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T20 World Cup Cricket for the BlindJhargram district police handed over complete cricket kit and other sports gear to Su...
28/10/2022

T20 World Cup Cricket for the Blind

Jhargram district police handed over complete cricket kit and other sports gear to Suvendu Mahato r/o Garh Salboni of this district
𝗦𝗵𝗿𝗶 𝗦𝘂𝘃𝗲𝗻𝗱𝘂 𝗠𝗮𝗵𝗮𝘁𝗼 𝘀𝗵𝗮𝗹𝗹 𝗯𝗲 𝗽𝗿𝗼𝘂𝗱𝗹𝘆 𝗿𝗲𝗽𝗿𝗲𝘀𝗲𝗻𝘁𝗶𝗻𝗴 𝗜𝗻𝗱𝗶𝗮 𝗶𝗻 𝘁𝗵𝗲 𝘂𝗽𝗰𝗼𝗺𝗶𝗻𝗴 𝗧𝟮𝟬 𝗪𝗼𝗿𝗹𝗱 𝗖𝘂𝗽 𝗰𝗿𝗶𝗰𝗸𝗲𝘁 𝗳𝗼𝗿 𝘁𝗵𝗲 𝗕𝗹𝗶𝗻𝗱 𝘁𝗼 𝗯𝗲 𝗼𝗿𝗴𝗮𝗻𝗶𝘀𝗲𝗱 𝗶𝗻 𝗗𝗲𝗰𝗲𝗺𝗯𝗲𝗿 𝟮𝟬𝟮𝟮

He is the 𝗼𝗻𝗹𝘆 cricketer from West Bengal to have been selected to the Indian team!

Jhargram District police is proud of his stupendous achievement and would continue to support promising sportspersons in endeavours that brings sporting laurel to Jhargram district😊

We wish Shri Suvendu Mahato all the best for the future and pray for his success in the upcoming competition 🙏

  :- ये खूंटी के सुजीत मुंडा हैं। ब्लाइंड टी 20 क्रिकेट वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम में इनका चयन हुआ है। सुजीत बुमराह से...
25/10/2022

:- ये खूंटी के सुजीत मुंडा हैं। ब्लाइंड टी 20 क्रिकेट वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम में इनका चयन हुआ है। सुजीत बुमराह से भी तेज गेंद फेंकते हैं। सुजीत के तीन भाई हैं। तीनों दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। मां 3 साल पहले चल बसी। सुजीत दिल्ली में ग्रेजुवेशन की पढ़ाई कर रहे हैं। वे कहते हैं सरकार की तरफ से मिलने वाला दिव्यांग पेंशन उनके लिए बहुत राहत देता है। लेकिन पिछले 6 महीने से वह भी नहीं मिला। सुजीत इससे पहले अमेरिका भी जा चुके हैं। मेडल जीत चुके हैं। वह चाहते हैं कि लोग नेत्रहीन क्रिकेट पर भी अपना प्यार-दुलार थोड़ा लुटाएं ताकि खिलाड़ियों का मनोबल बढ़े और उनकी स्थिति सुधरे। सुजीत एक बार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलने की इच्छा रखते हैं।
सुजीत मुंडा जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएं। शुभ दीपावली 🌸

21/10/2022

* आदिवासियत किसी की बपौती नहीं -
* कुड़मी अपना संवैधानिक लड़ाई लड़ रहा है -
* शिबू सोरेन को तमाड़ विधानसभा चुनाव में मुंडा लोगों ने हराया था,क्या वह नकली आदिवासी था ?
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शालखन मुर्मू (पूर्व सांसद) आजकल "असली और नकली आदिवासी"की बात करते रहते हैं । वे कुड़मी जनजाति को नकली आदिवासी होने का इशारा करते हैं। मैं उदाहरण देना चाहता हूं कि शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। संवैधानिक नियम के अनुसार उन्हें 6 महीना के भीतर विधायक बनना था और उन्होंने तमाड़ विधानसभा से चुनाव लड़ने का निश्चय किया। लेकिन परिणाम क्या हुआ, मुंडा लोगों ने झारखंड आंदोलन के नेतृत्वकर्ता शिबू सोरेन को वोट नहीं दिया और वे चुनाव हार गए। उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।अब प्रश्न उठता है कि शिबू सोरेन एक झारखंड आंदोलनकारी एवं संताल जनजाति होने के नाते मुंडा लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति को जिताया जिसका दूर-दूर तक झारखंड आंदोलन से संबंध नहीं था। क्या शिबू सोरेन एक नकली आदिवासी थे ? उन्हें जो वोट मिला था वह प्रायः कुड़मी लोगों का था। तमाड़ विधानसभा में कुड़़मियों ने 'महतो - माझी भाई भाई' की नाता को बरकरार रखा।
कुड़़मी लोग कई दशक से अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के मुद्दे पर संघर्षरत हैं। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में रेल टेका(रोको) आंदोलन हुआ और करीब तीन दिनों तक सफल आंदोलन चला। इस आंदोलन से सरकार जितना चिंतित नहीं है उससे ज्यादा परेशानी हमारे झारखंड के कुछ आदिवासी नेता , नेत्री हैं जिन्होंने कभी झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया है, वैसे व्यक्तियों को काफी बेचैनी हो गई । उस बेचैनी का परिणाम यह हुआ कि कुछ लोग मोराहबादी मैदान में कुड़मी जाति के खिलाफ धरना दिया और बयानबाजी कर रहे थे कि इन्हें अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल नहीं किया जाए ।
अब झारखंड में कई तथाकथित स्वयंभू इतिहास कार, मानवशास्त्री (anthropologist) का जन्म हुआ है, जो कुड़मियों के खिलाफ अनर्गल इतिहास बता रहे हैं। मैंने डॉ फ्रैंकलीन बाखला (पूर्व प्रोफेसर संत जेवियर कॉलेज, रांची) का एक वीडियो में कहते हुए सुना जिसमें वे कहते हैं कि कुड़मी लोगों को अंग्रेजों ने अफीम की खेती करने के लिए लाया और शिवाजी का सेना के रूप में आए थे। मैं Dalton की पुस्तक "Descriptive Ethonology of Bengal- 1872" के हवाले से प्रोफेसर फ्रैंकलीन को बताना चाहता हूं जिसमें कुड़मियों के बारे में निम्नलिखित लिखा हुआ है-- " In the province of chutiya Nagpur and ancestors of the people now called Kurmis appears to have obtained a footing among the aboriginal tribes at a very remote period ..."(इसका अर्थ है- ऐसा मालूम होता है कि चुटियानागपुर प्रांत में अब कुड़मी कहे जाने वाले लोगों के पूर्वजों ने आदिवासी जनजातियों के बीच काफी दूरस्थ अवधि में ही अपनी पैठ बना ली थी)"। यहां Remote Period यानी 'दूरस्थ अवधि' का जिक्र है अर्थात कुड़मियों का झारखंड में बसने का कितना प्राचीन है कि इतिहासकारों को उसका दिन, तारीख, वर्ष की जानकारी नहीं है।खुद डाल्टन को भी पता नहीं। किन्तु रांची में फ्रैंकलीन नाम का एक ऐसा व्यक्ति हैं जिन्हें जानकारी प्राप्त हुआ कि कुड़मियों को अंग्रेजों ने बसाया था ? वाह फ्रैंकलीन जी ,वीडियो में कहने से नहीं चलेगा, प्रमाण देना होगा। जहां तक अफीम की खेती का सवाल है, आज भी झारखंड के खूंटी, गुमला एवं उसके आसपास इलाके में अफीम की खेती होती है जहां उस इलाके में कुड़मी लोगों का ना घर है, ना गांव है, ना जमीन है। रघुवर सरकार के शासनकाल में झारखंड पुलिस ने कई बार उस अफीम खेती को नष्ट किया है और वहां कौन लोग बसते हैं यह सबको पता है।
फ्रैंकलीन जी का नाम अंग्रेजी है लेकिन फिर भी आदिवासी हैं। फ्रैंकलीन जी कहते हैं कोल विद्रोह कुड़मी लोगों के विरुद्ध हुआ था। जहां तक मेरा रिसर्च है तत्कालीन रांची जिले में कोल विद्रोह विशुद्ध रूप से क्रिश्चियन, मुसलमान और साहूकार के विरोध में था। जिले में धड़ल्ले से लोग क्रिश्चियन बन रहे थे। अंग्रेज शासक और छोटानागपुर राजा द्वारा आदिवासियों की जमीन छीनकर क्रिश्चियन बन रहे लोगों के नाम पर बंदोबस्त कर रहे थे। इसके प्रतिक्रिया में 1831- 32 में गुमला क्षेत्र में वीर बुधु भगत का आंदोलन, बंदगांव और खूंटी क्षेत्र में सिंगराय- बिंदराय मानकी का आंदोलन, जिसे कोल विद्रोह कहते हैं। फ्रैंकलीनजी को यह पता होना चाहिए कि जिन क्षेत्रों में कुड़मी लोग बसते हैं वहां कोल विद्रोह नहीं हुआ था, फ्रैंकलीन जी को रांची गजेटियर पढ़ना चाहिए , कोल विद्रोह किसके विरोध में था ,जानकारी मिल जाएगी?
फ्रैंकलीन जी और कई हमारे आदिवासी नेता यह साबित करने में लगे रहते हैं कि झारखंड के कुड़मी महाराष्ट्र मूल के हैं और बिनोद बिहारी महतो द्वारा "शिवाजी समाज" नामक संगठन बनाए जाने की बात करते रहते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि छत्रपति शिवाजी इस भारत देश के एक महापुरुष थे और वे भारतीयों के आदर्श हैं। आपने महाराष्ट्र में शिवसेना राजनीतिक दल का नाम सुना होगा जिसका संस्थापक बाल ठाकरे थे। शिवसेना के बैनर हो या पोस्टर हो, छत्रपति शिवाजी का फोटो सबसे ऊपर रहता है। इस राजनीतिक दल का आदर्श छत्रपति शिवाजी हैं। बाल ठाकरे तो कुड़मी नहीं है फिर भी वह शिवाजी को आदर्श मानते हैं। इसी तरह बिनोद बिहारी महतो ने भी शिवाजी समाज का गठन कर झारखंड के शोषित, पीड़ित एवं पिछड़ावर्ग के उत्थान के लिए काम किया था। ऐसे तो बिनोद बिहारी महतो खांटी वामपंथी विचार के नेता थे। जाति- पातीं की राजनीति से दूर रहते थे। 1973 में बिनोद बिहारी महतो के प्रयास से और शिबू सोरेन के साथ मिलकर शिवाजी समाज और सनत संताल समाज को विलय कर एक क्रांतिकारी राजनीतिक दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का स्थापना धनबाद में किया। बिनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव बने। सभा स्थल में लोगों ने नारा दिया "महतो - माझी भाई भाई"। झारखंड मुक्ति मोर्चा का यही बुनियाद है। बाद में अन्य जनजाति और मूलवासी लोग मिलते गए और कारवां बनता गया। झारखंडी नेताओं में विनोद बाबू ही एक ऐसा व्यक्ति थे जो आपातकाल (1975 - 76) में 19 महीना भागलपुर जेल में रहे। झारखंड विरोधियों ने झामुमो को महतो - माझी का पार्टी कहा।
झारखंड अलग राज्य संघर्ष काल में आगे चलकर 1978 में मेरे (शैलेंद्र महतो) और देवेंद्र मांझी के नेतृत्व में हमारे कोल्हान के ' हो ' समुदाय ने भी अपना विशेष योगदान दिया। मूल रूप से इन तीन जातियों( कुड़मी,संताल, हो ) का झारखंड आंदोलन में विशेष योगदान रहा। इन्हीं तीन जातियों के लोग झारखंड आंदोलन में ज्यादा शहीद हुए हैं और संघर्ष के 27 साल बाद सन् 2000 में झारखंड अलग राज्य बना।
मोरहाबादी मैदान में जो लोग कुड़मी का विरोध कर रहे थे वे झारखंड आंदोलनकारी नहीं है । वैसे व्यक्ति आज झारखंड की सामाजिक समरसता और एकता को विषैला बनाने में लगे हुए हैं। उन्हें यह पता होना चाहिए कि झारखंड आंदोलन में भी रेल रोको, आर्थिक नाकेबंदी हुआ था। लोग शहीद हुए थे। कुड़मी को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की मांग सरकार से है, मोराहबादी मैदान में विरोध करने वालों से नहीं है। क्या इन विरोधियों से आदेश प्राप्त कर कुड़मियों को आंदोलन करना चाहिए ? आदिवासियत किसी की बपौती नहीं है। हमें मालूम है कि बिहारवासियों द्वारा झारखंड अलग राज्य की मांग का विरोध बड़ा ही जबर्दस्त था, लालू जी ने तो यहां तक कह दिया था कि झारखंड मेरे लाश पर बनेगी, इसके बावजूद झारखंड बना। कोई रोक नहीं पाया। कुड़मियों का जितना विरोध होगा उसका आंदोलन उतना ही सशक्त होगा। मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई और राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद की लड़ाई इसका उदाहरण है। यदि सरकार इसका फैसला नहीं करता है तो यह मामला अंततः न्यायलय में जाएगा। समय बलवान है और समय आएगा, कुड़मी भी अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल होंगे और आदिवासियत में चार चांद लग जाएगी।
जय झारखंड जय भारत,

आपका
शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)

 #तिरुलडीह_गोलीकाण्ड21अक्टूबर 1982 को अलग राज झाड़खंड, ईचागढ़ को अकाल घोषित कर मुआवजा देने की मांग तथा चांडिल डैम के हुए व...
21/10/2022

#तिरुलडीह_गोलीकाण्ड
21अक्टूबर 1982 को अलग राज झाड़खंड, ईचागढ़ को अकाल घोषित कर मुआवजा देने की मांग तथा चांडिल डैम के हुए विस्थापित को मुआवजा की मांगों को लेकर तिरूलडीह में प्रशासन के खिलाफ हजारों की संख्या में जुटे थे चांडिल डैम में हुए विस्थापित के लोगों ने प्रदर्शन किया था जिसमें पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के ऊपर गोलीबारी फायरिंग शुरू कर दिया तथा उसमें हमारे चांडिल कॉलेज के दो छात्र अजीत महतो और धनंजय महतो शहीद हो गए।

#अजीत_महतो सिहंभूम कॉलेज चांडिल में बीए की पढ़ाई कर रहे थे। जो चौका स्थित कुरली गांव निवासी अपने भाई अगनू महतो के साथ रहते थे। 22 अक्टूबर को उनके भाई को खबर मिला कि पुलिस फायरिंग में उनके भाई का मौत हो गयी है। तब उस समय के नेता हमारे जमशेदपुर के शहीद निर्मल महतो हुआ करते थे तो इन्होंने शव को कुरली स्थित घर लेकर आए और अंतिम संस्कार कर दिया।

#धनंजय_महतो ईचागढ़ की जोड़ा पंचायत के आदारडीह गांव के निवासी थे।

पुलिस जुल्म के विरोध में अशोक उरांव, गुरुचरण महतो, दीनबंधु महतो, तरुण कुमार पाल, शीतल चंद्र प्रमाणित, सुरेश खेतान आदि लोगों ने आंदोलन छेड़ा था।
उस समय बिहार में डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी। पूरे बिहार में हंगामा हुआ जार्ज फर्नाडीस, कपूरी ठाकुर, निर्मल महतो, शिबू सोरेन, रामविलास पासवान आए और घटना के विरोध में ईचागढ़ प्रखण्ड कार्यालय में सभा की तथा एक जांच कमेटी बनी ओर जांच शुरू किया था मगर वह जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई बाद में सरकार की ओर से पाँच-पाँच हजार के मुआवजे की घोषणा की गई लेकिन आंदोलनकारियों ने सरकारी सहायता लेने से इनकार कर दिया। धनंजय महतो सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र थे, इसलिए तत्कालीन कुलपति डॉ अनुज कुमार धान आए और उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर से पाँच हजार की सहायता राशि दी।

जब तक निर्मल महतो जिंदा थे, धनंजय महतो के गांव में आना-जाना लगा रहा। शिबू सोरेन भी लगातार आते रहे। झारखंड बनने के बाद सुदेश महतो ने चांडिल-सिल्ली मार्ग पर बने पुल का नामांकन अजीत-धनंजय महतो के नाम पर किया, अजीत-धनंजय महतो के नाम पर एक विद्या निकेतन खोला गया और सिरोम और तिरुलडीह में दोनों छात्रों की मूर्ति लगाई गई। 21 अक्टूबर को हर साल शहीद स्थल पर शहीद दिवस मनाया जाता है तथा मेला का आयोजन भी किया जाता है।
दोनों शहीदों को हूल जोहार
कुड़मालि छात्र

पहले ये तो बताइए स्थानीय है कौन??
16/10/2022

पहले ये तो बताइए स्थानीय है कौन??

मुंडाओं द्वारा  प्रयोग में लाया जाने वाला "बान बाधा" काटने  का मंत्र किस भाषा में है इस पर गौर किया जाए ।
13/10/2022

मुंडाओं द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला "बान बाधा" काटने का मंत्र किस भाषा में है इस पर गौर किया जाए ।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, झारखंड में केवल एक नारा बनकर रह गया है !!
11/10/2022

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, झारखंड में केवल एक नारा बनकर रह गया है !!

ये संताल आदिवासी, मुंडा आदिवासी, हो आदिवासी, उरांव आदिवासी, भील आदिवासी आदि सुना था ये ईसाई आदिवासी कौन है भाई??अजीब देश...
11/10/2022

ये संताल आदिवासी, मुंडा आदिवासी, हो आदिवासी, उरांव आदिवासी, भील आदिवासी आदि सुना था ये ईसाई आदिवासी कौन है भाई??
अजीब देश है यहाँ हिन्दू आदिवासी नहीं हो सकता, बौद्ध जैन सिख मुस्लिम आदिवासी नहीं सकता लेकिन अंग्रेज एक धर्म छोड़ के गए थे बस वही आदिवासी होंगे!!

10/10/2022
झारखंड की उठापटक वाली राजनीति और विभिन्न समुदायों के बीच तनातनी वाले माहौल से इतर झारखंडी बेटियों ने फिर दिया हमें झारखं...
08/10/2022

झारखंड की उठापटक वाली राजनीति और विभिन्न समुदायों के बीच तनातनी वाले माहौल से इतर झारखंडी बेटियों ने फिर दिया हमें झारखंड पर गर्व करने का मौका 💪💪

अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम में चयनित सभी खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ऐसे ही आप झारखंड का झंडा हर जगह गड़ते रहें!

मडुवा रोटी आर माड़ खाकर ✊💪

#अष्टम उरांव,
#अनिता कुमारी
#अंजलि मुंडा,
#नीतु लिंडा,
#पूर्णिमा कुमारी
#सुधा अंकिता
🙏🙏💐💐

किसी को लगता है कि चुआड़ विद्रोह और कोल विद्रोह में छेड़छाड़ हुआ है तो उन्हें मेरे खिलाफ कोर्ट में जाना चाहिए-----------...
07/10/2022

किसी को लगता है कि चुआड़ विद्रोह और कोल विद्रोह में छेड़छाड़ हुआ है तो उन्हें मेरे खिलाफ कोर्ट में जाना चाहिए--
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ज्ञातव्य है कि 2021 में मेरी एक पुस्तक "झारखंड में विद्रोह का इतिहास" प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक को पढ़कर कुछ लोग फेसबुक में आरोप लगाते हैं कि चुआड़ विद्रोह और कोल विद्रोह में छेड़छाड़ हुआ है। विडंबना है कि जिन्हें दस लाइन लिखने नहीं आता वैसे व्यक्ति मुझे झारखंड का इतिहास पढ़ा रहे हैं। फिर भी मैं कहना चाहता हूं कि चुआड़ विद्रोह या कोल विद्रोह पर कोई छेड़छाड़ है तो मेरे खिलाफ उन्हें कोर्ट में जाना चाहिए और उसे गलत साबित करना चाहिए। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि कोल विद्रोह सिर्फ एक इलाका में नहीं हुआ था बल्कि दक्षिणी छोटानागपुर के कई इलाकों में हुआ था। ग्रेट कोल विद्रोह में एक नेता नहीं था बल्कि कई नेता थे ,जिन्होंने अपने- अपने क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व किया था। जिस प्रकार कोल्हान क्षेत्र में पोटो हो ; बंदगांव, खूंटी, तमाड़ इलाके में सिंगराई मानकी- बिंदराई मानकी और सुरगा मुंडा; गुमला- लोहरदगा इलाके में बुधु भगत था। उसी तरह पंचपरगना इलाका यानी सिल्ली, सोनाहातु, तमाड़ और पुरुलिया के क्षेत्र में कोल विद्रोह का अग्रणी नेता बुली महतो था, जो आगे चलकर भूमिज विद्रोह में गंगानारायण सिंह का सारथी बना और उन्होंने बराहभूम राजपरिवार के दीवान माधव सिंह का हत्या करने में गंगानारायण सिंह का सहायता किया था। इतिहासकार डॉ बी० विरोत्तम की पुस्तक "झारखंड : इतिहास एवं संस्कृति" के पेज नंबर 259 देखना चाहिए, जिसमें बुली महतो का जिक्र है।
जहां तक चुआड़ विद्रोह 1769-1804 तक का मामला है, इसका पहला इतिहास एक ब्रिटिश अधिकारी जे०सी० प्राइस ने अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी। पुस्तक का नाम है - " The chuar rebellion of 1799"। भूमिज समाज के लोग दाबा करते हैं कि चुआड़ विद्रोह सिर्फ भूमिज लोगों का विद्रोह था, लेकिन इस पुस्तक में उन्होंने " All the lawless tribe of Jungle Mahal" (यानी कानून को नहीं मानने वाले जंगल महाल के सभी जनजाति) का उल्लेख किया है।
इसी तरह एक अन्य पुस्तक है -- "Adivasi resistance in early colonial India" जिसमें चुआड़ विद्रोह के समर्थन में लड़ने वाले जाति के नाम हैं जिसमें - कुड़़मी, संताल, भूमिज, बाऊरी, कोड़ा, माहली, ग्वाला, सदगोप और मुंडा,मानकी के नाम पुस्तक के पेज नंबर XVI , XVII में उल्लेख है।

रघुनाथ महतो और रघुनाथ सिंह पातर दो अलग- अलग व्यक्ति थे। रघुनाथ महतो चुआड़ विद्रोह का नेता था। इसका जिक्र भारत सरकार के Anthropological survey of India द्वारा प्रकाशित पुस्तक "people of India" Bihar including Jharkhand - part 2 के पेज न० 583 में हुआ है। इसके अलावे इतिहासकार श्रमिक सेन की किताब "एक नोजोरे पुरुलिया"(बांग्ला भाषा) में भी है। मैंने इस पुस्तक से चुआड़ विद्रोह के नेता रघुनाथ महतो का नाम reference के रूप में लिया है । यह कोई काल्पनिक नाम नहीं है। इनका आंदोलन का समय 1769 से शुरू हुआ और 5 अप्रैल 1778 को रांची जिला अंतर्गत सिल्ली प्रखंड के लोटा गांव में एक सभा को संबोधित करते समय ब्रिटिश पुलिस की गोली से शहीद हो गए। लोटा गांव स्थित उनका समाधि स्थल 'गड़तेतेंर' नामक स्थान में दो गड़े पत्थर उनकी शहादत की याद को ताजा करती है, जहां हर साल 5 अप्रैल को लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसके अलावा और भी कई शहीदों की समाधि है। इसको झूठलाया नहीं जा सकता।
चुआड़ विद्रोह के लगभग 60 साल बाद 1833- 34 में गंगानारायण सिंह के नेतृत्व में भूमिज विद्रोह हुआ था। इतिहासकार इसे गंगानारायण सिंह का हंगामा भी कहते हैं। यह विद्रोह बराहभूम राज परिवार में आपसी राजगद्दी का लड़ाई था। यह कोई जल, जंगल, जमीन या ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई नहीं थी। भूमिज विद्रोह को चुआड़ विद्रोह कहना गलत होगा। सिंहभूम जिला गजेटियर में भी इसे भूमिज विद्रोह कहा है। गंगानारायण सिंह ने भूमिज विद्रोह के समय डामपाड़ा (घाटशिला) के सरदार रघुनाथ सिंह पातर को अपना लेफ्टिनेंट बनाया था। ज्ञातव्य है कि गंगानारायण सिंह 7 फरवरी 1833 को खरसवां राजा की पुलिस कार्रवाई में मारे गए और उसके बाद ही अंग्रेजों ने रघुनाथ सिंह पातर को भी फांसी दे दी। इस तरह से भूमिज विद्रोह को अंग्रेजों ने कुचल दिया।
अतः रघुनाथ महतो और रघुनाथ सिंह पातर दो अलग-अलग व्यक्ति थे। रघुनाथ महतो चुआड़ विद्रोह का नेता था और रघुनाथ सिंह पातर भूमिज विद्रोह का नेता था।

आपका
शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)

Plant fossils in Rarh. Here there are many more fossilized tree trunks. This place is the origin of the Damodar River Ba...
06/10/2022

Plant fossils in Rarh. Here there are many more fossilized tree trunks. This place is the origin of the Damodar River Basin in Western Raj, a little south of the confluence of the Gwaii River and the Kolli River west of Anand Nagar. The fossils are estimated to be millions of years old. And on the other hand, a few miles away from here, there is a mountain in the south. Dinosaur fossils can be seen there. The soil of Rarha Bhoomi is very old. Buried in the ground is so much unknown history. This soil is very old and rich in rich mineral resources.

"It is red clay, and it is red clay;
A gold mine is purer than a free gem" - the words of the famous geologist, archaeologist, archeologist, historian, explorer and philosopher Shri Prabhat Ranjan Sarkar. All these fossils were discovered by him in the 80s of the twentieth century.

राढ़ में पौधों के जीवाश्म। यंहा कई पेड़ के तनों का जीवाशम हैं। यह स्थान पश्चिमी राढ़ में दामोदर नदी बेसिन का उद्गम स्थल है, जो गुवाई नदी और आनंद नगर के पश्चिम में कोल्ली नदी के संगम से थोड़ा दक्षिण में है। ये जीवाश्म लाखों साल पुराने होने का अनुमान लगाया जाता है,वहीं दूसरी ओर यहां से कुछ मील की दूरी पर दक्षिण में एक पहाड़ है। वहां डायनासोर के जीवाश्म देखे जा सकते हैं। राढ़भूमि की मिट्टी बहुत पुरानी है। जमीन में दफन इतना अज्ञात इतिहास है। यह मिट्टी बहुत पुरानी है और समृद्ध खनिज संसाधनों में समृद्ध है।

"वह लाल मिट्टी है,
एक सोने की खदान एक मुक्त रत्न से अधिक शुद्ध होती है" - प्रसिद्ध भूविज्ञानी, पुरातत्वविद्, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, खोजकर्ता और दार्शनिक श्री प्रभात रंजन सरकार के शब्द। इन सभी जीवाश्मों की खोज उनके द्वारा बीसवीं शताब्दी के 80 के दशक में की गई थी।
Sushanta dev

मानभूम जनगणना रिपोर्ट 1891 में लिखा है  Tribes जिनका हिन्दूकरण नहीं  हुआ है वे कुड़मी, मुंडा, भूमिज, संथाल, रजवार और भुइ...
05/10/2022

मानभूम जनगणना रिपोर्ट 1891 में लिखा है Tribes जिनका हिन्दूकरण नहीं हुआ है वे कुड़मी, मुंडा, भूमिज, संथाल, रजवार और भुइंया हैं.
स्पष्ट लिखा है छोटानागपुर के कुड़मी और बिहार के कुर्मियों में फर्क़ है. छोटानागपुर के कुड़मी से ब्राह्मण जल ग्रहण नहीं करते...

The old hard Rocks in the Rarh region of that time became Dead Rock now and later called MaraPahari मरलपहाड़ी now colloqu...
04/10/2022

The old hard Rocks in the Rarh region of that time became Dead Rock now and later called MaraPahari मरलपहाड़ी now colloquially called Marafari माराफारी and in present officially called Bokaro

This is our land of Rarh, a living onlooker to many a cycles of creation, preservation and destruction, a mute witness t...
04/10/2022

This is our land of Rarh, a living onlooker to many a cycles of creation, preservation and destruction, a mute witness to a host of changes.
Map showing rarh region of west bengal 👇

अगर आप किसी पर एक ऊँगली उठाते हैं, तो बाकी चार उंगलियाँ आप पर ही उठती है l ये जानते हुए भी झारखण्ड के कुछ आदिवासी लोग कु...
02/10/2022

अगर आप किसी पर एक ऊँगली उठाते हैं, तो बाकी चार उंगलियाँ आप पर ही उठती है l ये जानते हुए भी झारखण्ड के कुछ आदिवासी लोग कुडमियों की आदिवासियत पर हमेशा उंगली उठाते रहते हैं l आइये देखते हैं कि वे खुद किस हद तक आदिवासी हैं ?
कुडमियों पर पहला आरोप है कि कुडमी हिन्दू हैं, आदिवासी नहीं l फिर, TRI की रिपोर्ट में क्षत्रिय हिन्दू घोषित खरवार अनुसूचित जनजाति की सूची में कैसे हैं ? झारखण्ड सरकार भुमिजों को जनजाति का हिन्दू संस्करण मानती है l भूमिज सरदार राजपूतों के समान अपने नाम के आगे ‘सिंह’ लिखाते हैं l आदिवासी गीताश्री ओराँव के पिता कार्तिक ओराँव और ससुर बंदी ओराँव खुद को श्रीराम के सच्चे उपासक मानते थे l उनके अनुसार ‘ओराँव’ शब्द की उत्पति ही ‘ओ राम’ से हुई है l संथाल लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं l इसीलिए, 2009 में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में शिबू सोरेन ने मोराबादी मैदान में रावण दहन से इनकार कर दिया था l रामायण के रचियता वाल्मीकि ने रावण को ब्राह्मण कुल का बताया है, फिर संथाल लोग आदिवासी कैसे हुए ?
कुडमियों पर दूसरा आरोप है कि हम प्रकृति पूजक नहीं मूर्ति पूजक हैं l पर, कुडमियों के बारह मासेक तेरह परबों में से किसी में मूर्ति स्थापना नहीं होती, फिर हम मूर्तिपूजक कैसे हुए ? हाँ. शहरों में रहने वाले कुछ कुडमि दुर्गापूजा, सरस्वती पूजा, रामनवमी आदि में शामिल होते हैं l पर, इन त्योहारों में तो शहर में रहने वाले ओराँव, मुंडा, संथाल, हो, भूमिज, खड़िया सभी शामिल होते हैं l हम तीन साल सराइकेला-खरसावाँ जिले में काम किये हैं l वहां सभी भूमिज गाँवों में हरि मंदिर बना हुआ है जहां हर साल अखंड कीर्तन होता है l सभी हो गाँवों में मनसा पूजा में मूर्ति स्थपित की जाती है l सिमडेगा में गोंड समाज के लोग गणेश पूजा करते हैं l इसाई धर्म मानने वाले जनजातियों के चर्चों में येशु और माता मरियम की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ लगी रहती हैं l फिर, वे लोग मूर्तिपूजक कैसे नहीं हैं ?
कुडमियों पर तीसरा आरोप है कि कुडमि दुसरे आदिवासी समुदायों से छुआछुत करते हैं l ये सफ़ेद झूठ है क्यूंकि कुडमी समाज के हर पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में सभी समुदायों की भागीदारी रहती है l आदि काल में हमें खेतीबारी के लिए लोहे के औजार असुर बना कर देते थे, आज लोहरा लोग बनाकर देते हैं l उसी तरह, जन्म-मरण में नाई और धोबी, शादी-बिहा एवं मुंडन में नाई और घासी हमें सहयोग करते हैं l उनके इस योगदान के लिए हम सोहराई परब में उन्हें घर बुलाकर पूरे सम्मान के साथ पइला धान, अइरसा पुआ, कपडा और अन्य सामान देते हैं l आज भी जितिया परब में मुंडा और ओराँव माताएं हमारे घर उपवास और पारण करने आती हैं l
आदिवासियों के साथ सबसे ज्यादा छुआछुत तो धर्मान्तरित लोग करते हैं l गुमला में काम करने के दौरान हमने देखा कि इसाई धर्म में परिवर्तित लोग सरना आदिवासियों से छुआछुत करते हैं l लोहरा लोगों को तो वे अपने घर में घुसने तक नहीं देते l ओराँव लोग सभी जनजातियों में खुद को श्रेष्ठ मानते हैं l टाना भगत लोग तो ओराँव समुदाय से होने के बावजूद जनेऊ धारण करते हैं और किसी दुसरे के घर का पानी तक नहीं पीते हैं l चांडिल और नीमडीह क्षेत्र में काम करने के दौरान मैंने पाया कि वहां के भूमिज सरदार दलमा पहाड़ियों पर रहने वाले सबर और पहाड़िया जनजातियों के लोगों को अपने गाँव के किसी भी पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं करते और न ही उनके किसी कार्यक्रम में शामिल होते हैं l
हम लोग तो अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं होने के बावजूद अपनी आदिवासियत को बचा कर रखे हैं l पर, जो लोग अनुसूचित जनजाति का लाभ लेने के बावजूद अपने पुरखों को विरासत को बेच चुके हैं, ऐसे दोगले लोग हम पर सवाल खड़े कर रहे हैं l अगर कुडमी अनुसूचित जनजाति में शामिल होने लायक नहीं है तो कोई भी अनुसूचित जनजाति सूची में रहने लायक नहीं है l
Arun Mahto

💥💥 #संस्कृति_का_नरसंहार💥💥आज का धनबाद,बोकारो पुरुलिआ, झाड़ग्राम, मिदनापुर, बांकुड़ा, बिरभूम और छोटानागपुर के कई छेत्र को मि...
01/10/2022

💥💥 #संस्कृति_का_नरसंहार💥💥

आज का धनबाद,बोकारो पुरुलिआ, झाड़ग्राम, मिदनापुर, बांकुड़ा, बिरभूम और छोटानागपुर के कई छेत्र को मिलाकर जंगल महल एक बड़ा जिला था जिसमें 23 परगना आते थे
बाद में 1833 में अंग्रेजों ने प्रशासनिक कारणों से इसे बांटना शुरू किया, जंगलमहल छेत्र घने जंगल और और पहाड़ियों से घिरा इलाका था और आज भी इसकी भौगोलिक स्तिथि कुछ ख़ास नहीं बदली है, इस क्षेत्र में आदिवासीयों की सबसे ज्यादा जनसंख्या थी और आदिवासी राजा ही शासन चलाते थे जिसमें सबसे ज्यादा कुड़मी फिर भूमिज और संथाल थे, 1833 में जंगल महल को जिले को तोड़कर मानभूम बनाया गया जिसकी राजधानी मानबज़ार बनी और बाद में पुरुलिया को राजधानी और धानबाईद को सब डिवीज़न बनाया गया

1850 के बाद से ही इस क्षेत्र के लोगों का संस्कृतिकरण, ब्राह्मणकरण, और आदिवासी राजाओं का क्षत्रियकरण शुरू होगया था, बंगाली ब्राह्मणों द्वारा गैर हिन्दू आदिवासियों के बिच वेद पुराण का सहारा लेकर लोगों के बिच भ्र्म फैलाना शुरू किया गया, राजाओं को कहा आप चंद्रवंशी सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय राजपूत है, यह सब कर के उनका ब्रेन वाश किया गया और एक बार tribal चीफ को आपने अपने कब्जे में ले लिया तो फिर पुरा आदिवासी क्षेत्र आपके कंट्रोल में, राजाओं ने अपने लोगों से दुरी बना ली, मंदिर बनवाना शुरू किया उसमें ब्राह्मणो को appoint किया, इसी कड़ी में पंचकोट के राजा दामोदर सखुआर का भी aryanization क्षत्रिकरण हुआ साखुआर से टाइटल बदलकर सिंहदेव लिखा जाने लगा, ब्राह्मणो को गाय दान एक परम्परा बन गई, गाँव में गुरु बाबा और गुरु माय का चलन शुरू होगया जो की आज भी हम धनबाद बोकारो के कुड़मी घरों में देखते हैं,

इसी तरह कुड़मीयों के संस्कृति संस्कार में पंडितो का घुसना शुरू होगया, कुड़मीयों के गीत झुमर का इस्तेमाल कर के बांगला भाषा में वेदों को बताने लगे, vaishanva मूवमेंट जिसे गोसाई मूवमेंट भी कहते है येसब चलाया जाने लगा इसके तहत पाता नाच झुमर नाच को में कीर्तन introduce किया गया
और छोउ नाच जो की आदिवासी जीवनशैली में शिकार और युद्धकला पर आधारित होते थे उसमें भी देवी देवता,हिन्दू मैथोलॉजी को add किया गया जिसमें लोकल राजाओं का सहयोग था जिनका Detribalization और हिन्दुकरण किय जा चूका था, ऐसी ही मुहीम चलाकर कुड़मीयों के मड़प थान आदि जगहों में कंही शिव मंदिर तो हरी मंदिर बनाया गया और कीर्तन शुरू किया गया
धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक भासाइक हर तरह से अतिक्रमण चालु था जो आगे चलकर कुड़माली भाषा और संस्कृति को निगलता गया.
येसब बातें सरकारी सर्वे रिपोर्ट के दस्तावेजों के आधार पर कहा है मैंने जिसका प्रूफ आप देख सकते है पढ़ सकते है |
ये पोस्ट संस्कृति विकृतिकरण और अतिक्रमण पर आधारित है, पार्टी 2 कुड़माली भाषा पर हुए अन्याय पर आधारित होगा

27/09/2022

चलिए थोड़ा समझते है #कुड़मी जनजाति के संबंध मे विभिन्न विद्वानो की राय तथा स्थिति को।साथ ही साथ #कुड़मी वनाम #कुर्मी की विभेद को-चुकि अंग्रेजी मे "ड़"के लिए कोई अक्षर नही होती है, इसलिए छोटानागपुर के कुड़मी के लिए अधिकांश विद्वानो ने -r तथा बाहरी कुर्मी के लिए -r व्यवहार किए है।ये -r "ड़"के लिए लिखा गया था।--
1. Indian Succession Act, 1865(X of 1865), No-550, the tribes known as the Mundas, Oraons, Hos, Bhumij, Kharias, Ghasis, Gonds, Kandhs, Korwas, Kurmis, Male Saurias and Pans, dwelling in the province of Bihar and Orissa have customary rules of succession and inheritance incompatible with the provisons, and it is inexpedient of apply the provisions of that Act to the number of those tribes.
2. 1871 की "Report on the Census of Bengal " की " पृष्ट-174 की अनुच्छेद- 61मे - Colonel Dalton mentions some Jhari Kurmis or Kurmis of the woods , in Chota Nagpore, who are said to worship strange Gods”.

3. 1872 को "Descriptive Ethnology of Bengal"- की पृ-317की धारा-5 मे उल्लेख है- “In the Province of Chutia Nagpur, the ancestors of the people now called Kurmis appear to have obtained a footing among the aboriginal tribes at a very remote period”.

4. 1891 की " District Census Report of Chota Nagpur Division" की पृ-4अनुच्छेद-16 मे उल्लेख है कि-“The Kurmis of Hazaribagh, as seem to be testified by their physiognomy, are not the A***n Kurmis of Bihar. They much resemble the Santhals, and it would, in many cases, be almost impossible to distinguish a representative Kurmi from a representative Santhal”
इसके अलावे इसी रिपोर्ट की पृ-13 ,40नम्वर अनुच्छेद मे उल्लेख की गयी है- “Among the lowest classes those who eat the uncleanest meat or food are considered the lowest. I have purposely omitted to mention above the few aboriginal tribes or castes not yet Hinduized. They are the Kurmis, Muras, Bhumijs, Santhals, Rajwars, and Bhuiyas”.
इस रिपोर्ट की पृ-13 अनुच्छेद 41मे उल्लेख है कि- “There is a distinction between the Kurmis of Chota Nagpur and the Kurmis of Bihar. The physical formation and features of the two classes are different. The Kurmis of Chota Nagpur are probably of Dravidian descent, and are less respectable than the Kurmis of Bihar. In Bihar a Brahman will take water from the hands or the Bihar Kurmi, but no Brahman in Manbhum will take water from the hands of a Kurmi”.

5. E.A.Gait लिखित "Census of India 1901: The lower province of Bengal and their Feudatories" की प्रथम खंड की पृष्ट 393,अनुच्छेद-646मे उल्लेख है- “As explained elsewhere the Kurmis of Bihar are an entirely separate caste from the Kurmis of Chota Nagpur. The latter are found mainly in Manbhum and are more pronouncedly Dravidian than the homonymous caste of Bihar. They havea dialect of their own, known as Kurmali ,a mixture of Bengali and Bihari, here and there a few aboriginal words.The two communities should in theory be distinguished by the “r”, which is soft in one case and hard in the other, but in practice the rule is not observed, and both words are usually spelt exactly alike. They have therefore, perforce been shown under the same head.”
इस किताब की खंड-2की पृष्ट-235 मे लिखा है- “KURMI – Kurmi is the name of two distinct group: (1) An aboriginal tribe of Chota .Nagpur and Mayurbhanj who spell their name with a hard “r” and (2) of the well·known Hindu caste of Bihar who use a soft “ r”.It was I mpossible at the census to distinguish between the figures for each , but a reference to the locality in which enumeration will probably furnish a sufficiently good guide as to their relative strength”.

6. Sir George A Grierson लिखित "Linguistic Survey of India :1903, vol-5 की part-2की पृष्ट-145 मे कुडमाली भाषा के संबंध मे लिखा है कि- “ In Manbhum this languange is principally spoken by people of the Kurmi caste, who are numerous in the Districts of Chota Nagpur, and in the Orissa Tributary State of Mayurbhanja. They are an aboriginal tribe of Dravidian stock and should be distinguished from the Kurmis of Bihar who spell their name differently, with a smooth instead of a hard ‘r’. The two quite distinct tribes have been mixed up in the Census, but as their habitats are also distinct, the following figures may be taken as showing with considerable accuracy the number ofKurmis in the area under consideration. यहाँ उल्लेख किया जा सकता है कि- CNT Act, 1908, Bengal Act 6 of 1908: मे उल्लेखित है कि-दुसरी जनजातियो के साथ साथ कुडमी जनजाति को भी अपनी जमीन की सुरक्षा के समान अधिकार दिए जाते है।-
7. L.S.S.O'Malley, Bengal District Gazetters, Santhal Parganas:1910-पृ- 90 मे उल्लेख किया गया है कि- In Champa several races (the Mundas, Birhors,Kurmis and others) separated from what was, according to the traditions, till then the common Kharwar race”

8. 1910 ई0- L.E.B. Cobden Ramsay, Bengal Gazetters, Feudatory States of Orissa की 242 पृष्ट मे उल्लेख किया गया है कि-, “At present the aboriginal tribes are the Bhuiya, the Bathudi, Saonti, Juang, Kol, Kurmi, Santal, Gond, Khandwal, Khond, Savar and a small tribe of Pitas.”[page 223, Keonjhar State]. “The number of the principal aboriginal tribes who form 56·52 percent of the total population is as follows:-(1) Santal 185,149, (2) Ho or Kol 67,768, (3) Bhumij 56,157, (4) Kurmi 35,968.”

9. 1911 की Census of India- की प्रथम खंड की पृ- 512 ,अनुच्छेद- 1012(जो मुलतः बिहार उडिसा और सिक्किम के लिए है ,मे बोला गया है कि,- The Koiri and Kurmi are two great cultivating castes of Bihar, but the latter is also the name of an aboriginal tribe in Chota Nagpur and the Orissa States, who spell their name with a harder, whereas the Bihari castes use a soft “r”. It was impossible to distinguish between the spellings. and they have therefore been grouped together.”
इसके बाद-, 2, May, 1913, शुक्रवार , Government of India की secretary- W.S.Marris इस संबंध मे शिमला मे एक बैठक हुई थी एवं दुसरा दिन अर्थात 3 मई को प्रकाशित हुई-
" The Gazette of India". Gazette मे प्रकाशित- “ HOME DEPARTMENT NOTIFICATIONS, The 2nd May 1913

No. 550- whereas the tribes known as the Mundas, Oraons,Santhal, Hos, Bhumijs, Kharias, Ghasis, Gonds, Kandhs,Korwas, Kurmis, Malesaurias, and Pans, dwelling in the province of Bihar and Orissa have customary rules of succession and inheritance incompatible with the provisions of the Indian Succession Act, 1865 (X of 1865) and it is inexpedient to apply the provisions of this Act to the members of those tribes. In exercise of the powers conferred by Section 331 of the Indian Succession Act 1865 (X of 1865) the Governor General of Council is pleased to exempt all Mundas,Oraons, Santhals, Hos , Bhumis, Kharias, Ghasis, Goands, Kandhs, Korwas, Kurmis, Malesaurias, and Pans, dwelling in the province of Bihar and Orissa from the operation of the provisions of that Act.

10. 1917 की "Bihar and Orissa District Gazetteer Ranchi"- की पृ- 61 मे उल्लेख है कि-“The Kurmis include not only the Hindu cultivating caste but also the aboriginal tribe ofKurmi Mahtos, whose residence is chiefly in the Manbhum district, and also in Silli thana on the eastern border of the Ranchi district.”

11. Survey and settlement portion, Manbhum District by B.K.Gokhle, I.C.S, settlement of ficer of chhotonagpur की chapter 1की पृ- 12 की 22 वे पारा मे उल्लेखित है कि -The following castes are tribes such as kurmi, santal, Bauri, Bhumij, Bhunia, kora, kheria, oran, munda and ho.

12. 1921 की Census of India, Bengal की प्रथम खंड की पृ-356मे उल्लेख किया गया है कि -“Kurmi.-The Kurmis belong to two separate castes whose names should be spelt one with a hard “ r” and one with a soft “r”. The latter is a Bihar cultivating caste and the former an aboriginal tribe of the southern part of the ChotaNagpur plateau and Orissa States. It would, however have been impossible to separate the figures for the two as returned. and this has not been attempted either at this or at the former censuses. Midnapore contains 80,000 and Bankura nearly 20,000 Kurmis with an even balance of the s*xes. These must almost all be the aboriginal tribe, which is indigenous to the western parts of Midnapore and the south-western parts of Bankura district.
13. 1925 ई0 को माननीय पटना उच्च के जज माननीय माईक फाॅरसन ने एक मामले के संबंध मी टीप्पनी की थी कि- ," he kurmi mahato of manbhum district are racially an aborginal tribe"
14. 1930 ई0 Indian Statutory Committee की Report की पृ- 362- aborigines के संबंध मे कहा गया है कि- Aborigines.-. Agaria, Asar, Bhogra, Bhuiya, Bhumij,Binjhia, Chero, Chik (Baraik), Ganda, Ghatwar, Ghasi,Gond, Ho, Juang, Kandh, Kharia, Karmali, Kharwar, Kisan,Kora, Korwa, Kurmi (of Chota Nagpur), Lohar (of Chota Nagpur)J Mahali, Mal Paharia, Munda, Pan, Oraon, Santal,Sauriya, Paharia, Tharu, Turi.”

15. J.H.Hutton, Census of India की प्रथम खंड कीपृ-507मे उल्लेख है-" The kurmis of Chotanagpur classified as Primitive Tribe".

16. 1931 ई0 को , All India Kurmi-kshatriya Association,किस तरह से अपनी कुत्सीत खेल को अंजाम दिया - W.G.Lacey, Census Of India, vol-vii की खंड-2 की पृ-291मे लिखा गया है कि- The ‘All India Kurmi-Kshatriya Association’ took up the cudgels on behalf of the KurmiMahtos, and stoutly affirmed that they and theKurmi-Kshatriyas of the western provinces are the same, proofs of which, if necessary, can be produced before the Government”. It must be confessed that, when invited to produce these proofs, the Association showed no great eagerness to respond and eventually took refuge in the following generalities which, besides being unsupported by evidence or illustration.
Sir George Grierson कृत Linguistic Survey of India की खंड-5 की पृ-292 मे उल्लेख की गयी है कि-an aboriginal tribe of Dravidian stock and should be distinguished from the Kurmis of Bihar who spell their name differently with a smooth instead of a hard ‘r’. These two quite distinct tribes have been mixed up in the census.” Many of these people speak a language of their own, commonly known as Kurmali,although, as Sir George Grierson points out, in Manbhum this language is not confined to the Kurmis alone but is spoken by people of other tribes also. In Bamra state, where it is spoken by undoubted aborigines, it is known as Sadri Kol. This language is a corrupted form of Magahi, but, to quote again from Sir George Grierson, “ in this belt Magahi is not the language of any locality. lt is essentially a tribal language”- just as Mal Paharia, a corrupted form of Bengali, is the language of the aboriginal tribe bearing that name. With regard to the spelling ofKurmi with a hard r, it has been verified from the local officials that this differentiation is observed still. It may possess real significance, but the general tendency in Chota Nagpur to make the ‘r’ hard is a circumstance that should be borne in mind.
Mr. Coupland, District Gazetteer of Manbhum(1910) की पृ- 292 मे उल्लेख है कि- the distinction between theKurmis of Bihar and those of Chota Nagpur,”which is now generally accepted, is exemplified in this district by the fact that marked traces of the characteristic Kolarian village system remain, the Mahto or village headman of the Kurmis corresponding exactly with the ‘Manjhi of the Santhals, the Sardar of the Bhumij and the Munda of the Ho races.” TheKurmi Mahtos are included among the tribes exempted from the Indian Succession Act. By a printing error the name appeared in the original notification (issued about 20 years ago) as ”Kurmi Mahto ” and in the revised notification which was issued very recently the word ” Kurmi“only is retained. There is no doubt that, until quite recent years, the two communities were agreed in repudiating any connection with one another. The Bihar contingent would commonly allude to their namesakes of Chota Nagpur as the “Kol-Kurmis “, and the latter were no less spirited in asserting their independent identity. Not only inter-marriage, but inter-dining was entirely out of the question. Even today, although it will presently be seen that these restrictions have been formally abolished by resolutions passed in solemn conclave, and although it is probably true that the Kurmis of Chota Nagpur no longer take the same pride in their ancestry that they used to do, no authentic case has come to notice of inter-marriage between the two peoples. The Superintendent of the L***r Hospital at Purulia writes that ” a Kurmiconstable from North Bihar at present resident in this hospital was very scornful when I suggested his eating with our local Kurmipatients.”
बाद मे 1931 की 8th December, बिहार सरकार की- Judicial Department notification, no-3563 मे उल्लेख की गयी है कि अन्य जनजातीयो के साथ साथ "कुड़मी" भी एक जनजाति है।
1931ई0को प्रकाशित- Census of India, vol-5, Bengal and Sikkim की पहली खंड की पृ-476 मे लिखा गया है कि- Kurmi –The returns under this head include both the Bihar cultivating caste and the aboriginal tribe whose name is spelt the same with the exception that the ” r” is soft. No attempt was made to distinguish between the two groups. The total number is 194,652 compared with 181,447 in 1921. As in that year considerably over one-half of them are found in Western Bengal and Midnapore actually contributes 85,711 to the total. None appear to have been returned under their tribal religion, although a number belonging to the aboriginal tribe were reported from Rajshahi during enumeration. In Midnapore they are generally known as Mahato, but this is a title also of Koiris and Kochhes and its use was discouraged. As with the Koiris the claim to be returned as Kurma- Kshattriyas was received not from any local body claiming that appellation but from an all-India Association.”
अब 1950 ई0को भारत की संविधान की रचना की गयी और सारे सबुत और प्रमाणो को नजर अंदाज करते हुए किस प्रकार "कुड़मी" जनजाति को जनजाति सूचि से बाहर रखने का कुचक्र रचा गया,और इसमे कैसे कैसे सफेदपोश शामिल थे???आश्चर्य होता है।अंग्रेजो ने ईसाईयत की जाल मे फॅसने से मनि करने की खुन्नस निकाली तो टाटा की नजर हमारी जमीन पर थी।कॅग्रेस के के कुछ रसुखदार नेता हमे दरकिनार कर राजनैतिक तथा आर्थिक रूप से किनारे करने की चाल चल रहे थे,जबकि हिन्दु महासभा कुडमी को जनजाति सूचि से बाहर रख छोटानागपुर मे हिन्दु जनसंख्या मे बढोतरी करना चाह रही थी।इन सबसे भी अधिक महत्व पुर्ण कारण थी -कुडमियो की जनसंख्या और इसके पास की अथाह जमीन।छोटानागपुर की खनिज की बेरोक टोक दोहन की मंशा और अपने चेहते बाहरी लोगो को छोटानागपुर मे स्थाई तौर पर वशाने के लिए जमीन और सबसे बडी संभावित झारखंड राज्य मे जनजातिय जनसंख्या को कम करने की धुर्तता भरी चाल ताकि झारखंड कभी भी 6ठी अनुसूचि की राज न बन सके। हॅलाकि इससे पहले ही भाषाई और संस्कृतिक रूप से एक रहने के बवायुद,कुड़मी बहुल पुरूलिया,मिदनापुर और बाँकुडा को प बंगाल मे,रायपुर और सुरगुंजा को छत्तासगढ मे और म्युरभंज क्योझर और सुन्दरगढ को उडिसा मे मिलाकर कुडमी को राजनैतिक रूप से कमजोर की जा चुकी थी।अब आगे देखते है-
1. 1951 की 15 फरवरी Government of India, Ministry of Home affairs की एक पत्र-( No.26/12/50-RG)-की पृ-5 मे लिखा गया है कि- There was a special enquiry conducted along with the 1931 census through India, on the basis of which the communities properly classifiable as tribe were distinguished from castes , among the former those which were properly classifiable as “Primitive Tribes” were listed.”

2. 1953ई0 Superintendent Asok Mitra, Census1951, Westbengal, The tribes and Castes of Westbengal की पृ- 79 ,अनुच्छेद - 48 लिखा है कि- “Kurmi –A very large cultivating caste of Upper India, Bihar,Chota Nagpur and Orissa. Their origin is obscure. Behar Kurmis are fairly good looking and Campbell and Dalton consider them A***n in look. The Kurmis of Chhotonagpur, Manbhum and Orissa however can hardly be distinguished from a Bhumij or SantaI. The Santals consider the Kurmis to be descended from the same stock as their own and will eat cooked rice from them. The ChhotonagpurKurmis have many customs clearly tribal whereas Kurmis of Bihar are practically orthodox Hindus.

In Midnapur, Kurmis are giving up divorce and widow marriage.The religion of Behar Kurmisdiffers little from that of other Hindu castes of similar social standing. Brahmans serve them without stigma. They do not take any prohibited food and their social rank is respectable and Brahmans will take water from their hands. Social customs are like those of other Hindus of similar status except that in Gaya, unmarried persons of either s*x are buried and not cremated. The Kurmis of Behar are excellent cultivators but as regards special crops they are not so skilful as the Koiris.

Chhotonagpnr Kurmi-The animistic beliefs characteristic of the Dravidian races are overlaid by the thinnest veneer of conventional Hinduism and the vague shapes of ghosts or demons who haunt the jungle and the rocks are the real powers to whom the average Kurmi looks for the ordering of his moral and physical welfare. Chief -among these are Bar Pahar, Garoar, Kinchakeswari, Boram Devi, Dakum Buri, etc. In Chhotonagpur Brahmans are either not employed or employed only on special occasions. But in Midnapur, Brahmans are called in on all social and religious occasions, but the Brahmans are degraded.

Special festivals are the Bandhana and Akhan Jatra. By abstaining from beef and pork, they have raised themselves a step higher than the Santhals and Oraons, but the fact that they eat fowl and field rats and indulge freely in spirituous liquor excludes them from the circle of castes from whose hands a Brahman will take water.”

2. 1957-58 ई0 Annual Report of the Tribal and Rural Department की report की पृ- 68 मे उल्लेख की गयी है कि- An asterisk mark against certain castes in the list denotes the castes ,races or tribes recognised as Scheduled Castes or Scheduled Tribes before the commencement of the Scheduled Castes or Scheduled Tribes Order (Amendment )Act 1956 And the Scheduled Castes or Scheduled Tribes Order (Modification ) Order 1956,but not so recognised now.”
3- 1963ई0 12 अप्रेल को माननीय- K.Ahamed, Mohari Mahato तथा Mokaram Mahato की मामले मे उल्लेख की कि--"Now it does not admit of the faintest doubt that the Kurmi-Mahtons of the Manbhum District are racially an aboriginal tribe. They are the most numerous community (whether tribe or caste) of that district from which they have overflowed into the neighbouring districts. They have no concern whatever except in the accent of name with the Dravido-A***n agricultural and menial caste of Bihar proper.”

4. 1990 ई0- 1994 ई0- L.Luca Cavalli-Sforza, Paolo Menozzi and Alberto Piazza को Princeton University की The History and Geigraphy of Human Genes विभाग की एक DNAके संबंधे प्रतिवेदन मे पृ-474,अनुच्छेद-89मे साफ साफ उल्लेख की गयी है कि- Bhumij, Birhor, Dudh Kharia, Ho, Juang, Korku, Korwa, Kurmi Mahato, Munda, Pareng, Gadaba, Santal, Saora are Austric.

बाद मे 2014 ई0को Dr.Hrishikesh Panda ने एक मानवमिति "टास्क फोर्स" की गठन की थी।इस टास्क फोर्स की रिपोर्ट मे उल्लेख की गयी थी कि-
--Socio-economic ,including educational ,backwardness vis-à-vis the rest of the population of the State.

--Historical geographical isolation which may or may not exist today.

--Autonomous religious practices where the priests/disari/beju/ojha etc.arefrom the community ,though practising ‘Hindu way of life’ would not be a bar.

--Distinct language /dialect

--Presence of a core culture relating to life-cycle, marriage, songs, dances, paintings, folklore.

--Endogamy or marital relationship primarily with other Scheduled tribes. My fan page kudmi bandhu totemik describe these in a broad sector, I just limited these.ये सभी मानको को कुड़मी आज भी पुरी करते है।
2016 की CRI की(प बंगाल के संबंध मे)
Ethnographic Report की पृ- 20 मे बोला गया है कि- “Ethnographic study of the Kurmis of West Bengal suggests that these people have their distinct element of culture which is evidenced from their social organisation, marriage, rituals and religious practices. Totemistic clan structure and traditional organisation of social control of the Kurmis are the remnants of tribalism. Kurmali is considered as their mother tongue. …###xx…Backwardness among the Kurmis is significant as most of them are economically poor and depend only on wage earning activities.”अब विचार आप को करनी है कि हमे इस समस्या का समाधान हेतु किस रास्ते को अपनाना चाहिए।
Copy: कुड़मी बंधु 'Totemic'

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