21/09/2022
अमूमन अपने देश में लोगों के दो क्लास मिल जायेंगे— एक वे जो ज़िंदगी को जीते हैं और दूसरे वे जो ज़िंदगी को गुज़ारते हैं। जो गुज़ारते हैं, उनकी ज़िंदगी बड़े बंधे-टके ढर्रे पर गुजरती है। रोज़ सुबह उठना, नाश्ता पानी करना, खाना लेकर बतौर दुकानदार, रेहड़ी-फड़ के कारोबारी, कारीगर, नौकरीपेशा, मजदूर काम पर निकल लेना और दिन भर अपने काम से जूझना। रात को थक-हार कर घर लौटना और खा पी कर सो जाना— अगले दिन फिर वही रूटीन। रोज़ वही रोबोट जैसी जिंदगी जीते चले जाना और फिर जब शरीर थक कर चलने से इनकार करने लगे तब थम जाना। जरा सा एडवेंचर या एंजाय, शादी या कहीं घूमने जाने के वक़्त नसीब होता है और वे सारी ज़िंदगी रियलाईज नहीं कर पाते कि वे ज़िंदगी को जी नहीं रहे, बल्कि गुज़ार रहे हैं।
सुबोध ऐसे ही एक परिवार का लड़का है।
दूसरे वे होते हैं जो जिंदगी को जीते हैं, क्योंकि वे हर सुख सुविधाओं से लैस होते हैं। उन्हेें जीविका कमाने के लिये दिन रात अपने काम-धंधों में, नौकरी में किसी ग़रीब की तरह खटना नहीं होता। जिनके हिस्से की मेहनत दूसरे करते हैं और जो बिजनेस और बढ़िया नौकरी के बीच भी अपने लिये एक वक़्त बचा कर रखते हैं, जहां वे अपनी ज़िंदगी को जी सकें। एंजाय कर सकें। हर किस्म के एडवेंचर का मज़ा ले सकें। उनके लिये जिंदगी कोई कोर्स नहीं होती कि बस एक ढर्रे पर उसका पालन करना है— बल्कि वह दसियों रंगों के फूलों से भरे गुलदस्ते जैसी है, जहां हर दिन एक नये फूल की सुगंध का आनंद लिया जा सकता है।
ईशानी ऐसी ही लड़की है...
दो एकदम अलग क्लास में जन्मे लोगों के बीच पनपे इश्क की दास्ताँ