04/11/2023
तेईस बरस की छोटी सी उम्र में फाँसी के फंदे पर झूल गए अमर शहीद Bhagat Singh के जन्मदिन के तौर पर दर्ज है अविभाजित Punjab के Lyallpur अब Pakistan में मैं तेईस सितंबर एक हज़ार नौ सौ सात को जन्मे Bhagat Singh बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत British हुक्मरान ने तेईस March nineteen thirty-one को तेईस बरस के Bhagat को फाँसी पर लटका दिया मौत का सच जानने के लिए लोग यहाँ वहाँ भाग रहे थे और अखबार तलाश थे उस सुबह जिन लोगों को अखबार मिला उन्होंने काली पट्टी वाली heading के साथ ये खबर पढ़ी कि Bhagat Singh, Sukhdev और Rajguru को Lahore Central Jail में पिछली शाम सात तैंतीस पर फांसी दे दी गयी वो सोमवार का दिन था ऐसा कहा जाता है कि उस शाम jail में पंद्रह minute तक इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे एक दिन पहले ही दे दी फांसी केंद्रीय assembly में बम फेंकने के जिस मामले में Bhagat Singh को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख चौबीस March तय गई थी लेकिन उस समय के पूरे भारत में इस फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे सरकार डरी हुई थी और उसी का नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई, क्या थे भगत सिंह के आखरी शब्द, फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी शामिल थे। जितेंद्र सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढ़ने के पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे mister Magistrate आप बेहद भाग्यशाली है कि आपको ये देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं इस वजह से हुई थी फांसी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव ने एक हजार नौ सौ अट्ठाईस में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी इसके बाद सेंट्रल असेंबली में बम फेंक दिया बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी तीनों को March एक हज़ार नौ सौ इकतीस को Lahore central jail के भीतर ही फाँसी दे दी गयी थी जिस वक्त Bhagat Singh jail में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ी थी तेईस March एक हज़ार नौ सौ इकतीस को शाम करीब सात बजकर तैंतीस minute पर Bhagat Singh और उनके दोनों साथी Sukhdev और Rajguru को फाँसी दे दी गयी फाँसी पर जाने से पहले वे Lenon की जीवनी पढ़ रहे थे फाँसी पर जाते समय Bhagat Singh, Sukhdev और Rajguru तीनों मस्ती से गा रहे थे मेरा रंग दे मेरा रंग दे मेरा रंग दे बसंती छोला मैं रंग दे बसंती चोला फांसी के बाद कहीं कोई आंदोलन ना भड़क जाए इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किए फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गए जहाँ मिट्टी का तेल डालकर इनको जलाया जाने लगा गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आए इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गए जब गाँव वाले आए तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ों को एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया छेड़ा मृत्यु पर विवाद हालांकि अभी तक भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी विवादित है इस बारे में हर जगह एक सी जानकारियां नहीं मिलती लेकिन कई किताबों और फिल्मों में यह जानकारी साफ तरह से है कि तेईस तारीख को आखिर क्या हुआ था दो हजार दो में राजकुमार संतोषी की डायरेक्ट की गई फिल्म दलीजेंट ऑन सिंह में भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी के बारे में यह हिस्सा दिखाया गया है फिल्म में यह दिखाया है कि Bhagat Singh के परिवार और बाकी लोगों को किसी तरह इस बात की जानकारी मिल जाती है कि तीनों क्रांतिकारियों को सजा की तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दी जा रही है फिल्म के दृश्य के अनुसार परिवार और बाकी लोग जेल के बाहर प्रदर्शन कर रहे होते हैं और अंदर उन्हें फांसी दे दी जाती है जब लोग जेल के अंदर घुसने की कोशिश करते हैं तो उन तीनों की लाश को दूसरे गेट से बोरे में भरकर बाहर निकाला जाता है लेकिन प्रदर्शनकारी उन तक पहुँच जाते हैं फिल्म में इस अंत में यह भी दिखाया गया है कि किस तरह ब्रिटिश पुलिस उन तीनों की लाश के टुकड़े कर उन्हें जला देती है।