक्ति का आगमन गज ( हाथी ) पर है एवं प्रस्थान पैदल मार्ग से है । आगमन शुभ एवं प्रस्थान अशुभता का संकेत दे रहा है। इस विषय मे "देवीपुराण" अन्तर्गत प्रमाण प्राप्त होता है । -
नवरात्र में भगवती का आगमन व गमन चार सवारियों पर होता है । इसमें १-हाथी, २- घोड़ा, ३-पालकी, ४- नाव की सवारी शामिल हैं | जो दिवस अनुसार ज्ञात होता है।
भगवती के आगमन व गमन का फल :
नवरात्र के प्रथम दिन भगवती का आगमन और दशमी को गमन दिनों के अनुसार वर्ष का शुभ और अशुभ का ज्ञान करते हैं । यथा-
भगवती का आगमन दिन :
शशि सूर्य गजारुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।
नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायां मरणध्रुवं ॥
रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं।
शनि और मंगल वार को घोड़े पर,आती है।
बृहस्पति और शुक्रवार को डोला पर,आती है।
बुधवार को नाव पर आती हैं।
अर्थात् दुर्गा हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है ।
घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है।
नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्धि मिलती है।
यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है।
इस विषय मे एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है - एवं प्राचीन विद्वानों का अनुभव भी है कि -
1 - जब आदिशक्ति हाथी पर आती है तो सजधजकर श्रृंगार करके आती है , हाथी शुभ का प्रतीक है । हाथी का सवारी सबको प्रिय है अतः जब हाथी पर सवार होकर आती है तो अपने भक्तों को देखती है , प्रसन्न मुद्रा में रहती है जिससे प्रणत भक्तों को सुख मिलता है। जहां सूखा, अभाव , ग्रस्त रहता है वहां पूर्णता अर्थात वर्षा , हरियाली, समृद्धि से भरपूर कर देती है।
2- तुरंग - ( घोड़ा ) - रण में विशेष कर प्रयोग किया जाता है। सैनिक, राजा , योद्धा आदि घोड़े पर सवार होकर युद्ध करते है। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना गया है। अतः आदिशक्ति जब घोड़ा पर सवारी करती है तो आसपास के देशों से युद्ध ,विघटन, विवाद, एवं अपयश प्राप्त होता है। अतः यह सवारी शुभ नहीं माना जाता है।
3 - नाव की सवारी अतिशुभ कहा गया है। नौका विहार माँ को अतिशय प्रिय है। उनके प्रिय होने से हि नौका विहार सबको प्रिय लगता है। सभी देवी , देवता , देवांगनाएँ भी नौका विहार करती है । जलविहार में सर्वत्र प्रकृति का दर्शन होता है। जिससे मन शांत हो जाता है। इस आगमन से प्रणत जनों को असीम शांति मिलती है। राष्ट्र में चहुओर शांति का वातावरण रहता है। यह समस्त कार्यसिद्धि को देनेवाला कहा गया है। राष्ट्र के अपूर्ण कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं।
4 - डोला - ( पालकी ) - जब कोई दुल्हन विदा होकर जाती है , अथवा विदाई के क्षणों में इसका प्रयोग होता है। वह क्षण स्वभाविक रूप से करुणा का होता है , भार लिए होता है। रुदन का होता है। ठीक इसीप्रकार यह समझना चाहिए कि - यदि आदिशक्ति माँ दुल्हन के रूप में पालकी में घूंघट करके आएंगी तो एक मर्यादा में रहेगी । अपने भक्तों को देख हि नहीं पायेगीं कि कौन किस अवस्था मे है अदृष्टव्य होने से यह विशेष अशुभ माना गया है। राष्ट्र में दुर्भिक्ष, दुर्भाग्य, दुर्मरण का वृद्धि होता है।
यही भाव / आशय प्रस्थान का भी करना चाहिए ।
यथा -
प्रस्थान (गमन ) विचार:-
"शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा,
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा"॥
भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है। जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है।
शनि और मंगल को पैदल जाती हैं। जिससे विकलता की वृद्धि होती है।
बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है।
बृहस्पति वार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं। जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है।
इस प्रकार भगवती का आना - जाना शुभ और अशुभ फल सूचक हैं।
1- महिषा (भैंसा ) - यमराज का सूचक है। महिष की सवारी सामान्य जन भी पसन्द नहीं करते फिर भला माँ को कैसे प्रिय होगा । इस सवारी से गमन के आशय है कि राष्ट्र में रोग ,शोक,क्लेश, कल्मष बढ़ेगा। यह शुभ नही है।
2 - स्वपाद से - ( अपने पांव से जाना ) - सामान्य दृष्टि से यह स्वागत , आतिथ्य के अर्थ में नहीं है। पैदल जाने का अर्थ है कि मेरा कोई स्वागत ,सत्कार नहीं होना ,स्वम् से जा रहे है , अर्थात निराश होकर जा रहे है। स्वागत नहीं होने से चित चंचल है, अशांत है, विकल है । जिससे राष्ट्र में विकलता, बेचैनी, व्याकुलता का विस्तार होगा ।
3 - हाथी - जब आदिशक्ति हाथी पर जाती है तो सजधजकर श्रृंगार करके जाती है , हाथी शुभ का प्रतीक है । हाथी का सवारी सबको प्रिय है अतः जब हाथी पर सवार होकर जाती है तो अपने भक्तों को देखती है , प्रसन्न मुद्रा में रहती है जिससे प्रणत भक्तों को सुख मिलता है। जहां सूखा, अभाव , ग्रस्त रहता है वहां पूर्णता अर्थात वर्षा , हरियाली, समृद्धि से भरपूर कर देती है। यह शुभ माना गया है।
4 - मनुष्य रूप में - मनुष्य रूप से जाने का अर्थ है कि माँ अपनी वातशल्यता , ममता, परिपूर्णता से सम्पन्न होकर जाती है। सबको आशीष अभिवर्षन प्रदान करके जाती है । मनुष्यता, मानवता,दैन्यता आदि मानवीय गुणों को देकर , भरकर जाती हैं। यह गमन सर्वाधिक सुखमय होता है।
आ.प्रभाकर शुक्ल ( गुरुजी )
अंतरराष्ट्रीय - भागवताचार्य ज्योतिषाचार्य
पश्चिम चंपारण ( बिहार ) 8709643411