24/12/2021
न घर का ठिकाना था, न किसी मंजिल का था पता,
अनजाने में ही सही पर हुई है हमसे इक खता,
जो हो गए वो हमसे इस कदर खफा,
अब न सताओ इस बेचैन दिल को,
मान जाओ तुम, न दो मुझे अब ऐसी सजा।
7. जो रूठ गए तुम, तो हम पल भर में मना लेंगे,
दूर जाओगे जो हमसे तो पास ले आएंगे,
कह कर तो देखो ए-मेरी-जान हमसे तुम,
तुम्हारे लिए इस जहान को भी दुश्मन बना लेंगे