Deshi Villager Boora

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Very very happy birthday 🎂🎂 my lovely son,  God bless you
04/12/2023

Very very happy birthday 🎂🎂 my lovely son, God bless you

05/11/2023

आज इंडिया कितने रन बनाएगा?
बताओ

05/11/2023

आज पंडित जी का दिमाग खराब है,

05/11/2023

Pls tell me
आज one day match h ya
t20

23/10/2023

छहिन, लाउफ, बाबरी,
तुम सबकी ठठरी
Well done 👍 afg

06/09/2023

वैसे आपको बताने की जरूरत नहीं है
फिर भी याद दिला दूं, किसी हकले की फिल्म जवान आ रही है, इसको देखने का नहीं
Ok

26/08/2023

याद रखें कि कल से नया फेसबुक नियम (उर्फ... नया नाम मेटा) शुरू हो रहा है, जहां वे आपकी तस्वीरों का उपयोग कर सकते हैं। मत भूलो कि अंतिम तिथि आज है!!! मैं फेसबुक या फेसबुक से जुड़ी किसी भी इकाई को अपने अतीत और भविष्य के चित्रों, सूचनाओं, संदेशों या प्रकाशनों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देता।
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सांझा ना करें। कॉपी और पेस्ट।
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इस संदेश में कहीं भी अपनी उंगली रखें और "कॉपी" दिखाई देगा। "कॉपी करें" पर क्लिक करें। फिर अपने पेज पर जाएं, एक नई पोस्ट बनाएं और रिक्त फ़ील्ड में कहीं भी अपनी उंगली रखें। 'पेस्ट' पॉप अप होगा और पेस्ट पर क्लिक करें।
यह सिस्टम को बायपास कर देगा....
जो कुछ नहीं करता, वह जाहिरा तौर पर सहमत होता है।

23/08/2023

सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं,
Proud moment for all Indians,
Chadrayan 3 success landed

09/08/2023
27/06/2023

IOC किसी भी परिस्थिति में अगर किसी खिलाड़ी का पदक डाउनग्रेड या अपग्रेड करती है तो वह किसी देश या खिलाड़ी से पूछती नहीं है। यदि किसी पदक विजेता का पदक वापस होता है तो स्वतः उसके नीचे के पदक अपग्रेड होते हैं जैसे साइना नेहवाल को ओलंपिक पदक अपग्रेड होने से मिला था।

यदि किसी स्थिति में योगेश्वर का पदक अपग्रेड होता तो स्वताः होता IOC पूछने नहीं आती।

तो ये योगेश्वर को जो भावनाओं से ओत प्रोत व्यक्ति बताया जा रहा है वो जरा 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों, 2014 एशियाई खेलों, 2015 विश्व प्रतियोगिता के चयन ट्रायल खोजिए, एक बार भी नहीं हुए हर बार बिना ट्रायल जूनियर खिलाड़ियों के हक मारकर योगेश्वर खेलने गया है। अमित धनखड़ VS UNION OF INDIA 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसला देखिए। न्यायालय ने योगेश्वर के टीम में बिना ट्रायल जाने को गलत ठहराया है और फेडरेशन पर प्रति वादी खिलाड़ी 25 हजार जुर्माना भी लगाया था।

ये योगेश्वर दत्त सबके हक मारकर आज साधु बन रहा है दिल का काला माणस किसी का नहीं होता।

04/06/2023

आपको एक बार तो दुबई जरूर जाना चाहिए

08/05/2023

Guess the city

02/05/2023

Hi everyone! 🌟 You can support me by sending Stars - they help me earn money to keep making content you love.

Whenever you see the Stars icon, you can send me Stars!

02/05/2023

*"आपके जीवन में जितने भी दुख आते हैं, उनमें से बहुत बड़ा भाग आपकी इच्छाओं और आशाओं के पूरा न होने के कारण से होता है। और इसके सबसे बड़े जिम्मेदार आप स्वयं हैं।"*
विचारणीय विषय ।

22/04/2023

ऐसी बातें आज तक नहीं सुनी होंगी। आखिर में तो कमाल कर दिया

21/04/2023

Good morning 🌅
All of you 💓

21/04/2023

भारत रत्न के असली हकदार राजा महेंद्र प्रताप!
"काबुल में आजाद हिंद सरकार का गठन करने वाले राजा"

- के. पी. मलिक
हिंदुस्तान में भारत रत्न सम्मान सबसे बड़ा सम्मान है, जिसे दिया जाना इस बात को जाहिर करता है कि इस सम्मान को पाने वाला इंसान कोई साधारण इंसान नहीं होता। हिंदुस्तान में अब तक अनेकों ऐसे महान लोग हुए हैं, जिन्हें अब तक तो भारत रत्न सम्मान दे दिया जाना चाहिए था। ऐसी ही महान शख्सियतों में से एक महान शख्सियत का नाम है जाट शासक राजा महेंद्र प्रताप, जो अब इस दुनिया में भले ही नहीं हैं, लेकिन उनकी वजह से न केवल देश की स्वतंत्रा के लिए भड़की क्रांति की चिंगारी में अनेक आहुतियां मिलीं, बल्कि देश के कई वर्ग और कई परिवार भी आबाद हुए और आज इन्हीं राजा महेंद्र प्रताप की वजह से उनकी पीढ़ियां भी आबाद हैं। उत्तर प्रदेश के मुरसान में 1 दिसम्बर, 1886 जन्में राजकुंवर महेंद्र प्रताप यूं तो युवा होकर मथुरा के शासक बने और राजा महेंद्र प्रताप के नाम से ख्यात हुए, जो न्याय प्रिय, किसान, गरीब हितैषी और दबे-कुचलों को भी सम्मान और समान हक देने वाले थे। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप के पास अगर कोई भूमिहीन आता था, तो वो उसका धर्म या जाति देखे बगैर ही उसे जमीन दान कर दिया करते थे। उनकी न्यायप्रियता और जनसेवा के चलते वो इतने लोकप्रिय शासक थे कि पूरी दुनिया के कई देशों में उनके नाम का डंका बजता था।

आज भी यह बात चर्चित है कि देश में फकीर से राजा तो अनेकों बने, लेकिन राजा से बने फकीर अकेले महान शिक्षाविद क्रांतिकारी, समाजसेवी, स्वर्गीय राजा महेंद्र प्रताप बने, जो न सिर्फ राजा बने बल्कि आजाद देश के पूर्व लोकसभा सदस्य भी रहे। राजा महेंद्र प्रताप देश के इकलौते राजा थे, जिन्होंने अपनी भूमि, संपत्ति शिक्षक संस्थानों, किसानों को देकर स्वरोजगार और शिक्षा का उजियारा किया। राजा महेंद्र प्रताप आजादी के बाद आगरा से लोकसभा के सांसद तो रहे ही साथ ही उन्होंने अखंड हिंदुस्तान के लिए एक ऐसी मुहिम चलाई, जिसकी बदौलत हिंदुस्तान के कई सूबे एकजुट हुए। इतना ही नहीं दूरदर्शी राजा महेंद्र प्रताप ने सर्वप्रथम साल 1915 में जब पूरा हिंदुस्तान अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था काबुल जाकर अफगानिस्तान में आजाद हिंद सरकार का गठन कर दिया था और उसे स्वतंत्र हिंदुस्तान के रूप में पहचान दे दी थी। यह अलग बात है कि राजा महेंद्र सिंह की यह मुहिम न तो अंग्रेजों को रास आई और न ही आजाद भारत की सरकार आगे बढ़ा सकी और आजादी के बाद अफगानिस्तान की सीमाएं अलग हो गईं और वह हिंदुस्तान का अखंड हिस्सा नहीं बन सका।

बहरहाल, अगर राजा महेंद्र प्रताप के आजादी में योगदान की बात करें, तो उन्होंने देश को आज़ाद कराने के लिए 32 वर्ष विदेश में रहकर ब्रिटिश हुकूमत को भारत छोड़ने को मजबूर किया। वह महात्मा गांधी से पहले 1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किए गए। आज़ादी के प्रमुख महानायकों में शुमार त्यागी मसीहा राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी सैकड़ों एकड़ भूमि शैक्षिक संस्थाओं, गुरुकुलओं को दान कर, शिक्षित भारत को बढ़ावा दिया। राजा महेंद्र प्रताप की प्रसिद्धि और उनके अच्छे कामों को इसी बात से जाना-समझा जा सकता है कि उन्हें जर्मनी के राजा ने "ऑर्डर ऑफ द रैड ईगल" की उपाधि से सम्मानित किया था। जर्मन राजा से काफी भरोसा पाकर महा अनुभवी राजा महेंद्र प्रताप बर्लिन से चले आए। बर्लिन छोड़ने से पहले उन्होंने पोलैंड बॉर्डर पर सेना के कैंप में रहकर युद्ध की ट्रेनिंग भी ली, तब उनकी उम्र महज 28 साल थी। वो तीन दशकों से अधिक तक जर्मनी, बर्लिन, अफगानिस्तान, पोलैंड, स्विट्जरलैंड, तुर्की, इजिप्ट आदि देशों को स्वतंत्र कराने के लिए दुनिया भर की खाक छानते रहे। उनका सपना था कि दुनिया का हर देश आजाद हो, हर नागरिक आजाद हो और किसी को भी गरीबी, भुखमरी, गुलामी और अत्याचार का दंश न सहना पड़े। किसी को भी दीन-हीन न रहना पड़े और किसी के भी सम्मान में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।

राजा महेंद्र प्रताप अभियान, दिल्ली के संयोजक हरपाल सिंह राणा ने याद दिलाते हुए बताते हैं कि देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद 25 दिसंबर 2014 को जब प्रधानमंत्री मोदी काबुल गए, तो वहां की संसद का एक हॉल, जो माननीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के नाम से उसका उद्घाटन करते वक्त माननीय प्रधानमंत्री मोदी ने राजा महेंद्र प्रताप और आज़ादी पर उनकी महत्वता को दुनिया के सामने उजागर किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य मे कहा हमारे स्वतंत्रता संग्राम के लिए भारतीयों को अफगानों का समर्थन याद है। खान अब्दुल गफ्फार खान का योगदान उस इतिहास के महत्वपूर्ण पड़ाव था, आज से ठीक सौ साल पहले राजा महेंद्र प्रताप और मौलाना बरकतुल्लाह द्वारा काबुल में आजाद हिंद सरकार का गठन किया गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने सीमांत गांधी के साथ राजा महेंद्र प्रताप का नाम लिया और उनके और अफगानिस्तान के राजा के बीच की बातचीत को भाईचारे की भावना का प्रतीक बताया।

प्रख्यात विद्वान हरिहर निवास शर्मा कहते हैं कि हमें आजादी तो मिली, किंतु विख्याम देहि की तर्ज पर। आजादी के बाद सत्तासीन भी वे ही हुए, जो इसी मंत्र का जाप करते थे। यही कारण रहा कि संघर्षशील और जुझारू क्रांतिवीरों की संघर्षपूर्ण गाथा इतिहास के पन्नों में से गायब ही कर दी गई। क्या आज कोई कल्पना कर सकता है कि आजादी के पूर्व एक राजवंश में पैदा हुआ कोई व्यक्ति ऐसा भी था, जिसने लगातार 32 वर्ष निर्वासित जीवन जीते हुए समुचित यूरोप और एशिया का दौरा किया। विभिन्न शासकों से संपर्क किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से भी बहुत पहले आजाद हिंद सरकार की स्थापना की। समानांतर सरकार कायम करने के उनके प्रत्यन को दुनिया ने हैरत से देखा। मुर्सान में जन्में महेंद्र प्रताप को ढाई वर्ष की उम्र में हाथरस के जाट राजा हरनारायण सिंह ने गोद ले लिया। वे वृंदावन में रहते थे, तो स्वाभाविक ही इनका बचपन वृंदावन में बीता। जब महेंद्र प्रताप सिंह 8 साल के ही थे, तो इनके पालक पिता यानि राजा हरनारायण सिंह जी स्वर्ग सिधार गए। नाबालिग होने के कारण महेंद्र प्रताप सिंह को हाथरस का राजा तो घोषित कर दिया गया, किंतु राज्य की व्यवस्था और जायदाद के प्रबंधन हेतु कोर्ट ऑफ वार्ट्स की नियुक्ति हुई। प्रारंभिक शिक्षा के बाद अलीगढ़ के मोहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज से मैट्रिक और एफए करते हुए ही महेंद्र प्रताप सिंह के क्रांतिकारी जीवन का आरंभ हो गया। एक कांस्टेबल से विवाद होने के कारण कॉलेज के अंग्रेज प्रिंसिपल ने एक विद्यार्थी को तीन माह के लिए कॉलेज से निकाल दिया। इस पर जबरदस्त छात्र आंदोलन हुआ। इस आंदोलन का और तो कोई विशेष परिणाम नहीं निकला, हां, छात्र नेता मानकर महेंद्र प्रताप सिंह को अवश्य कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पास सभी सुख संसाधन होते हुए भी देश की हालत उन्हें व्याकुल कर रही थी। आम जनता में फैली गरीबी, अशिक्षा कैसे दूर की जाए, यह समझने के लिए राजा महेंद्र प्रताप ने दुनिया के दूसरे देशों की यात्रा का निर्णय लिया और 1907 में यूरोप के कई देशों की यात्रा की। उन्हें उस समय समझ में आ गया कि रोजगार मूलक औद्योगिक शिक्षा ही इसका हल है। जबकि हमारी सरकारों को यह समझने में वर्षों लग गए।

साल 1908 में वापस भारत आकर समाज हितैषी व बौद्धिक प्रतिभा के धनी महामना मदनमोहन मालवीय और सर्व तेज बहादुर सप्रु जैसे लोगों से मिलकर सलाह मशविरा किया और फिर 1908 में ही वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी जाति व संप्रदाय के युवकों को बिना किसी खर्चे के औद्योगिक व यांत्रिक शिक्षा देना शुरू हुआ। देश में उद्योगधंधों का सूत्रपात करना ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह का मुख्य लक्ष्य था। इस महाविद्यालय में लोहार, बढ़ई, कुंभार जैसे कार्यों को औद्योगिक स्वरूप प्रदान कर ऊंची बौद्धिक शिक्षा व व्यापारिक कौशल का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। स्नातकों को तंतुवाय, शिल्पकार और विश्वकर्मा जैसी उपाधि देने का निश्चय किया गया।

दरअसल भारत में औद्योगिक क्रांति लाने के प्रति राजा साहब कितने दृढ़ व संकल्पित थे, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उन्होंने 25 अगस्त 1910 को अपनी आधी से अधिक जायदाद इस महाविद्यालय के नाम कर दी। इसके अतिरिक्त अपना राजमहल, कचहरी और उसके आसपास जमुना तट पर बने हुए काशीघाट आदि भी महाविद्यालय को समर्पित कर दिए। 5 अप्रैल 1911 से राजा महेंद्र प्रताप के संपादकत्व में एक प्रेम नाम के समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। प्राणीमात्र के प्रति असीम प्रेम भाव मन में संयोय राजा महेंद्र प्रताप अपना सब कुछ मानों देश और समाज पर न्योछावर करने को अद्धत थे। अपने अनुभव बांटने और दूसरों से सलाह-मशविरा कर वे हमेशा इसी में लगे रहते थे कि और क्या कुछ समाज हित में किया जा सकता है। इस हेतु राजा साहब ने समूचे देश की यात्रा की। उसके बाद 1911 में दोबारा यूरोप गए और अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में जाकर उनकी कार्य पद्धति को समझा उसके बाद फिर भारत लौटे। यह वह दौर था, जब सनातनियों और आर्य समाज के लोगों के बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा था। आर्य समाज की ओर से जब फर्रुखाबाद के गुरुकुल को वृंदावन लाने की योजना बनी, तब राजा साहब ने अपना बगीचा उन्हें प्रदान कर दिया, किंतु साथ ही यह भी स्पष्ट किया मैं सनातनी होते हुए भी अपना बगीचा इसलिए प्रदान कर रहा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि समाज में हम सब मिलकर काम करना सीखें। आर्य समाज ही क्यों, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को भी जमीन दान दी, जिसका उद्देश्य एक ही था कि सभी समाज के बच्चे शिक्षित हों, सभी समाज समरस भाव से मिलकर एक साथ रहें।

हरिहर निवास शर्मा कहते हैं कि ऐसी दोटूक और बेलाग बात कोई शुद्ध हृदय का व्यक्ति ही कर सकता है। 1914 में जब विश्व युद्ध की काली घटाएं संसार पर छा रही थीं, तब राजा साहब ने देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की ठानी। उनके विद्यार्थी काल की दबी विद्रोही भावना पुनः सिर उठाने लगी और फिर 20 दिसंबर 1914 को राजा साहब अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक अनिश्चित परिणाम वाले अभियान पर चल पड़े। स्विटजरलैंड पहुंचे, तो उनकी भेंट प्रख्यात क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा व लाला हरदयाल से हुई। उनसे चर्चा के बाद मानों राजा जी यायावर ही हो गए, दुनिया भर के राजाओं और प्रमुख लोगों से मिलकर देश को स्वतंत्र कराना ही उनका मिशन बन गया। जर्मनी में कैसर से मुलाकात के बाद जर्मन चांसलर वेतवाल हालरेत ने इन्हें भारत के 26 राजाओं के नाम पत्र लिखकर दिए, जिनमें उल्लेख था कि हिंदुस्तान की आजादी के लिए जो भी राजा जी करेंगे, उसके जर्मन सरकार का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। उसके बाद तुर्की के सुलतान और काबुल के आटमन सम्राट और खलीफा से मिलकर हिंदुस्तान की आजादी के लिए पूरा नैतिक समर्थन और शस्त्रों की सहायता का आश्वासन लिया। काबुल में ही राजा जी ने 1 दिसंबर 1915 को हिंदुस्तान के लिए स्थाई आजाद हिंद सरकार की घोषणा की। इस सरकार में राजा जी खुद राष्ट्रपति और मौलाना बरकतअली व मौलाना उबायदुल्ला सिंधी उनके सहयोगी बने। इस प्रकार राजा महेंद्र प्रताप सिंह अफगानिस्तान सरकार की खातिरदारी में फरवरी 1918 तक रहे। इसके बाद हिंदुस्तान की ब्रिटिश हुकूमत ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गतिविधियों को विद्रोह मानकर 1 जुलाई 1916 को उनकी हिंदुस्तान की जायदाद कुर्क कर ली। स्वाभाविक ही हिंदुस्तान से उन्हें आर्थिक मदद पहुंचने की संभावना समाप्त हो गई। लेकिन इन सबसे बेपरवाह धुन के पक्के राजा साहब अपने अभियान में जुटे रहे। उस दौर में दुनिया का कोई प्रमुख व्यक्ति ऐसा नहीं था, जिससे राजा साहब न मिलें हों। जर्मनी के कैसर हों, चाहे रूस के मौसिए लैनिन, काबुल के अमीर अमानुल्लाह खान से लेकर चीन के प्रेसिडेंट दलाई लामा, और शाह जापान से भी राजा साहब मिले। वो हर देश पहुंचे और लगातार यात्राएं करते रहे, ताकि हिंदुस्तान को किसी भी तरह आजाद कराया जा सके। साल 1926 में राजा महेंद्र प्रताप की भेंट पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई। नेहरू ने उस भेंट का जिक्र अपनी पुस्तक मेरी कहानी में जिस अंदाज में किया है, वह अद्भुत है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू लिखते हैं कि जिस भेष में राजा साहब घूम रहे थे, वह तिब्बत या साइबेरिया में तो जंच सकता है, मौंट्रियाल में तो कतई नही, यह सच भी था, क्योंकि यह राजवंशी निहायत जिस फक्कड़ अंदाज में कोई क्या कहेगा, इसकी परवाह किए बगैर घूम रहा था, वह किसी आम आदमी के लिए भी आसान नहीं था। आज भी बहुत कम हिंदुस्तानी उनके विचारों के समर्थन में हाथ उठाएंगे। जैसे कि एक विचार में उन्होंने कहा है कि मैं अब भिक्षु की तरह प्रेम के गीत गाता फिर रहा हूं। मेरे विचार से सारा संसार ही एक बड़ा परिवार है और सब देश उसी के अंग-प्रत्यंग हैं। तो क्या यह संभव नहीं कि सब मिलकर एक विशाल और संयुक्त परिवार बनाएं? क्या हम प्रेम को अपनाकर शांति का आह्वान नहीं कर सकते? अनेक राजनीतिक लोग मुझे सपनों की दुनिया में विचरने वाला बताते हैं। लेकिन जब देश-विदेश की यात्रा करते हुए मैं करोड़ों आंखों को अपनी ओर आशा भरी दृष्टि लगाए हुए देखता हूं, तब मैं उनको ऐसा कहते हुए अनुभव करता हूं कि हे महेंद्र प्रताप तुम्हारा मार्ग बिल्कुल सही व दुरुस्त है। मैंने अपना नाम भी बदलकर पीटर पीर प्रताप रख लिया है, जिससे कि मेरे जन्म का नाम मेरे सब धर्मों की एकता में बाधक न बन जाए। यूं तो यह भारतीय अवधारणा वसुधैव कुटुंबकम का ही उद्घोष है, किंतु नफरत भरी दुनिया तो इसे दिवास्वप्न ही मानेगी। लेकिन उस दौर में राजा साहब के प्रभाव का अनुमान इसी बात से लग सकता है कि जब वो 9 अगस्त 1946 को भारत लौटे, तो सरदार वल्लभ भाई पटेल की बेटी मणिबेन उनको लेने के लिए मद्रास पहुंचीं। स्वतंत्र भारत में वे लगातार दो बार, 1952 में और 1957 में सांसद बने। फ्रीडम फाइटर एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा जाट महासभा के अध्यक्ष भी रहे।

बहरहाल, देश को सब कुछ न्योछावर कर देने की सोच रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप जी का स्वर्गवास 29 अप्रैल, 1979 को हुआ। देश के लिए सब बाद सरकार ने एक डाक टिकट जारी करके सम्मान तो दिया, लेकिन उनके कार्यों और योगदान को देखते हुए सरकार और इतिहासकारों ने असली स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, बलिदानों के साथ राजा महेंद्र प्रताप का भी सही प्रकार से मूल्यांकन नहीं किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए लगाया। भले ही साल 1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किए गए हो, लेकिन हिंदुस्तान में न उन्हें सर्वोच्च सम्मान मिला, और हिंदुस्तान के नागरिक तो उनकी जयंती और पुण्यतिथि तक भूल गए हैं। एक बार जब पंडित मदन मोहन मालवीय मथुरा गए, तो उन्होंने साफ कहा कि मथुरा ने आज तक दो महापुरुष पैदा किए, एक का नाम है श्रीकृष्ण और दूसरे हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह। इसी प्रकार महात्मा गांधी ने कहा था कि राजा महेंद्र प्रताप के लिए मेरे मन में साल 1915 से ही आदर पैदा हो गया था, उनसे भी पहले उनकी ख्याति का हाल मेरे पास अफ्रीका में पहुंच गया था। उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है। राजा साहब जैसा विश्वप्रेम, देशप्रेम अब मिलता नहीं है। दुनिया कहती है कि महात्मा गांधी सबसे बड़े हैं और मैं कहता हूं कि राजा साहब मुझसे भी बड़े हैं। इसी प्रकार से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने एक बार कहा था कि मेरी उम्र के लोग अपनी नोजवानी के दिनों में जिन महापुरुषों से प्रेरणा लिया करते थे, उसमें राजा महेंद्र प्रताप का स्थान बहुत ऊंचा था। महान संत ओशो कभी किसी व्यक्ति के घर नहीं जाते थे, लेकिन वो स्वयं राजा महेंद्र प्रताप से मिलने उनके घर आए थे। मेेरी नजर में भी ऐसे महापुरुष बिरले ही देखने को हमारे इतिहास में मिलते हैं। इतिहास मे अनेकों ऐसी उपलब्धि है जो भारत का नाम गौरवान्वित करती है। राजा महेंद्र प्रताप सिंह को देश के सर्वोच्च सम्मान देने की मांग लंबे समय से उठती रही है, और अब बाकायदा माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को समाज के कुछ जागरुक लोगों और संस्थाओं ने मांग की है आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी जरूर इस बात पर गौर करेंगे और आजादी के अमृत उत्सव के अवसर पर राजा महेंद्र प्रताप को भारत रत्न की उपाधि देना स्वतंत्रता सेनानियों और देश को गौरवान्वित करने वाला होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

21/04/2023

Jai ho Dada ki 🙏
Bhut Din M Mokka Mila ❤️

20/04/2023

Desi Balak Gama Ke 🙏

Welcome to India
16/04/2023

Welcome to India

USA TO INDIA .. RASTEDAR KA WELL_COME 🙏😂

Thanks to all, please continue supporting me, love you all ,Aapka page monetize ho GayaThanks 👍🙏
09/04/2023

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Thanks 👍🙏

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