29/12/2020
RCEP के इतने फायदे हैं, तो भारत बाहर क्यों रह गया?
भारत ने RCEP से बाहर रहने का फैसला किया है तो इसकी वजह है- आत्मनिर्भर भारत अभियान। अगर भारत इस डील में शामिल रहता, तो उसके लिए अपने मार्केट में चीन के सस्ते सामान को आने से रोकना मुश्किल होता। इससे घरेलू उद्योगों को नुकसान होता। चीन से भारत का व्यापार घाटा 50 अरब डॉलर का है, जो और बढ़ जाता।
भारतीय दवा कंपनियां RCEP में शामिल होने के पक्ष में थीं, क्योंकि इससे उनके लिए चीन को जेनेरिक दवाइयां सप्लाई करना आसान हो जाता। हालांकि, डेयरी, एग्रीकल्चर, स्टील, प्लास्टिक, तांबा, एल्युमिनियम, मशीनों के कलपुर्जे, कागज, ऑटोमोबाइल्स, केमिकल्स और दूसरे सेक्टरों में नुकसान उठाना पड़ता।
इस डील की वजह से इम्पोर्टेड सामान पर इम्पोर्ट ड्यूटी 80% से 90% तक घटानी पड़ती। इसके अलावा सर्विस और इन्वेस्टमेंट नियमों को भी आसान बनाना होता। कुछ भारतीय उद्योगों को डर था कि अगर कस्टम ड्यूटी घटाई जाती, तो देश में इम्पोर्टेड सामान की बाढ़ आ जाती, खासकर चीन से।
भारत ने इस डील पर हुई बातचीत के दौरान मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) ऑब्लिगेशन के प्रावधान उपलब्ध न होने का मुद्दा उठाया था। इस डील के तहत RCEP देशों को भी भारत को वह दर्जा देना होता, जो उसने MFN देशों को दे रखा है। टैरिफ घटाने के लिए 2014 को बेस ईयर मानने पर भी भारत का विरोध था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, भारत ने इस ट्रेड डील से बाहर रहने का फैसला सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखते हुए लिया है। खासकर समाज के वंचित तबके को ध्यान में रखते हुए। अधिकारियों के मुताबिक, भविष्य में डील में भारत के शामिल होने के रास्ते अब भी खुले हैं।
RCEP में शामिल न होकर भारत ने क्या गंवाया?
दवा कंपनियों के साथ-साथ कुछ सेक्टरों में भारत को RCEP डील में शामिल देशों में कारोबार करना आसान हो जाता। अब यह इतना आसान नहीं रहने वाला। अगर भारत इस डील में शामिल होता तो वह ब्लॉक में तीसरी बड़ी इकोनॉमी होता।
डील से बाहर रहने का मतलब है कि भारत को डील में शामिल देशों से नए इन्वेस्टमेंट में दिक्कत आ सकती है। इसी तरह भारतीयों को इन देशों से इम्पोर्टेड सामान पर ज्यादा कीमत चुकानी होगी। खासकर ऐसे माहौल में जब ग्लोबल ट्रेड, इन्वेस्टमेंट और सप्लाई चेन विकसित करने की कोशिशों को कोरोना ने नुकसान पहुंचाया है।