04/03/2023
भगोर, देवाझिरी, देवलफलिया, बाबा देव समोई, पीपलखुंटा और हाथीपावा पहाड़ी यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। झाबुआ इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर है।
इतिहास
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झाबुआ पर सदियों से आदिवासी राजाओ का शासन रहा। प्रथम भील राजा कसुमर थे । कसुमर जी की पूजा की जाती है। यहाँ शुक भील का शासन रहा।
मुख्य आकर्षण
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भगोरिया /भोंगरिया/भोंगर्या हाट
प्राय: झाबुआ व इसके आसपास अलीराजपुर बड़वानी धार महाराष्ट्र गुजरात के कुल 150 से ज्यादा स्थानों पर मनाया जाता है झाबुआ के आस-पास का समाज हमेशा से प्रकृति से जुड़ा रहा होगा ।यहां की उत्तम परंपराएं व रिती रिवाज जिन को जानने समझने की जरूरत है ऐसा ही यह भगोरिया हाट है पूरे 7 दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर मनाया जाता है ।
भगोरिया में जाकर होली ,घर व अपनी जरूरत की वस्तुओं ,सामान खरीदते हैं यहां का समाज अपनी संस्कृति व अपने रीति रिवाज के साथ एक प्रकार से साल भर में फिर से जीवंत हो उठता है अपनी पहचान पारंपरिक वेशभूषा, बांसुरी, तीर कमान, पागड़ी,ढोल मांदल की थाप पर थिरकना एवं खुशी व हर्षोल्लास के साथ भगोरिया में शामिल होते है एवं फागुन का महीना होता है नए साल का आगमन होता है प्रकृति भी उस समय अपना रूप रंग बदलती है महुए के नए फूल आते हैं पलाश अपने रंग बिरंगे फूल बिखेरते है बाग में मोर नाचता है हम झाबुआ भी इस नए साल का खुशी कुछ इस तरह 8 दिनों तक मनाते हैं एवं इस अंचल में होली का त्योहार 8 दिनों तक मनाया जाता है सातवें दिन होली होती है एवं आठवें दिन गल बाबजी का त्योहार होता है ।
बहुत समय पहले देश व दुनिया मे संचार का अर्थात किसी से बातचीत का कोई ऐसा माध्यम नहीं हुआ करता था जैसे आज टेलीफोन व मोबाइल है उस समय यहां पर समाज ने एक व्यवस्था सप्ताह में हाट लगाना शुरू किया बाजार में अपना जरूरी सामान खरीदना एवं आसपास के सभी गांव के लोग उसमें शामिल होते थे यह एक दूसरे की गांव की जानकारी सगा संबंधी की जानकारी एवं सूचना मिल जाती थी अर्थात सूचना का एक बहुत बड़ा केंद्र हॉट उस समय हुआ करता था यह प्रत्येक 7 दिन में लगता है यह भी सुना है कि झाबुआ के पास में भगोर एक रियासत थी ।वहां के राजा ने सभी लोगों से होली से पहले अपनी प्रजा से मिलने के लिए यह हाट शुरू करवाए थे इसलिए धीरे धीरे इसका नाम भगोरिया हाट हो गया है।