The Historic Journey of Jharkhand

  • Home
  • The Historic Journey of Jharkhand

The Historic Journey of Jharkhand This page traces the evolution & transformation of the Jharkhandi identity over the last half century

हमारा एक मात्र उद्देश्य यह है की आने वाली पीढ़ी झारखण्ड के इतिहास को जाने और यह समझे की झारखण्ड का निर्माण एक लम्बे अथक समर का प्रतिफल है।

* टुसु परब *: *अन्नशक्ति स्वरूपा धान की आराधना का विशिष्ठ जनजातीय आयोजन*____________________________आदि सभ्यता के जनक "र...
13/01/2025

* टुसु परब *: *अन्नशक्ति स्वरूपा धान की आराधना का विशिष्ठ जनजातीय आयोजन*
____________________________

आदि सभ्यता के जनक "राढ़-संस्कृति" का सर्वकालीन महान सांस्कृतिक परब 'टुसु परब' झारखण्ड, बंगाल और उड़ीसा के कुड़मालि संस्कृति के जनजातीय समुदायों- कोल-कुड़मि-भूमिज- संथाल -हो तथा संगत जातियों द्वारा मनाया जाने वाला एक मुख्य त्यौहार है। पूस माह के दौरान होने के कारण इसे 'पूस परब' भी कहा जाता है और मकर-संक्रांति के महत्व हेतु इसे 'मकर परब' कहा जाता है। परन्तु, इस परब का मुख्य आधार है 'डिनि-टुसुमनि', इसलिए इसे 'टुसु परब' भी कहते हैं।

*झारखंड का महापर्व है टुसु* :-
एक-माह-व्यापी टुसू परब का आयोजन मकर संक्रांति के दिन समाप्त होता है। इस दिन बच्चे बुढ़े महिलाएं सभी पास के नदी टुसु-चौड़ल लेकर जाते है। वहां टुसु को विदाई दी जाती है।

आदि काल से चले आ रहे टुसु के बारे में वर्तमान समय के लोगों की आधारभूत सटीक जानकारी नही रहने के कारण कई भ्रांतियां फैल गई है। कोई कहते है कि टुसु काशीपुर के राजा की पुत्री थी, तो कोई टुसु को किसी कुड़मी जमींदार की साहसी कन्या के रुप मे चित्रित करते हैं तो कोई इसे किसी की प्रयसी का रूप दे देते है। परंतु काशीपुर राजघराने के रिकार्ड या मानभूम गजेटियर मे ऐसी किसी कन्या का कोई जिक्र तक नही है तथा किसी अंजाने जमींदार की कन्या का भी झारखंड-बंगाल के इतिहास गाथाओं में जिक्र तक नही पाया गया है। अंग्रेज काल की गजेटियरों मे भी टुसु के बारे में अत्यल्प जानकारी ही पायी जा सकती है। इसका मुख्य कारण है राढ़-सभ्यता के जनक जनजातीय संस्कृति के प्रति कथित सभ्य समाज की उदासीनता।

*तो टुसु है क्या?*

वास्तव मे अलिखित इतिहास की झारखंडी सभ्यता संस्कृति के अनेक अमूल्य धरोहर कालक्रम में मिटते चले गये है, पर जो अभी भी बचे है, वो इसलिए कि उन्हें पर्व के रुप मे जनजीवन का अंग बनाकर रखा गया है। दरअसल, सदियों से चौतरफा साम्राज्यवादी सांस्कृतिक आक्रमणों की मार से असली झारखंडी संस्कृतियां लगभग पुर्णतया मिट गई या उनका कायांतरण हो गया है। इससे इन त्योहारों का मूल भाव को समझना काफी कठिन हो गया है। फिर भी शोध करते-करते कई तथ्यों के मूलभाव स्पष्ट होने चले है।

इसी संदर्भ मे 'टुसु' के बारे मे यह स्पष्ट किया जा सका है, कि टुसु न तो कोई राजकन्या थी और न जमींदार की बेटी। यह दरअसल आदिकालीन कृषि सभ्यता के जनक रहे राढ़ संस्कृति के वाहक यहाँ की जनजाति के कृषिजनित जनमानस की अन्नरुपी "मातृशक्ति" थी, जिसे 'डिनि-टुसुमनि' कहा जाता है।
आदिकाल से जब हमारे पुरखोंं ने अन्न उगाकर जीवनयापन करना आरंभ किया, तभी से उन्होने यह महसूस किया कि जन्मदायिनी माँ का दुध तो हम लगभग दो साल तक ही पीते है परंतु धरती माता की छाती का दुध जीवनपर्यंत पीते-खाते है। अतः जिस धरती माता के कोख से उत्पन्न अन्न के द्वारा हमारी जीवन की सृष्टि व यापन का स्वतः संचालन होता आ रहा है तथा मानव जीवन पुष्पित-पल्लवित हो रहा है. उस प्रकृति की मातृशक्ति की आराधना करके ही मानव आगे भी अपनी संतति की रक्षा कर सकता है।

इसी के तहत अथक मेहनत करके उपजाए गये खेतों से अन्नमाता (धान) के घर लाने और इससे जीवनयापन संपन्न होने का प्रतीक स्वरुप "डिनि-टुसुमनि" की आराधना एक माह पर्यंत करने का विधान है। यह अनुष्ठान मकर संक्रांति से ठीक एक माह पहले यानी अगहन संक्रांति जिसे "डिनि-सांकराइत" कहा जाता है, के दिन खेत से सांयकाल डिनि-माता को किसान दंपति द्वारा विधि-विधान स्वरूप खलिहान लाने और तत्पश्चात कृषक बालाओं द्वारा अन्न के दानों लेकर रात में टुसु-थापन करने की परंपरा के साथ आरंभ होता है। इस एक माहव्यापी अवधि में कृषक-बालाएं टुसु को अपनी संगी-सहेली मानती है, जिसे एक माह पर्यंत गीतों से प्रतिदिन सांयकाल आराधना करते हुए और प्रति आठवें दिन आठकलइआ का भोग समर्पित करके तथा नित नये फुल देकर सेंउरन करके जीवंत बंधुता स्थापित कर पुस संक्राति अर्थात मकर संक्रांति के दिन पास के नदी-तालाबों में ले जाकर पुनः अगले वर्ष आने को कहते हुए जलरुपी ससुराल की ओर विदा कर दिया जाता है। विदाई की वेला अत्यंत भावप्रवण और दुखद होता है। कृषक बालाएं अत्यंत भावुकता भरें गीतों से टुसु-घाटों के चट्टानों को भी मानो पिघला डालती है। रंगबिरंगें चौड़लों पर सवार डिनी-टुसुमनि की भव्य शोभायात्रा में बच्चे बुढे सभी भाग लेते है। टुसु-घाट जाने के दौरान विभिन्न टुसु-दहँगियों द्वारा रास्ते भर तर्क-वितर्कों के टुसु-गित भी गाने की परंपरा हैजिसमे अपने टुसु को दुसरो से अच्छा जताने की होड़ भी दिखाई पड़ती है जिसे गीतों के माध्यम से ही जताया जाता है।
इस मौके पर "चासा" यानि कृषि-संस्कृति के जनजातीय समुदायों मे खासकर कोल, कुड़मि, संथाल, भूमिज आदि में "आँउड़ि, चाँउड़ि, बाँउड़ि, मकर और आखाइन" नाम से पाँच दिवसीय विशेष उल्लासमय परब आयोजित होते है। प्रतिदिन सुबह नहाकर ही चावल से बने विशेष प्रकार के पिठा जिसे "उँधि-पिठा" कहते है, खाने का रिवाज है। परंतु यह पिठा बनने के बड़े कठिन नियम भी है। वर्ष भर अगर पुरे गुसटि के घर में किसी की मृत्यु नही हुआ हो अथवा सुरजाहि पुजा आदि नही हुआ हो तभी आप इस पिठा को बना व सेवन कर सकते है। इसलिए इसे "गुसटिक पिठा" भी कहा जाता है। बाँउड़ि के दिन मुर्गा-लड़ाई का विशेष प्रचलन है। पुरे वर्ष भर में इसी दिन रसिक लोग मुर्गा अखाड़ा जरूर जाते है तथा एक से बढ़कर एक शानदार मुर्गों की लड़ाई में क्षेत्र के गणमान्य लोग भी उपस्थित रहते है।
ग्रामीण क्षेत्रों मे बाँउड़ि के दिन धान/चावल का बिटा/कुचड़ि बांधने की भी परंपरा रही है।
*बेझा-बिंधा :*
मकर संक्रांति के दिन जनजाति युवक समुदाय "बेझा-बिंधा" नामक प्रतियोगिता के आयोजन में भाग लेते है जिसमें विजयी प्रतिभागी को खेत/तालाब/गाय आदि एक वर्ष तक उपयोग करने हेतू पुरस्कार स्वरूप प्रदान करने की परंपरा है। यह बहुत ही आकर्षक एवं रोमांचक आयोजन होता है। अखाड़े के मेले टुसु-घाटों के आसपास ही लगते है। यहां दही-चूड़ा खाना अनिवार्य परंपरा है। बेझा-बिंधा में विवाह योग्य युवाओं की भागीदारी भी निश्चित की जाती है इसी के साथ दिनभर हर्षोल्लास से बीत जाता है। आखाइन जातरा के दिन सुबह नदी तालाब में स्नान कर नये फाल लगा हल बैलों को लेकर खेत में "ढाई-पाक" हल चलाने की परंपरा पुरी की जाती है अर्थात नये कृषि-संवत् मे प्रवेश किया जाता है। इसके बाद तालाब से मिट्टी उठाने, गोबर-गड्ढा खोदने तथा नये घर बनाने हेतू मिट्टी पूजन करने की जनजातीय परंपरा भी निभाई जाती है। इन सभी कामों में विशिष्ठ प्रकार के नेगाचारि पद्धति का निर्वहन करना अत्यावश्यक होता है वरना कार्य असफल हो जाते है ऐसी मान्यता है।
*जनजातीय नववर्ष: आखाइन जातरा*
टुसु बिदाई दिन यानी मकर-संक्रांति दिन के बाद अगले दिन को आखाइन जातरा कहा जाता है। "आखाइन जातरा" राढ़-संस्कृति का नववर्ष है। इसी दिन से इस चासा (कृषक) संस्कृति का नया कृषि वर्ष आरंभ होता है। खगोल विज्ञान के दृष्टिकोण से भी सूर्य की परिक्रमा का नया चक्र इसी आखाइन दिन से ही आरंभ हुआ माना गया है जिसे जनजातीय संस्कृति के पुर्वज हजारों साल पहले से ही मानते रहे है। इसके तहत बाँउड़ी मकर व आखाइन जातरा के दिन से शुरू हो कर अगले कई-कई दिनो तक क्षेत्रीय मेलों की श्रृंखला लगी रहती है। जिसमें सतीघाट, देलघाटा, भाव मेला, दिबघारा, दाड़हा मेला, खेलाइचंड़ि, जिआरि मेला, रांगाहाड़ी मेला, भुआ मेला, माठा मेला, जइदा मेला, हिड़िक मेला, बुटगड़ा मेला, सालघाटा मेला, जारगो मेला, पुरनापानी मेला, हथिआपाथर मेला, सिरगिटी मेला, टुंगरि मेला, कुलकुली मेला, जबला मेला, दिउड़ी मेला, हाथीखेदा मेला, झाबरि मेला, बाधाघाट मेला, कोचो मेला, पानला मेला, चड़गई मेला, बानसिनि मेला, चेड़ि मेला, छाताघाट मेला आदि सैकड़ों मेले लगते है जिसमे झाड़खंडी जनमानस सारे दुख भूलकर प्रकृति के साथ जुड़कर हिलोरें लेता है।
इस प्रकार देखा जाए तो भारत की बहुआयामी सांस्कृतिक धरोहर में से कुड़मालि जनजातीय संस्कृति का यह एकमाह व्यापी टुसु पर्व बहुत ही विशेष मायने रखता है। दुर्भाग्यवश इस विशिष्ठ संस्कृति और इसकी उपादेयता पर कथित मुख्यधारा के विद्वजनों का सदैव उदासीन रवैया ही दिखता रहा है। जनजातीय संस्कृति के आयोजनों को हासिए पर रखने के प्रचलन सा रहने के कारण ही देश के अनेक विशिष्ठ जनजातीय संस्कृतियों का लोप भी हो चूका है। अतः जरूरत इस बात की है कि विविधता से भरे भारतीय संस्कृति की अमुल्य संपदा कुड़मालि जनजातीय संस्कृति जो राढ़-सभ्यता का अवशेष मात्र कहा जा सकता है, का पुनर्जागरण हो इसके लिए युवा विद्वजनों को आगे आने की आवश्यकता है। झाड़खंडी जनजीवन के गहराई तक रचा-बसा टुसु-परब वाकई झारखंडी संस्कृति की मातृशक्ति का जीवंत प्रतीक है। राड़ माटी के हड़कमिआ सुधी जनों से इस संबंध में और अधिक खोजकार्य किये जाने की प्रत्याशा में ...
आभार :
महादेब डुंगरिआर
(शिक्षक- मवि तालगड़िया, बोकारो)
संयोजक- कुड़मालि भाखि चारि आखड़ा।

अंग्रेजी हुकूमत और उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़े गए जनयुद्ध के नायक जबरा पहाड़िया उर्फ़ बाबा तिलका माँझी के शहादत को क्रांतिक...
13/01/2025

अंग्रेजी हुकूमत और उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़े गए जनयुद्ध के नायक जबरा पहाड़िया उर्फ़ बाबा तिलका माँझी के शहादत को क्रांतिकारी जोहार.....

 #शिबु_सोरेन ✍️समाज के लिए अपने जीवन से जीने की इबादत को लिख देने वाले लोग ही एक कालखंड के बाद ऐसे दरख्त बन जाते हैं, जि...
11/01/2025

#शिबु_सोरेन ✍️
समाज के लिए अपने जीवन से जीने की इबादत को लिख देने वाले लोग ही एक कालखंड के बाद ऐसे दरख्त बन जाते हैं, जिनके जीवन की कहानी हौसला भी देती है, प्रेरणा भी और समाज को दिशा भी,देश के बिहार प्रांत में 11 जनवरी 1944 को एक ऐसी ही विभूति ने जन्म लिया था जिसे आज के झारखंड में दिशोम गुरु या गुरुजी कहा जाता है,जो उस समय शिबू सोरेन हुआ करते थे,झारखंड के आज वाले रामगढ़ जिले और 1944 के हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में शिबू सोरेन का जन्म हुआ था जिनके पिता सोबरन माझी उस क्षेत्र के सबसे शिक्षित व्यक्ति थे और समाज में शिक्षा की अलख जगा रहे थे,लेकिन व्यवस्था ऐसी भी थी जो शिबू सोरेन के उस समय के हंसते खेलते परिवार को ना पसंद आई और एक वारदात ने पूरे परिवार को बिखेर दिया,झारखंड में महाजनी प्रथा कुछ इस कदर चरम पर थी कि लोगों को अपनी पैदावार का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा मिलता था, बाकी सब कुछ सूदखोर उठा ले जाते थे, बात यहीं तक नहीं थी, जो लोग घर की परेशानी और दूसरे कारणों से महाजनों के सूद को नहीं चुका पाते थे उनके लिए दिक्कत और भी ज्यादा होती थी। हालांकि इसके खिलाफ शिबू सोरेन के पिता सोबरन माझी आवाज उठाते रहे और उनकी आवाज में इतना जोर था कि सूदखोरों की रूह कांप गई थी और यही वजह था कि 1957 में सूदखोरों के इशारे पर शिबू सोरेन के पिता की हत्या हो गई। परिवार इस कदर बिखरा कि लकड़ी बेचकर जीवन का गुजारा करना पड़ा, लेकिन हौसला, हिम्मत, जुनून शिबू सोरेन में कुछ इस कदर था कि पूरे परिवार को अपनी मेहनत से खड़ा किया।
#हुल_जोहार ✊

11/01/2025

टुसु परब: कुड़मी समुदाय की एक सांस्कृतिक विरासत, मनोज चंचल की एक वृत्तचित्र फिल्म।
#टुसुजोहर #टुसु
#कृषि #आदिवासी
#कुड़मि #झारखंड
#बंगाल #ओडिशा

झारखंडियों के दिलों में राज करने वाले हमारे नायक वीर शहीद सुनील महतो जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन।।वीर शहीद सुनील महतो अ...
11/01/2025

झारखंडियों के दिलों में राज करने वाले हमारे नायक वीर शहीद सुनील महतो जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन।।
वीर शहीद सुनील महतो अमर रहे।
💐💐🙏🙏

अक्टूबर,1857 से लेकर मार्च, 1859 तक, करीब डेढ़ वर्षो तक नीलांबर - पितांबर की चुनौती की वजह से अंग्रेज पलामू में पांव नही...
08/01/2025

अक्टूबर,1857 से लेकर मार्च, 1859 तक, करीब डेढ़ वर्षो तक नीलांबर - पितांबर की चुनौती की वजह से अंग्रेज पलामू में पांव नहीं जमा सके.....
पलामू प्रमंडल के गांव जंगलों में नीलांबर सिंह और पितांबर सिंह दोनों सहोदर भाइयों के वीरता की कहानी आज भी गूंजती है।
ादी_का_अमृत_महोत्सव
The Historic Journey of Jharkhand
#झारखंड

मजदूर नेता वीर शहीद रतिलाल महतो अमर रहे!किसान - मजदूर एकता जिंदाबाद!जय झारखंड!! जय भारत!!!
03/01/2025

मजदूर नेता वीर शहीद रतिलाल महतो अमर रहे!
किसान - मजदूर एकता जिंदाबाद!
जय झारखंड!!
जय भारत!!!

झारखंड आंदोलन के जनक मारांग गोमके   जयपाल सिंह मुंडा को भावभीनी श्रद्धांजलि💐
03/01/2025

झारखंड आंदोलन के जनक मारांग गोमके
जयपाल सिंह मुंडा को भावभीनी श्रद्धांजलि💐

31/12/2024

Black dayJharkhand 🥹

खून का दाग मिटता नहीं,अमर  हो जाता  है।खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि----------------------------------------...
31/12/2024

खून का दाग मिटता नहीं,अमर हो जाता है।
खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि---
-------------------------------------------------
झारखंड के इतिहास में खरसावां गोलीकांड 1 जनवरी 1948 निरंतर संघर्ष की प्रेरणा देने वाला दिन है । यह शहादत, कुर्बानी एवं सर्वस्व न्योछावर करने की महान गौरव गाथा का चिरस्मरण कराता रहता है। इस दिन झारखंडी स्वाभिमान, सांस्कृतिक अस्मिता और ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा के लिए लड़ी जा रही लंबी लड़ाई में प्रशासनिक क्रूरता, राजनीतिक निर्ममता एवं मानवीय संवेदनहीनता का वह काला अध्याय जुड़ा, जिससे नादिरशाह भी लजा जाए, हिटलर की निरंकुशता भी शरमा जाए, जनरल डायर की ह्रदयहीनता भी पानी- पानी हो जाए। विभिन्न राज्यों में छितराये हुए झारखंडी लोगों की झारखंड की मांग को मात्र मुट्ठी भर लोगों की मांग के रूप में चित्रित किया गया । 1 जनवरी 1948 का दिन गुरुवार था और उस दिन सप्ताहिक हाट था। बाजार में महिला, पुरुष के अलावे गाय, बैल आदि शामिल थे और दूसरी तरफ सभा में आने वाले हजारों प्रदर्शनकारी शामिल थे। प्रदर्शनकारियों ने "उड़ीसा राज काबुआ-झारखंड राज आबुआ" का नारा दिया। उड़ीसा सरकार के प्रतिनिधि को आदिवासी महासभा के नेताओं ने मेमोरेंडम दिया और नेताओं ने सभा स्थल में स्पष्ट रूप से घोषणा किया कि हम उड़ीसा में किसी भी कीमत में शामिल नहीं होंगे। उड़ीसा के गुस्साए हिटलरशाही अधिकारियों ने सभा स्थल और हाट बाजार के बीच मशीन गन से गोली चलवा दी। खरसावां गोली कांड के बाद जयपाल सिंह द्वारा 11 जनवरी को चाईबासा में दिए गए भाषण के अनुसार खरसावां में करीब 1000 से अधिक शहीद हो गए और हजारों लोग घायल हुए जिसमें जवान, बूढ़े, महिला, बच्चे ,गाय ,बैल, बकरी आदि शामिल थे। सभी शहीदों को नमन 🙏

"निकल रही जिसकी समाधि से स्वतंत्रता की आगी।आजाद झारखंड में छिपा हुआ है,वह स्वतंत्र बैरागी।।" आज 25 दिसंबर उनके 73 वा जन्...
25/12/2024

"निकल रही जिसकी समाधि से स्वतंत्रता की आगी।
आजाद झारखंड में छिपा हुआ है,वह स्वतंत्र बैरागी।।"

आज 25 दिसंबर उनके 73 वा जन्मदिवस पर उनको नमन करता हूं।
मैंने इस महान सपूत निर्मल महतो की हत्या के बाद उनके स्मरण में "शहीद निर्मल महतो को अंतिम संदेश" अखबारों के माध्यम से दिया था। यह संदेश "झारखंड की समरगाथा" पुस्तक में भी उल्लेख किया गया है। संदेश लंबा है लेकिन एक पैराग्राफ को जिक्र कर रहा हूं जो इस प्रकार है--
"निर्मल तुम नहीं रहे। छोड़कर गए इस दुनिया को। बिल्कुल बेफिक्री के साथ। जैसे कोई मामूली सी बात हो। शरीर खून से लथपथ, लेकिन चेहरे पर गम की कोई निशानी नहीं और इधर अपनी हालत। जो मैंने सुना तो होश खो बैठा । काटो तो खून नहीं जैसे लकवा मार गया हो। क्या यह भी मुमकिन है? भीतर से सवाल उठा, मगर सवाल बेकार सा था और खबर मिली उसमें सच्चाई थी......।

✍️शैलेंद्र महतो
झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद


#झारखंड_आंदोलन
#शहिद_निर्मल_महतो

बिनोद बिहारी महतो सिर्फ एक नाम, एक इंसान नहीं बल्कि विचार है क्रन्ति है lउनके पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि कोटि नमन है 🙏🙏🏹बि...
18/12/2024

बिनोद बिहारी महतो सिर्फ एक नाम, एक इंसान नहीं बल्कि विचार है क्रन्ति है l
उनके पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि कोटि नमन है 🙏🙏🏹
बिनोद बाबू का मानना था किसी भी आंदोलन के लिए सबसे मत्वपूर्ण जागरूकता, एकता और शिक्षा है
अपने समय मे उन्होंने कई स्कूल कॉलेज खुलवाए कई एकड़ जमीने दान दी जिससे हम झारखंडी लोग शिक्षा ग्रहण कर स्वाभिमान से जिये और शोषण अत्याचार के खिलाफ मुखर होकर अपनी आवाज़ बुलंद कर पाए हमारा झारखण्ड हम अपने पुरखों के अनुरूप बना पाए
बाबू आज भी क्रांति के रूप मे हमारे अंदर जिन्दा है और हमेशा रहेंगे !!
बिनोद बाबू अमर रहे
जय झारखण्ड
#झारखंड_आंदोलन
#बिनोद_बिहारी_महतो

1980 मे रांची विश्वविद्यालय में पहली बार झारखंडि भाषाओ की पठन पाठन सुरू किया गया। जिसके लिऐ एक परामर्शदात्री समिति बनाई ...
10/12/2024

1980 मे रांची विश्वविद्यालय में पहली बार झारखंडि भाषाओ की पठन पाठन सुरू किया गया। जिसके लिऐ एक परामर्शदात्री समिति बनाई गयी थी, जिससे संथाली, कुडमाली, मुन्डारी, कुडुख ,खड़िया हो और नागपुरी भाषाओ के प्रतिनिधि को शामिल किया गया,और इन्ही सात भाषाऔ की पढाई के लिए "जनजातिय तथा क्षेत्रीय भाषा विभाग "की स्थापना की गयी थी। चुकि इस विभाग में सात भाषा की पढाई लिखाई की व्यवस्था थी, इसलिए इसे इन्द्रधनुषी विभाग भी कहा जाता था। पर कुछ लोगो को तकलीफ होने लगी वे कुडमाली के प्रतिद्वंद्वी के रूप मे कुछ और भाषा, जैसे पंचपरगनीया, खोरठा, तमाडीया आदी की भी पढाई लिखाई सुरू करवाना चाहते थे। पर सफल नही हो पा रहे थे ।अंततः तीन साल के अथक मेहनत से उन्हें आंशिक सफलता मिली और, 1983मे राची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग में दो और भाषा, खोरठा और पंचपरगनीया की पढाई लिखाई की सुरुआत हो गयी। पर यूपीसी ने खोरठा और पंचपरगनीया को स्वतंत्र भाषा नही बल्कि नागपुरी की उपभाषा के रूप में मान्यता दी । इस प्रकार अब इस विभाग में सात के जगह नौ भाषाओं को पढ़ाई लिखाई होतीं हैं।

1980 সালে, রাঁচি বিশ্ববিদ্যালয়ে প্রথমবারের মতো ঝাড়খণ্ডি ভাষার পাঠদান শুরু হয়। যার জন্য একটি উপদেষ্টা কমিটি গঠন করা হয়েছিল, যাতে সাঁওতালি, কুদমালি মুন্ডারি, কুদুখ খাদিয়া হো এবং নাগপুরি ভাষার প্রতিনিধিদের অন্তর্ভুক্ত করা হয়েছিল এবং এই সাতটি ভাষার অধ্যয়নের জন্য "উপজাতি ও আঞ্চলিক ভাষা বিভাগ" প্রতিষ্ঠা করা হয়েছিল। যেহেতু এই বিভাগে সাতটি ভাষায় পাঠদান ও লেখার ব্যবস্থা ছিল তাই একে ইন্দ্রধনুষী বিভাগও বলা হত। কিন্তু কিছু লোকের সমস্যা শুরু হয়, তারা কুদমালীর প্রতিদ্বন্দ্বী হিসেবে অন্যান্য ভাষা যেমন পাঁচপরগানিয়া, খোর্থা, তামাদিয়া ইত্যাদি পড়া শুরু করতে চায়। কিন্তু শেষ পর্যন্ত তিনি সফল হতে পারেননি, তিন বছরের অক্লান্ত পরিশ্রমের পর তিনি আংশিক সাফল্য পান এবং 1983 সালে রাচি বিশ্ববিদ্যালয়ের উপজাতীয় ভাষা বিভাগে আরও দুটি ভাষার অধ্যয়ন শুরু হয়। কিন্তু ইউপিসি খোর্থা ও পাঁচপরগানিয়াকে স্বতন্ত্র ভাষা হিসেবে নয়, নাগপুরীর উপভাষা হিসেবে স্বীকৃতি দিয়েছে। তাই এ বিভাগে এখন সাতটির পরিবর্তে নয়টি ভাষা পড়ানো হয়।
সৌজন্যে: রাকেশ মাহাতো


#झारखंड

28 नवम्बर 1977 को झारखंड विरोधी मानसिकता वाले नेताओं, पूँजीपतियों और माफियाओं ने शक्तिनाथ दा की हत्या कर उनकी भविष्यवाणी...
28/11/2024

28 नवम्बर 1977 को झारखंड विरोधी मानसिकता वाले नेताओं, पूँजीपतियों और माफियाओं ने शक्तिनाथ दा की हत्या कर उनकी भविष्यवाणी को सच कर दी।
कोयलांचल का हीरा कहे जाने वाले मजदूरों के क्रांतिकारी नायक शहीद शक्तिनाथ महतो को कोटि कोटि कोटि नमन। 🙏🙏💐💐
#वीर_शहीद_शक्तिनाथ_महतो_अमर_रहे 🙏❤️

#झारखंड

हर किसी के हितों की रक्षा हो ऐसा विधान है, हर किसी को जोड़ कर रखें ऐसा भारत का संविधान है.❤️🇮🇳संविधान दिवस पर आप सभी को ...
26/11/2024

हर किसी के हितों की रक्षा हो ऐसा विधान है, हर किसी को जोड़ कर रखें ऐसा भारत का संविधान है.❤️🇮🇳
संविधान दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं 🙏🙏

25 नवंबर, 1978  #सेरेंगदा_गोलीकांड #जंगल_बचाओ_आंदोलन के तमाम आंदोलनकारी व शहीदों को नमन एवं हुल जोहार🏹🙏 ||आज झारखंड तो ब...
24/11/2024

25 नवंबर, 1978
#सेरेंगदा_गोलीकांड
#जंगल_बचाओ_आंदोलन के तमाम आंदोलनकारी व शहीदों को नमन एवं हुल जोहार🏹🙏 ||
आज झारखंड तो बन गया मगर उन आंदोलनकारियों व शहीदों के संघर्ष व बलिदान को भुला दिया गया ।।
The Historic Journey of Jharkhand
#शैलेंद्र_महतो

#झारखंड_आंदोलन

झारखंड स्थापना दिवस पर शिबू सोरेन जी और  शैलेन्द्र महतो जी को अभिनंदन : -आज 15 नवम्बर है। इसी दिन झारखंड राज्य का स्थापन...
15/11/2024

झारखंड स्थापना दिवस पर शिबू सोरेन जी और शैलेन्द्र महतो जी को अभिनंदन : -

आज 15 नवम्बर है। इसी दिन झारखंड राज्य का स्थापना हुआ था। झारखंड राज्य के इतिहास में इन दो नेताओं - शिबू सोरेन और शैलेंद्र महतो ने अपना घर-द्वार त्याग कर आन्दोलन को जंगल से लेकर गाँव, शहर तक पहुँचाया था। इन दोनों पर ही बिहार सरकार ने झारखंड आंदोलन के दौरान जिंदा या मूर्दा गिरफ्तार करने के लिए ईनाम घोषित कर रखा था। आज झारखंड स्थापना दिवस पर हम इन दोनों वीर सपूतों को अभिनन्दन करते हैं 🙏💚
#झारखंड

#झारखंड_स्थापना_दिवस

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और झारखंड राज्य का 24 वां स्थापना दिवस के अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई ...
15/11/2024

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और
झारखंड राज्य का 24 वां स्थापना दिवस के अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं अलग झारखंड राज्य निर्माण में शहीद आंदोलनकारियों को शत-शत नमन 💚।।


Address


Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when The Historic Journey of Jharkhand posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to The Historic Journey of Jharkhand:

Videos

Shortcuts

  • Address
  • Alerts
  • Contact The Business
  • Videos
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share