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09/10/2023

Long Lachi & Kamli Kamli

01/10/2022

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Zindagi se yahi gila hai mujhe :
30/09/2022

Zindagi se yahi gila hai mujhe :

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       #कविता
30/09/2022

#कविता

#कविता #شاعری Copyright Disclaimer under Section 107 of the copyright act 1976, allowance is made for fair use for purposes such as criticism, commen...

Baadban khulne se pahle ka ishara dekhna :
27/09/2022

Baadban khulne se pahle ka ishara dekhna :

#कविता

Kuchh to hawa bhi sard thi
26/09/2022

Kuchh to hawa bhi sard thi

#कविता

26/09/2022

25/09/2022

#कविता

Chal mere dil khula hai mayekhana
24/09/2022

Chal mere dil khula hai mayekhana

14/09/2022

13/09/2022

18/08/2022

अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
उस झील सी नीली आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ

ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की
वो नाम जो मेरे होंटों पर ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ

उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ

वो अपने गाँव की गलियाँ थीं दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ

नोशी गिलानी

16/08/2022

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म-नर्म गालों में

यूँ किसी की आँखों में सुब्ह तक अभी थे हम
जिस तरह रहे शबनम फूल के प्यालों में

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में

जैसे आधी शब के बाद चाँद नींद में चौंके
वो गुलाब की जुम्बिश उन सियाह बालों में

बशीर बद्र

15/08/2022

रस्ता भी कठिन धूप की शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उस को मोहब्बत भी बहुत थी

बारिश की दुआओं में नमी आँख की मिल जाए
जज़्बे की कभी इतनी रिफ़ाक़त भी बहुत थी

कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास कम आए
और कुछ मेरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी

फूलों का बिखरना तो मुक़द्दर ही था लेकिन
कुछ इस में हवाओं की सियासत भी बहुत थी

ख़ुश आए तुझे शहर-ए-मुनाफ़िक़ की अमीरी
हम लोगों को सच कहने की आदत भी बहुत थी

परवीन शाकिर

15/08/2022

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
मुझ पे एहसान हवा करती है

चूम कर फूल को आहिस्ता से
मोजज़ा बाद-ए-सबा करती है

अब्र बरसते तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
गुफ़्तुगू तुझ से रहा करती है

दिल को उस राह पे चलना ही नहीं
जो मुझे तुझ से जुदा करती है

ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
तेरे कहने में रहा करती है

उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख
दिल का अहवाल कहा करती है

देख तू आके कभी चेहरा मेरा
इक नज़र भी तेरी क्या करती है

शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है

मसअला जब भी चराग़ों का उठा
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है

परवीन शाकिर

06/08/2022

लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी

दूर दुनिया का मेरे दम अंधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शमा से हो मुझको मोहब्बत या रब

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों से मोहब्बत करना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझको

अल्लामा इक़बाल

06/08/2022

अपना ख़ाका लगता हूँ
एक तमाशा लगता हूँ

आईनों को ज़ंग लगा
अब मैं कैसा लगता हूँ

अब मैं कोई शख़्स नहीं
उस का साया लगता हूँ

सारे रिश्ते तिश्ना हैं
क्या मैं दरिया लगता हूँ

उस से गले मिल कर ख़ुद को
तन्हा तन्हा लगता हूँ

जौन एलिया

06/08/2022

कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास ना आए

और कुछ मेरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी

परवीन शाकिर

06/08/2022

कोई लश्कर के धड़कते हुए ग़म आते हैं
शाम के साए बहुत तेज़ क़दम आते हैं

दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं
उसके दरवाज़े पे सौ अहल-ए-करम आते हैं

मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं

मैंने दो चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीक़े मुझे कम आते हैं

बशीर बद्र

06/08/2022

गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
दिल पे उतरें हैं वही ख़्वाब अज़ाबों की तरह

राख के ढेर पे अब रात बसर करनी है
जल चुके हैं मेरे ख़ेमे मेरे ख़्वाबों की तरह

साअत-ए-दीद कि आरिज़ हैं गुलाबी अब तक
अव्वलीं लम्हों के गुलनार हिजाबों की तरह

वो समुंदर है तो फिर रूह को शादाब करे
तिश्नगी क्यूँ मुझे देता है सराबों की तरह

ग़ैर-मुमकिन है तेरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह

याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह

कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
तेरा मेआर बदलता है निसाबों की तरह

शोख़ हो जाती है अब भी तेरी आँखों की चमक
गाहे गाहे तेरे दिलचस्प जवाबों की तरह

परवीन शाकिर

31/07/2022

कभी ज़ुल्फ पर, कभी चश्म पर, कभी तेरे हसीन वजूद पर

जो पसंद थे मेरी किताब में, वो शेर सारे बिखर गये

#शायरी #कविता

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