22/12/2021
महान स्वतंत्रता सेनानी, यदुकुल गौरव स्व. बाबू अक्षयवट राय जी की जयंती विशेष -
आज ही के 22 दिसंबर 1899 को विश्व के पहली गणतंत्र वैशाली की धरती पर भारत के गणतंत्र की लडाई लड़ने वाले सपूत अक्षयवट राय का जन्म हुआ था।
उनके पिता का नाम निरसू राय और माता का नाम कमला देवी था, वो बिंदुपुर प्रखंड के शीतलपुर थाना के काकड़हट्टा गाँव के वे रहने वाले थे एवं यदुवंशी अहीरों के 'कृष्णौत' शाखा से संबंधित थे।
स्कूल के दिनों में ही उनमें देश की स्वतंत्रता संग्राम में कुद पड़ने की जुनून बढ़ने लगी।
01 अगस्त 1920 को महात्मा गॉंधी के नेतृत्व मे असहयोग आंदोलन का बिगुल पूरे देश में फुंका गया जिसमें अक्षयवट बाबू भी अपनी कॉलेज की पढाई छोड़ कुद पड़े। असहयोग आंदोलन के दौरान ही महात्मा गांधी हाजीपुर आये जहाँ उन्होंने 07 दिसंबर 1920 को 'गांधी आश्रम' की स्थापना किया जो अक्षयवट बाबू का कार्यक्षेत्र बन गया।
असहयोग आंदोलन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में अक्षयवट बाबू जैसे पारस सपूतों ने पटना के सदाकत आश्रम से जुलूस निकाली अंग्रेजी शासन ने जुलूस पर घोड़ा दौराने का आदेश दिया गया अक्षयवट बाबू सहित सभी आंदोलनकारी जमीन पर लेट गए परंतु कप्तान ने यह कह कर फैसला वापस ले लिया कि सेना लड़ने वालों से लड़ेगी सत्याग्रही से नही।
काँग्रेस की और से 15 फरवरी 1922 को सरकारी भवन पर तिरंगा फहराने का कार्यक्रम था हाजीपुर में अक्षयवट बाबू के नेतृत्व में कचहरी के उपर झंडा फहराया गया जो जिले के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है।
05 फरवरी 1922 के चौरा- चोरी कांड से दुःखी होकर गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को खत्म कर दिया जिससे युवा क्रांतिकारी को धक्का लगा।
नशाबंदी आंदोलन में वे जेल गए और हाजीपुर कचहरी में मुकदमे की सुनवाई हुई एवं उन्हें व उनके साथियों को मुज़फरपुर जेल लाया गया उस समय कैदियों को लकड़ी की तख्ती गर्दन में पहनाई जाती थी जिन्हें 'तौक' कहते थे। उन्होंने पुलिस प्रशासन के लाख कोशिस के बाद भी 'तौक' नही पहना। पुलिस IG ने हारकर उन्हे और उनके उनके साथियों को 'तौक' से मुक्ति दी, यह एक बड़ी जीत थी बाद में वे कैदियों के नेता बन गए।
असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद अक्षयवट राय अपने युवा क्रांतिकारियों के साथ क्रांतिकारी नेता शचींद्र सन्याल के पार्टी HRA (Hindustan Republican Association) से जुड़ गए।
HRA आर्मी में जुड़ने के बाद अक्षय बाबू अपने क्रांतिकारी सक्रियता के कारण अंग्रेजी शासन को आँख के काँटा बन गए। अंग्रेजी शासन इस दौरान कई बार उनके खेत के फसल उजाड़ दिये कई बार उनके घर का कुर्की- जब्ती कर लिया लेकिन फिर भी उन्होंने अंग्रेजी शासन के सामने घुटना नही टेका।
जब 23 मार्च 1931 को शहीद- ए- आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी हुआ तब पंजाब के क्रांतिकारियों द्वारा बिहार के क्रांतिकारियों को एक संदेश भेजवाया गया जिसके अनुसार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी बिहार के बेतिया के क्रांतिकारी साथी के अंग्रेज के तरफ से गवाही देने से हुई तो बिहार के क्रांतिकारी विचलित हो गए। सदाकत आश्रम हाजीपुर मे क्रांतिकारियों की मीटिंग हुयी जिसे अक्षयवट राय, बैकुंठ शुक्ल, किशोरी प्रसन्न सिंह और उनकी पत्नी सुनीता सिन्हा आदि शामिल हुए सभी भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले को मौत के घाट उतारने को उतावले थे। क्रांतिकारियों में सहमति नही होने पर सभी के नाम गोटी उछालने की बात हुयी।
जिसके बाद सुनीता सिन्हा ने पांच क्रांतिकारी के नाम की गोटी उछाला जिसमें बैकुंठ शुक्ल का नाम आया। बैकुंठ शुक्ल ने रौशन सिंह के साथ भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले का अंत कर दिया।
अक्षयवट राय के नेतृत्व मे हाजीपुर इलाके मे सफलता पूर्वक चौकीदारी टैक्स बंदी आंदोलन चलाया गया।
माँ भारती के आजादी के लिए अक्षयवट बाबू ने 13 साल जेल में बिताया अंग्रेजी शासन ने उनका बहुत सारे ज़मीन नीलाम कर लिया। एक बार अंग्रेजी शासन उनपर 134 कोड़े बरसाए लेकिन उन्होंने फिर भी अपना सिर अंग्रेजी शासन के सामने नही झुकाया।
अक्षयवट बाबू "बिहार सोसलिस्ट पार्टी" के संस्थापक सदस्य थे।
1942 के भारत आंदोलन (अगस्त क्रांति) के समय इन्ही की नेतृत्व में 09 अगस्त 1942 को बिंदुपुर इलाके में लाइन काटी गई थी। आजाद दस्ताने के गठन में जयप्रकाश नारायण एवं राम मनोहर लोहिया के साथ अक्षयवट बाबू महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।
1963 में इस महान क्रांतिकारी का देहांत हो गया।
उनके मृत्यु के बाद उस क्षेत्र एक और महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू सीताराम सिंह (यादव) ने उनके स्मृति मे
"अक्षयवट राय कॉलेज - महुआ" की स्थापना किया और बाद में 'अक्षयवट राय स्टेडियम' भी हाजीपुर शहर में स्थापित हुआ।
भारत सरकार ने अक्षयवट बाबू के सम्मान में बिंदुपुर रेलवे स्टेशन का नाम परिवर्तित कर "अक्षयवट राय नगर" कर दिया।
माँ भारत के इस महान समाजवादी क्रांतिकारी को उनके जयंती पर शत्-शत् नमन।।