15/05/2022
#अग्निशिला मई 2022 संपादकीय
अब होकर ही रहेंगे महानगरपालिका चुनाव
मनपा चुनाव को लेकर फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट सख्त हो चुकी है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर चुनाव की प्रक्रिया को पूर्ण करने का आदेश जारी किया है. मुंबई सहित अन्य स्थानों पर चुनाव को लेकर सरकार की नीतियां टालमटोल की है जबकि चाहे आम जनता हो या पूर्व नगरसेवक सभी चाहते हैं कि जल्द से जल्द चुनाव हो जाएं.
मुंबई मनपा चुनाव को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार का आड़े हाथ लिया. ओबीसी आरक्षण को लेकर चुनाव प्रक्रिया को स्थगित करने वाली महाराष्ट्र की सरकार अपरोक्ष तौर पर सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश की अवमानना ही कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दो सप्ताह के भीतर चुनाव की घोषणा करे. मुंबई मनपा का चुनाव और ओबीसी आरक्षण इसका कोई तालमेल नहीं है. ओबीसी के हितैषी बताने की चल रही कवायद में महाविकास आघाड़ी से लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी भूमिका स्पष्ट करने के बाद अब राज्य सरकार को भी अपनी भूमिका स्पष्ट करने की जरूरत है. वैसे सरकार चाहती नहीं कि चुनाव समय पर हों.
मुंबई मनपा पर तो प्रशासक के तौर पर मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त को विराजित किया गया है. इसके चलते गत 5 वर्ष से आम लोगों बीच जाने वाले सभी भूतपूर्व नगरसेवक घर पर ही बैठे हैं, क्योंकि उन्हें कोई अधिकार शेष बचा नहीं है. मुंबई मनपा में हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट हो या गली का काम, इसे लेकर पूर्व नगरसेवक जनता से कट रहे हैं. जिसका खामियाजा उन्हें आने वाले चुनाव में निश्चित तौर पर भुगतना पड़ेगा. ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की भूमिका भी स्पष्ट नहीं है. अन्यथा जो वार्ड पहले ओबीसी थे, वहां पर चाहे आरक्षण कुछ भी हो हर एक राजनीतिक पार्टियां उस सीट पर ओबीसी को ही उम्मीदवारी देकर न्याय कर सकती थी. इसके लिए चुनाव से पलायन करना कोई दर्द की दवा नहीं है. वैसे मुंबई महानगरपालिका की बात करें तो 27 लाख रुपए खर्च कर नई प्रभाग संरचना गठित की गई. अब मुंबई में 227 के बजाय 236 नगरसेवक होंगे. इस पूरी कवायद में बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल हुआ. इस नई संरचना को बनाने के लिए लाखों रुपए का खर्च भी हुआ. इसके बावजूद राज्य सरकार ने आनन फानन में इस नई संरचना को रद्द करने का काम किया. वैसे मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना का राज है और राज्य की सत्ता में नगर विकास विभाग भी शिवसेना के पास है. यानी पहले नई प्रभाग संरचना करने के दौरान मुंबई महानगरपालिका आयुक्त और नगर विकास मंत्री ने संवाद हुआ ही नहीं. अन्यथा इतना बड़ा निर्णय रद्द करने की नौबत ही नहीं आती. वैसे मुंबई महानगर पालिका में कार्यरत अधिकारियों का दावा है कि उनके पास चुनाव का पूरा खाका तैयार है. चुनाव आयोग को यह पेश करने के बाद तारीख घोषित हो सकती है, लेकिन अभ बारिश का बहाना कर राज्य सरकार जून में होने वाले संभावित चुनाव को अक्टूबर तक लेकर जाना चाहती है. जबकि सूत्रों की बात पर विश्वास किया जाए, तो फरवरी 2023 में ही नए चुनाव लेने की मंशा है.
राज्य सरकार, मुंबई महानगरपालिका, चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के बीच में मुंबई का आम आदमी पिस रहा है. उनके रोजाना कामों को लेकर मंुबई महानगरपालिका की यंत्रणा शत प्रतिशत सक्षम नहीं है. आज मुंबईकर ट्िवटर के माध्यम से शिकायत उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. क्योंकि निचले स्तर पर काम की कोई गारंटी नहीं है. एेसी स्थिति में स्थानीय स्तर पर नगरसेवक को भी किसी भी तरह का अधिकार न होने के चलते मुंबई महानगरपालिका में अफसरों का राज आ चुका है. इसी के चलते कई सारे प्रोजेक्ट, जिनकी कीमत दोगुना-तिगुना हो चुकी है, इसे लेकर आवाज बुलंद करनेवाले घर पर ही बैठे हैं. ओबीसी आरक्षण को आगे कर मुंबई महानगरपालिका के चुनाव आगे-आगे करने वाली सरकार जमीनी स्तर की हकीकत से रूबरू नहीं है. अन्यथा फरवरी 2022 में है मुंबई महानगरपालिका के चुनाव संपन्न हो जाते और प्रशासक नियुक्त करने की नौबत नहीं आ पड़ती.
अनिल गलगली
https://www.facebook.com/100063458869642/posts/460647956060496/
#अग्निशिला मई 2022 संपादकीय
अब होकर ही रहेंगे महानगरपालिका चुनाव
मनपा चुनाव को लेकर फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट सख्त हो चुकी है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर चुनाव की प्रक्रिया को पूर्ण करने का आदेश जारी किया है. मुंबई सहित अन्य स्थानों पर चुनाव को लेकर सरकार की नीतियां टालमटोल की है जबकि चाहे आम जनता हो या पूर्व नगरसेवक सभी चाहते हैं कि जल्द से जल्द चुनाव हो जाएं.
मुंबई मनपा चुनाव को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार का आड़े हाथ लिया. ओबीसी आरक्षण को लेकर चुनाव प्रक्रिया को स्थगित करने वाली महाराष्ट्र की सरकार अपरोक्ष तौर पर सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश की अवमानना ही कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दो सप्ताह के भीतर चुनाव की घोषणा करे. मुंबई मनपा का चुनाव और ओबीसी आरक्षण इसका कोई तालमेल नहीं है. ओबीसी के हितैषी बताने की चल रही कवायद में महाविकास आघाड़ी से लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी भूमिका स्पष्ट करने के बाद अब राज्य सरकार को भी अपनी भूमिका स्पष्ट करने की जरूरत है. वैसे सरकार चाहती नहीं कि चुनाव समय पर हों.
मुंबई मनपा पर तो प्रशासक के तौर पर मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त को विराजित किया गया है. इसके चलते गत 5 वर्ष से आम लोगों बीच जाने वाले सभी भूतपूर्व नगरसेवक घर पर ही बैठे हैं, क्योंकि उन्हें कोई अधिकार शेष बचा नहीं है. मुंबई मनपा में हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट हो या गली का काम, इसे लेकर पूर्व नगरसेवक जनता से कट रहे हैं. जिसका खामियाजा उन्हें आने वाले चुनाव में निश्चित तौर पर भुगतना पड़ेगा. ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की भूमिका भी स्पष्ट नहीं है. अन्यथा जो वार्ड पहले ओबीसी थे, वहां पर चाहे आरक्षण कुछ भी हो हर एक राजनीतिक पार्टियां उस सीट पर ओबीसी को ही उम्मीदवारी देकर न्याय कर सकती थी. इसके लिए चुनाव से पलायन करना कोई दर्द की दवा नहीं है. वैसे मुंबई महानगरपालिका की बात करें तो 27 लाख रुपए खर्च कर नई प्रभाग संरचना गठित की गई. अब मुंबई में 227 के बजाय 236 नगरसेवक होंगे. इस पूरी कवायद में बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल हुआ. इस नई संरचना को बनाने के लिए लाखों रुपए का खर्च भी हुआ. इसके बावजूद राज्य सरकार ने आनन फानन में इस नई संरचना को रद्द करने का काम किया. वैसे मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना का राज है और राज्य की सत्ता में नगर विकास विभाग भी शिवसेना के पास है. यानी पहले नई प्रभाग संरचना करने के दौरान मुंबई महानगरपालिका आयुक्त और नगर विकास मंत्री ने संवाद हुआ ही नहीं. अन्यथा इतना बड़ा निर्णय रद्द करने की नौबत ही नहीं आती. वैसे मुंबई महानगर पालिका में कार्यरत अधिकारियों का दावा है कि उनके पास चुनाव का पूरा खाका तैयार है. चुनाव आयोग को यह पेश करने के बाद तारीख घोषित हो सकती है, लेकिन अभ बारिश का बहाना कर राज्य सरकार जून में होने वाले संभावित चुनाव को अक्टूबर तक लेकर जाना चाहती है. जबकि सूत्रों की बात पर विश्वास किया जाए, तो फरवरी 2023 में ही नए चुनाव लेने की मंशा है.
राज्य सरकार, मुंबई महानगरपालिका, चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के बीच में मुंबई का आम आदमी पिस रहा है. उनके रोजाना कामों को लेकर मंुबई महानगरपालिका की यंत्रणा शत प्रतिशत सक्षम नहीं है. आज मुंबईकर ट्िवटर के माध्यम से शिकायत उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. क्योंकि निचले स्तर पर काम की कोई गारंटी नहीं है. एेसी स्थिति में स्थानीय स्तर पर नगरसेवक को भी किसी भी तरह का अधिकार न होने के चलते मुंबई महानगरपालिका में अफसरों का राज आ चुका है. इसी के चलते कई सारे प्रोजेक्ट, जिनकी कीमत दोगुना-तिगुना हो चुकी है, इसे लेकर आवाज बुलंद करनेवाले घर पर ही बैठे हैं. ओबीसी आरक्षण को आगे कर मुंबई महानगरपालिका के चुनाव आगे-आगे करने वाली सरकार जमीनी स्तर की हकीकत से रूबरू नहीं है. अन्यथा फरवरी 2022 में है मुंबई महानगरपालिका के चुनाव संपन्न हो जाते और प्रशासक नियुक्त करने की नौबत नहीं आ पड़ती.
अनिल गलगली