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लफ्ज़बंदी शेरो शायरी की महफिल, ग़ज़लों, कविताओं का ?

शायद किसी लम्बे सुनसान रास्ते का भ्रम है यहया फिर एक गहरी नींद काया शायद स्वप्नों की स्मृतियों का।एक ठोकर के बाद दुख रहा...
12/06/2023

शायद किसी लम्बे सुनसान रास्ते का भ्रम है यह
या फिर एक गहरी नींद का
या शायद स्वप्नों की स्मृतियों का।

एक ठोकर के बाद दुख रहा है पैर का अंगूठा
नाखून के ठीक नीचे से बहता हुआ रक्त
जमीन पर गिरते ही थक्के में बदल गया है...

पढ़िये अशोक कुमार जी की कविता

आखिरी वक्त आखिरी क्या थाएक आखिरी सवालएक आखिरी आह!और आखिर में अलग होते रास्ते।अतीत के दुःखों का दर्दआखिरी हौसले के साथ...
05/03/2023

आखिरी वक्त आखिरी क्या था
एक आखिरी सवाल
एक आखिरी आह!
और आखिर में अलग होते रास्ते।

अतीत के दुःखों का दर्द
आखिरी हौसले के साथ...

अशोक कुमार जी की कविता

तारीक फ़ज़ा में ये ज़िया दें तो किसे दें ‎हम अपने ख़यालों की शुआ दें तो किसे दें ‎झेलेगा भला ख़्वाबों की बेकार चुभन कौन ‎ये ज...
12/11/2022

तारीक फ़ज़ा में ये ज़िया दें तो किसे दें ‎
हम अपने ख़यालों की शुआ दें तो किसे दें ‎

झेलेगा भला ख़्वाबों की बेकार चुभन कौन ‎
ये जलता हुआ ख़्वाबनुमा दें तो किसे दें ‎

ये पेच जो रिश्ते के हैं सुलझाए भला कौन...

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा जी की बेहतरीन ग़ज़ल

बारहा ठहर के माज़ी को बुलाते क्यूँ हो ‎जा चुके हो तो फिर अब याद भी आते क्यूँ हो ‎डर न जाए कहीं दिल चीखते सन्नाटे से ‎शब ह...
08/11/2022

बारहा ठहर के माज़ी को बुलाते क्यूँ हो ‎
जा चुके हो तो फिर अब याद भी आते क्यूँ हो ‎

डर न जाए कहीं दिल चीखते सन्नाटे से ‎
शब है तारीक अभी शमअ बुझाते क्यूँ हो ‎

वक़्त तो ख़ुद ही मिटा देता है हर एक निशां ‎...

मुमताज़ अज़ीज़ नाजा की ग़ज़ल

मैं जितना देह में थाउतना ही देह से बाहर रहाजुलूसों में कुचलानारों में उछलाझंडों में फड़फड़ायाऔर अंत में बीड़ी के धुयें में ...
08/11/2022

मैं जितना देह में था
उतना ही देह से बाहर रहा
जुलूसों में कुचला
नारों में उछला
झंडों में फड़फड़ाया
और अंत में बीड़ी के धुयें में धुंआ होकर
छाती में किसी खांस सा फंसा रहा....

अशोक कुमार जी की कविता

ये बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त है ये खुलवाया नहीं जाता ‎मोअम्मा अब किसी सूरत ये सुलझाया नहीं जाता ‎मोहब्बत की नहीं जाती, मोहब्बत ह...
26/10/2022

ये बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त है ये खुलवाया नहीं जाता ‎
मोअम्मा अब किसी सूरत ये सुलझाया नहीं जाता ‎

मोहब्बत की नहीं जाती, मोहब्बत हो ही जाती है ‎
कि दानिस्ता तो ये धोखा कभी खाया नहीं जाता ...

मुमताज़ अजीज़ नाजा की ग़ज़ल

यह रात इतनी लम्बी है किप्रहरों में नहीं, कल्पों में ढल रही हैंऐसा लगता है कि पृथ्वीभूल गयी है अपनी धुरी पर घूमना.मेरी आं...
23/10/2022

यह रात इतनी लम्बी है कि
प्रहरों में नहीं, कल्पों में ढल रही हैं
ऐसा लगता है कि पृथ्वी
भूल गयी है अपनी धुरी पर घूमना.

मेरी आंखों में एक मरुस्थल है
और मेरे हृदय में एक जंगल
मुझे पानी भी चाहिए और रास्ता भी...

अशोक कुमार जी की कविता

कितनी उदास है यह सुबहपेड़, पंछी, पवन और पावस के बावजूद भीकितना खालीपन है यहाँ.गरजते मेघों, गिरती बूंदोंऔर खनकते पत्तों के...
16/10/2022

कितनी उदास है यह सुबह
पेड़, पंछी, पवन और पावस के बावजूद भी

कितना खालीपन है यहाँ.
गरजते मेघों, गिरती बूंदों

और खनकते पत्तों के बावजूद भी...

अशोक कुमार जी की शानदार कविता

मक़ाम आएगा ऐसा, ये ध्यान में भी न था ‎कि अब तो साया किसी सायबान में भी न था ‎वो हसरतों के भँवर भी ख़मोश थे अब तो ‎बला का ज...
07/10/2022

मक़ाम आएगा ऐसा, ये ध्यान में भी न था ‎
कि अब तो साया किसी सायबान में भी न था ‎

वो हसरतों के भँवर भी ख़मोश थे अब तो ‎
बला का जोश वो दिल के उफान में भी न था ‎

बिखेर डाला था जिस ने वफ़ा का शीराज़ा..

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा की ग़ज़ल

यहां मेरे घर के सामने बहुत से पेड़ हैंमैं उन्हें बस पत्तों से पहचानता हूँउनकी गंध से पहचानता हूँउनसे टपके द्रव के धब्बों ...
24/09/2022

यहां मेरे घर के सामने बहुत से पेड़ हैं
मैं उन्हें बस पत्तों से पहचानता हूँ
उनकी गंध से पहचानता हूँ
उनसे टपके द्रव के धब्बों को पहचानता हूँ

मैं उनमें से किसी का नाम नहीं जानता.
जबकि छांव देते हैं ये भी, वैसे ही...

अशोक कुमार जी की खूबसूरत कविता

प्रतीक्षा के एकाकी क्षणों मेंबारिश के ये सूक्ष्म कणनुकीले तश्तर से चुभते हैं शरीर पर.ये थकी उदास किरणेंबादलों में सेंध म...
23/09/2022

प्रतीक्षा के एकाकी क्षणों में
बारिश के ये सूक्ष्म कण
नुकीले तश्तर से चुभते हैं शरीर पर.
ये थकी उदास किरणें
बादलों में सेंध मारकर
पहुंच रही हैं घर के दरवाजे तक.
इंतज़ार में खुले किवाड़...

अशोक कुमार जी की कविता

दिल के ख़दशात सदाक़त में तो ढाले न गएआसतीं में कभी फिर नाग वो पाले न गएऔर मज़लूम ने थक हार के दम तोड़ दियापूछने हाल अंधेरों ...
20/09/2022

दिल के ख़दशात सदाक़त में तो ढाले न गए
आसतीं में कभी फिर नाग वो पाले न गए

और मज़लूम ने थक हार के दम तोड़ दिया
पूछने हाल अंधेरों का उजाले न गए

मेरी क़िस्मत में तो कुछ और बलन्दी थी मगर

A blog where u can enjoy timepaas Poetry.

कभी तक़दीर ने लूटा, कभी वहशत ने ठुकरायाहज़ारों कोशिशें कर लीं हमें जीना न रास आयाKABHI TAQDEER NE LOOTA KABHI WAHSHAT NE T...
27/11/2020

कभी तक़दीर ने लूटा, कभी वहशत ने ठुकराया
हज़ारों कोशिशें कर लीं हमें जीना न रास आया
KABHI TAQDEER NE LOOTA KABHI WAHSHAT NE THUKRAAYA
HAZAARON KOSHISHEN KAR LEEN HAMEN JEENA NA RAAS AAYA

वही, जिसके लिए हमने वजूद अपना मिटा डाला.....

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा की ग़ज़ल

तरब का पर्दा भी आख़िर इसे बचा न सकाचिराग़ बुझने से पहले भी लपलपा न सका हज़ार वार किए जम के रूह को कुचलाज़माना हस्ती को मेरी ...
17/11/2020

तरब का पर्दा भी आख़िर इसे बचा न सका

चिराग़ बुझने से पहले भी लपलपा न सका



हज़ार वार किए जम के रूह को कुचला

ज़माना हस्ती को मेरी मगर मिटा न सका....

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा की ग़ज़ल

जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखनाबैठ कर साहिल पे क्या दरिया का धारा देखना माँगते हैं ख़ैर तेरी सल्तनत में रात दिनदे...
31/10/2020

जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना

बैठ कर साहिल पे क्या दरिया का धारा देखना



माँगते हैं ख़ैर तेरी सल्तनत में रात दिन

देखना, बस इक नज़र ये भी ख़ुदारा देखना



ये तुम्हारा क़हर तुम को ही न ले डूबे कहीं....

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा की ग़ज़ल

फिर नफ़रतों ने इश्क़ की मीनार तोड़ दीदरवाज़ा जब न टूटा तो दीवार तोड़ दीپھر  نفرتوں نے عشق کی مینار توڑ دیدروازہ جب نہ ٹوٹا ت...
29/10/2020

फिर नफ़रतों ने इश्क़ की मीनार तोड़ दी
दरवाज़ा जब न टूटा तो दीवार तोड़ दी

پھر نفرتوں نے عشق کی مینار توڑ دی
دروازہ جب نہ ٹوٹا تو دیوار توڑ دی

फूलों से उसको प्यार है तोड़ा नहीं उन्हें
उसने कली मेरे लिए इक बार तोड़ दी

پھولوں سے اس کو پیار ہے توڑا نہیں انہیں...

गज़ाला तबस्सुम की ग़ज़ल

है सूखी पड़ी कब से ख़्वाबों की छागलकि मुरझा गई ज़िंदगानी की कोंपलख़ुदा जाने टूटा है सामान क्या क्यामेरे दिल के अंदर बहुत शोर...
23/10/2020

है सूखी पड़ी कब से ख़्वाबों की छागल
कि मुरझा गई ज़िंदगानी की कोंपल

ख़ुदा जाने टूटा है सामान क्या क्या
मेरे दिल के अंदर बहुत शोर था कल

कहो, दिल के सेहरा से मोहतात गुज़रें
कहीं जल न जाए बहारों का आँचल....

मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा की ग़ज़ल

कुछ बातों पर मुझेझुंझलाना आता हैकुछ पर गुस्साकुछ पर मैं रो पड़ता हूँऔर कुछ परचुप ही रह जाना आता हैकुछ बातों पर मैं ध्यान...
20/10/2020

कुछ बातों पर मुझे
झुंझलाना आता है
कुछ पर गुस्सा
कुछ पर मैं रो पड़ता हूँ
और कुछ पर
चुप ही रह जाना आता है

कुछ बातों पर मैं ध्यान नहीं देता
कुछ को जज्ब कर जाता हूँ
कुछ बातों को लौटाता हूँ....

आलोक कुमार मिश्र की कविता

वो कहती है!मुझे चूड़ियां बंधन नहीं लगतीपहनने दो न।और मैं हार जाता हूं।वो कहती है!घूँघट नहीं पल्लू रखने दोमैं सम्मान देना ...
18/10/2020

वो कहती है!
मुझे चूड़ियां बंधन नहीं लगती
पहनने दो न।
और मैं हार जाता हूं।

वो कहती है!
घूँघट नहीं पल्लू रखने दो
मैं सम्मान देना चाहती हूं
और मैं हार जाता हूं....

अशोक कुमार की कविता

आँखें नम हैं ,लब सिलें हैं जज़्बातों के शब्द मुखरित हैंअश्कों के पन्नों पर हमने अपने कुछ एहसास लिखें हैं खुदगर्ज इस दुनि...
16/10/2020

आँखें नम हैं ,लब सिलें हैं
जज़्बातों के शब्द मुखरित हैं
अश्कों के पन्नों पर हमने
अपने कुछ एहसास लिखें हैं

खुदगर्ज इस दुनिया की हमने
थोङे से हीं राज लिखें हैं...

बंदना पाण्डेय की कविता

तुम कहो तो पत्नी से मैं प्रेयसी बन जाऊँगी  अध खुले अधरों से मंद मंद मुस्काऊँगी माँग मध्य सिंदूर लगा कर ,सिन्दूरी गोधूलि ...
16/10/2020

तुम कहो तो पत्नी से मैं प्रेयसी बन जाऊँगी
अध खुले अधरों से मंद मंद मुस्काऊँगी
माँग मध्य सिंदूर लगा कर ,
सिन्दूरी गोधूलि बन जाऊँगी
आंजन लगे चंचल नैनों में
प्रियवर तुम्हें बसाऊँगी
पायल की ठुमरी के संग कंगन की तान सुनाऊँगी
हाँथो में प्रियवर मैं ,मेंहदी तेरे नाम की रचाऊँगी....

बंदना पाण्डेय की कविता

हर्फ हर्फ  आते हैं मिलने ,मेरी भावनाओं से बिखरे बिखरे शब्दों को भरती हूँ अंजुरी मेंगुथती हूँ मनोभाव से तब ...बनती है कोई...
16/10/2020

हर्फ हर्फ आते हैं मिलने ,मेरी भावनाओं से
बिखरे बिखरे शब्दों को भरती हूँ अंजुरी में
गुथती हूँ मनोभाव से
तब ...
बनती है कोई कविता
निर्जन मन रेगिस्तान की एकांत में
बैठता है ,तकता है सन्नाटों को
तब...

बंदना पाण्डेय की कविता

आओ आज कुछ ऐसा लिख दूं अपनी मन की बात कहूं कविता लिखूँ कुछ ऐसी जो शब्द शब्द मन की खोले भेद अम्बर से अवनि बोले ...अपने मन ...
16/10/2020

आओ आज कुछ ऐसा लिख दूं
अपनी मन की बात कहूं
कविता लिखूँ कुछ ऐसी जो
शब्द शब्द मन की खोले भेद
अम्बर से अवनि बोले ...
अपने मन की खोले भेद
सुनो अम्बार....
मैं तङप रही ,सूरज की किरणों से झुलस रही
अमर प्रेम अम्बार, अवनि की
पल में समझा पीङा अवनि की...

बंदना पाण्डेय की कविता

प्रेम समर्पण है प्रेम में हम हार कर भी जीत जाते पराक्रम में जीत कर भी हार जाते एक प्रेम कई लोगों के दिलों को जीत लेता पर...
16/10/2020

प्रेम समर्पण है
प्रेम में हम हार कर भी जीत जाते
पराक्रम में जीत कर भी हार जाते
एक प्रेम कई लोगों के दिलों को जीत लेता
पराक्रम को कई लोगों को हराना पङता
प्रेम और पराक्रम का सब से बेहतरीन
उदाहरण यशोदा नन्दन कृष्ण हैं
मिले राधा से कृष्ण थे
एक बार स्वर्ग में अन्यास
देख सकुचाए कृष्ण...

बंदना पाण्डेय की कविता

जब जिस्म का बलात्कार हो रहा होता है तब सिर्फ जिस्म का ही नहीं ...रूह और आत्मा का भी बलात्कार हो रहा होता है जब हम बेटियो...
16/10/2020

जब जिस्म का बलात्कार हो रहा होता है
तब सिर्फ जिस्म का ही नहीं ...
रूह और आत्मा का भी बलात्कार हो रहा होता है
जब हम बेटियों की अस्मिता लुट रही होती
जिस्म को नोंचा जा रहा होता है
हमारे साथ अमानवीय घटना घट रही होती
जिस्म से खून बह कर सङक पर
फैल कर दरिंदगी की साक्ष बन रहा होता...

बंदना पाण्डेय की कविता

स्त्री जिस दर्द को ओढती है पहनती है ,जीती है क्या कभी कोई समझ पाएगा...?बेटी से लेकर दादी, नानी तक का सफरन जाने कितनी पीङ...
16/10/2020

स्त्री जिस दर्द को ओढती है
पहनती है ,जीती है
क्या कभी कोई समझ पाएगा...?
बेटी से लेकर दादी, नानी तक का सफर
न जाने कितनी पीङा ,कितना दर्द सही होगी
जीवन पथ पर चलते चलते...

बंदना पाण्डेय की कविता

ख्वाहिशें आज भी कई चिट्ठियां लिखती हैं कोमल ,मासूम बचपन के नाम पर सारी चिट्ठियां लौट आती हैं वैरन ख्वाहिशों  को कहां पता...
16/10/2020

ख्वाहिशें आज भी कई चिट्ठियां लिखती हैं
कोमल ,मासूम बचपन के नाम
पर सारी चिट्ठियां लौट आती हैं वैरन
ख्वाहिशों को कहां पता है

अब बचपन उस पते पर नहीं रहता
बदल गया है उसका पता ठिकाना
पुराने पते पर कैसे ढूँढें....

बंदना पाण्डेय की कविता

शिरीष तुम्हें तब से जानती हूँजिस दिन तुम्हें मनरेगा वाले सड़क के किनारे लगा गए थेतब याद आया थाइतिहास का पन्नाजिसमें शेरशा...
15/10/2020

शिरीष तुम्हें तब से जानती हूँ
जिस दिन तुम्हें मनरेगा वाले
सड़क के किनारे लगा गए थे
तब याद आया था

इतिहास का पन्ना
जिसमें शेरशाह,अशोक
आदि राजाओं का जिक्र था.....

ऊषा कुमारी की कविता

माना तू है बसन्त की पहचान  मैं भी  हूँ इसी मौसम की देन        तू पीली धोती सा पीताम्बर        मैं भी निलाभ लिए गगन साएक ...
15/10/2020

माना तू है बसन्त की पहचान
मैं भी हूँ इसी मौसम की देन

तू पीली धोती सा पीताम्बर
मैं भी निलाभ लिए गगन सा

एक ही माटी एक ही गुलशन
फिर क्यों जुदा हुई पहचान...

ऊषा कुमारी की कविता

धरती का तू कच्चा सोनातुझसे है श्रृंगार धरा काआषाढ़ के पावस दिन जबमूसलधार बरसता पानीजा पहुंचते खेतों में हलधरहल-बैल,कुदाल ...
15/10/2020

धरती का तू कच्चा सोना
तुझसे है श्रृंगार धरा का
आषाढ़ के पावस दिन जब
मूसलधार बरसता पानी

जा पहुंचते खेतों में हलधर
हल-बैल,कुदाल या ट्रैक्टर...

ऊषा कुमारी की कविता

माटी तू कितनी अनमोलहै छुपा तुझमें कुछ ऐसाजिससे जीवन है सारान तू सिर्फ जीवन देतीबोझ भी तू ढोती सबकाहो जंगल विरल या सघन...
15/10/2020

माटी तू कितनी अनमोल
है छुपा तुझमें कुछ ऐसा

जिससे जीवन है सारा
न तू सिर्फ जीवन देती

बोझ भी तू ढोती सबका
हो जंगल विरल या सघन...

ऊषा कुमारी की कविता

किसके हिस्से  दर्द न आता?लाख छुपाओ,फिर भी रिसतातन को भले वसन  ढँकता  दर्द तो दिल के कोने छुपतासुख से तो आनन मुस्कातादुःख...
15/10/2020

किसके हिस्से दर्द न आता?
लाख छुपाओ,फिर भी रिसता

तन को भले वसन ढँकता
दर्द तो दिल के कोने छुपता

सुख से तो आनन मुस्काता
दुःख तो आँखे कोरों रिसता....

ऊषा कुमारी की कविता

बन्द पड़े हैं सब मदिरालयखुली है फैक्टरियां मदिरा कीशराब बंदी और नशा मुक्तिसब है बस नारों का खेलबनी थी श्रृंखला मानव कीकोई...
15/10/2020

बन्द पड़े हैं सब मदिरालय
खुली है फैक्टरियां मदिरा की

शराब बंदी और नशा मुक्ति
सब है बस नारों का खेल

बनी थी श्रृंखला मानव की
कोई न हाथ छूटने न पाए....

ऊषा कुमारी की कविता

सच को कोई न बिजतासच से जाने क्यों डरते लोगकोई न करता इसकी खेतीजो की जाती सच की खेतीवजूद खत्म हो जाता कब कासच को ईश्वर ने...
15/10/2020

सच को कोई न बिजता
सच से जाने क्यों डरते लोग

कोई न करता इसकी खेती
जो की जाती सच की खेती

वजूद खत्म हो जाता कब का
सच को ईश्वर ने पँख दिये

ऊषा कुमारी की कविता

मेरे शहर के चार चौराहेगुलजार रहते चिल्ल पों सेसड़क पार करने कोकरना होता रोज इंतजारआज ज्यों ही कदम बढ़ाईबज उठी सायरन....
15/10/2020

मेरे शहर के चार चौराहे
गुलजार रहते चिल्ल पों से

सड़क पार करने को
करना होता रोज इंतजार

आज ज्यों ही कदम बढ़ाई
बज उठी सायरन....

ऊषा कुमारी की कविता

पहाड़ी औरतें!नज़दीक ब्याही गयीं,मगर दूरियां कायम रहीं ताउम्रपार करती रहीं.....जिंदगी के उतार-चढ़ावटेढ़े-मेढ़े रास्तों की तरह।...
14/10/2020

पहाड़ी औरतें!
नज़दीक ब्याही गयीं,
मगर दूरियां कायम रहीं ताउम्र
पार करती रहीं.....
जिंदगी के उतार-चढ़ाव
टेढ़े-मेढ़े रास्तों की तरह।
पहाड़ी औरतें!
पीठ पर किलटा उठाती....

अशोक कुमार की कविता

मंज़र  है  सर-ए-राह  गुज़र, और तरह का.दरपेश  है  इस  बार  सफ़र  और तरह का.उठता  है  समंदर  में  जो  तूफ़ान , अलग है,दरिय...
13/10/2020

मंज़र है सर-ए-राह गुज़र, और तरह का.
दरपेश है इस बार सफ़र और तरह का.
उठता है समंदर में जो तूफ़ान , अलग है,
दरियाओं में होता है भँवर और तरह का.
शमशीर ज़नी ख़ून से वाबस्ता है , लेकिन......

Ghazal by Wasif Farooqui

तेरा  ग़म  मनाने  के  दिन  आ  गए  हैंकि  आँसू  बहाने  के  दिन  आ  गए हैंये  मंज़ूर  हम  को  नहीं  है   मगर जाँतेरे  खत  जल...
09/10/2020

तेरा ग़म मनाने के दिन आ गए हैं
कि आँसू बहाने के दिन आ गए हैं

ये मंज़ूर हम को नहीं है मगर जाँ
तेरे खत जलाने के दिन आ गए हैं

जो वादें कभी तुम ने......

मोनिस फ़राज़ की ग़ज़ल

फ़र्श से अफ़लाक तक पहुंची है रुसवाई मेरीजाने क्यूँ बेचैन रक्खे सब को दानाई मेरीفرش سے افلاک تک پہنچی ہے رسوائی مریجانے کیو...
07/10/2020

फ़र्श से अफ़लाक तक पहुंची है रुसवाई मेरी
जाने क्यूँ बेचैन रक्खे सब को दानाई मेरी
فرش سے افلاک تک پہنچی ہے رسوائی مری
جانے کیوں بے چین رکھے سب کو دانائی مری

कोई साया भी पड़े मुझ पर तो दम घुटता है अब
मुझ को तन्हा एक पल छोड़े न तनहाई मेरी
کوئی سایہ بھی پڑے مجھ پر تو دم گھٹتا ہے اب
مجھ کو تنہا ایک پل چھوڑے نہ تنہائی مری

जिस जगह मैं हूँ, वहाँ कोई नज़र आता नहीं



फ़र्श से अफ़लाक तक पहुंची है रुसवाई मेरी
जाने क्यूँ बेचैन रक्खे सब को दानाई मेरी
فرش سے افلاک تک پہنچی ہے رسوائی مری
جانے کیوں بے چین رکھے سب کو دانائی مری

कोई साया भी पड़े मुझ पर तो दम घुटता है अब
मुझ को तन्हा एक पल छोड़े न तनहाई मेरी
کوئی سایہ بھی پڑے مجھ پر تو دم گھٹتا ہے اب
مجھ کو تنہا ایک پل چھوڑے نہ تنہائی مری

जिस जगह मैं हूँ, वहाँ कोई नज़र आता नहीं....

मुमताज़ अज़ीज़ की शायरी

बक़ैद-ए-ग़म तखै़युल के हिरन हैंमेरे अंदर भी जाने कितने बन हैंफ़ज़ा में ज़हर घुलता जा रहा हैहर इंसां के बतन में कितने फन हैंअज...
07/10/2020

बक़ैद-ए-ग़म तखै़युल के हिरन हैं
मेरे अंदर भी जाने कितने बन हैं

फ़ज़ा में ज़हर घुलता जा रहा है
हर इंसां के बतन में कितने फन हैं

अजब है हाकिमों का तौर अबके...

gandi siyasat, chubhte lamhe, khoon sana aman, Ghazal by Mumtaz naza,

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